प्रथम विश्व युद्ध और समाजीकरण
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पूरी दुनिया ने प्रथम विश्व युद्ध को झेला है। लोगों को लगता था कि इससे पूरी दुनिया में आर्थिक, राजनीतिक, और सामाजिक सुधार आएगा। लोगों को ये भी मानना था कि इस तरह का युद्ध शायद अब भविष्य में नहीं देखने को मिलेगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ वो और बात है। मगर क्यों इस युद्ध की आवश्यकता पड़ी, क्या-क्या कारण थे इसके होने के पीछे और किस तरह वैश्विक स्तर पर इसका परिणाम हुआ। उस वक्त भारत की स्थिति क्या रही इस युद्ध के चलते?
पृथ्वी पर प्रत्येक प्राणी आपसी उथल-पुथल और जीवन संघर्ष life struggle में निरंतर लगा ही रहता है। शायद ही ऐसा कोई दिन, ऐसा कोई पल जाता हो जब वह अपने अस्तित्व की लड़ाई न लड़ रहा हो। अगर आप जंगल के जीवन की बात करें, तो आप जानते ही होंगे कि सब एक दूसरे पर निर्भर हैं, सबका सार भोजन ही है। जंगली पशु wild animal को नहीं पता की वह किस पल अपने जीवन को खो देगा शायद इसलिए संघर्ष जारी रहता है। अपितु एक मात्र मनुष्य ही जगत में ऐसा प्राणी है जिसने खुदको धीरे-धीर जंगल से अलग-थलग कर एक नया वातावरण सुनिश्चित किया, जिसमें वह खानाबदोश जीवन को छोड़ते हुए अपनी बुद्धिमत्ता से समाजीकरण socialization की ओर अग्रसर होता चला गया। मनुष्य को हमेशा ऐसा लगता रहा होगा कि उसका आने वाला कल आज से और बेहतर होगा इसलिए वह निरंतर प्रयास करता रहता है, छोटी-छोटी चीजों को लेकर भी और बड़ी-बड़ी संभावनाओं को लेकर भी।
इस बात में कोई दोराय भी नहीं कि मनुष्य जाति human race ने जितनी तरक्की की है उतनी किसी प्राणी ने नहीं, अपितु कहना तो ये चाहिए की सिवाए मनुष्य के और किसी प्राणी ने तरक्की नहीं की न ही ऐसा आगामी भविष्य में देखने को मिलता है। युवाल नोवा हरारी की एक किताब है, 'सेपियंस' उसमें उन्होंने वैज्ञानिक तौर पर ये सम्भावना प्रकट की है की मनुष्य के बाद यदि कोई इस पृथ्वी पर राज करेगा तो वह चूहे हैं, यह बात कई लोगों को ज़रा कम हजम होगी परन्तु संभावित भविष्य में कुछ भी हो सकता है। खैर देखा जाए तो मनुष्य को सामाजिक होने में बहुत लम्बा समय नहीं बीता है, अगर समाजीकरण हेतु वर्षों की बात की जाए, तो महज 35 हज़ार वर्ष कहे जा सकते हैं, जबकि जंगल से बस्ती के सफर और मनुष्य की बदलती बनावट की अगर बात करें तो 5 लाख साल ही बीते होंगे, जोकि पृथ्वी के जन्म के एक सेकंड के बराबर भी नहीं होगा।
दुनिया में समाजीकरण में जितना समाजीकरण नहीं हुआ उससे अधिक युद्ध देखे जा चुके हैं, अगर छोटे-छोटे युद्धों की भी बात की जाए तो आप पाएंगे कि इनकी सूची आपकी सोच से भी लम्बी निकलती दिखाई देगी। क्या समाजीकरण के लिए युद्ध जरुरी है और अगर है तो कितना जरुरी है। अजीब बात है, लाशों के ढेरों पर कौन होगा जो अपना मकान बनाना चाहेगा। आप का उत्तर होगा कोई नहीं मगर फिर भी हम सभी ने युद्ध गढ़े भी और यद्धों का समर्थन भी किया और अभी तक करते आये हैं। इससे उल्ट देखा जाए तो कभी-कभी युद्ध मजबूरीवश by compulsion भी किये जाते हैं, परन्तु किसी युद्ध की अवधि तय करती है कि ये युद्ध समाज के हित के लिए के लिए लड़े जा रहे हैं या निजी स्वार्थ के लिए। वैसे तो युद्ध स्वयं में ही एक बहुत बुरा सपना है और उस सपने को भुनाने का कार्य दो चार गिने चुने लोग करते हैं, फिर चाहें वे प्राचीनतम युद्ध रहे हो जैसे महाभारत का युद्ध या फिर बहुत ताजे युद्ध जिसमें नाज़ी, मार्क्स क्रांति, मुगलिया युद्ध और फिर बहुत क्रूर युद्ध जिसे हमारे पूर्वजों ने देखा। आज हम उन्हीं में से प्रथम विश्व युद्ध first world war की बात करेंगे। जब पूरी दुनिया इस युद्ध का समर्थन समाजीकरण की आड़ में कर रही थी तब वह यह भूल गयी थी, इस समाजीकरण और औद्द्योगीकरण में कितने मासूम और बेगुनाह लोग मारे जायेंगे जिसका उसने कोई लेना देना नहीं था।
आप सभी के मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि आखिर प्रथम विश्व युद्ध क्यों हुआ? उसके पीछे क्या कारण थे? और यदि जिन कारणों का हवाला देकर युद्ध लड़ा गया क्या वे पूरे हुए? या आज भी हम समाजीकरण की आड़ में युद्धों को भुनाने में लगे पड़े हैं, आइये सभी पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
प्रथम विश्व युद्ध कब और क्यों हुआ ?
