एक उदाहरण, अध्भुत जैविक खेती का
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कहानियाँ, किस्से कभी कम नहीं होते है। हमें प्रेरणा देने के लिए हज़ारों कहानियाँ, हज़ारो किस्से हैं। कुछ कहानियां, कहनियाँ रह जाती हैं कुछ कहानियाँ कभी-कभी हक़ीक़त और मिसाल बन जाती हैं। ऐसी ही एक महिला जिन्होंने न तो ज्यादा पढ़ाई-लिखाई की है, न ही किसी बड़े शहर में रहती हैं।
काबिलियत ही एक नई सुबह की भांति सूरज उगाती है।
अँधेरा चाहें कितना गहरा हो, रौशनी चमक ही जाती है।।
कहानियाँ, किस्से कभी कम नहीं होते है। हमें प्रेरणा देने के लिए हज़ारों कहानियाँ, हज़ारो किस्से हैं। कुछ कहानियां, कहनियाँ रह जाती हैं कुछ कहानियाँ कभी-कभी हक़ीक़त और मिसाल बन जाती हैं। ऐसी ही एक महिला, जिन्होंने न तो ज्यादा पढ़ाई-लिखाई की है, न ही किसी बड़े शहर में रहती हैं। बावजूद इसके, वह अपने गांव और आस-पास के कई गावों की महिलाओं के लिए एक आदर्श हैं। साथ-साथ उन्हें रोजगार देने में सफल रही हैं। हम बात कर रहे हैं, गुजरात के नर्मदा जिले के सागबारा तालुका की रहनेवाली महिला किसान, उषा वसावा की।
उषा, आज से 17 साल पहले एक सामान्य गृहिणी थीं। उनके पति दिनेश वसावा एक किसान थे, जो अपनी पांच एकड़ जमीन पर खेती करते थे। लेकिन खेती में खाद, बीज, मज़दूर का खर्च इतना ज़्यादा था कि बड़ी मुश्किल से घर का गुजारा चल पाता था। ऐसे में, उषा ने खेती में कुछ बदलाव लाने का फैसला किया। हालांकि, उन्हें खेती की ज्यादा जानकारी नहीं थी। तभी उन्हें Aga Khan Rural Support Programme (India) के बारे में पता चला। वह बताती हैं, उस समय घर से निकलना इतना आसान नहीं था। लेकिन मुझे अपनी आर्थिक स्थिति में बदलाव लाना था। इसलिए मैंने 2005 में AKRSPI ज्वाइन किया।
उषा जी बताती हैं, हमे वहां लीडरशिप, जमीन पर महिला अधिकार और सरकारी नियमों व योजनाओं की जानकारी दी गई। साथ ही, हमें ऑर्गेनिक खेती की तालीम भी मिली। चूँकि, उस समय बहुत कम लोग ऑर्गेनिक खेती के बारे में जानते थे और मेरे लिहाज़ से अभी भी लोग कम जानकारी रखते हैं ओर्गैन्क खेती के बारे में। इसलिए सभी को लगता था कि इस तरह की खेती से फसल अच्छी नहीं होगी।
वह बताती हैं कि उस समय हाइब्रिड बीजों और नए रासायनिक खाद का उपयोग ज्यादा किया जा रहा था। लेकिन उन्हें अपनी ट्रेनिंग पर पूरा भरोसा था। वहां उन्हें ट्रेनिंग के दौरान, वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) बनाना और ऑर्गेनिक कीटनाशक बनाना भी सिखाया गया था। उषा ने अपनी पांच एकड़ जमीन में से, तकरीबन तीन एकड़ में ऑर्गनिक खेती से शुरुआत की। जमीन में पहले से काफी मात्रा में रसायन का उपयोग होने से उनके खेतों की उर्वरता भी पहले से कम हो गयी थी। यही कारण था कि पहले साल हमें मुनाफा भी कम हुआ। अच्छी फसल के लिए, अच्छी जमीन बहुत जरूरी है। हमने खेतों को धीरे-धीरे वर्मी कम्पोस्ट, गाय के गोबर आदि से तैयार किया। हमने फिर अगले साल, उसमें सब्जियां, दाल और मूंगफली उगाईं। अब हर साल मैं अपने खेतों में सीजनल सब्जियां, लाल चावल आदि उगाती हूँ। बाकि दो एकड़ खेत में कपास की खेती होती है।
वह कहती हैं कि हम खेतों में दवा के रूप में गोमूत्र का इस्तेमाल करते हैं। पंप की मदद से खेतों में उसका छिड़काव करते हैं। इससे कीट मर जाते हैं। साथ ही, गो-मूत्र का असर लंबे समय तक रहता है। वहीं, खाद के लिए गोबर का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक एकड़ जमीन के लिए खाद तैयार करने के लिए 20 किलो गोबर, 5 लीटर गौ-मूत्र, एक किलो बेसन, 1 किलो गुड़ और 5 किलो मिट्टी की जरूरत होती है। इन सभी को मिलाने के बाद कुछ देर तक इसे सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। फिर इन्हें खेत में मिलाया जाता है। और वैसे भी गौ माता कितनी लाभकारी हैं आप सभी भली भांति परचित हैं।
अपने साथ हजारों महिलाओं को रोजगार से जोड़ा
उन्होंने अपने ही आसपास के इलाके में सरकारी विभागों के साथ मिलकर, महिला किसानों के अधिकारों के लिए काम करने की शुरुआत की। उषा ने अपनी गाँव और उसके आसपास की कुछ और महिलाओं के साथ मिलकर साल 2012 में, नवजीवन आदिवासी महिला विकास मंच बनाया। वह यहां अपने जैसी दूसरी आदिवासी महिलाओं को भी ऑर्गेनिक खेती की ट्रेनिंग देती हैं और उन्हें उनकी जमीन पर खेती करने के लिए प्रेरित करती हैं।
ऐसी ही ना जाने कितनी कहानियां हैं, जो एक मिसाल बनकर उभरी जिन्होंने न केवल खुद के जीवन को सँवारा बल्कि दूसरे कई लोगों के जीवन में उम्मीद की किरण पैदा की। एक रौशनी अक्सर मीलों दूर तक के अँधेरे को चीर सकती हैं, बस हमारे अंदर अपनी प्रतिभा को उजागर करने की ललक और जज़्बा होना जरुरी है।
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