Organic Farming- स्वस्थ जीवन और सुरक्षित पर्यावरण

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Organic Farming- स्वस्थ जीवन और सुरक्षित पर्यावरण
11 May 2022
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आज के हालातों को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि खेतों में रासायनिक उर्वरकों के लगातार प्रयोग से हमारी जैविक व्यवस्था नष्ट होने लगी है। साथ ही भूमि और पर्यावरण को भी क्षति पहुँच रही है। इन सबका सीधा प्रभाव हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ रहा है जो कि जाने अनजाने कई खतरनाक बीमारियों को बुलावा दे रहा है । यह आज के समय की एक सबसे महत्वपूर्ण समस्या है। केमिकल खानपान के चलते हमारी इम्युनिटी लगातार कम होती जा रही है। साथ ही जल प्रदूषण भी अपने चरम पर पहुँचने लगा है। यदि भविष्य में आने वाले ख़तरे से बचना है तो हमें जैविक खेती को अपनाना होगा। यही सब देखते हुए इस आर्टिकल में जैविक खेती के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी गयी है जिससे आप जैविक खेती Organic Farming के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। 

भारत में जैविक खेती | Organic Farming In India

भारत जैसे विशाल देश की लगभग 60 से 70 प्रतिशत जनसँख्या अपनी आजीविका को चलाने के लिए कृषि कार्यों पर ही निर्भर है। देखा जाये तो पहले वाली खेती और आज की खेती में बहुत बड़ा फर्क है। पहले की जाने वाली खेती में रासायनिक पदार्थो का उपयोग नहीं किया जाता था और उस समय जैविक यानि कि ऑर्गेनिक खेती Organic Farming की जाती थी। धीरे-धीरे जनसँख्या बढ़ने के कारण भोजन की मांग बढ़नें लगी इस कारण लोगो नें कृषि उत्पादन बढ़ानें के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना use of chemical fertilizers शुरू कर दिया। यही वजह है कि आज के समय में कई तरह की बीमारियाँ लोगों को घेर रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है रासायनिक उर्वरकों की मदद से तैयार किये गए फल, सब्ज़ी व अनाज जो कि हमारी सेहत पर लगातार नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं और हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं। जबकि हम सब ये अच्छी तरह जानते हैं कि सेहतमंद बने रहने के लिए सबसे ज़रूरी होता है संतुलित आहार balanced diet इसलिए ये बहुत जरुरी है कि हम अपने साथ-साथ आने वाली पीढ़ी को भी जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित करें। तो चलिए आज जैविक खेती (कृषि) Organic Farming के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं। 

जैविक खेती क्या है? (What Is Organic Farming)