एक कहावत आप सभी ने सुनी होगी, एक चिंगारी ही काफी होती है पूरे जंगल को जलाने के लिए , ठीक वैसा ही काम प्रथम युद्ध के होने का कारण बना। जैसे-जैसे विश्व के कुछ देश जिसमें अमेरिका, फ़्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जापान America, France, Germany, Australia, UK, Japan आदि देश अपनी शक्तियों को बढ़ाने और खुदको एक सुप्रीम पावर बनाने की होड़ में लगे थे वैसे-वैसे स्थिति अंदर ही ही अंदर पूरे विश्व के लिए जटिल होती जा रही थी। एक तरफ औद्योगिक क्रांतियां industrial revolutions चल रही थी हर देश यही चाहता था कि वह अधिक से अधिक संसाधनों का इस्तेमाल कर खुदको ताकतवर बना सके जिसके लिए वह हर जगह अपना विस्तार कर दुनिया भर के संसाधनों पर अपना अधिकार जमा सके, जिस कारण युद्ध की स्थिति पनपना शुरू हुई। हर ओर औद्योगिक क्रांति के कारण सभी बड़े देश ऐसे उपनिवेश चाहते थे जहाँ से वे कच्चा माल पा सकें और उनके देश में बनाई गयी चीजें तथा मशीनों से बनाई हुई चीज़ें बेच सकें। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हर देश दूसरे देश पर साम्राज्य स्थापित करने की चाहत रखने लगा और इसके लिये सैनिक शक्ति बढ़ाई जाती रही तथा गुप्त रूप से कूटनीतिक संधियाँ की जाती रहीं। इससे राष्ट्रों में एक प्रकार का अविश्वास और वैमनस्य बढ़ाता चला गया जिस कारण युद्ध अनिवार्य हो गया। प्रथम विश्व युद्ध का जो मुख्य कारण माना जाता है, जोकि औधोगिकी से ही निकलता है वह था ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्चड्युक फर्डिनेंड archduke ferdinand और उनकी पत्नी की हत्या को अंजाम दिया जाना। यह कारण इस युद्ध का तात्कालिक कारण था, यह घटना 28 जून 1914, को सेराजेवो में हुई थी। एक माह के भीतर ही ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध घोषित किया। रूस, फ़्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने आस्ट्रिया की। अगस्त में जापान, ब्रिटेन आदि की ओर से और कुछ समय बाद उस्मानिया, जर्मनी की ओर से, युद्ध में शामिल हुए।
जर्मनी ने फ़्रांस की ओर बढ़ने से पूर्व तटस्थ बेल्जियम और लक्ज़मबर्ग Belgium and Luxembourg पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण ब्रिटेन ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। धीरे-धीरे एक चिंगारी कब आग में तब्दील हो गयी आप समझ ही गए होंगे। आपको बता दें कि यह युद्ध यूरोप, एशिया व अफ़्रीका तीन महाद्वीपों और जल, थल तथा आकाश तीनों अवस्थाओं का प्रयोग कर लड़ा गया था। इस युद्ध में देखा जाए तो प्रारंभ में जर्मनी की जीत हुई, फिर 1917 में जर्मनी ने अनेक व्यापारी जहाज़ों को डुबो दिया, जर्मनी ने इंगलैण्ड की लुसिटिनिया जहाज़ Lusitania Cruisers को अपनी पनडुब्बी से डूबो दिया था। जिसमें कुछ अमेरिकी नागरिक भी उस जहाज में सवार थे। इससे अमेरिका, ब्रिटेन की ओर से युद्ध में कूद पड़ा लेकिन रूसी क्रांति के कारण रूस महायुद्ध से अलग हो गया। 1918 ई. में ब्रिटेन, फ़्रांस और अमेरिका ने जर्मनी आदि राष्ट्रों को पराजित कर दिया। तब जर्मनी और आस्ट्रिया की प्रार्थना पर 11 नवम्बर 1918 को युद्ध की समाप्ति हुई।
