बढ़ते नगर या घटती साँसे?

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बढ़ते नगर या घटती साँसे?
02 Sep 2021
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धीरे-धीरे शहर अपना विस्तारण करते चले जा रहे हैं, गांव संकुचित होते-होते क़स्बे होते जा रहे हैं। और जहाँ पेड़ हैं पौधे हैं उनका क्या, वो आये दिन घटते जाते हैं। हम इंसान इतने शातिर हैं कि हमें असली फूल की जगह नकली फूल(कृत्रिम फूल) घर ले आकर उससे आनंदित होना भी भा जाता है। कितने अनभिज्ञ हैं हम प्रकृति की बर्वादी और अपनी नासमझी के बाबत।

हम जिस तरह समाजीकरण की जालसाज़ी में खुद को लपेटते जा रहे हैं, वो कहीं न कहीं मानवीय समाज के विकास के लिए आवश्यक था और है भी। क्योंकि आज का मनुष्य समाज, सोसाइटी जैसी परिभाषित परम्पराओं और समुदायों से खुद को अलग नहीं कर सकता। समाज मनुष्य की जरूरत है और रीढ़ की हड्डी भी। मगर हम अक्सर ये भूल जाते हैं कि जिस समाज, जिस परिपेक्ष को हमने निर्मित किया है क्या वह हमारे रहने लायक बन भी पा रहा है या नहीं? यहाँ हमारा मानना है कि जिस तरह से शहरों ने अपने पांव पसारे हैं कहीं उसके साथ-साथ लोगों की साँसे बढ़ते प्रदूषण में घट तो नहीं रही हैं? पर हमें महज़ इस बात की जानकारी है, चिंतन और अफ़सोस नहीं। क्या ये सब यूँ ही चलता रहना या चलाये रखना सार्थक होगा, मुझे तो नहीं लगता। आपको इस विषय पर क्या लगता है यह हम आप पर छोड़ते हैं?

धीरे-धीरे शहर अपना विस्तारण करते चले जा रहे हैं, गांव संकुचित होते-होते क़स्बे होते जा रहे हैं। और जहाँ पेड़ हैं पौधे हैं उनका क्या, वो आये दिन घटते जाते हैं। हम इंसान इतने शातिर हैं कि हमें असली फूल की जगह नकली फूल(कृत्रिम फूल) घर ले आकर उससे आनंदित होना भी भा जाता है। कितने अनभिज्ञ हैं हम प्रकृति की बर्बादी और अपनी नासमझी के बाबत। 

शहरों का विकास क्यों है आवश्यक-

शहरों का बढ़ना कोई बड़ी समस्या नहीं अपितु यह एक उज्जवल देश की ज़रूरत है। बेहतर आधारभूत संरचना प्रत्येक देश की पहली ज़रूरत है, बेहतर सुविधायें देशवासियों की पहली ज़रूरत है। मतलब कि वह हर चीज जो हमारे जीवन को सार्थक व सुगम बनाने में मदद करे वह मनुष्य को मिलना अनिवार्यरूपेण है। देश की सार्थकता इसी में होती है कि रहने वाला हर नागरिक सुखमय जीवन व्यतीत कर सके परन्तु सौ फीसदी यह संभव नहीं हो सकता। कहीं पढ़ा था एक बार कि आदर्श स्थिति कभी भी पूर्णयता नहीं आती यदि उसका अंश मात्र भी प्रतिफलित हो जाए तो काफी होता है। 

आज पूरी दुनिया में शहरों के बढ़ते ढांचों ने सबकी आँखें चकाचौंद से भर दी हैं। छोटी से छोटी जरूरतों से लेकर बड़ी से बड़ी जरूरतें तक शहर पूरी कर सकने की हिम्मत रखता है। 