ऑर्गेनिक खेती Organic Farming या जैविक खेती फसल उत्पादन की एक प्राचीन पद्धति an ancient method of crop production है। जैविक खेती हमारे पूर्वजों द्वारा अपनायी गयी एक प्राकृतिक खेती (natural farming) का तरीका था। इस खेती को करने से पदार्थो की गुणवत्ता बरकरार रहती थी और खेती के तत्व जैसे कि जल, भूमि, वायु और वातावरण में कोई प्रदूषण नहीं फैलता था। जैविक कृषि में फसलों के उत्पादन में गोबर की खाद , कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फ़सलो के अवशेष Dung manure, compost, bacterial manure, crop residues और प्रकृति में उपलब्ध विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों के माध्यम से पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। जैविक खेती के तहत उगाई गई कोई भी सब्जी या फसल के उत्पादन में खाद तथा कीटनाशक गोबर खाद, केंचुआ खाद तथा अन्य तरह की जैविक खाद का उपयोग किया जाता है। ये पूर्णरूप से प्राकृतिक खेती होती है। दरअसल अनुपजाऊ  होती जमीन, पर्यावरणीय संकट, प्रभावित होती खाद्यान्न की गुणवत्ता, पशु और मानव में बढ़ते अनेक तरह के रोगों के कारण ऑर्गेनिक खेती को अपनाया जा रहा है। साथ ही स्वास्थ्य को लेकर सजग लोगों के लिहाज से जैविक खेती अच्छी आय का जरिया बन रही है। ये तो हम सभी जानते हैं कि सेहतमंद बने रहने के लिए बेहद ज़रूरी होता है संतुलित आहार। लेकिन आज के दौर में रासायनिक उर्वरकों की मदद से तैयार किये गए फल सब्ज़ी व अनाज हमारी सेहत पर लगातार नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं इसलिए जैविक खेती करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जैविक खेती भूमि की दीर्घकालीन उपजाऊ शक्ति long-term fertility of the land को बनाये रखती है तथा उच्च कोटि के पौष्टिक खाद्य का उत्पादन करने के लिए भूमि के सीमित संसाधनों का कम उपयोग करती है। जैविक कृषि में फ़सल चक्र, पशु खाद तथा कूड़ा खाद का उपयोग, यांत्रिक खेती तथा प्राकृतिक समन्वित नाशक कीट नियंत्रण का उपयोग किया जाता है। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि जैविक कृषि, खेती करने की उस पद्धति को कहा जाता है जिसके अंतर्गत पर्यावरण के संतुलन को पुनः स्थापित करके उसका संरक्षण व संवर्धन किया जाता है। इसमें रासायनिक खाद अथवा रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है। इससे ये जैविक तरीके से उगाई गई सब्जी या फसल काफी गुणवत्तापूर्ण होती है और Totally safe for health and environment स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिहाज से ये पूर्णत: सुरक्षित होती हैं। 

जैविक खेती के सिद्धांत | Principles of Organic Farming

जैविक खेती के अपने कुछ सिद्धांत हैं जिनका पालन करने पर हमें भूमि से अच्छी स्वास्थ्य वर्धक फसलों का उत्पादन करने में मदद मिलती है और इसके लिए आज सारी दुनिया में लोग अपने अपने तरीके से प्रयासरत हैं। IFOAM (इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर मूवमेंट्स) International Federation of Organic Agriculture Movements के अनुसार, जैविक खेती के सिद्धांत इस तरह से हैं कि जैविक खेती को एक और अविभाज्य के रूप में मिट्टी, पौधों, पशुओं, और मनुष्यों के स्वास्थ्य को बनाये रखना और सुधारना चाहिए। जैविक खेती सजीव पारिस्थितिकी प्रणालियों living ecosystems और चक्रों पर आधारित होनी चाहिए। जैविक खेती को वर्तमान और भावी पीढ़ियों के स्वास्थ्य एवं कल्याण और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए सावधानी के साथ प्रबंधित किया जाना चाहिए। साथ ही जैविक खेती ऐसे संबंधों पर आधारित होनी चाहिए, जो पर्यावरण और जीवन की प्रक्रियाओं के संबंध में न्यायसंगतता सुनिश्चित करते हैं।

इसके अलावा जैविक खेती (organic farming) का ये सिद्धांत है कि प्रकृति हमारी धरोहर है जिसे संभाल कर रखने की जरूरत है। हमे इसका दोहन होने से बचाना है। क्योंकि आज इंसान लगातार अपनी सुख सुविधाओं के लिए प्रकृति का दोहन कर रहा है जिससे कि हमारे भविष्य पर संकट मंडरा रहा है। इस भयानक संकट को देखते हुए किसानों को जैविक खेती का ज्ञान होना अत्यंत जरूरी है।

