एकता में कितनी एकता

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एकता में कितनी एकता
30 Oct 2021
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केवल अपने बारे में विचार करना, ऊंच-नीच का अंतर, अमीर-गरीब जैसे कई अन्य भावों को प्राथमिकता देकर हमने एकता के भाव को विघटित किया है। हम गर्व से इस बात को कहते हैं कि हम एकता के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं, जबकि अभी इस घर में मौजूद कई अनुचित वस्तुओं को निकालकर बाहर फेंकना बाकी है, जिसने घर को कई हिस्सों में बांटकर रखा है।

एकता शब्द स्वयं में अनेक भावनाओं से परिपूर्ण है। जब यह शब्द हमारे ज़हन में या फिर हमारे ज़ुबान आता है, तो हमारे भीतर एक सकारात्मकता की भावना अपने आप जन्म ले लेती है। हम सदैव इसे इस परिपेक्ष में ही लेते हैं, जो लोगों को एक साथ होने की भावना को प्रदर्शित करता है। "एक" और "ता" शब्दों से बना यह शब्द स्वयं में सकारात्मक है। प्रत्येक व्यक्ति एक साथ मिल-जुलकर साथ रहें, हमारी यही कामना होती है। यही कारण है कि समय-समय पर ऐसी अनेक पहल को क्रियान्वित किया जाता है, जो सबको एक साथ लाने का प्रयास करे। वैसे तो भारत एक ऐसा देश है, जो कई विविधताओं को अपने साथ लेकर चलता है। परन्तु भारत के लिए यह तथ्य कहना अनुचित नहीं होगा कि इन सब विविधताओं के बावजूद वह एक मंत्र बनकर, दुनिया में पढ़ा और सुना जा रहा है। जिसका मंत्र का प्रभाव पूरी दुनिया में महसूस किया जा रहा है। जिस भाव के लिए हम पूरे विश्व में इतने नामित हैं, क्या हम वास्तव में उस एकता के परिवेश से स्वयं के आचरण को ढ़के हुए हैं? क्या वास्तव में एकता का यह भाव, हमारे मन के आंगन के सभी पौधों के लिए एक समान है? क्या हमारा दिल-दिमाग एकता की आस्था के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित है?

कई विविधताओं से ढ़का हमारा यह समाज, एक देश हिंदुस्तान के नाम से जाना जाता है। यहां पर बिना किसी भेदभाव के सबके लिए एक ही नियम-कानून को प्रावधान बनाया गया है, जो सामाजिक समता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। परन्तु बनाए रखने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? क्या केवल नियमों से बाध्य होकर ही हम एकता को प्रदर्शित कर सकते हैं? क्या हमारी मानसिकता आज के दौर में भी इतना विकास नहीं कर पाई है, कि हम अपनी समझ में एकता की भावना को उपजाएं।

कई टुकड़ों में बंटे हमारे समाज को साथ लाकर, हमें एक अखण्ड देश का चेहरा देने वाले और एकता का पाठ पढ़ाने वाले हमारे प्रथम केंद्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने कितने प्रयत्नों के बाद इस विचार को लोगों के मन स्थापित किया होगा। परन्तु इस घटना के इतने वर्षों बाद, जबकि हमें और अधिक एकसूत्र होकर स्वयं को प्रस्तुत करना चाहिए, हमने फिर से ख़ुद को उसी दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। 

हम आज जिस राह पर खड़े हैं उस राह पर हम एक तो हैं परन्तु एकता के मानी उखेड़ कर खड़े हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हम एकता के शब्द को पकड़े बैठे हैं और एकता के भाव को अपने भीतर समाहित करने की सोच कहीं परे हैं। अपितु इसका विपरीत होना चाहिए, हमें शब्द पर नहीं बल्कि भाव पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। एकता एक शब्द होने से पहले एक भाव है, जो पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोती है।

केवल अपने बारे में विचार करना, ऊंच-नीच का अंतर, अमीर-गरीब जैसे कई अन्य भावों को प्राथमिकता देकर हमने एकता के भाव को विघटित किया है। हम गर्व से इस बात को कहते हैं कि हम एकता के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं, जबकि अभी इस घर में मौजूद कई अनुचित वस्तुओं को निकालकर बाहर फेंकना बाकी है, जिसने घर को कई हिस्सों में बांटकर रखा है।