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क्रोध ने सदैव अपना ही नुकसान किया चाहे वह व्यक्तिगत जीवन से संबंधित हो या फिर व्यावसायिक जीवन से। मन में संतोष तथा प्रत्येक आवरण को अनुचित होने की भावना को समझना ही हमें हमारे गुस्से पर नियंत्रण रखने का हुनर सिखाता है।
मनुष्य का व्यवहार उसके रोज़ मर्रा की दिनचर्या को ज़रूर प्रभावित करता है। यह मनुष्य के स्वभाव की प्रवृत्ति होती है कि वह सदैव निश्चित नहीं रह सकता है। हर क्षण उसके बदलने की संभावना बनी रहती है। हम कह सकते हैं कि मानव स्वभाव उसके आस-पास वह आवरण निर्मित करता है, जिसमें वह रह रहता है। धैर्य मनुष्य के जीवन का जड़ है, जो जितना मजबूत रहेगा उतने ही लम्बे समय तक वह तूफान में स्थिर खड़ा रहेगा। परन्तु धैर्य न रहना ही वह बाधा है, जो मनुष्य को असहनशील बनाता है। इसके साथ स्वयं पर नियंत्रण होना मानव विकास की आधारशिला होती है, जिस पर वह अपने सपनों, आकांक्षाओं तथा नियमितता का घर निर्मित करता है। परन्तु क्या हम मनुष्य यह कर पाते हैं? क्या हम अपने ऊपर इतना नियंत्रण कर पाते हैं? क्या हम अपने भीतर धैर्य के दीये सदैव जलाए रख पाते हैं। क्या हम इस धैर्य और नियंत्रण को खोकर अपने व्यवहार को अनुचित दिशा में। नहीं ले जाते हैं..? हमसे यह भूल अक्सर ही हो जाता करते हैं और एक समय बाद यह हमारा व्यवहार बन जाता है। यह गुण ना होने से हमारे भीतर गुस्से का व्यवहार पनपने लगता है तथा हम इससे अपना ही नुकसान करने लगते हैं। वह कहते हैं ना कि व्यक्ति गुस्से में सदैव और केवल स्वयं को ही हानि पहुंचाता है।
गुस्सा मानव स्वभाव की वह प्रवृत्ति है, जिस पर नियंत्रण रख पाना बहुत कठिन होता है। हम छोटी-छोटी बातों पर भी अपना धैर्य खोकर अपने ऊपर का नियंत्रण खो देते हैं और गुस्से को अपने मस्तिष्क पर हावी होने देते हैं। नतीजतन हम अपना ही नुकसान करने लगते हैं। क्रोधित होना मनुष्य के भावों में सबसे अधिक प्रभावी होता है।
यह जानकर तनिक भी हैरानी नहीं होनी चाहिए कि, हम सबसे अधिक अपनों से दूर केवल अपने गुस्से के कारण ही होते हैं। हमारे चाहने वाले भी जो सदैव हमारा साथ देते हैं, एक समय बाद हमारा हाथ छोड़ने लगते हैं, क्योंकि वे मनुष्य हैं और उनके भी सहने की सीमा होती है।
जब भी कोई ऐसा कार्य जो हमारे लिए महत्वपूर्ण हो और हमारे हिसाब से ना हो तो हम हताश होने लगते हैं तथा इसका यह प्रभाव यह होता है कि हम आम बातों पर भी गुस्सा करने लगते हैं। या यूं कहें अपनी हताशा को कम करने के लिए, क्रोधित होने के लिए बहाने ढूंढ़ने लगते हैं।
हमारी अपेक्षाएं हमारे क्रोध का मुख्य कारण होती हैं। हम सदैव, हर एक परिस्थिति में कुछ न कुछ उम्मीद अवश्य रखते हैं, चाहें वह स्वयं से हो, अपनों से हो, आस-पास के आवरण से हो या फिर चाहे स्वयं प्रकृति से ही क्यों ना हो। जब यह उम्मीद हमारे मन मुताबिक पूर्ण नहीं होतीं, जब हम जिनके बारे में यह विश्वास बनाए रखते हैं कि यह हमारे स्वभाव से चलेंगे और वे नहीं चलते हैं तो हम अपना धैर्य खो देते हैं तथा गुस्सा होने लगते हैं।
क्रोध ने सदैव अपना ही नुकसान किया चाहे वह व्यक्तिगत जीवन से संबंधित हो या फिर व्यावसायिक जीवन से। मन में संतोष तथा प्रत्येक आवरण को अनुचित होने की भावना को समझना ही हमें हमारे गुस्से पर नियंत्रण रखने का हुनर सिखाता है।
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