जैविक खेती का अन्य सिद्धांत है कि हर जीव के अस्तित्व के लिए मृदा बहुत जरूरी है इसलिए इसकी गुणवत्ता बनाए रखना बहुत जरूरी है। मृदा का पोषण बहुत जरूरी है। क्योंकि पौधा पोषण मिट्टी से ही लेगा। जैविक खेती पारिस्थितिकी तंत्र Ecosystem का फिर से उद्धार करता है और पर्यावरण को भी स्वच्छ रखता है। जैविक खेती के सिद्धांत के रूप में, भावी जैविक किसान को बंद प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र (न्यूनतम इनपुट और आउटपुट के साथ) के सिद्धांत को पूरी तरह से समझने की ज़रूरत होती है और सबसे पहले पारिस्थितिकी तंत्र में पहले से मौजूद सभी स्वस्थ सामग्रियों का प्रयोग करने की कोशिश करनी चाहिए। 

जैविक खेती कैसे करें और जैविक खेती करनें की प्रक्रिया

ये तो हम जान गए हैं कि ऑर्गेनिक कृषि प्रकृति और पर्यावरण को संतुलित रखते हुए की जाती है। ऑर्गेनिक या जैविक खेती को हम देशी खेती भी कहते हैं। यानि इस खेती के अतर्गत फसलों के उत्पादन में रसायनिक खाद कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है बल्कि इसकी जगह पर गोबर की खाद, कम्पोस्ट, फसल अवशेष, जीवाणु खाद और प्रकृति में उपलब्ध खनिज पदार्थों का उपयोग किया जाता है। जबकि सामान्य खेती में किसान रसायन को अधिक महत्व देते हैं। आधुनिक समय में निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि की उर्वरा शक्ति का संरक्षण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए जैविक खेती की राह अत्यंत लाभदायक है। फसलों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचानें के लिए प्रकृति में उपलब्ध मित्र कीटों, जीवाणुओं और जैविक कीटनाशकों द्वारा हानिकारक कीटों तथा बीमारियों से बचाया जाता है। जैविक खेती के तहत उगाई गई कोई भी सब्जी या फसल के उत्पादन में खाद तथा कीटनाशक गोबर खाद, हरी खाद, केंचुआ खाद तथा अन्य तरह की जैविक खाद का उपयोग किया जाता है। स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिहाज से ये पूर्णत: सुरक्षित होती हैं। जैविक उत्पादों की बाजार में बहुत मांग रहती है। भारत सरकार लगातार इस खेती को अपनाने के लिए प्रचार-प्रसार कर रही है। विश्व में जैविक खाद्य (भोजन) का प्रचलन अब बढ़ता जा रहा है। आजकल अनेक देशों ने अपने उत्पादन का लगभग 10% उत्पादन जैविक खेती द्वारा ही उगाना शुरू कर दिया है। अनेक खुदरा और सुपर बाज़ारों ने भी अब जैविक प्रोडक्ट्स पर भरोसा जताना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही लोग जैविक प्रोडक्ट्स अधिक खरीदने लगे हैं। 

जैविक खेती करनें के लिए इन कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के अनुसार कार्य करना आवश्यक होता है, ये निम्न हैं -

मिट्टी की जाँच Soil Check

जैविक खेती करने के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी की जांच करनी जरुरी है। जांच आप किसी भी निजी लैब या सरकारी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की प्रयोगशाला में कर सकते हैं। इसके द्वारा एक किसान को यह पता लगता है कि खेत की मिट्टी में किसी तत्व की कमी है या नहीं। इससे ये फायदा होगा कि किसान फिर उसके अनुसार उपयुक्त खाद का उपयोग कर खेत या मिट्टी को अधिक उपजाऊ बना सकते हैं। जिससे उसमे फसल की पैदावार अच्छी होगी। 

