मालिक और नौकर के बिना चलती है दुकान?

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मालिक और नौकर के बिना चलती है दुकान?
31 Jul 2021
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इंसानियत की मिसाल कई मायने में देखने को मिलती है। ऐसी दुकानें ईमानदारी का उदहारण हैं। इस लेख के ज़रिये हम आपको बस यही बताना चाहते हैं कि जब बिना किसी इंसान के यह दुकानें चल सकती हैं, तो हमारी ज़िन्दगी क्यों नहीं ? बस हमें अपना नजरिया बदलने की ज़रुरत है। भरोसे पर तो दुनिया कायम है।  

आज कल लोगों के घर और दुकानों की निगरानी तीसरी आँख कर रही है। अरे, वही तीसरी आँख जो सबको देखती है, मगर उसे कोई नहीं देख पाता। अब भी नहीं समझे। हम CCTV कैमरे की बात कर रहे हैं, जो हमारे घर और दुकानों की देख-रेख करती है। ऐसे में अगर आपको पता चले कि हमारे देश में ऐसी भी कुछ दुकान हैं, जिनकी निगरानी कोई नहीं करता। हैरत की बात तो यह है कि उन दुकान पर कभी चोरी नहीं हुई। क्यों कि ये दुकानें  ईमानदारी के भरोसे पर चल रही हैं। आएये जानते हैं ऐसी ही कुछ नयी पहल के बारे में। 

1 . केरल के कन्नूर में स्थित इस दुकान की बात ही अलग है।

 वहां के लोगों को एक-दूसरे पर इतना भरोसा है कि एक दुकान बिना किसी दुकानदार के खुलती और बंद होती है। फिर भी वहां कभी चोरी नहीं हुई। उस दुकान पर न ही कोई मालिक है और न ही कोई नौकर। दुकान से लोगों को जो भी जरूरत का सामान चाहिए होता है, वो उसे लेते हैं और उसकी कीमत दुकान में ही लगे बॉक्स में डालकर चले जाते हैं। 

इस दुकान को जन-शक्ति ट्रस्ट ने उन लोगों के लिए खोला है, जो दिव्यांग हैं और खुद के कमाए हुए पैसों से अपना पेट भरना चाहते हैं। उस दुकान पर दिव्यांगों के हाथों बनाया हुआ सारा सामान मिलता है। वैसे देखा जाये, तो यह बहुत अच्छी सोच है और शायद इसी वजह से लोग वहां आकर ज़्यादा से ज़्यादा सामान लेकर जाते हैं। 

दुकान के पास में कुछ सब्ज़ी वालों के ठेले हैं, जिनका काम सुबह दुकान खोलना और शाम को बंद करना है। दुकान के बाहर बोर्ड पर में लिखा है - यहाँ कोई भी दुकानदार या सेल्स मेन नहीं है। जिसे दुकान से जो भी सामान चाहिए, वो लीजिये और सामान का मूल्य सामने रखे बॉक्स में डाल दीजिये। 

दुकान की रोज़ की आमदनी हज़ार रुपए तक हो जाती है। दुकान की सफलता को देखते हुए जनशक्ति ट्रस्ट के संस्थापक सुगुनन पीएम उम्मीद जताते हैं कि भविष्य में इस तरह की और भी कई दुकानों को शुरू किया जा सकता है। इससे दिव्यांगों की आमदनी के साथ-साथ हौसला भी बढ़ेगा।

सुगुनन पीएम ने कहा- 'इस दुकान को इलाके के लोगों का पूरा सपोर्ट मिल रहा है। हमें इस तरह की और भी शॉप खोलने के ऑफ़र मिले हैं।  हमारी संस्था दिव्यांग लोगों से ख़रीदे गए सामान का पहले ही भुगतान कर देती है, ताकी उन्हें कोई आर्थिक दिक्कत न हो।  अच्छी बात ये है कि दुकान की सेल्स दिन-पर दिन बढ़ती ही जा रही है और हमें भी उन्हें पहले पेमेंट करने में कोई परेशानी नहीं हो रही है।  वो बहुत जल्द ही कन्नूर के कोझिकोड़ इलाके में भी ऐसी एक दुकान खोलने की तैयारी कर रहे हैं। 

 

 2 .  ऐसी ही एक पहल मिजोरम में भी देखने को मिली है।  

दरअसल, यहां भी कई ऐसी दुकानें हैं जो विश्वास पर चलती हैं। यहां कोई दुकानदार नहीं होता है। सामान उठाने से लेकर उसका वजन सब आपको ही करना होगा। यहां लोग सामान लेकर खुद से पैसे रखकर चले जाते हैं।

मिजोरम के सेलिंग हाइवे पर बिना दुकानदारों के कई दुकानें देखी जाती हैं। इसे Nghah Loh Dawr Culture Of Mizoram कहा जाता है । इसका मतलब होता है बिना दुकानदार की दुकान। आप यहां से जो चाहें ले सकते हैं और  बॉक्स में पैसा रखें। यह दुकानें विश्वास के सिंद्धांत पर काम करती हैं।

बता दें ये दुकानें ज़्यादातर छोटे किसानो द्वारा लगायी जाती हैं, जो हर सुबह बांस से बंधे हुए ताख पर फल सब्जियां आदि रख तथा उसके बगल में चाक या कोयले से दाम लिख कर अपने घर चले जाते हैं।

इसके बाद इन्हें खरीदने वाले ग्राहक अपनी ज़रूरत का सामान उठा कर यही पर पड़े कटोरे, जिन्हें ‘पविसा बावन’ या ‘पविसा दहना कहा जाता है, उनमें डाल देते हैं। यहीं पर, दुकानदार द्वारा छुट्टे पैसो का भी एक बक्सा रखा होता है जहाँ से ग्राहक बाकि पैसे खुद ही उठा सकते हैं।

कितना बेहतरीन है यह सिस्टम, जो विश्वास की नींव पर टिका हुआ है।  ज़रा सोचिए, बिना किसी मशीन के इस्तेमाल के बस साधारण  बॉक्स है।  जहां लोग आते हैं और अपनी ज़रूरत के हिसाब से सामान ख़रीदकर पैसे डालकर चले जाते हैं जिससे हर किसी को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। कोरोना महामारी के दौर में ये एक बेहतरीन पहल भी साबित हो सकती है। TWN ऐसी पद्दति को सम्मान करता है।  कितना अच्छा हो अगर देश के दूसरे इलाकों में भी ऐसी ही दुकानें खुल जाएं।