प्रमुख किसान वैज्ञानिक और "भारतीय हरित क्रांति के पिता" डॉक्टर एम.एस. स्वामीनाथन ने आज सुबह 98 वर्ष की आयु में चेन्नई में अंतीम सासे ली।
टिकाऊ किसान पद्धतियों sustainable farming practices की उनकी वकालत ने उन्हें सस्टेनेबल फ़ूड सिक्योरिटी sustainable food security के क्षेत्र में ग्लोबल लीडर बना दिया।
20वीं सदी के मध्य में शुरू हुई हरित क्रांति भारत के किसान इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी।
डॉ. स्वामीनाथन का दृष्टिकोण बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए किसान उत्पादकता को लगातार बढ़ाना था।
उन्होंने अधिक उपज देने वाली फसल किस्मों की पहचान की, जिन्होंने फसल उत्पादन बढ़ाने और भोजन की उपलब्धता में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1972 और 1979 के बीच, डॉ. स्वामीनाथन ने भारतीय किसान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक और भारत सरकार, किसान अनुसंधान और शिक्षा विभाग के सचिव के रूप में कार्य किया। उनके नेतृत्व ने खेतीबाड़ी अनुसंधान को आगे बढ़ाने और सस्टेनेबल फार्मिंग sustainable farming के तरीकों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अपने कार्यकाल के दौरान, डॉ. स्वामीनाथन ने खेतीबाड़ी में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा दिया, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग को बढ़ावा दिया और मॉडर्न फार्मिंग टेक्निक्स modern farming techniques को अपनाने को बढ़ावा दिया।
कृषि में डॉ. स्वामीनाथन के उल्लेखनीय योगदान ने उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार दिलाए, जिनमें 1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार Ramon Magsaysay Award और 1987 में उद्घाटन विश्व खाद्य पुरस्कार शामिल हैं। इस क्षेत्र के प्रति उनके समर्पण को 1967 में पद्म श्री ,और 1972 में पद्म भूषण से मान्यता मिली और 1989 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण प्रदान किया गया।
उनका प्रभाव भारत की सीमाओं से कहीं आगे तक फैला हुआ था। टाइम मैगज़ीन ने उन्हें 20वीं सदी के बीस सबसे प्रभावशाली एशियाई लोगों में से एक के रूप में मान्यता दी। 2013 में, एक प्रमुख भारतीय समाचार चैनल ने उन्हें ग्रेटेस्ट ग्लोबल लिविंग लीजेंड अवार्ड Greatest Global Living Legend Award से सम्मानित किया ।
किसान कल्याण के समर्थक
राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष के रूप में , डॉ. स्वामीनाथन ने किसान संकट को दूर करने में महत्वपूर्ण प्रगति की।उत्पादों की भारित औसत लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक न्यूनतम बिक्री मूल्य निर्धारित करने सहित आयोग की सिफारिशों का उद्देश्य किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को कम करना और उनकी आर्थिक भलाई सुनिश्चित करना है।
किसानों के कल्याण के प्रति डॉ. स्वामीनाथन की प्रतिबद्धता के कारण ऐसी नीतियां बनाई गईं जिनमें उनकी जरूरतों को प्राथमिकता दी गई। उनकी सिफारिशों का उद्देश्य देश भर के किसानों की आजीविका में सुधार करना था।
एक वैश्विक प्रतीक डॉ. स्वामीनाथन का प्रभाव सीमाओं से परे था, जिससे उन्हें टाइम पत्रिका द्वारा 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली एशियाई लोगों में से एक के रूप में मान्यता मिली। चेन्नई में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन में इकोटेक्नोलॉजी में यूनेस्को चेयर के माध्यम से सस्टेनेबल एग्रीकल्चरल कृषि प्रथाओं को प्रेरित करने के लिए उनका काम जारी रहा ।
उनका फाउंडेशन सस्टेनेबल एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेज में सबसे आगे बना हुआ है, यह सुनिश्चित करते हुए कि पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों के लिए उनका दृष्टिकोण कायम रहे।
डॉ. एमएस स्वामीनाथन का मानना था कि "भविष्य अनाज वाले राष्ट्रों का है, बंदूकों का नहीं।"
यह गहन कथन शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने में सस्टेनेबल एग्रीकल्चरल के महत्व पर जोर देता है।
उनकी विरासत भावी पीढ़ियों के लिए आशा की किरण के रूप में काम करती है, अहिंसा की खोज और एक सस्टेनेबल, खुशहाल और अधिक शांतिपूर्ण दुनिया के निर्माण को प्रोत्साहित करती है।
उनका दृष्टिकोण इस विश्वास से मेल खाता है कि जिन देशों के पास पर्याप्त खाद्य आपूर्ति है, उनके संघर्ष में शामिल होने की संभावना कम है।
डॉ. स्वामीनाथन द्वारा समर्थित सतत कृषि न केवल एक इकोलॉजिकल इम्पेरटिव ecological imperative है, बल्कि वैश्विक सद्भाव का मार्ग भी है।
निष्कर्ष
डॉ. एमएस स्वामीनाथन का निधन भारतीय कृषि में एक युग के अंत का प्रतीक है। उनकी दूरदृष्टि, नेतृत्व और सस्टेनेबल कृषि पद्धतियों के प्रति अथक समर्पण ने देश के कृषि परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है, और उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
जैसा कि हम भारत की हरित क्रांति के जनक को याद करते हैं, हम एक ऐसी दुनिया के उनके दृष्टिकोण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भी दोहराते हैं जहां कृषि, स्थिरता और शांति साथ-साथ चलती हैं।