प्रथम विश्व युद्ध और भारत की स्थिति
जिस तरह से सम्पूर्ण विश्व में प्रथम विश्व युद्ध first world war का असर पड़ा उसी प्रकार भारत पर भी उसका काफी असर पड़ा परन्तु देखने वाली बात ये थी उस वक़्त की भारत भी ब्रितानी हुकूमत के अधीन था। जिस वजह से ब्रिटेन की मजूबत स्थिति भारत के में कमजोर पड़ गयी। समूचे भारत को ये आभास होने लगा था कि ब्रिटेन और अमेरिका यदि युद्ध में पराजित हो जाते हैं तो इसके चलते भारत को ब्रितानी परतंत्रता से मुक्ति मिलने का रास्ता काफी आसान हो जायेगा। ये उम्मीद तब और पुख्ता हो गयी जब जर्मनी ने 1917 में लगभग जीत हासिल कर ली परन्तु उसने फिर भी युद्ध को हल्का फुल्का जारी रखा जिसका परिणाम ये हुआ की अमेरिका, ब्रिटेन के साथ मिलकर कई देशों ने जर्मनी को 1918 परास्त कर युद्ध समाप्त कर दिया और भारत के आज़ाद होने की उम्मीद पर लगाम लग गयी। परन्तु इस दौर में भी सबसे बड़ी जो दिक्कत थी वह थी ब्रितानियों के द्वारा बदली गयी भारतियों की विचारधारा। बहुत थोड़े से लोग जानते थे कि इस अवसर को अपने हित में प्रयोग किया जाए परन्तु ज्यादातर लोग अंग्रेजों को अपना हितकारी समझते थे यदि उस समय सारे उदारवादी नेता आजाद भारत की बात करने लगते तो शायद ये देश आज़ाद हो सकता था। जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि एक लम्बें इंतज़ार के बाद भारत को 1947 में स्वतंत्रता हांसिल हुई। परन्तु इस युद्ध के बीच भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा जैसे कि भारत की ओर से लड़ने गए अधिकतर सैनिक जिस भी मोर्चे पर गए बड़े जी जान से लड़े। इस युद्ध में ओटोमन साम्राज्य Ottoman Empire के खिलाफ मेसोपोटेमिया Mesopotamia (इराक) की लड़ाई से लेकर पश्चिम यूरोप, पूर्वी एशिया के कई मोर्चे पर और मिस्र तक जा कर भारतीय जवान लड़े। कुल मिलाकर 8 लाख भारतीय सैनिक इस युद्ध में लड़े जिसमें कुल 47746 सैनिक मारे गये और 65000 घायल हुए (data collected from Wikipedia) । इस युद्ध के कारण भारत की अर्थव्यवस्था लगभग दिवालिया हो गयी थी।
ऐसा मत है, कि महात्मा गांधी ने इस युद्ध में भारतीय सैनिकों को भेजने के लिए अभियान चलाया, तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बड़े नेताओं द्वारा इस युद्ध में ब्रिटेन को समर्थन ने ब्रिटिश चिन्तकों को भी चौंका दिया था। भारत के नेताओं को आशा थी कि युद्ध में ब्रिटेन के समर्थन से खुश होकर अंग्रेज भारत को इनाम के रूप में स्वतंत्रता दे देंगे या कम से कम स्वशासन का अधिकार तो दे ही देंगे किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ यहाँ तक की ब्रिटेन ने किसी भी प्रकार का कोई लॉलीपॉप भी नहीं दिया भारतियों को।
प्रथम विश्व युद्ध के वैश्विक परिणाम क्या रहे?
