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फ़िल्में कई तरीके से समाज को आकार देती हैं। ऐसे अनेक उदाहरण भी देखें जा सकते हैं। यह लोगों तक उचित जानकारी पहुंचाने का सबसे अच्छा साधन हैं। समाज में ऐसे अनेक मुद्दे हैं जिन पर फिल्में प्रकाश डालती हैं। लेकिन लोग उनमें सिर्फ एक ट्रेंडिंग थीम पर विशेष ध्यान देते हैं। यह पूरी तरह से व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह उन फिल्मों से क्या हासिल करता है। अच्छी चीजों आनंद का लेना और उन्हें ग्रहण करना या फिर बुरी चीजों से प्रभावित होना यह व्यक्ति का अपना विकल्प होता है।
मनोरंजन के साधन के रूप में फ़िल्मों की एक बड़ी भूमिका होती है। इनका समाज पर एक गहरा प्रभाव पड़ता है। यह समाज को एक आकार देने का काम करती हैं। प्रत्येक आयु वर्ग इससे प्रभावित होते हैं। यह समाज पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से प्रभाव डालती हैं। अनेकों ऐसे दृश्यों का प्रदर्शन जैसे व्यसन, धूम्रपान आदि समाज में नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। वहीं कई फिल्में प्रोत्साहित भी करती हैं। फ़िल्में कई ऐसे तथ्यों से परिचित कराती हैं जो समाज को सकारात्मकता की ओर लेकर जाती हैं। इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि फिल्में केवल समाज पर दुष्प्रभाव ही डालती हैं। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह फिल्मों से किन चीजों को अपनाता है।
फिल्में समाज का दर्पण
समाज कई तरह से प्रभावित होता है जिनमें से फिल्मों की भी एक एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह समाज के लोगों पर अनेक प्रकार से प्रहार करती है जो अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी। एक फिल्म में महज़ मनोरंजन करने के अलावा इसमें दिलों और दिमागों को बदलने की बड़ी शक्ति होती है। युवाओं पर सिनेमा का प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है। और सिर्फ युवाओं पर ही नहीं इसका असर बच्चों पर भी देखा जा सकता है। फिल्में विभिन्न विषयों पर आधारित होती हैं जैसे कि एक्शन, थ्रिलर, रोमांस, डकैती आदि। इन फिल्मों से या फिर इन फिल्मों के किरदारों से प्रभावित होकर लोग उनकी नकल करने की कोशिश करते हैं। कलाकारों की ड्रेसिंग, बातचीत का तरीका, रंग-ढंग और जीवनशैली, इन सभी चीजों से लोग प्रभावित होते हैं और उन्हें अपनाना चाहते हैं। हालॉंकि, सिनेमा को समाज का आईना कहा जाता है। यह समाज के अनेकों मुद्दों को दर्शाती हैं। सिनेमा का समाज पर अन्य मीडिया साधनों से अधिक प्रभाव पड़ता है। यह समाज में अच्छे मूल्य जोड़ सकता हैं या फिर उन्हें बिगाड़ सकती हैं। यह पूरी तरह से इनके द्वारा दर्शाए गए दृश्य और चुने गए विषयों पर निर्भर करता है। सेंसर बोर्ड की आवश्यकता इसी कारण से महसूस होती है जो फिल्म उद्योगों द्वारा दर्शाए गए उन सभी दृश्यों की जांच करता है जो समाज की नैतिकता को भ्रष्ट करने की संभावना रखते हैं। हालांकि आज इंटरनेट के युग में इसका कोई खास महत्व नहीं दिखाई देता क्योंकि इंटरनेट के द्वारा लोग आज हर तरह की फिल्मों को देख सकते हैं जिनका विरोध यह सेंसर बोर्ड करता है।
सिनेमा का समाज पर नकारात्मक प्रभाव
