नाटो (NATO) क्या है और यह कैसे काम करता है?
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रूस और यूक्रेन के बीच इस वक्त बहुत ही तनावपूर्ण स्थिति है। इन दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है। माना जा रहा है कि यूक्रेन का NATO में शामिल होने की घोषणा करना ही रूस और यूक्रेन के बीच पैदा हुए युद्ध की वजह है। यह सुनने के बाद हर किसी के मन में ये सवाल जरूर है कि आखिर नाटो (NATO) क्या है। इस लेख के माध्यम से आप जान पाएंगे कि नाटो क्या है और इसका कार्य क्या है।
आजकल रूस और यूक्रेन में जंग छिड़ी हुई है और इसके साथ रूस Russia और यूक्रेन Ukraine विवाद में जिस संगठन की आजकल सबसे ज्यादा चर्चा अधिक हो रही है वह संगठन है नाटो (NATO)। हर कोई इसकी भूमिका की चर्चा कर रहा है। कहा जा रहा है कि यूक्रेन ने नाटो (NATO) का सदस्य बनने की कोशिश की थी लेकिन रूस चाहता था कि यूक्रेन नाटो का सदस्य न बने और ये भी कहा जा रहा है कि NATO अपने कर्तव्यों से दूर भाग रहा है। इस तरह (नाटो) यूक्रेन-रूस युद्ध का केंद्र बिंदु बन गया है इसलिए इन हालातों को देखकर ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर नाटो नाम का यह संगठन क्या है, इसमें कौन से देश शामिल हैं और इसका क्या कार्य है।
नाटो क्या है?
नाटो (NATO) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन international organization है जो राजनीतिक और सैन्य political and military साधनों के माध्यम से अपने सदस्य देशों को स्वतंत्रता और सुरक्षा Freedom and security की गारंटी देता है। इसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 को की गई थी। जब नाटो का गठन किया गया था, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे और पुर्तगाल इसके 12 संस्थापक सदस्य थे। उत्तर मैसेडोनिया वर्ष 2020 में शामिल होने वाला सबसे नया सदस्य है। अब यह संगठन 28 यूरोपीय देशों और 2 उत्तरी अमेरिकी देशों के बीच बनाया गया है। मतलब नाटो एक सैन्य संगठन है जिसमें 30 देशों की सेना की मदद शामिल है। NATO नाटो का पूरा नाम है North Atlantic Treaty Organization द नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी आर्गेनाइजेशन यानि उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन। इसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनाया गया था। इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) Brussels, Belgium में है।
आज के समय में दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन संगठन military alliance organization नाटो है। इस संगठन के अंतर्गत एक देश अपनी सेना को दूसरे देश में भेजता है जहां पर उन्हें इंटरनेशनल ट्रेनिंग भी दी जाती है। इसके अलावा उन्हें यह भी आदेश दिया जाता है कि वो हर परिस्थिति से निपटने की कोशिश करें। दरअसल जब विश्व युद्ध (World War) की समाप्ति हुई थी तो तब दुनिया के बहुत सारे देशों को जान और माल का नुकसान झेलना पड़ा था। ऐसे में सभी देश परेशान थे कि दुबारा से ऐसी कोई घटना फिर न घटे। इसी परेशानी को हल करने के लिए नाटो (NATO) का निर्माण हुआ था। नाटो के अंतर्गत जो भी देश नाटो के नियमों का पालन नहीं करता है उस पर कठोर कार्यवाही की जाती है। रूस और यूक्रेन के बीच बढ़े तनाव के संबंध में कहा जा रहा है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बनने की इच्छा रखता है पर रूस इस बात के विरुद्ध है। रूस शायद नहीं चाहता है कि उसका पड़ोसी राष्ट्र नाटो की सदस्यता ग्रहण करे। कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे यूक्रेन का नाटो सदस्य बन जाना रूस को पसंद नहीं है। दरअसल यूक्रेन का नाटो सदस्य बनने का मतलब होगा कि रूस की सीमा तक नाटो सेनाओं की स्थायी मौजूदगी हो सकती है। नाटो ने साल 2008 के ब्यूक्रेस्ट सम्मेलन में यूक्रेन का नाटो सदस्य बनने की इच्छाओं का स्वागत किया था पर कुछ कारणों उसे सदस्यता नहीं दी गई।
नाटो का इतिहास एवं सदस्य देश
