खेल जगत में भारतीय महिलाओं की बढ़ती भागेदारी
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समाज में महिलाओं के लिए खेल-कूद को लेकर कुछ अवधारणाएँ और नियम ऐसे हैं जो उनके कदमों को बांधने का भरपूर प्रयास करती हैं। परन्तु इन महिलाओं ने अपने मेहनत और लगन के माध्यम से समाज के सामने खुद को प्रमाणित किया है और समाज के उस वर्ग के लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उनकी यह समझ किस स्तर तक सुव्यवस्थित और साक्षर समाज को परिभाषित करती है। प्रत्येक कठिनाई से लड़ते हुए मैरी कॉम, हिमा दास और मीरा बाई चानू जैसी कई महिलाओं ने महिलाओं को अपनी इच्छा से खेल का चुनाव करके उसमें भाग लेने के लिए बाध्य किया है। भारतीय महिला प्रतिनिधित्व टीमें विभिन्न खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं।
खेल जगत में भारतीय महिलाओं की भागेदारी बढ़ती जा रही है। भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है जो उन्हें समाज के अलगाव से मुक्त करने में मदद करता है। सरकारी नीतियां भी महिलाओं की खेल क्षेत्र में भागीदारी को बढ़ावा देने में मदद करती हैं। भारत में अब महिलाओं के लिए संरचित खेल कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं जो महिलाओं को अपनी क्षमता के अनुसार खेल में भाग लेने का मौका देते हैं। भारत में स्पोर्ट्स संसाधनों का वितरण भी महिलाओं के लिए बढ़ा है, जो उन्हें उपयुक्त खेल समारोहों में भाग लेने के लिए आवश्यक सामग्री प्रदान करता है।
हमने अक्सर अपने बुजुर्गों और बड़ों को यह कहते सुना है कि ' खेलोगे कूदोगे होगे ख़राब पढ़ोगे लिखोगे होगे नवाब। कई हद तक हम इस जुमले पर अमल भी करते आये हैं। अगर हम इतिहास उठा कर देखें और समझने की कोशिश करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि कुछ समय पहले खेल को उतना महत्वपूर्ण नहीं समझा जा रहा था। भारत के बाहर हमें कई ऐसे देश देखने को मिल जाते हैं जहाँ पर खेल को और बाकि चीजों;जैसे कि पढ़ाई, जितना ही महत्व दिया जाता है और उसका नतीजा भी हम उन देशों को मिल रहे कई पदक के रुप में देख सकते हैं। यदि हम भारतीय परिपेक्ष में इस बात का अवलोकन करें तो हमारा भिन्न परिस्थतियों से सामना होता है। भारत में खेल जगत में पुरुषों की भागेदारी कुछ हद तक संतुष्ट करती थी परन्तु यदि महिलाओं की भागेदारी को आंका जाये तो इनकी हिस्सेदारी संतोषजनक भी नहीं थी, जिसका नतीजा भारत का विश्व में खेल अंक तालिका में लगातार गिरता स्तर था। परन्तु बदलते समय के साथ महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी ने पूरे विश्व में खेल क्षेत्र में भारत को कई पदक के साथ एक नयी पहचान भी दिलाई है।
खेल क्षेत्र को अपना उद्देश्य बनाती भारतीय महिलाएं
वर्तमान समय में भारतीय महिलाएं खेल के अलग-अलग प्रारूपों को अब अपना लक्ष्य बना रहीं हैं। बात चाहे बॉक्सिंग कि हो या वेट लिफ्टिंग कि या फिर हम टेनिस से लेकर बैडमिंटन की बात करें, हर क्षेत्र में महिलाएं बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। भारतीय खेल जगत में कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में इतिहास रचा है। हम कह सकते हैं कि इस उपलब्धि के पीछे महिलाओं का खेल के प्रति उभरता रुख और लोगों का महिलाओं में जगता विश्वास है। पी टी उषा, मैरी कॉम, पी वी सिंधु, मीरा बाई चानू, हिमा दास या फिर हम सानिया मिर्जा का उदाहारण ले लें, इन महिलाओं ने खेल को अपना भविष्य चुनकर भारत को खेल जगत में अदभुत उपलब्धि दिलाई है। इन महिलाओं के संघर्ष और सफर की कहानी और महिलाओं के लिए प्रेरणा बन रही हैं।
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विश्व में बॉक्सिंग से अपना लोहा मनवाती मेरी कॉम की कहानी से लोगों को मिलती प्रेरणा
मणिपुर की रहने वाली मैंगते चाग्नेइजैंग मैरी कॉम आठ बार विश्व मुक्केबाज़ी का ख़िताब अपने नाम कर चुकी हैं। अपने बॉक्सिंग रुझान के बारे में मेरी कॉम बताती हैं कि 'जब उन्होंने पहली बार कुछ लड़कियों को लड़कों से रिंग में लड़ते देखा तो उन्हें भी बॉक्सिंग करने की इच्छा जगी और यहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई।' हालाँकि कुछ समय बाद शादी होने और दो बच्चे हो जाने के कारण उन्हें बॉक्सिंग से दूरी बनानी पड़ी। परन्तु दोबारा बॉक्सिंग में खुद को स्थापित करके लगातार विश्व चैम्पियन का ख़िताब अपने नाम कर इतिहास रचते हुए उन्होंने बच्चे होने के बाद करियर ख़त्म हो जाने वाले मिथ्या को तोड़ कर एक मिशाल दी।
