चना, स्वाद में दुरुस्त रखे तंदुरुस्त

Share Us

5433
चना, स्वाद में दुरुस्त रखे तंदुरुस्त
24 Sep 2021
9 min read

Blog Post

चने का पौधा कई गुणों से भरा होता है। कम लागत के साथ मनुष्य को यह अधिक फायदे पहुंचाता है शायद इसलिए इसे दालों का राजा कहा जाता है। चने की खेती के लिए ना खेत की मिट्टी पर अधिक मेहनत करनी पड़ती है, ना ही जल का अधिक उपयोग करना पड़ता है तथा अधिक खाद का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यदि फसल को कीटाणुओं से थोड़ा बचाया जा सके तो यह मनुष्य को अच्छी पैदावार देता है। यह मनुष्य को स्वाद के साथ स्वस्थ भी रखता है। चने की खेती किसी भी परिपेक्ष में मनुष्य को उदास नहीं करती है। 

प्रकृति ने नियम कुछ ऐसा बनाया है कि उन नियमों के विरुद्ध किसी भी प्राणी का जीवन निर्वाह असंभव है। प्रकृति की रचनाओं का एक हिस्सा मनुष्य है जिसके जीवित रहने के लिए भोजन बहुत आवश्यक होता है। यदि मनुष्य को जीवित रहना है, तो उसके लिए उसे भोजन की आवश्यकता पड़ती है। यदि मनुष्य शरीर की आवश्यकता के अनुरूप उसे भोजन नहीं देता है, तो शरीर के भीतर क्रियाएं रुक जाती हैं, जिसे हम मृत अवस्था कहते हैं। भोजन आपूर्ति के लिए मनुष्य कितने जतन करता है। इसी भोजन की आपूर्ति के लिए प्रकृति ने कृषि क्षेत्र को भी अपने विभिन्न भागों का एक हिस्सा बनाया। कृषि मनुष्य के जीवन की वह आवश्यकता है जिसके बिना जीवन की कल्पना कोई नहीं कर सकता है। भोजन की आपूर्ति के लिए मनुष्य खेती करता है और उसमें भी विभिन्न-विभिन्न प्रकार के प्रयोग करके नई फसलों को उत्पादित करता है। मनुष्य की कोशिश यही रहती है कि वह ऐसी फसलों को पैदा करे, जिससे कि उसे अधिकतम लाभ मिले। वह कई रूपों में उसका प्रयोग भोजन के लिए कर सके। इसके साथ ही वह अपने स्वाद के समरूप भी फसलों की उपज पैदा करता है। ऐसी कई फसलें हैं जिनकी पैदावार मनुष्य की अपेक्षाओं के सदृश होती हैं, जो मनुष्य के स्वाद के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होती हैं। मनुष्य उन फसलों के माध्यम से अपने जीवन के लिए एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करता है। इन्हीं फसलों में एक फसल है, चने की फसल। चने की फसल स्वाद और स्वास्थ्य दोनों ही रूपों में मनुष्य की आकांक्षाओं पर खरी उतरती है।

दालों का राजा चना 

दालों का राजा कहे जाने वाला चना एक ऐसा अनाज है जो दाल, सब्जी और रोटी तीनों ही रूपों में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा चना नाश्ता के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। चने से कई प्रकार के व्यंजन बनाये जाते हैं। जो स्वाद के अनुरूप भी होते हैं। चना एक ऐसा अनाज है, जिसको खाने से मोटापे के बढ़ने का स्तर बिल्कुल शून्य होता है, इसको खाने से मनुष्य स्वस्थ रहता है। कुछ बीमारियों में तो डॉक्टर लोगों को चने से बने सादे भोजन को ही खाने की सलाह देते हैं। चने की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी उपज के लिए किसान को न ही ज्यादा लागत की आवश्यकता पड़ती है और न ही ज्यादा मेहनत की। 

चने का कई रूपों में प्रयोग 

चने की खेती किसानों की पसंद इसलिए रहती है क्योंकि इससे उन्हें कई परिपेक्ष में लाभ होता है। अंकुरित होने के साथ ही इसके इस्तेमाल की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। चने के पौधे की फुनगियों को लोग बड़े चाव से नमक-मिर्च के साथ स्वाद लेकर खाते हैं। इसके बाद जब पौधे में फलियां लग जाती हैं, तो लोग उसे आग में भूनकर बड़े मन से खाते हैं। चने की फली जब परिपक्व होकर दाल के रूप में अपने अंतिम चरण में ढलने लगती है, तो किसान चने के पौधे को खेत से अलग कर उनमें मौजूद चने की दाल को निकाल लेते हैं। 

किसान यदि चने की खेती करना चाहते हैं, तो उन्हें कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए। यदि वह ऐसा करते हैं, तो चने की खेती उन्हें अधिकाधिक लाभ पहुंचाएगी।  