जैविक खाद बनाना Making Organic Compost

एक खेत के लिए जो सबसे जरुरी चीज है वो खाद ही होती है। ऑर्गेनिक या जैविक खेती करनें के लिए आपके पास पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद होना जरुरी है। खाद बनाते समय हमें कुछ विशेष सावधानियां रखनी आवश्यक हैं। जैसे कि समय-समय पर खाद को बनाते हुए ऊपर नीचे पलटने का काम करना चाहिए और लगभग एक महीने का समय देना चाहिए। किसान अपने खेत के आकार के हिसाब से खाद बना सकते है। खाद बनाने की कई विधियां है जिसमें नाडेप , हरी खाद , जैव उर्वरक, बायोगैस, वर्मि कम्पोस्ट, गोबर की खाद, पिट कम्पोस्ट Nadep, Green Manure, Biofertilizer, Biogas, Vermicompost, Dung Manure, Pit Compost आदि। ज्यादातर किसान गो मूत्र, नीम पत्ती घोल मट्ठा मिर्च लहसुन आदि के प्रयोग से भी खाद बनाते हैं। यानि जैविक खाद पशु मल-मूत्र अर्थात गोबर तथा फसलों के अवशेष से बनायी जाती है। वेस्ट डिस्पोजर की सहायता से भी ऑर्गेनिक खाद 3 से 6 माह में तैयार कर सकते हैं।

ऑर्गेनिक या जैविक खाद कैसे बनाये How to make organic fertilizer

जैविक खेती में ज्यादातर रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं कर सकते हैं जैसे, मिनरल नाइट्रोजन उर्वरक आदि। जैविक खेती के लिए केवल जैविक खेती में प्रयोग करने के लिए जैविक उर्वरकों की ही अनुमति दी जाती है। कुछ सबसे अच्छे जैविक उर्वरकों या ऑर्गेनिक खाद को विभिन्न प्रकार से तैयार किया जाता है, जैसे- गोबर गैस खाद, हरी खाद, गोबर की खाद dung gas manure, green manure, cow dung manure आदि। इस प्रकार की कम्पोस्ट को प्राकृतिक खाद भी कहते है, इसे बनानें की विधि निम्न है-

कम्पोस्ट

कम्पोस्टिंग एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और यह प्राकृतिक उर्वरीकरण का एक तरीका है। इसमें सूक्ष्मजीवों, जैसे बैक्टीरिया, के विशेष समूह जैविक पदार्थों को खाद में बदल देते हैं। प्रक्रिया पूरी होने के बाद, कम्पोस्ट तैयार हो जाता है। यह मिट्टी की गुणवत्ता को बहुत अच्छा बनाता है। कम्पोस्ट में जैविक पदार्थों, पोषक तत्वों और सूक्ष्म मात्रा में मौजूद तत्वों का मिश्रण शामिल होता है। 

गोबर की खाद बनानें की प्रक्रिया Process To Make Manure

जैविक खेतों में आमतौर पर गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जाता है। यह खाद अच्छी तरह सड़ी हुई होनी चाहिए। इसके लिए आपको गड्ढा खोदना पड़ेगा। इसके लिए आपको लगभग 1 मीटर चौड़ा, 1 मीटर गहरा और 5 से 10 मीटर लम्बा गड्ढा खोदना होगा। इसके बाद सबसे पहले गड्ढे में एक प्लास्टिक शीट फैलाकर उसमें फसलों के अवशेष, पशुओं के गोबर के साथ ही पशु मूत्र और पानी उचित मिलाकर मिट्टी और गोबर से बंद कर दें। 15 से 20 दिनों के बाद गड्ढे में पड़े मिश्रण को अच्छी तरह मिलाये। ऐसे ही फिर लगभग 2 महीने के बाद इस मिश्रण को एक बार फिर से मिलाये और ढ़ककर फिर से बंद कर दें। बस इसके बाद तीसरे महीने में गोबर की खाद बनकर तैयार हो जाएगी। अब आप इसको खेतों में डालकर मिट्टी को उपजाऊ बना सकते हैं। 