किसी भी युद्ध के वैसे तो परिणाम घातक ही होते हैं, परन्तु लोगों का मानना है कि युद्ध के पश्चात् वैश्विक स्तर पर बहुत बदलाव देखने को मिले जिसमें राजीतिक, आर्थिक और सामाजिक तीनों तरह के परिवर्तन शामिल हैं-
राजीतिक परिवर्तन Political Change-
अगर हम राजीतिक दृष्टिकोण देखने तो इस युद्ध के बाद कई जगह राजतान्त्रिक सरकारों का पतन हो गया, जनतांत्रिक भावना का विकास हुआ, लोगों के भीतर राष्ट्रवाद का उदय देखने को मिला तथा अधिनायकवाद का उदय हुआ। कुछ देश बहुत बड़ी ताकत बनके उभरे।
आर्थिक परिवर्तन Economical Change-
इतने बड़े युद्ध के बाद पूरे विश्व की आर्थिक स्थिति क्या रही होगी आप सभी अंदाज़ा लगा सकते हैं। पूरे विश्व में काफी गहरी आर्थिक छति हुई लगभग 10 खरब रूपया विश्व युद्ध में खर्च हुआ, बाकी जो अनुमानित है उसका तो पता भी नहीं। पूरा विश्व आर्थिक क्षति झेल रहा था, जिसमें बहुत महंगाई का बढ़ना आम बात थी साथ ही साथ बेरोजगारी का बढ़ना और उत्पादकता में गिरावट आना। इसके आलावा विभिन्न देशों ने अपने अपने देश के नागरिकों से खूब कर वसूलना शुरू कर दिया जिससे प्रत्येक देश की आर्थिक स्थिति पटरी पर आ सके।
सामाजिक स्थिति और परिवर्तन-
सामाजिक परिवर्तन तो बिना युद्ध के भी किये जा सकते हैं, परन्तु कुछ परिवर्तन सच में संघर्ष से ही आते है परन्तु यह पूरी लड़ाई खींचातानी की थी जिसमें आर्थिक परिवर्तन एक बहुत बड़ा योगदान रखने वाला रहा और साम्राज्यवाद इसका विकराल रूप बनके उभरा। परन्तु फिर भी इस युद्ध के पश्चात् जातीय भेदभाव में कमी देखने को मिली, श्रमिक वर्ग में क्रांति का उदय, शिक्षा में तीव्र उछाल आया।
प्रथम विश्व युद्ध में मारे गए लोगों की संख्या
ऐसा कहा जाता है इस 4 वर्ष चलने वाले विश्व युद्ध में लगभग 6.5 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया था जिसमें सिर्फ और सिर्फ एक करोड़ तो सैनिकों को अपनी क़ुर्बानो देनी पड़ी। न जाने कितने नागरिकों ने अपनी जान गवा दी जिसकी संख्या भी दर्ज नहीं की जा सकी। ये युद्ध इतना विनाशकारी था की लोग बोलते हैं कि भविष्य में किसी युद्ध के बारे में सोचकर ही उनकी रूह काँप जाती थी।
निष्कर्ष
आज के दौर में हम इतने civilized हो चुके हैं, सब कुछ समाजीकरण और आर्थिक बाजार के बलबूते पर ठीक ही चल रहा है, परन्तु आज भी इतने सारे छोटे-बड़े युद्ध होते ही रहते हैं। कहने का मतलब है, पूरी दुनिया ने युद्धों का परिणाम देखा है सिवाए नुकसान के कुछ भी हासिल नहीं हुआ। जितनी भी शांतिपूर्ण क्रांतियां हुई हैं उनका परिणाम ज्यादातर सार्थक रहा परन्तु युद्ध का कोई भी परिणाम मनुष्य जाति के हित में नहीं देखा गया ऐसा हमारा मानना है। आज वे सभी लोग इस दुनिया से विदा ले चुके हैं जिन्होंने इतना उपद्रव मचाया था एक वक़्त जिनकी वजह से कई बेगुनाह मारे गए। शर्मशार करने वाली हरकत है युद्ध करना। अब मजबूरी ये है कि एक जानबूज के लड़ता है तो दूसरे को डिफेंड भी करना जरुरी पड़ता है, जिसका परिणाम ये है कि जब तक मनुष्य जाति रहेगी इस पृथ्वी पर युद्धों का सिलसिला निरंतर चलते रहना अनुमानित है। पूरी दुनिया में एंजेल कम हैं डेविल ज्यादा।
इस आर्टिकल को कभी भी लिखा जा सकता था परन्तु ये आर्टिक्ल इस समय लिखना इसलिए आवश्यक था, ताकि वे देश ये जान सके जो अभी वर्तमान में युद्ध कर रहे हैं या जो लोग इस युद्ध का समर्थन कर रहें कि युद्ध, समाजीकरण की बुनियाद न कभी था न कभी हो पायेगा। इस तरह का समाज अगर बन भी गया तो वह एक खोखला समाज ही कहलायेगा।
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