वैश्वीकरण: बदलते भारत की तस्वीर

Share Us

9983
वैश्वीकरण: बदलते भारत की तस्वीर
13 Aug 2021
9 min read

Blog Post

भारत अपनी आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। 75 वर्ष एक लम्बा समय होता है और देश ने इस सफर को बड़े ही शानदार तरह से विकास के रास्ते पर चलते हुए पूरा किया। देश ने इन वर्षों में खुद को देश की उभरती हुई, एक स्थिर अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया है। देश में प्रत्येक व्यक्ति को उसके विचारों को प्रकट करने और उस पर अमल करने की आजादी ने, देश की स्थिति को सुधारने का काम किया ।  

व्यक्ति के सोच का विकास तभी होता है, जब वो उसे कई दिशाओं में अलग-अलग मुद्दे पर सोचने के लिए विस्तारित करता है। ठीक उसी प्रकार समाज का विस्तार और विकास करने के लिए समाज को प्रत्येक क्षेत्र को साथ में लेकर चलना होता है। मनुष्य के विचारों को उड़ान मिलने से वो विकास और बेहतर समाज को ही सामने लेकर आता है। क्षेत्र कोई भी हो उसका विकास तभी संभव है, जब उसमें अपने विचारों के साथ दूसरे के विचारों को भी प्रवेश करने की अनुमति हो। अपने क्षेत्र में दूसरे के विचारों को अंदर आने की आजादी हो, तो एक स्वस्थ समाज का निर्माण होता है। भारत अपनी आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। 75 वर्ष एक लम्बा समय होता है और देश ने इस सफर को बड़े ही शानदार तरह से विकास के रास्ते पर चलते हुए पूरा किया। देश ने इन वर्षों में खुद को देश की उभरती हुई, एक स्थिर अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया है। देश में प्रत्येक व्यक्ति को उसके विचारों को प्रकट करने और उस पर अमल करने की आजादी ने, देश की स्थिति को सुधारने का काम किया। इसमें चार चाँद तब लग गए जब विदेशी अर्थव्यवस्थाओं को भी भारत में अपने सिद्धातों को प्रवेश करने की अनुमति मिली, जिसने भारत को विकास की राह पर आगे बढ़ते रहने के कई और रास्ते दिखाए। ग्लोबलाइजेशन हमारे देश के विकास का बहुत बड़ा कारण बना।    

विदेशी निवेश से अच्छी अर्थव्यवस्था का निर्माण 

ग्लोबलाइजेशन के माध्यम से एक स्वस्थ आर्थिक समाज का निर्माण होता है। इससे क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था, समाज और सभ्यताओं का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संचार करके हम बेहतर अर्थव्यवस्था को बनाने की कोशिश करते हैं। भारत ने इस क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया है। आजादी के बाद भारत की जो स्थिति थी उसे सुधारने में ग्लोबलाइजेशन ने बहुत मुख्य भूमिका निभाई है। औद्योगिक क्षेत्र में विदेशी कंपनियों के निवेश ने भारत में लोगों के लिए रोजगार के रास्ते खोल दिए। इसके साथ में विदेशी कंपनियों के भारत में आने से क्षेत्रीय लोगों को भी व्यवसाय करने के नए तरीकों का पता चला। इस तरह से भारत विकास के सफर पर आगे बढ़ता चला गया।      

90 के दशक में ग्लोबलाइजेशन ने दी दस्तक 

देश में ग्लोबलाइजेशन ने 90 के दशक में दस्तक दी। इसके साथ ही भारत में आर्थिक सुधारों की कड़ी बढ़ती चली गयी। यह वह समय था जब देश में विदेशी कंपनियों को अपने उद्योग के शाखाओं को खोलने और विस्तार करने की अनुमति मिली। आजादी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था बहुत हिली हुई थी, जिसे कई सालों तक सुधारने की कोशिश पूरी तरह सफल नहीं हो पा रही थी। इससे पहले देश में आयी हरित क्रांति और श्वेत क्रांति ने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारा तो परन्तु वो देश की अर्थव्यवस्था का विस्तार नहीं कर पाई। 1991 में लिया गया यह फैसला आर्थिक सुधारों की नयी रौशनी लेकर आया, जिसने पूरे देश को रोशन किया। 1991 में व्यवसायिक नियमों में बदलाव देश के विकास का मील का पत्थर साबित हुआ। 

निजीकरण का फैसला था जोखिम भरा 

जिस वक़्त भारत में इस नियम को लाया गया उस वक़्त देश की महंगाई दर 13.6 प्रतिशत थी, इससे पहले इसकी स्थिति 28.6 प्रतिशत के साथ और भी ख़राब थी। उस समय में व्यक्ति की औसत आयु 58.3 था, जबकि दुनिया में यह औसत 65.6 था। देश कर्ज में डूबा था, जिसकी आपूर्ति करने के लिए कहीं और से कर्ज का रास्ता लेना पड़ता था। उस वक़्त लोगों के पास व्यवसाय के तरीके तो बहुत थे परन्तु कोई भी जोखिम उठाने को तैयार नहीं था, क्योंकि उससे और नुकसान होने का भी खतरा था, जिसका जोखिम कोई उठाना नहीं चाहता था। सरकार द्वारा खजाने में मौजूद सोने को बेचकर कर्ज चुकाने और उसके पैसे से देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने का फैसला किया। इस कदम ने देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति का रुख बदल दिया। देश कर्ज के बोझ से बहार निकल आया और लम्बे समय से चली आ रही बीमारी का अंत हुआ।

देशवासियों की आयु दर में वृद्धि 

देश में विदेशी निवेश से भारत को 51 फीसदी विदेशी निवेश मिले। पहले उद्योग के लिए जितना आरक्षण था, उसकी दर को 18 से घटाकर 8 फीसदी कर दिया गया। औद्योगिक निति में मोनोपोली एंड रेस्ट्रिक्टिव ट्रेड प्रैक्टिसेज एक्ट को संसोधित किया गया। जिसके तहत कंपनी में प्रतियोगिता को बढ़ावा दिया गया। इसके बाद देश की अर्थव्यवस्था में स्थिरता आयी। भारतीय कंपनियां मजबूती से अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में कार्य करने लगी। आयत शुल्क में कमी करने के फैसले ने भी अर्थव्यवस्था पर अच्छा प्रभाव डाला। देश विकास की राह पर अग्रसर हो गया। देश के प्रत्येक व्यक्ति की आय अब 6 गुना बढ़ गयी। जहाँ पर पहले भारतीयों की औसत आयु 58.3 थी वो अब 70 वर्ष से अधिक हो गयी। यह सब 1991 में देश के हित में लिए गए फैसलों के कारण संभव हो पाया।  इसके बाद देश इन नीतियों को पूरी दृढ़ता के साथ अपनाते हुए आगे बढ़ता गया।

सारांश -

इसे केवल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में ही विकास नहीं कहा जा सकता है। इन फैसलों ने और क्षेत्रों पर भी असर डाला। इसने देश की विचारधारा को भी बदलने का काम किया। इसने एक विकसित समाज का निर्माण किया। लोगों के सोचने का तरीका भी बदला। विकास से लोगों के रहन-सहन में भी बदलाव आया। कहते हैं न कि देश विकासशील देश की श्रेणी में तब आता है, जब वह अर्थव्यवस्था के साथ सामाजिक परिस्थितियों को भी अच्छे कारणों के लिए बदलता है। भारत ने प्रत्येक स्तर पर अपने स्थिर संपत्ति का निर्माण किया। जो आज प्रत्येक भारतीय के जीविका और जीवन का आधार बना हुआ है।