दियों की घटती मांग, कुम्हारों को करती चिंतित
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दिवाली पर दियों का बहुत महत्त्व होता है। यह भी सत्य है कि मिट्टी के दीयों की जगह कोई अन्य वस्तु नहीं ले सकता। यह पारंपरिक रूप से उपयुक्त भी माना जाता है। मिट्टी के दीये घरों में एक अनूठी चमक और आकर्षण जोड़ते हैं और साथ ही शुभ भी माने जाते हैं। इनको अपनाना ग़रीबों के जीवन को रोशन करने में एक योगदान हो सकता है, जो पूरे साल इस समय का इंतजार करते हैैं।
रोशनी का त्योहार, दिवाली, अपने साथ खुशियां लेकर आता है। इस पावन पर्व पर दिये जलाने की परंपरा बहुत ही पुरानी है। खास कर मिट्टी के दीये जलाना शुभ माना जाता है। लेकिन आज के दौर में लोग रेडीमेड बने छालरों और मोमबत्तियों को अपनाने लगे हैं। जिसके कारण कुम्हारों और अन्य कारीगरों की आय बुरी तरह प्रभावित हुई है। यह समस्या अत्यंत ही चिंताजनक है, क्योंकि बदलते समय के साथ इसकी लुप्तता बढ़ती जा रही है। हालांकि कई सरकारों ने इस समस्या की ओर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की है, लोगों को स्वदेशी और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प को चुनने के लिए प्रोत्साहित किया है। दूसरे हमें प्रोत्साहित कर सकते हैं परन्तु यह अपने अंदर यह जागरूकता हमें ख़ुद से लाने की आवश्यकता है। जिससे त्योहार के दिनों में इन गरीब वर्गों के घर भी खुशियों और उमंग से भर जाएं।
दिवाली पर दिए जलाने की परंपरा
दिवाली को रोशनी और दियों का पर्याय कहना ग़लत नहीं होगा। दिवाली पर घरों में दिये जलाने की परंपरा बहुत पुरानी है। इन्हें सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न में जलाए जाते हैं। राम कथा के अनुसार, भगवान राम के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर अयोध्यावासियों ने सारे नगर को दियों से रोशन किया था और तभी से दिवाली पर मिट्टी के दीये से पूरे घर और आस-पास के आवरण को रोशन की प्रथा निरंतर विद्यमान है।
विदेशी लाइटों का बढ़ता प्रचलन
समय के साथ, आधुनिकता की ओर बढ़ने के कारण मिट्टी के दीयों का महत्त्व कम होता दिखाई पड़ रहा है। बाज़ार में अनेकों प्रकार की लाईट, मोमबत्तियां और लैंप उपलब्ध हो गई हैं, जिसके कारण मिट्टी के दीयों की मांग में बहुत कमी आई है। लोग आज रंगीन बिजली वाले लतरों को अधिक चुनने लगे हैं। यहॉं तक कि कुछ लोग धातु से बने दियों की ओर भी रुख़ करने लगे हैं। इस कारण पूरे भारत में कुम्हारों की आय में कमी आई है। कम आय से पीड़ित होने के कारण उन्हें अपना गुज़ारा करना मुश्किल हो गया है।
भारत में मिट्टी के बर्तन बनाने की परंपरा सबसे पुरानी शिल्प कलाओं में से एक है। रोशनी का त्योहार दिवाली के दौरान हज़ारों कुम्हार मिट्टी के दीये बनाने में अपने परिवार के साथ जुट जाते हैं। दियों की बिक्री बढ़ाने का यह सबसे उचित समय होता है। लेकिन वर्तमान समय में कुम्हारों की हालत अत्यंत ही दयनीय है। दियों को बनाना बहुत ही कठिन कार्य होता है। गर्मियों के दिनों में नदी और तालाबों से मिट्टी को इकट्ठा किया जाता है और उन्हें कई प्रक्रियाओं के बाद दियों का आकार दिया जाता है। उन दियों को बनाने के बाद उन्हें रंगा जाता है, जिसमें अनेक कारीगर शामिल होते हैं। हालॉंकि इतनी मेहनत के बाद भी उन्हें अपनी मेहनत का पूर्ण परिणाम नहीं मिल पाता।
मिट्टी के दीये पर्यावरण के अनुकूल
यह समस्या अवश्य ही चिंताजनक है। कुम्हारों और अन्य कारीगरों की इस समस्या का एकमात्र समाधान यह है कि लोगों में मिट्टी के दियों को अपनाने के लिए जागरुकता उत्पन्न की जाए। उनकी विशेषताओं के बारे में लोगों को बताया जाए। मिट्टी के दीये जलाने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि यह पर्यावरण को दूषित नहीं करता। हालॉंकि बढ़ती महंगाई एक मुख्य कारण बन गई है, जिसके कारण लोग बिजली वाली लाइटों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने लगे हैं, ज़ो अगली दिवाली में भी काम में आ जाता है। दियों की तुलना में रेडीमेड लाईट सस्ते और अनेक प्रकार के डिज़ाइनों में उपलब्ध होते हैं। लेकिन इस बात से नकारा नहीं जा सकता है कि मिट्टी के दीये पर्यावरण के अनुकूल और साथ ही स्वदेशी भी होते हैं।
सरकारों की पहल
कुम्हारों की इस समस्या को ध्यान में रखते हुए सरकारें इस ओर विशेष ध्यान दे रही हैं। सरकार लोगों से बाहरी ताम-झाम को छोड़ मिट्टी के दीयों को अपनाने के लिए अनुरोध कर रही हैं। इस मुद्दे को ध्यान में रखते हुए सरकार ने "मेक इन इंडिया" मुहीम की भी शुरुआत की है। इस कदम के साथ कुम्हारों की आय में सुधार होने की उम्मीद है। कुम्हारों में भी इसे लेकर उत्साह देखने को मिल रहा है। वे इस मुहिम के कारण अब बाजारों में विभिन्न आकृतियों, आकार, रंगों और डिजाइनों में मिट्टी के दीये उपलब्ध करा रहे हैं। आज बाज़ार में सुंदर पत्थरों और मोतियों से सजे डिज़ाइनर दीये उपलब्ध हैं, जो हमारे स्थानीय कुम्हारों और कारीगरों के महान कलात्मक भावना को प्रदर्शित करते हैं।
दिवाली पर दियों का बहुत महत्त्व होता है। यह भी सत्य है कि मिट्टी के दीयों की जगह कोई अन्य वस्तु नहीं ले सकता। यह पारंपरिक रूप से उपयुक्त भी माना जाता है। मिट्टी के दीये घरों में एक अनूठी चमक और आकर्षण जोड़ते हैं और साथ ही शुभ भी माने जाते हैं। इनको अपनाना ग़रीबों के जीवन को रोशन करने में एक योगदान हो सकता है, जो पूरे साल इस समय का इंतजार करते हैैं।
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