सबका साथी - बैग कम डेस्क

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सबका साथी - बैग कम डेस्क
18 Aug 2021
5 min read

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हम हमेशा अपनी ज़रूरतों को पूरा करने में लगे रहते हैं। कभी अपनी दुनिया से बाहर झाँक कर नहीं देखते कि जिन सुविधाओं से हम घिरे हैं वो सुविधाएँ कुछ लोगों के लिए सपना ही है। हम लोग बस अपने लिए कमा रहे हैं। मगर यहाँ ऐसे भी लोग हैं, जो अपने साथ साथ दूसरों की तकलीफों को समझकर उसका समाधान निकालते हैं। हम ऐसी ही 24 साल के छात्र की सोच को सलाम करते हैं, जिसने बच्चों की तकलीफों और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कुछ ऐसा बनाया जिसकी चर्चा आज सब जगह है।

 हम हमेशा अपनी ज़रूरतों को पूरा करने में लगे रहते हैं। कभी अपनी दुनिया से बाहर झाँक कर नहीं देखते कि जिन सुविधाओं से हम घिरे हैं वो सुविधाएँ कुछ लोगों के लिए सपना ही है। हम लोग बस अपने लिए कमा रहे हैं। मगर यहाँ ऐसे भी लोग हैं, जो अपने साथ साथ दूसरों की तकलीफों को समझकर उसका समाधान निकालते हैं। हम ऐसी ही 24 साल के छात्र की सोच को सलाम करते हैं, जिसने बच्चों की तकलीफों और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कुछ ऐसा बनाया जिसकी चर्चा आज सब जगह है।

महाराष्ट्र के नागपुर में जन्मे और पले- बढ़े हिमांशु मुनेश्वर देवरे इन दिनों अपने एक खास आविष्कार की वजह से सुर्खियों में हैं। 24 वर्षीय हिमांशु ने इको-फ्रेंडली मेटेरियल से एक बैग कम डेस्क बनाया है। इसे स्कूली बच्चे अपनी कॉपी किताब रखने के लिए बैग और फिर स्कूल में बैठकर पढ़ने के लिए डेस्क के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। उनका बनाया यह एक इनोवेशन, ज़रूरतमंद छात्रों के जीवन में दो ज़रूरी चीजों की कमी को पूरा कर सकता है।

उन्होंने कहा, मुझे ऐसा प्रोडक्ट बनाना था जो किसी ज़रूरतमंद की समस्या को हल करे और साथ ही, किफायती और इको-फ्रेंडली भी हो। मुझे स्कूल बैग और डेस्क एक साथ बनाने का आईडिया नागपुर के एक गाँव में मिला।

हिमांशु के पिता गाँव के एक स्कूल में शिक्षक हैं। अक्सर हिमांशु का इस स्कूल में आना-जाना होता था। उन्होंने यहाँ हमेशा बच्चों को नीचे दरी या कालीन पर बैठकर पढ़ते हुए देखा। इस वजह से अक्सर बच्चों के शरीर का आकर खराब होता है। ज्यादा देर तक बच्चे बैठ नहीं पाते हैं और फिर वह झुक कर काम करते हैं। इस कारण बहुत से बच्चों को बीमारियाँ भी होने लगती हैं। स्कूल प्रशासन के पास इतना बजट नहीं कि वो सभी बच्चों के लिए बेंच का इंतज़ाम करें।

इसके अलावा, एक और समस्या थी कि ये बच्चे ऐसे घरों से आते हैं, जहाँ उनके बैग और कॉपी-किताब का खर्च उठाना भी उनके माता-पिता के लिए काफी मुश्किल होता है। ज़्यादातर सरकारी और ट्रस्ट स्कूलों में आप देखेंगे कि बच्चे पुराने कपड़े या टाट के बने झोलों में अपनी कॉपी-किताब लेकर आते हैं।

हिमांशु ने इन दो समस्याओं के हल पर काम करने की सोची। अपने कॉलेज में शिक्षकों और टीम के साथ विचार-विमर्श करके और थोड़ा रिसर्च करके उन्हें समझ में आया कि उन्हें एक बैग कम डेस्क का मॉडल बनाना चाहिए।

आईडिया भले ही एक जैसा है लेकिन हिमांशु के बैग कम डेस्क के बनाने का तरीका और मेटेरियल बिल्कुल ही अलग है। हिमांशु ने न सिर्फ एक अच्छा प्रोडक्ट बनाया है बल्कि उनका प्रोडक्ट किफायती और पर्यावरण के अनुकूल भी है।

उनके इनोवेशन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्होंने इसे उत्तर-भारत में सरकंडे या मूंज के नाम से जानी जाने वाली एक घास से बनाया है। मूंज घास का उपयोग ग्रामीण इलाकों में बहुत सारी चीजें बनाने के लिए किया जाता है जैसे कि टोकरी, रोटी रखने के लिए डिब्बा, बैठने के लिए मुढ़ी आदि। गाँव की औरतें अपने-अपने घरों के लिए खुद ही इस घास से दैनिक ज़रूरत की चीजें बना लेती हैं।

अपने बैग कम डेस्क को उन्होंने ‘साथी’ नाम दिया है और इसे बनाने में मूंज घास के अलावा, कैनवास और अल्युमुनियम की रॉड का इस्तेमाल हुआ है। बच्चे इसे आसानी से अपने कंधों पर टांगकर स्कूल आ सकते हैं और यहाँ ज़मीन पर इसे रखकर डेस्क बना सकते हैं। इससे बच्चों को पढ़ने में कोई परेशानी नहीं होती है।

हिमांशु ने ऐसे दो प्रोडक्ट नैनी गाँव के ही दो बच्चों को दिए और एक बैग कम डेस्क को अपने कॉलेज में सबमिट किया। उनके इस प्रोडक्ट को काफी सराहा जा रहा है क्योंकि यह बच्चों के लिए तो अच्छा है ही, साथ ही मात्र 400 रुपये इसकी लागत है। वह बताते हैं कि अगर बड़े स्तर पर इन बैग कम डेस्क का निर्माण किया जाए तो इस लागत को 200-250 रुपये तक भी लाया जा सकता है।

कम लागत और देसी घास से बना हिमांशु का यह प्रोडक्ट काबिल-ए-तारीफ़ है। अगर इसे बनाने के लिए कहीं कोई यूनिट सेट-अप की जाए तो ग्रामीण परिवेश में लोगों को रोज़गार भी मिल सकता है। हिमांशु के मुताबिक, इस प्रोडक्ट को बनाने में थोड़ा वक़्त लगा क्योंकि घास को बुनने में दो-तीन दिन लग जाते हैं। लेकिन अगर कारीगर पहले से प्रशिक्षित हो और प्रोफेशनल लेवल पर उनसे काम कराया जाए तो ज्यादा वक्त नहीं जाएगा।

यह सोच वाकई खूबसूरत है, जो बच्चों के लिए मददगार साबित हो रही है। साथ ही यह एक अच्छे व्यवसाय को भी उजागर कर रही है, जिसे आप काम लागत में शुरू कर सकते हैं और वातावरण के अनुकूल भी है।