शहीद दिवस - वीर क्रांतिकारियों को नमन
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'दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त , मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू -ए-वतन आएगी' - सरदार भगत सिंह
जो अपनी जिंदगी का बलिदान वतन के नाम कर गए, जो आजादी का फरमान वतन के नाम कर गए आज उन्हें याद करने से ज्यादा ज़रूरी है, उनके जीवन से प्रेरणा लेना और सोचना की जो आजादी हमारे महान वीर क्रांतिकारियों ने हमे दिलायी क्या हम उसका पूरी तरह सम्मान कर रहे हैं? आज इस शहीद दिवस (Martyrs Day) पर आइए जानते हैं उन महान क्रांतिकारियों (great revolutionaries) के जीवन के बारे में, उनके जीवन का मकसद था देश को आजाद कराना।
आज हमारा देश तो विकास (development) के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है लेकिन जो इन सभी उपलब्धियों की वजह हैं, आजादी के वो अग्रदूत उन्हें हम भूलते जा रहे है। वीर सपूतों ने भारत की आजादी के लिए बहुत संघर्ष किये और हमे आजादी भी मिल गयी पर सोचने वाली बात ये है कि आज हम अंग्रेजों से तो आजाद हैं, पर क्या हम लालच, भ्रष्टाचार, गरीबी व पिछड़ी सोच (Greed, corruption, poverty and backward thinking) से आजाद है? हालांकि, ये एक अलग मुद्दा है बदलाव का, तरक्की का, पर ये भी कहीं न कहीं इसी आजादी के पहलु से जुड़ा हुआ है। अभी बात करते हैं क्रांतिकारियों के संघर्षों के बारे में, उनके प्रयासों और हक़ की लड़ाई के बारे में।
चलिए शुरू करते हैं
ब्रिटिश हुकूमत (British rule) से आजादी हासिल करने के लिए भारत में 1857 से लेकर 1947 तक कई जन आंदोलन चले, ऐसे कई वीर महापुरुष हैं जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आइए जानते हैं आजादी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में जिसके रास्तों से गुजरकर हमे आजादी मिली।
हम कितने सीधे और आसान तरीके से ये शब्द ‘आजादी’ (Freedom) कह देते हैं, पर ये उतनी आसानी से हमे मिली नहीं।
भारत की स्वतंत्रता (Freedom of India) के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था, एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई। भारत की धरती पर जितनी भक्ति और मातृ-भावना उस युग में थी, उतनी कभी नहीं रही। मातृभूमि की सेवा और उसके लिए मर-मिटने का जो जूनून था , आज उसका बहुत अभाव है। क्रांतिकारी आंदोलन का समय सामान्यतः सन् 1857 से 1942 तक माना जाता है।
भारत की आजादी का इतिहास
सन 1757 में प्लासी के युद्ध भारत में राजनीतिक सत्ता जीतने पर के बाद अंग्रेजों ने भारत पर अपना आधिपत्य जमा लिया और करीब 200 साल तक राज किया। वर्ष 1848 में लाॅर्ड डलहौजी के कार्यकाल के दौरान यहां अंगेजों का शासन स्थापित हुआ। अंग्रेजों के निशाने पर सबसे पहले उत्तर-पश्चिमी भारत रहा और वर्ष 1856 तक उन्होंने अपना मजबूत अधिकार स्थापित कर लिया। 19वीं सदी में अंग्रेज अपने शासन में अधिक बुलंद हो गए। अंग्रेजों की मनमानी से तंग आकर नाराज़ और असंतुष्ट स्थानीय शासकों, किसानों और बेरोजगार सैनिकों ने विद्रोह कर दिया जिसे आमतौर पर ‘1857 का विद्रोह’ या ‘1857 के गदर’ के रूप में जाना जाता है। 1857 में इस विद्रोह की शुरुआत मेरठ में बेरोजगार सैनिकों के विद्रोह से हुई।
