मेजर ध्यानचंद : सफलता का दूसरा नाम
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कहते हैं जुनून जब ज़िद बन जाती है तो सोचे हुए मुकाम हांसिल हो ही जाते हैं। इस बात को सच कर दिखाया है मेजर ध्यान चंद ने।अपनी क्षमता को निखारते हुए इन्होनें भारत में खेल को नयी दिशा दी। व्यक्ति के मन में आशाओं के बीज डालने वाले ध्यान चंद ने विश्व भर के युवाओं को प्रेरित किया है। हमेशा आगे बढ़ते रहने की उम्मीद दी है। सेना में भर्ती होने के बाद ध्यान चंद ने हॉकी खेलना शुरू किया था और खेला भी तो ऐसा कि हॉकी के खेल में खुद का नाम सुनहरे अक्षरों में लिख दिया।
मेहनत का रंग खिल के ना उभरे और कोशिश की चमक लोगों तक ना पहुंचे ऐसा भला कहाँ संभव है। कोशिश अपना रास्ता बना ही लेती है और निकल जाती है एक मंजिल की ओर जो एक जगह खड़ी कई रास्तों का गवाह बनती है। इतिहास ने ऐसी कई कहानियों को सुना और पढ़ा है, जिसने अपने आप को कभी ना भूलने वाला पल बना दिया। भारत ने ऐसी कई हस्तियां दीं, जिन्होंने आसमान के ध्रुव तारे की तरह भारत का नाम पूरे विश्व में हमेशा के लिए स्थापित किया। चाहे हम मनोरंजन जगत की बात करें, औद्योगिक जगत की, वैज्ञानिक जगत की या फिर खेल जगत की। हर क्षेत्र में कई लोगों ने अपने हुनर को निखारते हुए देश को बुलंदियों तक पहुँचाया है। खेल जगत का भी अपना इतिहास है। इसमें कभी कुछ के हाथ हताशा लगती है, तो कभी कोई सफलता का स्वर्णिम उदाहरण बन जाता है, परन्तु खेल ने एक ही नियम सिखाया है और वो है कभी ना थकने और उम्मीद ना छोड़ने की हिम्मत।
खेल की दिशा बदलने वाले मेजर
वैसे तो हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है पर आज तक मैंने मैदान पर लोगों को हॉकी खेलते नहीं देखा है। हाँ, हॉकी की छड़ी देखी है, तो लड़ाई के समय लोगों के हाथों में। भारत को हॉकी जैसे खेल को राष्ट्रीय खेल की सौगात देने वाले एक ऐसे ही खिलाड़ी ने इतिहास को बदला। मेजर ध्यानचन्द ने भारत को खेल जगत में कई उपलब्धियां दिलायीं। भारत में खेलों के प्रति कम रूचि रखने वालों के जीवन में एक दौर ऐसा भी आया, जब खेल उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया। लोग खुद को खेल से जोड़े रखना चाहने लगे। हॉकी जैसे खेल को कम पसंद करने वाले लोग हॉकी को अब अपना भविष्य और लक्ष्य मानने लगे। देश में इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण थे, आर्मी में नौकरी करने वाले वो फौजी जिन्होंने हॉकी को अपना सपना मान लिया। मेजर ध्यान चंद खेल की दुनिया का वो बादशाह, जिसके नाम से हॉकी ने दुनिया में अद्भभुत नाम कमाया।
फ़ौज के जरिये शुरू किया हॉकी खेलना
1905 में इलाहाबाद जो अब प्रयागराज के नाम से मशहूर है, में सेना की नौकरी करने वाले एक सैनिक के घर मेजर ध्यान चंद का जन्म हुआ। पिता के आर्मी में होने के कारण ध्यान चंद की पढ़ाई किसी स्थायी जगह पर नहीं हो पायी। कुछ वर्षों की पढ़ाई के बाद रुचि ना होने के कारण ध्यान चंद ने पढ़ाई छोड़ दी। पिता के नक़्शे कदम पर चलते हुए मेजर ध्यान चंद ने मात्र 16 साल की अल्प आयु में ही सेना में भर्ती ले लिया। शुरुआत के दिनों में हॉकी के जादूगर ध्यान चंद का रुझान हॉकी की तरफ ना होकर कुश्ती की तरफ था। सेना में भर्ती होने के बाद ध्यान चंद ने हॉकी खेलना शुरू किया, और खेला भी तो ऐसा कि हॉकी के खेल में खुद का नाम सुनहरे अक्षरों में लिख दिया। फ़ौज के अंदर ही उन्होंने हॉकी के कई मैच खेले।
