हिंदी का स्वरूप ढलता या बदलता
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वक्त के साथ हिंदी में बहुत से परिवर्तन हुए हैं। शायद ही अब हिंदी का उपयोग इसके मूल रूप में किया जाता है। हिंदी के साथ-साथ और भी कई भाषाओँ के शब्द हिंदी में उपयोग होने लगे हैं। जहाँ एक ओर लोग दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों से हिंदी सीखने भारत में आ रहे हैं, वहीँ भारत के लोग स्वयं हिंदी के महत्व से क्यों अनजान हैं ?
कहते हैं," परिवर्तन प्रकृति का नियम है ", इस संसार में कुछ भी अपरिवर्तनशील नहीं है। यही परिवर्तन शायद हिंदी भाषा में भी देखा गया है। कहने को हम सब अपनी बोलचाल की भाषा में हिंदी का इस्तेमाल ही करते हैं, पर शायद यह वही तक सीमित रह गयी है। जहां एक ओर हिंदी के इस्तेमाल में लगातार इस तरह का परिवर्तन देखने को मिल रहा है, साथ ही कई अन्य भाषाओँ के शब्दों को भी हिंदी ने अपने में समां लिया है। अब चाहे वह उर्दू हो, फारसी या फिर अंग्रेज़ी। यही नहीं बहुत से लोग जो इसका इस्तेमाल करते हैं, उन्हें इस बात की जानकारी तक नहीं।
यह सच है कि हिंदी भाषा का आधार संस्कृत है। पर समय के साथ हिंदी में और भी कई भाषाओँ के शब्दों का उपयोग होने लगा है। उर्दू,फ़ारसी,तुर्की, अंग्रेजी, अरबी और न जाने कितनी ही भाषाओँ के शब्दों का उपयोग हिंदी के रूप में होने लगा है। शायद आपको इस बात की जानकारी न हो पर कई शब्द जैसे कि दोस्त,इंसान, इशारा, सियासत और न जाने ऐसे और कितने शब्द जिनका उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में लगातार करते हैं, वे शब्द हिंदी के हैं ही नहीं।
बाकि अन्य भाषाओँ के साथ हिंदी में अंग्रेजी के भी कई शब्दों का इस्तेमाल आम तौर पर होने लगा है। हिंदी और अंग्रेजी के इस मिश्रित उपयोग को "हिंगलिश" के नाम से भी जाना जाता है। जहाँ लोग हिंदी के साथ अंग्रेजी के भी कई शब्दों का उपयोग आमतौर पर करते हैं।
एक सर्वेक्षण, अनुसार भारत के लगभग 83 प्रतिशत लोग हिंदी और अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल एक साथ करते हैं। इस सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि अधिकांश लोग हिंदी को देवनागरी लिपि की बजाय लैटिन लिपि में पढ़ना सहज समझते हैं। जहाँ एक ओर इस परिवर्तन से हिंदी के महत्व में कमी आयी है, वही दूसरी ओर यह भारत के लोगों में आधुनिकता का संकेत भी देती है। समय के साथ लोग हिंदी के बदलते रूप को अपनाने लगे हैं।
आज के समय में भारत, एक देश जहाँ की लगभग 43.63% आबादी हिंदी का उपयोग उनकी दैनिक भाषा के रूप में करते हैं। पर कहीं न कहीं हिंदी का महत्व लोगों की नज़रों में कम होता जा रहा है। समय के आधुनिक होने के साथ हिंदी का उपयोग सीमित होकर रह गया है। स्थिति कोई भी हो, लोग हिंदी की जगह अंग्रेजी को महत्व देना चाहते हैं, चाहे वह स्कूल हो, कार्यालय या फिर हमारा दैनिक जीवन। लगभग सभी विद्यालयों में छात्रों को इंग्लिश के उपयोग पर ज़ोर दिया जाता है। इसमें कुछ गलत नहीं है, पर इसके साथ यह भी आवश्यक है कि छात्रों को इंग्लिश के साथ-साथ हिंदी का महत्व भी समझाया जाये।
इस तरह की स्तिथियाँ, एक नयी परिस्तिथि को जन्मे देती हैं, जहाँ वे छात्र जो इंग्लिश बोलने में सहज महसूस नहीं करते, उनका मज़ाक बनने लगता है। इस तरह के परिदृश्यों से बच्चों ने एक ऐसा निष्कर्ष निकाला जहाँ हिंदी का उतना महत्व नहीं होता। कई बार इसका असर सकारात्मक होता है, पर ज्यादातर स्तिथियों में छात्र न तो इंग्लिश में निपुण हो पाते हैं, और न ही हिंदी में।
आज के युग में एक से अधिक भाषाएँ सीखना और बोलना लोगों का शौक बन गया है। पर नयी भाषाओँ को सीखने के साथ वे अपनी मातृभाषा को भी उतना महत्व देते हैं जितना की किसी नयी भाषा को। भाषा का यही महत्व, भारत के लोगों, खासकर भारत की युवा पीढ़ी के लिए भी समझना आवश्यक है। हमारे लिए जितना महत्व इंग्लिश का है उतना ही महत्व हिंदी का भी होना चाहिए। जिस प्रकार छात्रों को इंग्लिश बोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, उसी प्रकार उन्हें हिंदी बोलने और अपनी दैनिक भाषा के रूप में उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
लोगों के लिए अंग्रेजी सीखने के लिए बहुत सारी सामग्री उपलब्ध है। विदेशी हिंदी क्यों सीखना चाहते हैं, इस पर विभिन्न कारणों पर अपने विचार साझा किए हैं। उनमें से अधिकांश ने कहा है कि वे भारत की यात्रा करना चाहते हैं और भारत के लोगों के साथ उचित संचार करना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि वे भारतीय वेदों को समझना चाहते हैं और यही कारण है कि वे हिंदी सीखना चाहते हैं। उनमें से कइयों ने यह भी कहा है कि वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं से आकर्षित होते हैं। हिंदी भाषा सीखकर, वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं का आनंद लेना चाहते है।
भारत एक ऐसा देश है जहाँ एक नहीं अनेक भाषाएँ का इस्तेमाल होता है। यहाँ लोगो की बोली 20 किलोमीटर पर बदलती है और हर राज्य की अपनी एक अलग भाषा है। यही कारण है कि यहाँ के कई लोग एक से अधिक भाषाएँ समझ और बोल सकते हैं। आधुनिक दुनिया के साथ आगे बढ़ते रहने के लिए, अंग्रेजी और किसी भी अन्य भाषा को सीखना आवश्यक है, लेकिन इसके साथ-साथ हमें अपनी भाषा का भी सम्मान करने की आवश्यकता है।
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