जैसा कि फिल्म समाज को एक दिशा दिखाती है जिससे प्रभावित होकर लोग उन गतिविधियों को फैशन के रूप में अपनाने की कोशिश में लग जाते हैं। कई बार इनके परिणाम नकारात्मक भी होते हैं। फिल्मों में सिगरेट पीने, धूम्रपान करने या शराब पीने के दृश्य युवाओं पर असर डालते हैं। काफी जाने-माने कलाकार इसे बढ़ावा देते हैं तो युवा वर्ग इसे आजमाने के लिए प्रोत्साहित होता है। आज कम उम्र के बच्चे भी इन चीजों को अपनाने की कोशिश करते हैं जो उनकी सेहत पर बुरा असर डालता है। इस तरह की फिल्में समाज पर यह छाप छोड़ती हैं कि अंग्रेजों का गुलाम होना गलत नहीं है। फिल्मों में अश्लीलता का प्रदर्शन भी समाज को राह से भटकाता है। कुछ ऐसी फिल्में भी बनाई जाती हैं जो चोरी को प्रोत्साहित करती हैं जो चोरी कर कभी ना पकड़े जाने का विचार कराती हैं। और लोग उन गतिविधियों को अपनाने में लग जाते हैं। यह नकारात्मक दृश्य देश के होने वाले भविष्य यानी युवा पीढ़ी और बच्चों को गलत दिशा प्रदान करते हैं जिनका नियंत्रण आवश्यक है।
समाज को प्रेरित करती फिल्में
लेकिन सभी फिल्मों को नकारात्मक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। कुछ ऐसी भी फिल्में बनाई जाती है, जो समाज पर एक सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। ज्ञान के साधन के साथ-साथ यह फिल्में समाज में नैतिक मूल्यों को भी बढ़ावा देती हैं और लोगों में जागरूकता पैदा करती है। कुछ पारिवारिक फिल्में जैसे "बागबान", "कभी खुशी कभी ग़म" परिवार के प्रति आदर और सम्मान देने के लिए प्रेरित करती हैं। अगर भारतीय फिल्मों की बात करें तो "तारें ज़मीन पर" और "3 इडियट्स" जैसी फिल्में छात्रों को विशेष रूप से प्रोत्साहित करती हैं। ये फ़िल्में छात्रों को इस बात को स्वीकार कराने में मदद करती हैं कि 'हम जैसे हैं वैसे अच्छे हैं। खुद पर विश्वास रख कर हम कुछ भी हासिल कर सकते हैं।' कुछ देशभक्ति फिल्में लोगों में देशभक्ति की भावना जगाती हैं। कुछ फिल्में ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित होती हैं। ऐसी फिल्मों का मुख्य उद्देश्य पुरातन संस्कृतियों और प्रथाओं को उजागर करना होता है। फिल्में जीवन के कई ऐसे पहलुओं को समझाने में मदद करती हैं जिनका हमें पूर्ण ज्ञान नहीं होता। यह समाज को जीवन जीने का ढंग सिखाती हैं। कुछ फिल्में जो इस बात पर ध्यान केंद्रित करती हैं कि कैसे एक व्यक्ति खराब पृष्ठभूमि से करोड़पति बनने के लिए विकसित हो सकता हैं। यह दर्शकों को महसूस करने के लिए प्रेरित करता है कि वे जीवन में अगर ठान लें तो कुछ भी हासिल कर सकते हैं, बस ज़रूरत है अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने की। अतः यह कहना ग़लत नहीं कि फिल्में न सिर्फ समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालती है बल्कि साथ में सकारात्मकता भी लाती हैं।
फ़िल्में कई तरीके से समाज को आकार देती हैं। ऐसे अनेक उदाहरण भी देखें जा सकते हैं। यह लोगों तक उचित जानकारी पहुंचाने का सबसे अच्छा साधन हैं। समाज में ऐसे अनेक मुद्दे हैं जिन पर फिल्में प्रकाश डालती हैं। लेकिन लोग उनमें सिर्फ एक ट्रेंडिंग थीम पर विशेष ध्यान देते हैं। यह पूरी तरह से व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह उन फिल्मों से क्या हासिल करता है। अच्छी चीजों आनंद का लेना और उन्हें ग्रहण करना या फिर बुरी चीजों से प्रभावित होना यह व्यक्ति का अपना विकल्प होता है। युवाओं पर सिनेमा का प्रभाव एक ऐसी धारणा है जिस पर विचार और चिंतन किया जाना चाहिए। इसलिए आवश्यक है कि इस बात पर हमेशा ग़ौर करना चाहिए कि हम क्या देखते हैं और उससे क्या हासिल करते हैं।
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