जैविक खेती, सकारात्मक बदलाव की उज्ज्वल आशा
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खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा दो महत्वपूर्ण कारक हैं जिन पर आम लोगों का लगातार ध्यान गया है। विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या आज की सबसे बड़ी समस्या है। बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ एक समस्या और उत्पन्न हो रही है, वो है भोजन आपूर्ति की समस्या जो दिनो-दिन बढ़ती जा रही है। आज कल मौसम की परिस्थितियां भी खेती और फसलों के लिए अनुकूल नहीं है, जिससे पहले की तरह किसान फसल उत्पादन मे भी सक्षम नहीं रहते।
आधुनिक युग में, जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ता प्रदूषण स्तर हमारे पर्यावरण के सतत विकास में प्रमुख चुनौती है। बढ़ती मांग और लोगों की भव्य जीवन शैली पर्यावरण के दूषित होने का कारण बनती है। हमारी कृषि प्रणाली भी प्रदूषण से आहत है। आधुनिक कृषि पद्धतियां जैसे सिंथेटिक उर्वरकों, कीटनाशकों आदि का उपयोग फसल की उपज को अधिकतम करने के लिए पर्यावरण को प्रदूषित करने में योगदान देता है। जैविक खेती पर्यावरण के अनुकूल, पशु और पौधों पर आधारित स्थानीय जैविक संसाधनों का उपयोग करके खेती का एक प्राकृतिक तरीका प्रदान करती है जो फसल पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। यह मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाने में सहायक होता है और उपज में वृद्धि करता है। प्राकृतिक और जैविक संसाधनों के उपयोग के कारण इस प्रक्रिया को पूरी तरह से सतत विकास के अनुकूल माना जाता है।
जैविक खेती
खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा दो महत्वपूर्ण कारक हैं जिन पर आम लोगों का लगातार ध्यान गया है। विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या आज की सबसे बड़ी समस्या है। बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ एक समस्या और उत्पन्न हो रही है, वो है भोजन आपूर्ति की समस्या जो दिनो-दिन बढ़ती जा रही है। आज कल मौसम की परिस्थितियां भी खेती और फसलों के लिए अनुकूल नहीं है, जिससे पहले की तरह किसान फसल उत्पादन मे भी सक्षम नहीं रहते।
भारत में प्राचीन समय में एक कहावत प्रचलित थी। “उत्तम खेती मध्यम वान। अधम चाकरी भीख निदान”। जिसे सरल शब्दों में कहें तो “सबसे बेहतर काम है खेती करना, फिर व्यापार करना और फिर कहीं नौकरी और अंत में कुछ ना मिले तो भीख मांग कर अपना गुज़ारा करना।"
लेकिन आज के दौर में इसका उल्टा ही देखने को मिलता है। आजकल लोग पहले नौकरी को ज्यादा महत्ता देते हैं और जो किसान खेती कर भी रहे हैं तो उन्हें भी खेती छोड़ने को मजबूर होना पड़ता है।इसका कारण है अनाज उत्पादन में ज्यादा लागत और अनाज उत्पादन कम। लेकिन हाल के कुछ वर्षों से भारत में खेती की एक नई तकनीक अपनाई जा रही है जिसे “जैविक खेती”(organic farming) कहा जाता है। इसमें अनाज उत्पादन में लागत कम और अनाज उत्पादन ज्यादा होता है। जैविक खेती फसल उगाने की वह तकनीक है जिसमें रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग करने के बजाय, जैविक खाद, हरी खाद, गोबर खाद, गोबर गैस खाद, केंचुआ खाद का प्रयोग किया जाता है।
जैविक खेती की आवश्यकता
जैविक तरीके कृषि उत्पादकता में वृद्धि करते हैं, पर्यावरणीय क्षति को रोकते हैं। जैविक खेती आत्मनिर्भरता या खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने का एक तरीका है। रासायनिक उर्वरकों और जहरीले कीटनाशकों का भारी उपयोग भूमि और पानी को भारी रूप से जहर देता है। इसके दुष्परिणाम गंभीर पर्यावरणीय परिणाम हैं, जिनमें ऊपरी मिट्टी का नुकसान, मिट्टी की उर्वरता में कमी, सतह और भूजल संदूषण और आनुवंशिक विविधता का नुकसान शामिल है। रसायनों से होने वाले दुष्प्रभाव से पर्यावरण का बचाव करती है। भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि करती है। फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी करती है। जैविक, जैविक खेती विधि द्वारा उगाया गया अनाज उच्च गुणवत्ता वाला होता है जिसे स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम माना जाता है।
जैविक खेती के लाभ
जैविक खेती में, फसलों के रोपण के लिए किसी महंगे उर्वरक, कीटनाशक या HYV बीजों की आवश्यकता नहीं होती है। इसलिए, इस कृषि प्रक्रिया में कोई अतिरिक्त खर्च नहीं होता। और यह पर्यावरण के अनुकूल भी होता है।
सस्ते और स्थानीय आदानों के उपयोग से किसान कम निवेश में अच्छा प्रतिफल प्राप्त कर सकता है। यह एक सस्ती प्रक्रिया है। भारत और दुनिया भर में जैविक उत्पादों की मांग में काफी वृद्धि हुई है, जो निर्यात के माध्यम से अधिक आय उत्पन्न करता है। जैविक खेती अधिक श्रम प्रधान है इसलिए इससे रोजगार में भी वृद्धि होती है। रासायनिक और उर्वरक-प्रयुक्त उत्पादों की तुलना में, जैविक उत्पाद अधिक पौष्टिक, स्वादिष्ट और स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं। और शरीर को उचित पोषक तत्व प्रदान करते हैं।
जैविक खेती की सीमाएं
जैविक खेती के कई फायदे तो है लेकिन साथ ही कुछ सीमाएं भी हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा अनाज उत्पादन का आउटपुट कम होता है। जैविक उत्पाद आमतौर पर अधिक मांग के कारण अधिक कीमत की मांग करते हैं। उच्चतम मूल्य के कारण सभी वर्ग के लोग इसे उपयोग करने के लिए समर्थ नहीं होते।
जैविक खेती, सतत विकास
जैविक खेती पारंपरिक कृषि की हानिकारक प्रथाओं जैसे सिंथेटिक उर्वरकों का उपयोग नहीं करती है। असल में जैविक कृषि एक कृषि तकनीक है जो पारिस्थितिकी तंत्र की गुणवत्ता को बनाए रखती है। इसलिए यह स्थायी रूप से सतत विकास से संबंधित है। जैविक भोजन एक दीर्घकालिक समाधान है जिसके परिणामस्वरूप कम मिट्टी और जल प्रदूषण, तेल आधारित उर्वरकों और कीटनाशकों पर कम निर्भरता, अधिक जैव विविधता और कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है। जैविक खेती दीर्घकालिक स्थिरता पर अधिक केंद्रित है।
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