संगीता बनी हार न मानने की प्रेरणा
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कहते हैं, कच्ची उम्र में अगर कंधो पर जिम्मेदारियों का बोझ हो तो, छोटी उम्र में ही दुनिया की सारी सीख मिल जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ बुलंदशहर के पिछड़े गांव भड़कउ की रहने वाली संगीता सोलंकी के साथ। जब संगीता केवल 9 वर्ष की थी, तभी उनके पिता दुनिया से अलविदा ले चुके थे। घर में दो बड़े भाई थे, ज़ाहिर सी बात है उनकी शिक्षा को ज्यादा महत्व दिया गया होगा। लेकिन संगीता ने खेती के दम पर अपनी पढ़ाई पूरी की, उन्होंने अपने खर्च उठाने के लिए प्रतियोगिता परीक्षाओं में भाग लेने वाले परीक्षार्थीयों को हिंदी व्याकरण की टूशन प्रदान करती थीं। उन्होंने पढ़ाई में एमफिल में गोल्ड मेडल हासिल किया, इसके बाद नेट और जेआरएफ उत्तीर्ण कर लिया फिलहाल एनएएस कालेज से डा. प्रज्ञा पाठक के निर्देशन में शोध कर रहीं हैं। उनके इस शानदार संघर्ष का प्रतिफल यह है कि वह अपने गांव में अन्य लड़कियों की प्रेरणा बन गयी हैं और उनके कार्यों के प्रयास से गांव के लोगों की मानसिकता भी बदल रही है।