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एथलीट में अपने संघर्ष से महिलाओं को नया मुकाम दिलातीं हिमा दास
ढिंग एक्सप्रेस के नाम से जानी जाने वाली हिमा दास ने आईएएएफ वर्ल्ड चैंपियनशिप दौड़ प्रतियोगिता में भारत को स्वर्ण दिलाकर सबसे कम उम्र वाली भारतीय महिला एथलीट बनने का ख़िताब अपने नाम किया। इसके साथ ही उन्होंने अपने संघर्ष से लोगों को किसी भी परिस्थिति में ना रुकने या फिर ना मुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। हिमा दास की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बाद भी उनके परिवर ने उनके रुझान में उनका पूरा सहयोग किया। हालाँकि शुरुआत के दिनों में हिमा दास फुटबॉल खेलना चाहती थीं परन्तु अपने कोच के सुझाव पर उन्होंने दौड़ना शुरू किया, जिसका नतीजा आज पूरा विश्व देख रहा है। एक समय पर दौड़ने के लिए जूते ना होने वाली हिमा दास आज एक जूते की कंपनी की ब्रांड अम्बेस्डर हैं और यह उपलब्धि उन्होंने अपने मेहनत से हासिल की है।
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वेट लिफ्टिंग में नाम बना दुनिया की मान्यताओं को चुनौती देतीं मीरा बाई चानू
साइखोम मीरा बाई चानू एक ऐसा नाम है जो खेल में वजन उठाने के साथ-साथ देश की कई महिलाओं के आकांक्षाओं का भार भी उठा रहीं हैं। २०१६ के रियो ओलिंपिक में रजत पदक जितने वाली मीरा बाई चानू ने टोक्यो ओलिंपिक में फिर से २०२ किलोग्राम में २१ वर्षों बाद रजत पदक जीत कर इतिहास के पन्नो में अपना नाम दर्ज कर लिया। मीरा बाई चानू ने तीरंदाजी में अपना करियर शुरु किया था परन्तु कुछ समय के बाद उन्होंने भारतोल्लन में खुद को स्थापित करने का निर्णय ले लिया। देश की पहली महिला रजत विजेता कुंजरानी ने मीरा बाई चानु के बारे में कहा कि 'मीरा बाई ने सीमित संसाधनों के साथ संघर्ष करते हुए कई वर्ष घर से दूर रहकर कठिन रास्तों को पार करते हुए यह रास्ता तय किया है।'
ऐसे ही कई और महिला खिलाडियों ने भारत को विश्व के सामने उभरती प्रतिभा के रूप में प्रस्तुत किया है।
संसाधनों की उपलब्धता भी बन रही बदलाव का बड़ा कारण
बदलते वक़्त के साथ अब खेल जगत में संसाधनों की कमी को भी पूरा किया जा रहा है, जिससे खिलाड़ियों को अब अभ्यास करने में ज्यादा परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ रहा है। लोगों में खेलों के प्रति बदलती अवधारणा और खेल के प्रति लोगों की जागरूकता काफी हद्द तक इस सोच को बदलने में कारगर रही है कि खेल से किसी का भविष्य सुरक्षित और स्थायी नहीं रह सकता है।
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खेल जगत में महिलाओं का योगदान (Indian women in sports)
भारत में खेल जगत में महिलाओं का योगदान बढ़ता जा रहा है। निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण खेल हैं जिनमें भारतीय महिलाएं उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं:
- क्रिकेट: भारत में महिला क्रिकेट टीम उत्कृष्ट प्रदर्शन करती है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण खिताब जीते हैं।
- बैडमिंटन: पीवी सिंधू और साइना नेहवाल जैसी उत्कृष्ट खिलाड़ियों ने बैडमिंटन में भारत का नाम रोशन किया है।
- टेनिस: सनिया मिर्जा और आंचल कीर्ति जैसी खिलाड़ियों ने टेनिस में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।
- हॉकी: भारत में महिला हॉकी टीम भी उत्कृष्ट प्रदर्शन करती है।
- बॉक्सिंग: मैरी कॉम जैसी खिलाड़ियों ने बॉक्सिंग में भारत का नाम रोशन किया है।
खेल क्षेत्र में महिलाओं के लिए मुश्किलें
खेल क्षेत्र में महिलाओं को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें से कुछ मुख्य चुनौतियां निम्नलिखित हैं:
- वित्तीय संसाधनों की कमी: कुछ महिला खिलाड़ियों के पास वित्तीय संसाधनों की कमी होती है जो उन्हें उनके खेल के लिए आवश्यक संसाधनों की आपूर्ति करने में मदद कर सकें।
- स्थानिक समर्थन की कमी: ज्यादातर खेलों में महिलाएं पुरुषों से कम समर्थन प्राप्त करती हैं, जैसे कि महिला क्रिकेट या हॉकी टीम जो कम लोकप्रिय होती हैं। इससे महिला खिलाड़ियों को स्थानिक समर्थन की कमी का सामना करना पड़ता है।
- सामाजिक प्रतिबंध: कुछ समाजों में महिलाओं के लिए खेल करना एक अभिशाप माना जाता है। ऐसे समाजों में महिला खिलाड़ियों को अपने सामाजिक मान-सम्मान की चिंता करनी पड़ती है।
- जैसा अभ्यास वैसा परिणाम: ज्यादातर महिला खिलाड़ियों को प्रारंभिक अभ्यास में कम मिलाजुला समर्थन मिलता है जो उन्हें अधिकतर पुरुष खिलाड़ियों से पीछे छोड देता है।
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