कल का चौकीदार, आज बन गया सुपरस्टार

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31 Jul 2021
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लक्ष्य न ओझल होने पाए, कदम मिलाकर चल, सफलता आपके कदम चूमेगी, आज नहीं तो कल.... इनकी एक फिल्म का डायलॉग था कि जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं।  इन्होंने संघर्ष की मशाल से संघर्ष की मिसाल तक का जो सफर गुज़ारा है वो क़ाबिले तारीफ है। हम सब के लिए यह वाकई प्रेरणादायक है। 

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.किसी ने सच कहा है कि मेहनत कभी न कभी रंग ज़रूर लाती है। बस अपने सपनों के लिए संघर्ष करते रहना ज़रूरी है। ऐसे ही एक शख्स के संघर्ष की कहानी हम आपको बता रहे हैं, जिसने अनूठे किरदारों से हिन्दुस्तान की जनता का दिल जीत लिया।

यह कहानी है बॉलीवुड में अपनी सादगी की अमिट छाप छोड़ने वाले अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की। नवाज़ आज सफल अभिनेताओं में से एक हैं। मगर उनके इस मुकाम तक पहुंचने की कहानी कम लोग जानते हैं।

नवाज़ उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के गांव बुधाना के किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। नवाज़ के परिवार में कुल 11 लोग हैं। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उन्हें अपने भाई-बहनों का ख्याल रखना पड़ता था। नवाज़ बताते थे कि वो अपने भाई-बहनों की शैतानियों पर चिल्लाते थे। मगर बचपन में नवाज़ भी काफी शरारती थे।

नवाज़ बताते हैं कि उनके अंदर फिल्मों में अभिनय करने की इच्छा तब जगी, जब उन्होंने अपने दोस्त को रामलीला में राम का किरदार निभाते देखा। फिर उन्होंने भी अभिनेता बनने की ठान ली। कॉलेज ख़त्म होने के बाद नवाज़ ने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में एडमिशन ले लिया और बाद में अपना करियर बनाने के लिए मुंबई आ गए।

मुंबई की लाइफ देखकर नवाज़ के मुँह से निकला कि यहाँ के लोग तो बहुत फ़ास्ट हैं, 'मैं गांव से आया हूँ पता नहीं इन लोगों के साथ कैसे रहूँगा?' खैर एक महीने के बाद नवाज़ को इस माहौल की आदत हो गयी। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के बावजूद भी घर वाले उन्हें सपोर्ट करते थे।

नवाज़ का असली संघर्ष तो यहाँ से ही शुरू हुआ। जब पैसे न होने की वजह से उन्होंने केमिस्ट की नौकरी की। जरूरतों को पूरा करने के लिए कभी-कभी दोस्तों से उधार लिया करते थे। उधार दो दिनों में चुकाना होता था, तो दोस्तों का उधार चुकाने के लिए किसी और से उधार लिया करते थे।

नवाज़ बताते थे कि मेरी माँ के पास फ़ोन नहीं था, इसलिए वो मुझे ख़त लिखकर बुरे वक़्त से लड़ने की हिम्मत देती थी। वो मुझे बताती थीं कि मेहनत करते रहो, एक दिन तुम्हें इसका फल ज़रूर मिलेगा। माँ की यही बात मुझे और मेहनत करने का हौसला देती थी।

 

नवाज़ ने इस सफर में बहुत सारी छोटी-मोटी नौकरियां की। वो चौकीदार बने। यहाँ तक कि एक ऐसी स्थिति आयी कि उन्हें धनिया तक बेचना पड़ा। इतना संघर्ष करने के साथ वो ऑडिशन भी देते रहे। उन्होंने लगभग 100 ऑडिशन दिए होंगे। तब उन्हें छोटे-छोटे रोल मिलने लगे। 12 साल लगे, जब उन्हें फिल्म में पहला ब्रेक मिला।

नवाज़ का करियर साल 1999 में फिल्म सरफरोश से शुरू हुआ। मगर इस शुरुआत के बारे में किसी को खबर तक नहीं हुई। साल 2012 तक नवाज़ ने कई छोटी-बड़ी फिल्मों में रोल किए। यहाँ भी उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिली। फिर अनुराग कश्यप ने उन्हें फैजल बनाकर गैंग्स ऑफ वासेपुर में पेश किया। उस किरदार को देखकर ऐसा लगा, जैसे नवाज़ ने अपने संघर्ष भरे हर साल का बदला ले लिया हो। इस एक रोल ने उन्हें घर-घर में प्रसिद्ध बना दिया। ऐसा लगा, जैसे कोई नया अभिनेता आया है।

अब जब नवाज़ फ़िल्म इंडस्ट्री के टॉप अभिनेताओं में शुमार हो चुके हैं, तो लोग ये सोचकर भी हैरान होते हैं कि आखिर वो अपने हर रोल में इतनी खूबसूरती से कैसे ढल जाते हैं? जब कि ज्यादातर अभिनेता नया किरदार करने के लिए खुद को कई दिन तक कमरे में बंद रखते हैं। परिवार से दूर चले जाते हैं। उसी किरदार में 24 घंटे रहने की कोशिश करते हैं। नवाज के पास असल ज़िन्दगी का इतना तज़ुर्बा है कि वह बस किरदार पढ़ते हैं और उसमें उतर जाते हैं।  

नवाज़ बताते हैं कि जब भी उनका मन होता है, वो अपने गांव जाते हैं। वहां जाकर अपने खेतों की देखभाल करते हैं और कुछ दिन खेती करते हुए बिताते हैं। उनके मुताबिक ऐसा करके मन को काफी शांति मिलती है और फिर वो नए किरदार की तैयारी में डूब जाते हैं।

 बस ऐसा ही जूनून हमे अपने अंदर जगाना है। TWN आपके बेहतर जीवन की कामना करता है। 

 

 

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