जब साल 1945 में जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो अमेरिका और सोवियत संघ एक महा शक्ति के रूप में बन कर उभरे जिसके कारण यूरोप Europe में खतरे की संभावना बढ़ गई थी। इस परेशानी को समझते हुए फ्रांस, ब्रिटेन, नीदरलैंड, बेल्जियम France, UK, Netherlands, Belgium जैसे कई देशों ने यह संधि की और इसमें ये कहा गया कि यदि किसी देश पर हमला होता है तो दूसरे देश उस देश को सैन्य सहायता logistical support देंगे। इसके अलावा उन्हें आर्थिक और सामाजिक तौर पर भी सहायता देंगे। फिर अपने आप को शक्तिशाली साबित करने के लिए बाद में अमेरिका सोवियत संघ की घेराबंदी करने लगा जिससे उसके प्रभाव को समाप्त किया जा सके। इसी कारण से अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 15 के तहत उत्तर अटलांटिक संधि के प्रस्ताव की पेशकश की जिस पर दुनिया के 12 अलग अलग देशों ने हस्ताक्षर किये। इस संधि में अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, बेल्जियम, आइसलैंड, लक्जमबर्ग, फ्रांस, कनाडा और इटली जैसे देश शामिल थे। बाद में स्पेन, पश्चिम जर्मनी, टर्की और यूनान ने इसकी सदस्यता ले ली। फिर शीत युद्ध के समाप्त होने के बाद हंगरी, पोलैंड और चेक गणराज्य Hungary, Poland and the Czech Republic देश भी इस संधि में शामिल हो गये। साल 2004 में 7 और देशों ने इसकी सदस्य्ता ली और आज नाटो के कुल 30 सदस्य हैं। नाटो (NATO) के सदस्यों की सूची निम्न है -
1. Albania अल्बानिया
2. Belgium बेल्जियम
3. Bulgaria बुल्गारिया
4. Canada कनाडा
5. Croatia क्रोएशिया
6. Czech Republic चेक गणराज्य
7. Denmark डेनमार्क
8. Estonia एस्टोनिया
9. France फ्रांस
10. Germany जर्मनी
11. Greece ग्रीस
12. Hungary हंगरी
13. Iceland आइसलैंड
14. Italy इटली
15. Latvia लातविया
16. Lithuania लिथुआनियाई
17. Luxembourg लक्जमबर्ग
18. Montenegro मोंटेनेग्रो
19. Netherlands नीदरलैंड्स
20. North Macedonia उत्तर मैसेडोनिया
21. Norway नॉर्वे
22. Poland पोलैंड
23. Portugal पुर्तगाल
24. Romania रोमानिया
25. Slovakia स्लोवाकिया
26. Slovenia स्लोवेनिया
27. Spain स्पेन
28. Turkey तुर्की
29. United Kingdom यूनाइटेड किंगडम
30. United States यूनाइटेड किंगडम
नाटो (NATO) के कार्यक्षेत्र और उद्देश्य
नाटो (NATO) का कहना है कि किसी भी एक देश पर आक्रमण का जवाब नाटो के सभी देश देंगें और यदि किसी भी एक देश पर आक्रमण होता है तो वो पूरे संगठन पर आक्रमण करने जैसा होगा। नाटो के सभी सदस्य देश आपसी समझदारी से अपनी-अपनी सेनाओं के साथ सुरक्षा की गारंटी देगें और इसमें वही देश इस सुरक्षा का लाभ उठा सकते हैं जो इसके सदस्य देश हैं, अन्य देश इसका कोई भी फायदा नहीं उठा सकते हैं। इसके साथ ही नाटो अपने सदस्य देशों पर किसी भी बाहरी आक्रमण से बचाव के प्रति पूरी जिम्मेदारी full responsibility for the defense रखता है। अब बात करते हैं नाटो (NATO) के उद्देश्य की। नाटो का उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य साधनों के द्वारा अपने सदस्य देशों को स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना है। रक्षा और सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर सहयोग के माध्यम से देशों के बीच पैदा हुए संघर्ष को रोकना है। इसका उद्देश्य है कि अगर कोई बाहरी देश किसी नाटो सदस्य देश पर हमला करे तो बाकी सदस्य देश हमला झेल रहे देश की सैन्य और राजनीतिक तरीके से पूरी सुरक्षा करेंगे। साथ ही इसका उद्देश्य पश्चिमी यूरोप के देशों को एक सूत्र में संगठित करना था।
एक सबसे महत्वपूर्ण बात नाटो घोषणापत्र NATO Manifesto के अनुच्छेद पांच Article Five में लिखी है, जो इस प्रकार है- मूल रूप से ये संगठन साझा सुरक्षा की नीति पर काम करता है। इसका मकसद है कि अगर कोई बाहरी देश किसी नाटो सदस्य देश पर हमला करे तो बाकी सदस्य देश हमला झेल रहे देश की सैन्य और राजनीतिक तरीके से सुरक्षा करेंगे। साझा सुरक्षा के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात नाटो घोषणापत्र के अनुच्छेद पांच में लिखी है- जिसके अनुसार, "उत्तरी अमेरिका या यूरोप के किसी एक या एक से ज्यादा सदस्यों पर हथियारों से हमला हो तो माना जाएगा कि सब पर हमला हुआ है। साथ ही अगर ऐसा हथियारबंद हमला होता है तो हर कोई संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के अनुच्छेद 51 के अनुसार, हमला झेल रहे पक्ष की अकेले या मिलकर और बाकी सदस्यों से मशवरा करके, जरूरी होने पर सैन्य तरीकों से उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र की सुरक्षा करने और कायम रखने के लिए कार्रवाई कर सकता है."
संगठन ने सामूहिक सुरक्षा की एक प्रणाली a system of collective security बनाई है, जिसके अनुसार सदस्य राज्य बाहरी हमले की स्थिति में एक दूसरे का सहयोग करने के लिए तैयार रहेंगे।
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