शहरों के विस्तारण से हानियां- 

जो लाभ की बेल दिखाता है वही हानि की आहट भी तय कर देता है। वो कहते हैं न जो सीढ़ियाँ ऊपर ले जाती हैं असल में वही सीढ़ियाँ नीचे ले जाने में भी सक्षम हैं। आज का मनुष्य ये भूले बैठा है कि ज़िंदा रहने के लिए शहरों की ज़रूरत बाद में होती है पहले सांसो की ज़रूरत होती है। हम बिना शहर के जी सकते हैं, बिना सासों के एक क्षण भी नहीं जी सकते। मनुष्य ने अंधाधुंध विकास के लिए प्रकृति को जितना नुकसान पहुंचाया है उसकी भरपाई करना लगभग असंभव है फिर भी प्रयत्न के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है अब हमारे पास। शहर जिस तरह से धुएं के सायों से लिपटे दिखाई देते हैं, हर जगह चिमनियां धुएं के बादल उगलती मालूम पड़ जाएँगी आपको। रोज़ इतना वायु प्रदूषण बढ़ रहा है शहरों में, उसका विकल्प क्या है? जिससे यह सब बदला जा सके। हमारा मानना है इसका एक ही विकल्प हो सकता है ज़रूरतों को कम करना। धीरे-धीरे वस्तुओं का उपयोग कम करके हम प्रकृति को सहेज सकते हैं नए तरीकों से। 

कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना अति आवश्यक- 

शहर में रहने वालें लोगों के लिए कुछ बातें, कुछ आदतें अपने जीवन की दिनचर्या में शामिल करना अति आवश्यक है ताकि वे बढ़ते शहरीकरण के बीच घटती सांसों और पर्यावरण के असुर रूप को देव रूप में बदलने में सहयोग कर सकें। क्योंकि यह सब हम सभी के हित के लिए कर रहे हैं तथा यह आवश्यक है भविष्य की पीढ़ियों के लिए। 

1) पहली बात हम घरों में नकली पेड़ पौधों की जगह असली पौधारोपण करें जिससे हमारे घर का वातावरण स्वच्छ बना रहे। अगर जगह कम है तो कम पौधे लगा सकते हैं। 

2) हम जरूरत पड़ने पर ही अपने घरों के मोटर वाहन का इस्तेमाल कर सकते हैं। छोटे-छोटे अनावश्यक, अप्राथमिक कार्यों के लिए इनका इस्तेमाल वर्जित करें। 

3) प्लास्टिक का प्रयोग कम से कम करें, जो प्लास्टिक रिसाइकल नहीं हो पाती उनका प्रयोग हो सके तो बंद करें। क्योंकि हम सब जानते हैं कि प्लास्टिक करोड़ो सालों के बाद जाकर पिघलती है तब तक वह वातावरण को विषैला करती रहती है। प्लास्टिक पृथ्वी के लिए एक बहुत बड़ा अभिशाप है परन्तु मनुष्य इस बात को समझ नहीं पा रहा है, जिस तरह से हम अपने घर को गन्दा करने से बचते हैं उसी तरह हम अपनी पृथ्वी, अपनी धरा को भी गंदगी से बचा सकते हैं, ये हमारे हाथ में है। 

4) जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह यह है कि हम सभी को नाली-नालों की साफ़ सफाई रखना बहुत जरूरी है जो कि हम बिलकुल भी नहीं रखते। जहाँ जैसे हम लोगों से बन पड़ता है हम गन्दगी मचाने में लगे रहते हैं बिना सोचे-समझे। इससे होता ये है कि हमारे शहरों की नदियां गंदे नालों की वजह से गन्दी होती हैं, जो हमारे देश की छवि और विश्व को नकारात्मक सन्देश देती है। 

हमारा उद्देश्य ये नहीं की देश के विकास को रोका जाए बल्कि हमारा उद्देश्य यह है कि शहरों के विस्तारण के साथ-साथ प्रकृति के प्रति हमारी भावनाएँ धनात्मक रहें और मनुष्य जाति को ऐसे ही प्रतिफलित होते रहने की ऊर्जा मिलती रहे। ताकि हमारे शहर की बढ़ती सांसे हमारी सांसे न छीन सके।