इस विद्रोह का मुख्य कारण वो नए कारतूस थे जो नई एनफील्ड राइफल में लगते थे। इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी से बना ग्रीस था जिसे सैनिक को राइफल इस्तेमाल करने के लिए मुंह से हटाना होता था। जोकि हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के सैनिकों को धार्मिक कारणों के चलते मंजूर नहीं था और उन्होंने इसे इस्तेमाल करने से मना कर दिया और यही वजह थी जिसके कारण उनके रोजगार छीन लिए गए। जल्दी ही यह विद्रोह दिल्ली और उसके आसपास के राज्यों में फ़ैल गया, लेकिन यह विद्रोह असफल रहा और अंग्रेजों की सेना ने इस विद्रोह के जबाब में कई हत्याएं कर दीं। जिससे भारतीय नागरिक बहुत निराश हो गए। अंग्रेजों और भारतीयों के इस विद्रोह ने दिल्ली, अवध, रोहिलखंड, बुंदेलखंड, इलाहाबाद, आगरा, मेरठ और पश्चिमी बिहार को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। हालांकि तब भी 1857 का यह विद्रोह असफल कहलाया और एक साल के भीतर ही खत्म भी हो गया। 1857 के विद्रोह के बाद एक साल में ही अंग्रेजों ने विद्रोह पर काबू पाकर नई नीतियों के साथ फिर से अपना विस्तार किया। और उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत हो गया। इसी बीच महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी के तौर पर घोषित किया गया। तमाम बंदिशों के वाबजूद कई देशभक्त निकल कर विद्रोह के लिए सामने आये जैसे राजा राम मोहन राय (Raja Ram Mohan Roy), बंकिम चंद्र (Bankim Chandra) और ईश्वर चंद्र विद्यासागर (Ishwar Chandra Vidyasagar) जैसे समाज सुधारक पटल पर उभरे और उन्होंने भारतीयों के हक की लड़ाई लड़ी।
भारत को स्वतंत्र कराने के लिए तमाम लोगों ने बलिदान दिए अगर मैं शुरू से उसके बारे में बात करने जाऊं तो मेरे शब्द कम पड़ जाएंगे। जैसा कि हम जानते हैं कि आज शहीद दिवस है तो आज बात करते हैं उन वीर अमर शहीदों की जिन्होंने अपना सारा जीवन देश को समर्पित कर दिया।
अमर वीरों को समर्पित शहीद दिवस
हम 23 मार्च को शहीद या शहीदी दिवस के रूप में मनाते हैं। हमारे इतिहास में इस दिन क्रांतिवीरों ने आजादी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। इसलिए आज के दिन का इतिहास के पन्नों में बहुत महत्त्व है। 23 मार्च को स्वतंत्रता की लड़ाई में भारत के तीन वीर सपूतों ने हंसकर फांसी की सजा को गले लगाया था। शहीद भगत सिंह (Bhagat singh), सुखदेव (Shukhdev) और राजगुरु (Rajguru) ने फांसी पर झूलकर देश के लिए ये महान बलिदान दिया था।
शहीद भगत सिंह को भारत में बड़ी संख्या में यूथ फॉलो करते थे और आज भी उनके विचार हमारे देश के युवाओं को प्रेरित करते हैं। इन तीनों वीर जवानों ने महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) से अलग रास्ते पर चलते हुए अंग्रेजों से लड़ाई शुरू की थी और बहुत कम उम्र में देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। इन तीनों महान व्यक्तित्वों की याद में और इन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए ही आज के दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जी को लाहौर सेंट्रल जेल में रखा गया था। इतिहासकार बताते हैं किर इन तीनों वीर पुरुषों को फांसी देने के लिए 24 मार्च 1931 का दिन तय किया गया था, लेकिन अंग्रेजों को डर था कि फांसी वाले दिन लोग उग्र न हो जाएं, क्योंकि इन तीनों की उस समय देश के युवाओं और बाकी जनता में भी बहुत लोकप्रियता थी इसलिए अंग्रेजों ने इसमें बदलाव किया और तय तारीख से 1 दिन पहले यानि 23 मार्च को इन्हें फांसी दे दी।
भगत सिंह से जुड़ी कुछ अहम बातें
हम सभी जानते हैं कि भगत सिंह को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन (Indian independence movement) के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। क्रन्तिकारी संगठनों के साथ मिलकर उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया था। इनकी मृत्यु 23 वर्ष की आयु में हुई जब उन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर चढ़ा दिया।