भारत को ओलिंपिक में दिलाया मैडल
हॉकी में अच्छा प्रदर्शन करने के कारण ध्यान चंद का भारतीय हॉकी टीम में चुनाव हो गया। 1926 में उन्होंने न्यूज़ीलैण्ड में अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला। इसके बाद तो हॉकी के जादूगर ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और हॉकी की दुनिया में कई रिकॉर्ड अपने नाम करते गए। 1928 में एमस्टर्डम में हुआ ओलंपिक भला किसको याद नहीं होगा। यह वही समय है, जब भारत ने पहली बार ओलंपिक में हॉकी में गोल्ड मैडल अपने नाम करके इतिहास बनाया। मैच के दौरान सबकी नज़रें एक ही खिलाड़ी पर टिकी रहीं और वो थे हमारे मेजर ध्यान चंद। अपने हॉकी से बॉल के साथ खेलने के तरीके से उन्होनें स्टेडियम में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति को मंत्र मुग्ध कर दिया। इस मैच में उन्होंने कुल 14 गोल को अपने नाम किया। यह अब तक का सबसे उच्च रिकॉर्ड था। इससे पहले किसी भी खिलाड़ी ने एक मैच में इतने गोल नही किये थे। इसके बाद से ही इन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा। मेजर ने अपने हुनर के दम पर देश को तीन बार लगातार ओलंपिक में गोल्ड मैडल दिलाया।
कई अवार्ड से हुए सम्मानित
अपने करियर के दौरान सबसे अधिक गोल करने का भी रिकॉर्ड इन्होनें बनाया। 1932 में गोल्ड मैडल जितने के बाद जर्मनी का शासक हिटलर इनसे इतना प्रभावित हुआ की इन्हें जर्मनी आने के लिए आमंत्रित कर दिया, साथ में वहां की नागरिकता और जर्मन आर्मी में नौकरी देने का भी वादा किया। जिसे ध्यान चंद ने बड़ी शालीनता से ठुकरा दिया। एक बार तो नीदरलैंड की हॉकी अथॉरिटी ने इनके हॉकी स्टिक को तोड़ दिया था, यह सुनिश्चित करने के लिए कि इनकी हॉकी में कोई जादू तो नहीं है। बावजूद इसके मेजर ने खेल में शानदार प्रदर्शन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण इनका ओलंपिक में खेलने का सिलसिला रुक गया। हॉकी क्षेत्र में बेहतरीन उपलब्धियों के कारण इन्हें कई उपाधियों से सम्मानित किया गया। देश के तीसरे सबसे सर्वोच्च सम्मान "पद्म विभूषण" से इनको विभूषित किया गया। 1972 में अंतर्राष्ट्रीय खेल समिति ने इन्हें मुचिन ओलंपिक देखने के लिए आमंत्रित किया। इसके साथ ही इनकी याद में इनके जन्मदिन को भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इनके नाम पर भारत में लाइफ टाइम अचीवमेंट का पुरस्कार देने की घोषणा की गयी। हॉकी में इतनी उपलब्धि हांसिल करने के बाद भी आज तक इन्हें भारत रत्न नहीं दिया गया है। भारत सरकार ने हाल ही में इनके नाम पर मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार की शुरुआत की।
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