हरी खाद बनानें की प्रक्रिया

इसमें खेत में किसी वार्षिक या सदाबहार पौधे (रिजका, शिंबी) की बोवाई के साथ हरी खाद का उत्पादन शुरू होता है। इससे मिट्टी अधिक उपजाऊ हो जाती है। इसमें नाइट्रोजन-फिक्सिंग पौधों जैसे रिजका, क्रीपिंग क्लोवर, बाकला, ल्यूपिन, मटर, चना आदि का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा ऑर्गेनिक खेती करनें के लिए आप जिस खेत में फसल उत्पादन करना चाहते है, उस खेत में वर्षा होनें से समय में बढ़ने वाली लोबिया, मुंग, उड़द, ढेचा आदि की बुवाई कर दे और लगभग 40 से 60 दिन के बाद उस खेत की जुताई कर दे। इस प्रक्रिया के बाद खेत को हरी खाद मिलती है। हरी खाद में नाइट्रोजन, सल्फर, गंधक, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर, आयरन और जस्ता Nitrogen, Sulphur, Sulphur, Potash, Calcium, Magnesium, Copper, Iron and Zinc भरपूर मात्र में पाया जाता है। इससे खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है।

इसमें जई और बाजरा जैसे अनाज भी प्रयोग किये जाते हैं। ये पौधे काफी मात्रा में पोषक तत्व अवशोषित करते हैं। मिट्टी में इनका समावेश होने पर पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। इसके अलावा एक बड़े गढ्ढे में जरूरत के हिसाब से सभी खाद्य अवशेषों को एक साथ मिलाया जाता है, और करीब एक महीने तक सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि उनके सभी वैक्टरिया आदि घुल मिल जाए और एक बढ़िया खाद तैयार हो।

केंचुए की खाद बनानें की प्रक्रिया

ये तो हम सब जानते हैं कि केंचुए को किसान का मित्र earthworm farmer friend भी कहा जाता है। केंचुआ भूमि को उपजाऊ बनानें में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1 किलो केंचुआ 1 घंटे में 1 किलो वर्मीकम्पोस्ट बना देता हैं। केंचुए की खाद बनानें के लिए आपको एक प्लास्टिक की शीट, लगभग 2 से 6 किलो केंचुआ, नीम की पत्तियां, गोबर की आवश्यकता होगी। इसके लिए वातावरण नम होना चाहिए। यानि इसे छायादार पेड़ों के नीचे या जहाँ छाया हो वहीं बनाना चाहिए। इसके साथ ही जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। अब एक लम्बा गड्ढा खोदकर उस में प्लास्टिक शीट फैला कर अपने हिसाब से गोबर, खेत की मिट्टी, नीम पत्ता और केंचुआ मिलानें के पश्चात पानी का छिड़काव कर दें। केंचुए की खाद फसलों को कई प्रकार की बीमारियों से बचाता है। 

ऑर्गेनिक खेती से होने वाले लाभ Benefits From Organic Farming

जैविक खेती या ऑर्गेनिक खेती के अनेक लाभ हैं जो कि निम्न हैं -

  • फसलों के उत्पादन में वृद्धि होती है और अधिक मुनाफा होता है।

  • सिंचाई के प्रयोग में कमी आती है क्योंकि जैविक खेती विधि से कम जल उपयोग से ही खेती होती है।

  • आर्गेनिक खेती करने से भूमि की उर्वरक क्षमता और उपजाऊ शक्ति में वृद्धि होती है, जिस कारण उत्पादन अधिक और अच्छा होता है। 

  • भूमि के उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होने से उत्पादन की गुणवत्ता में भी बढ़ोत्तरी होती है।

  • ऑर्गेनिक खेती से कृषि के सहायक जीव सुरक्षित रहते हैं और उनकी संख्या में बढ़ोतरी होती है। 

  • ऑर्गेनिक खेती से उत्पन्न अनाज का सेवन करनें से व्यक्ति को किसी प्रकार की बीमारी का खतरा नहीं रहता है। 

  • रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होती है जिससे मृदा में पौष्टिक तत्वों का हनन नहीं होता और उनका पोषण बना रहता है।

  • जैविक खेती में आय अधिक होती है क्योंकि मार्केट में जैविक खेती से उत्पादित अनाज की मांग अधिक है। 