लायलपुर ज़िले के बंगा में भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को हुआ था, ये जगह बंटबारे के बाद अब पाकिस्तान में है। इसके अलावा उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां है जो कि पंजाब, भारत में है। भगत सिंह को क्रांति विरासत में मिली, भगत सिंह के जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह (Kishan singh), चाचा अजित (Ajit) और स्वरण सिंह (Swaran singh) जेल में थे क्योंकि उन्होंने 1906 में लागू किये हुए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन किया था। भगत सिंह की माता का नाम विद्यावती था। उनका परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। उस समय भगत सिंह, करतार सिंह सराभा (Kartar Singh Sarabha) और लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) से अत्याधिक प्रभावित रहे।
परिवार से मिले क्रांतिकारी के संस्कार
भगत सिंह के चाचा सरदार अजित सिंह ने भारतीय देशभक्त संघ की स्थापना की थी। जिसमें उनके एक मित्र सैयद हैदर रजा (Sayed Haider Raza) ने उनका अच्छा समर्थन किया और चिनाब नहर कॉलोनी बिल के खिलाफ किसानों को एकत्रित किया। इन सब के बीच अजित सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज हो चुके थे जिसके कारण वो ईरान पलायन के लिए मजबूर हो गए। भगत सिंह के परिवार के सदस्य ग़दर पार्टी के समर्थक थे और इसी कारण से बचपन से ही भगत सिंह के दिल में देश भक्ति की भावना उत्पन्न हो गयी। भगत सिंह ने अपनी शुरूआती पढाई गांव में की और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में उनका दाखिला करवा दिया। वीरता का प्रदर्शन करते हुए बहुत ही छोटी उम्र में भगत सिंह, महात्मा गांधी जी के असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए और बहुत ही बहादुरी से उन्होंने ब्रिटिश सेना को ललकारा।
जलियांवाला कांड ने डाला भगत सिंह के मन पर प्रभाव
13 अप्रैल, वर्ष 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उनका मन उसी समय उस अमानवीय कृत्य को देखकर देश को स्वतंत्र कराने के बारे में सोचने लगा। इसी विचारधारा के साथ भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। क्रांति की ज्वाला भड़क गयी और इसके उपरान्त लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सज़ा सुनाई गई और बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) को आजीवन कारावास दिया गया। 23 मार्च की शाम भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरू के साथ फांसी पर लटका दिया गया। उस समय अतुल्य साहस और परिक्रम का परिचय देते हुए इन तीनों वीर पुरुषों ने ने हंसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
एक लेखक भी थे भगत सिंह
आपको बता दें कि भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। भगत सिंह ने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा व संपादन भी किया। उनकी मुख्य कृतियों में निम्नलिखित लेख शुमार हैं जैसे 'एक शहीद की जेल नोटबुक (संपादन: भूपेंद्र हूजा), सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज (संकलन : वीरेंद्र संधू), भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज (संपादक: चमन लाल) आदि। इसके अलावा कई किताबें भी लिखी जैसे मैं एक नास्तिक क्यों हूँ (Why I Am an Atheist), जेल डायरी (Jail Diary), टू यंग पोलिटिकल वर्कर्स (To Young Political Workers) आदि। भगत सिंह ने एक चिट्ठी में लिखा था कि “मेरा जीवन एक महान उद्देश्य के लिए समर्पित है और वह है देश की स्वतंत्रता इसलिए कोई भी आराम या सांसारिक सुख मुझे नहीं लुभाता।” आज के युवाओं को भगत सिंह के नारे लगाने के बदले उनकी लिखी हुई किताबों को पढ़ना चाहिए। उनकी कलम का जादू आपको सही मार्ग दिखाने के लिए काफी है।
भगत सिंह जी की देशभक्ति एवं उनके व्यक्तित्व के के बारे में जितना लिखा जाए उतना कम है।
“इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से, अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूँ तो इंक़लाब लिखा जाता है।” - भगत सिंह
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