WASTE को बनाया BEST
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आज की महिलायें किसी से कम नहीं हैं। आप महिलाओं की प्रतिभाओं को पुरुषों से कम नहीं आंक सकते। महिलाओं का योगदान आज सामजिक और आर्थिक स्तर पर देखा जा सकता है। हम आज आधुनिक दुनिया में कदम रख चुके हैं। अगर आप किसी व्यवसाय के बारे में सोचेंगे तो उसको कुछ अलग करने का प्रयास करेंगे। आज हम एक महिला द्वारा की गयी एक ऐसी पहल के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जिसकी सोच ने ना केवल एक व्यवसाय को जन्म दिया बल्कि पर्यावरण की रक्षा करते हुए और भी महिलाओं को रोजगार प्रदान किया।
आज की महिलायें किसी से कम नहीं हैं। आप महिलाओं की प्रतिभाओं को पुरुषों से कम नहीं आंक सकते। महिलाओं का योगदान आज सामजिक और आर्थिक स्तर पर देखा जा सकता है। हम आज आधुनिक दुनिया में कदम रख चुके हैं। अगर आप किसी व्यवसाय के बारे में सोचेंगे तो उसको कुछ अलग करने का प्रयास करेंगे। आज हम एक महिला द्वारा की गयी एक ऐसी पहल के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जिसकी सोच ने ना केवल एक व्यवसाय को जन्म दिया बल्कि पर्यावरण की रक्षा करते हुए और भी महिलाओं को रोजगार प्रदान किया।
काजीरंगा (असम) के छोटे से गाँव, बोसागांव में रहनेवाली रूपज्योति गोगोई प्लास्टिक को रीयूज़ करके बैग्स बनाती हैं। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले प्लास्टिक को कम करने के लिए, सीमित संसाधनों में उन्होंने अनोखा कदम उठाया।
रूपज्योति ने कहा, “मैं एक हाउस-वाइफ हूँ और हमारे गाँव में महिलाओं के लिए बहुत-सी पाबंदियां हैं। हमारे यहां औरतें ज्यादा पढ़ाई नहीं करतीं। गांव की सभी महिलाएं बहुत कम पढ़ी-लिखीं हैं। हम सारा दिन घर के कामों में ही लगे रहते हैं। अक्सर बाज़ार से जब सामान खरीदकर लाया जाता था, तो बहुत सारे प्लास्टिक बैग्स और रैपर घर में इकट्ठा हो जाते थे। मुझे हमेशा लगता था कि इनका इस्तेमाल कैसे किया जाए।”
“जब एक बार दिमाग में कोई बात चलने लगती है, तो आपको हर जगह फिर वही नज़र आता है। मैं जब भी कभी बाहर निकलती थी, तो काज़ीरंगा नेशनल पार्क के आस-पास बहुत से पॉलिथीन दिखाई देते थे। मुझे लगता था कि घर और बाहर दोनों जगह इतनी सारी प्लास्टिक्स हैं, इन्हें कैसे कम किया जाए। अगर जलाते हैं, तो प्रदूषण बहुत ज्यादा होगा और बाहर ऐसे ही फेंकने से वॉटर रिसोर्सेज़ और जानवरों को नुकसान पहुंचता है।”
इसके बाद, उन्होंने धीरे-धीरे इन पॉलिथीन्स को इकट्ठा करना शुरू किया। उनका कहना है कि गाँव की महिलाएं भले ही कम पढ़ी-लिखी हों, लेकिन उन्हें हैंडलूम का काम बहुत अच्छे से आता है। रूपज्योति ने उन सबसे बात की और उन्हें अपने साथ काम करने के लिए तैयार किया।
रूपज्योति ने बताया, “वैसे तो मैं घर में प्लास्टिक से बैग, पांवदान वगैरह बनाती रहती थी। लेकिन साल 2004 में गाँव की महिलाओं के साथ हमने Village Waves के नाम से एक सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर, इस काम को बड़े स्तर पर शुरू किया। क्योंकि उन्हें हैंडलूम का काम आता था, तो वे खुद जानती थीं कि क्या-क्या बनाया जा सकता है। मुझे मेरी माँ ने ही ये काम सिखाया था। वह मेरी बहुत मदद करती हैं।”