  • जैविक खेती से पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता है यानि पर्यावरण संतुलन बना रहता है। 

  • रासायनिक खादों से जहां मृदा, चारा और खाद्यान्न की गुणवत्ता प्रभावित होती है वही जैविक खादों से यह बेतहाशा बढ़ती है।

  • जैविक खेती, परम्परागत खेती की तुलना में बहुत कम कार्बनडाइऑक्साइड छोड़ती है। 

  • बाजार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों और थोक विक्रेताओं दोनों को लाभ होता है।

  • जैविक खेती में लागत कम लगती है और मुनाफा (Profit) ज्यादा होता है।

जैविक खेती के लिए सरकारी योजनाएं Government schemes for organic farming

जैविक खेती के विकास के लिए सरकार भी पूरी तरह कोशिश में है। सरकार इसके लिए विभिन्न योजनाओं के द्वारा किसानों के लिए काम कर रही है। परंपरागत कृषि विकास योजना Traditional Agriculture Development Scheme एक ऐसी ही योजना है जिसके द्वारा सरकार आवेदन करने वाले किसानों को 50 हजार प्रति हैक्टेयर की राशि मुहैया करवा रही है। अनुदान राशि के साथ साथ जैविक खाद, जैविक कीटनाशक, वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि और इसके अलावा अन्य कई बातें भी बताई जाती हैं।

इसके अलावा एक अन्य योजना पूंजी निवेश सब्सिडी योजना भी है। इसके द्वारा सरकार किसानों को आर्थिक सहायता देने के साथ साथ कचरा प्रबंधन, जैविक अवशेषों के उर्वरकों और खादों में परिवर्तन की विधि के बारे में बताती है। इन योजनाओं से किसान अपनी खेती की जरूरतों को पूरा करके फायदा उठा रहे हैं। 

भारत में जैविक खेती करने वाले किसान कहां बेचे अपनी उपज?

देश में जैविक खेती (Organic Farming) को प्रोत्साहन देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कई योजनाएं किसानों के लिए चलाई जाती हैं। साथ ही सरकार की ओर से जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। सरकार की भी यही कोशिश है कि फसलों में कम से कम रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग हो और जैविक तरीकों से फसलों का उत्पादन हो। 

इसके साथ ही जैविक खेती करने वाले किसानों के सामने एक सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अपने जैविक खेती के उत्पाद को कहाँ बेचे। इसके लिए सरकार ने आधुनिक जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए वेबपोर्टल एवं एप Webportal & App शुरू किया है। इसमें किसान पंजीकरण कर अपने जैविक उत्पाद को बेच सकते हैं। सरकार की ओर से शुरू किए गए जैविक वेब पोर्टल एवं एप का फायदा जैविक खेती करने वाले किसानों को मिल रहा है। 

जैविक खेती पोर्टल विश्व स्तर पर जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए एमएसटीसी के साथ कृषि मंत्रालय (एमओए), कृषि विभाग (डीएसी) की एक अनूठी पहल है।  केंद्र सरकार ने किसानों द्वारा उत्पादित फसल को उपभोक्ता तक पहुंचाने के लिए ऑनलाइन सेवा  https://www.jaivikkheti.in/ शुरू की है। जहां पर खरीदार तथा आपूर्तिकर्ता या उत्पादक एक साथ व्यापार कर सकते हैं और अपनी सुविधा के अनुसार रेट भी तय कर सकते हैं।

भारत में जैविक खेती का दायरा | Scope OF Organic Farming in India

Organic Farming भारत में समृद्ध होगी और 2030 तक 1.5 बिलियन लोगों को खिलाने में योगदान देगी। एसोचैम और टेक्ससीआई के आंकड़ों के अनुसार, Organic Farming In India का बाजार 2020 तक 25-30% प्रति वर्ष की वृद्धि दर के साथ लगभग 1.36 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।

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