दोमट मिट्टी में चने की अधिक उपज 

चने की फसल एक दलहनी फसल है, जो कम जल के उपयोग के साथ दोमट मिट्टी में अच्छी उपज देता है। चना कई प्रकार के किस्मों में उत्पादित किया जाता हैं। कुछ स्थानों पर कुछ विशेष प्रकार के चनों का उत्पादन होता है तथा कुछ स्थानों पर प्रत्येक किस्म की चने को उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा बिहार में चना मुख्य रूप से उगाया जाता है। मध्य प्रदेश में चने की सबसे अधिक खेती की जाती है।

चने की खेती में कम जल की आवश्यकता  

चने की खेती के लिए जलनिकासी वाले स्थान अधिक लाभप्रद रहते हैं, क्योंकि चना कम सिंचाई की आवश्यकता वाला फसल है। चने की खेती बीजारोपण के माध्यम से शुरू की जाती है और अक्सर किसान पहले से सुरक्षित रखे चने को बीज के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इसलिए इस बात पर ध्यान देना अति आवश्यक हो जाता है कि जिसे वह बीज के रूप में प्रयोग में ला रहे हैं, वह किसी भी प्रकार से रोगग्रसित ना हो। यदि ऐसा होता है तो उसका प्रभाव सीधे फसल पर दिखायी पड़ता है। बीज को सुरक्षित संरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के रासायनिक फफूंदीनाशक का उपयोग किया जाया है। 

अक्टूबर से नवंबर महीने में करें चने की खेती 

चूँकि यह कम सिंचाई वाली फसल है, इसलिए चने के खेती की शुरुआत अक्टूबर से नवंबर महीने के बीच में की जाती है। पहले खेत की इस प्रकार जुताई करते हैं जिससे उसमें मौजूद नमी को बाहर लाया जा सके उसके बाद साधारण हल से खेत की दो बार जुताई की जाती है तत्पश्चात खेत को पूर्ण रूप से समतल किया जाता है। चने की फसल लगभग 130-150 दिनों के भीतर तैयार होने वाली फसल है। प्रति हेक्टेयर 80-100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। यदि आप अच्छी उपज चाहते हैं तो खेत को तैयार करते समय 20-25 टन सड़े गोबर को खाद के रूप में इस्तेमाल करें, इसके साथ नाइट्रोजन और फास्फोरस को भी 20 और 50 किलोग्राम की मात्रा में खाद के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। 

फसल को केवल दो सिंचाई की आवश्यकता 

चने का बीजारोपण कोशिश करें कि नियमित दूरी लगभग 30 सेंटीमीटर पर किया जाये साथ ही इसको 7-10 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपित किया जाये।  फ्लूक्लोरेलिन और पेंडीमेथालिन का घोल बनाकर खेतों में छिड़काव करने से खेत में खरपतवार नहीं उगते। चूँकि चने की फसल को अधिक जल की आवश्यकता नहीं होती इसलिए इसे केवल दो सिंचाई की ही जरूरत पड़ती है। पहली सिंचाई फली आने पर तथा दूसरी सिंचाई फली में दाना लग जाने पर की जाती है। 

फसल पर कीटनाशकों का इस्तेमाल आवश्यक 

चने की फसलों को कीटों से भी खतरा रहता है इसलिए कीटनाशकों को पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करना जरूरी होता है। फसलों को मुरझाने और पीले पड़ जाने का भी खतरा रहता है। इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए लगभग 45 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या 30 ग्राम कार्बेन्डेजिम को पानी में मिलाकर जमीन पर छिड़काव करें। अन्य कई रासायनिक पदार्थों का भी इस्तेमाल किया जाता है। 

भण्डारण में बरतें सावधानी 

पौधों में लगे फसल लाल और भूरी होकर पक जाएं तो फसलों की कटाई कर लेनी चाहिए। कटाई के पश्चात इसे खलिहान में कुछ समय के लिए खुले आसमान में धूप में छोड़ देना चाहिए ताकि कली के अंदर मौजूद नमी पूर्ण रूप से खत्म हो जाये तथा वह पूरी तरह सूख जाये। इसके बाद फसल की पिटाई करके कली के अंदर उपस्थित चने को अनाज के रूप में सुरक्षित रख लें। अनाज को भण्डारण के लिए रखने के लिए भी सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि अनाज में कीड़े लगने की सम्भावना अधिक रहती है। इसके लिए भण्डारण के स्थान पर दीवारों में  मौजूद दरारों को पूर्ण रूप से बंद कर दें। इसके साथ दीवारों पर 15 दिनों बाद मैथिलायन को पानी में मिलाकर दीवारों पर छिड़काव करें। इस प्रक्रिया द्वारा अनाज को सुरक्षित रखा जा सकता है।