गाँव की महिलाएं अपने घर पर ही ये काम करती हैं। इसलिए उनके घरवालों को भी कोई दिक्कत नहीं होती। अगर किसी को ट्रेनिंग की ज़रूरत होती है, तो मैं उन्हें प्लास्टिक से नई चीज़ें बनाने के साथ-साथ असम के ट्रेडिशनल हैंडलूम टेक्सटाइल की बुनाई की ट्रेनिंग भी देती हूँ।”
सामान बनाने के लिये रूपज्योति हर तरह के प्लास्टिक का इस्तेमाल करती हैं।
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रूपज्योति और अन्य महिलाएं सबसे पहले प्लास्टिक इकट्ठा कर, उन्हें अच्छे से साफ़ करती हैं।
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इसके बाद, प्लास्टिक को कैंची से काटकर आपस में जोड़-जोड़कर लंबा धागा जैसा बनाया जाता है।
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लूम के 2 हिस्से होते हैः ताना और बाना (warp weft)
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ताना पर धागा लगाया जाता है और बाना पर प्लास्टिक लगाते हैं। फिर इससे बुनाई कर, शीट्स तैयार करते हैं। फिर इन शीट्स से अलग-अलग तरह की चीज़ें बनाते हैं।
रूपज्योति का कहना है, “हम इस काम के लिए मशीनों का प्रयोग नहीं करते हैं। सारे प्रोडक्ट की बुनाई लूम पर ही होती है। इसलिए बहुत देर तक हम काम नहीं करते। वैसे भी हमारा फोकस बिज़नेस नहीं है, हमें बस प्लास्टिक कम करना है। अगर बिजनेस और पैसों पर ध्यान देने लगे, तो प्लास्टिक्स की ज़रूरत पड़ेगी, इसकी मांग बढ़ेगी। हम यहां प्लास्टिक्स खत्म करने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं। यदि हम भविष्य में ऐसा करने में सफल रहे, तो इससे जुड़े लोग बेरोज़गार नहीं होंगे।
रूपज्योति ने साल 2012 में काजीरंगा हाट की शुरुआत की थी। इस हाट में वह विलेज वेव्स के द्वारा बनाई गई चीज़ों को डिस्प्ले करती हैं। यहां बड़ी संख्या में टूरिस्ट आते हैं और अपने पसंद की चीज़ें खरीदकर ले भी जाते हैं। यह हाट रूपज्योति व उनके साथ काम करनेवाली महिलाओं की मेहनत का फल है। उनकी मेहनत और लगन को देखते हुए ही NEDFi (North Eastern Development Finance) ने उन्हें ये हाट दिया है। ताकि वे अपने उत्पादों को आसानी से बेच सकें।
रूपज्योति अब तक असम और देशभर की 2300 से ज़्यादा महिलाओं को हैंडलूम और प्लास्टिक से अलग-अलग चीज़ें बनाने की ट्रेनिंग दे चुकी हैं। इनमें से कई महिलाओं ने तो अपना खुद का बिज़नेस भी शुरू कर लिया है।
रूपज्योति का कहना है, “यहां अक्टूबर/नवंबर से मई तक ही अच्छा बिजनेस होता है। फिर बारिश शुरू हो जाती है और बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसे में टुरिस्ट कम ही आते हैं। इन 6 महीनों में हम 2 से 2.5 लाख का बिजनेस कर लेते हैं।” साथ ही हमें यहां से जो पैसे मिलते हैं, उससे घर चलाने में मदद मिलती है। हमारा स्वाभिमान बढ़ता है, हमारे घर के पुरुष भी हमारी इज्जत करते हैं।”
रूपज्योति ऐसी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत भी हैं, जो कुछ नया और अलग करना तो चाहती हैं, लेकिन घर-परिवार की ज़िम्मेदारियां उनके कदमों को खींच लेती है। रूपज्योति ने प्लास्टिक बैग्स बनाने का फैसला कर, ना सिर्फ पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अच्छा कदम उठाया। बल्कि अपने गाँव की कई महिलाओं को रोज़गार भी दिया।
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