सुव्यवस्थित किसानी, देती सुनिश्चित आमदनी
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कपास की खेती सावधानी और लगन से किया जाने वाला कार्य है। कहते हैं, जिस काम को जितने ही लगन से करो वह उतना ही अच्छा तुम्हें फल देता है। कपास की खेती कठिन परिस्थितियों की खेती है परन्तु यदि इसे मन से किया जाए तो यह आपको आपकी मेहनत से कई गुना फल देगी। विश्व भर में अपनी महत्ता रखने वाला कपास हमारी जरूरतों को पूरा करने और हमें एक स्थिर पहचान देने का बढ़िया माध्यम है।
प्रत्येक देश की अपनी एक पहचान होती है। हर देश अपने अन्दर कुछ विशेषताएं लिए रहता है, जिसके लिए वह पूरी दुनिया में पहचाना जाता है। भारत देश इस मामले में थोड़ा धनी है। इस देश में अनेक विशेषताएं हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है, जो केवल देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अनाज का एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। चीन के बाद दुनिया में अनाज का सबसे ज्यादा निर्यात भारत से ही होता है। कपड़ों में इस्तेमाल किए जाने वाले कच्चे मालों की खेती भी भारत में भरपूर मात्रा में होती है। इनके उत्पादन से कई औद्योगिक कंपनियां कपड़े को बनाने का काम करती हैं, जिसमें हजारों कर्मचारी काम करते हैं। भारत में सबसे अधिक सूती कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है, जिस कारण भारत में कपास की खेती अधिक मात्रा में की जाती है। विदेशी शहरों में भी इनकी मांग होना अधिक उत्पादन का मुख्य कारण है। भारत में कपास का अधिक उत्पादन भारत की पहचान है, जिसके लिए भारत विश्व भर में मशहूर है। इसके सुव्यवस्थित उचित ढ़ंग के उत्पादन के माध्यम से भारत अपनी आर्थिक स्थिती को भी मजबूत करता है और फिर से विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर रहता है।
देश की मिट्टी कपास की खेती के लिए उपजाऊ
भारत की मिट्टी कपास की खेती के नजरिए से काफी उपजाऊ है। व्यक्ति थोड़ी सावधानी और सुविधा देकर अच्छी मात्रा में कच्चे कपास को प्राप्त कर सकता है। कपास की खेती की एक नियमित प्रक्रिया होती है। मिट्टी, पानी, तापमान, कीटनाशक, इनमें से किसी भी बिन्दु पर थोड़ी सी भी अनदेखी कपास के फसल वृद्धि को रोक सकती है या उत्पादन कम कर सकती है। कपास की बुवाई के लिए सबसे पहले बीज के चुनाव में सावधानी बरतनी चाहिए। कितनी मात्रा में कौन सा बीज डालना चाहिए, पहले यह सुनिश्चित कर लें। प्रति हेक्टेयर 4 किलोग्रम प्रमाणित बीज का इस्तेमाल करना लाभप्रद होगा।
क्षेत्र का चुनाव अति आवश्यक
बुवाई के लिए चयनित क्षेत्र बहुत मायने रखता है। हमें इस बात का ध्यान देना होगा कि जिस क्षेत्र में हम खेती करने जा रहे हैं, वहां पर उचित जलवायु हो। मिट्टी का तापमान फसल के बीजारोपण के समय 16 डिग्री सेल्सियस और अकुंरित होने के समय 32-34 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए। पौधे के बढ़ते समय यह तापमान 21-27 डिग्री और फल लगते समय 25-30 डिग्री होना चाहिए। साथ में इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि रात के समय ठंडक अधिक रहे। अधिक वर्षा फसल को नष्ट कर सकती है इसलिए इस पर भी ध्यान देना आवश्यक है। फसल के लिए भूमि का निर्धारण निश्चित तौर पर करें। ऐसी भूमि का चयन जहां पर पानी को रोकने और निष्कासित करने की उचित व्यवस्था है, अधिक उपयोगी होगी। सिंचाई की सुविधा के साथ दोमट और बलुई मिट्टी पर इसकी खेती कर सकते हैं।
फरवरी और जून बुवाई का उचित समय
कपास की खेती के लिए भूमि में सबसे पहले खांचे बनाकर उसे रोपण के लिए तैयार किया जाता है। फरवरी का शुरूआत और जून का अन्त माह बुवाई के लिए सही समय है। सिंचाई के माध्यम से मिट्टी के तापमान को बढ़ाकर उसे रोपण के लिए तैयार किया जा सकता है। रोपण के लिए उचित तापमान 65 डिग्री सेल्सियस है। रोपण के समय बीज को मिट्टी मे बोया जाता है। इस प्रक्रिया को कृषि मशीन के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है। मशीनों को किराये पर लेकर भी कम खर्च में काम किया जा सकता है। अच्छी मिट्टी कपास की गुणवत्ता को बढ़ाती है।
एक सप्ताह में पौधे होते हैं अंकुरित
1-2 सप्ताह बाद बीज पौधे के रूप में अंकुरित होता है और करीब दस सप्ताह में पौधा खिलने लगता है। धीरे-धीरे कपास का पौधा विकसित होकर सफेद फाइबर के कली का रुप लेने लगता है। तीसरे चरण में कपास की सफेद कलिया खुलती हैं, जिसमें कपास में मौजूद नमी खत्म हो जाती है और सफेद फाइबर शुष्क हो जाता है। इसके बाद कपास की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी कटाई जुलाई महीने के शुरूआत या अक्टूबर के अंत में होती है। कपास की कटाई के लिए फार्म मशीन की जरूरत होती है। फार्म मशीन पौधे से कपास को हटाती है। अगले चरण में फाइबर को हाईड्रॉलिक करने के लिए इसका जमीन पर भंडारण किया जाता है। इसे मैदान में कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता है।
इसके बाद इसे मील में मशीनों की मदद से साफ किया जाता है, फाइबर को स्पष्ट रूप से अलग कर लिया जाता है और यहीं पर रेशे और बीज को अलग कर लिया जाता है तथा दोनों को अलग-अलग जगहों पर इस्तेमाल के लिए भेज दिया जाता है।
कपास की दुनिया में सबसे अधिक मांग
इस पूरी प्रक्रिया से दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाला फाइबर तैयार हो जाता है। रोपण, बुवाई, बुनाई और मील में रेशे की छंटाई जैसी अन्य प्रकिया में अधिक व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है, जिससे कई मजदूरों को रोजगार मिलता है, साथ में पूरी प्रक्रिया में इस्तेमाल किए जाने वाले मशीनों से भी अच्छी कमाई की जा सकती है। तैयार कपास अच्छे दामों में बिकता है, जिससे हम अपनी लागत के अलावा उचित कमाई करते हैं।
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