फर्जी खबरों का व्यवसाय हमेशा से रहा है। कहते हैं न कि सत्य को लिखने में और कहने में देर लगती है। डर लगता है परन्तु असत्य, बेबुनियाद और फर्जी खबरों के पाँव बहुत तेज़ी से चलते हैं। इसके पीछे कई गहरे राज़ हैं, लेकिन देश की शीर्ष अदालत से कोई भी झूठ कितनी देर तक पर्दे में रह सकता है। सर्वोच्च अदालत ने "सूचना एवं संचार" के प्रति चिंता जताते हुए कहा कि यदि फर्जी ख़बरें इसी तरह बेलगाम रहीं तो स्थिति बुरी हो सकती है। समाज के बुद्धिजीवियों का भी यही मानना है कि फर्जी ख़बरों के चलते आज की युवा पीढ़ी गलत धारणा का शिकार होती जा रही है, जो कहीं न कहीं देश के भविष्य के लिए घातक साबित हो सकती है। जो लोग फर्जी ख़बरें फैला रहे हैं, गलत सूचना दे रहे हैं, या फिर किसी की चाटुकारिता करते हैं उन्हें यह सोचना चाहिए कि उनके अपने बच्चे भी वही सब देख कर गलत सीखेंगे।