महिलाओं के अधिकारों और उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस International Women’s Day के रूप में मनाया जाता है।
इस खास मौके पर हम आपको एक ऐसी सशक्त महिलाओं से रूबरू करवाने जा रहे है , जिन्होंने अपनी हिम्मत और ताकत के बल पर भारत को गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद करने में एक अहम् भूमिका ऐडा की और दुनिया की हर महिला के लिए एक मिसाल कायम की है।
देश को आजादी दिलाने के लिए न जाने कितने लोग फांसी के फंदे पर खुशी-खुशी झूल गए, कई लोगों ने गोलियां खाईं, जेल गए। स्वतंत्रता सेनानियों Freedom fighters के बलिदान, योगदान, संघर्ष और त्याग के बारे में जितनी बात करें, कम है। इनमें कुछ ऐसे स्वतंत्रता सेनानी भी थे, जो वह पहचान और सम्मान नहीं पा सके, जिसके वे हकदार थे और उनमें कुछ महिला स्वतंत्रता सेनानी Women Freedom fighters भी थीं।
झलकारी बाई Jhalkari Bai, सावित्रीबाई फुले Savitribai Phule, भीकाजी कामा Bhikaiji Cama, कमला देवी चटोपाध्याय Kamaladevi Chattopadhyay, रानी चेनम्मा, कनकलता बरुआ, मातंगिनी हजारा, बीनादास आदि महिलाओं ने आज़ादी के लिए कई संघर्ष किए लेकिन आज इनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है।#WomenwhoshapedIndiasFreedomStruggle
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पहले और आज की दुनिया में ज़मीन आसमान का फर्क है। महिलाओं को किसी भी जगह हिस्सा लेने से पहले समाज की कई बेड़ियों का सामना करना पड़ता था। कभी-कभी वह करना तो बहुत कुछ चाहती थीं, अपनी काबिलियत के दम पर बदलाव लाना चाहती थीं लेकिन ये राह भी आसान नहीं थी।
महिलाएं भी ये बात अच्छे से समझती थीं कि राह आसान नहीं है लेकिन नामुमकिन भी नहीं है और आज़ादी की लड़ाई के वक्त भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। इस साल 15 अगस्त, 2022 को देश आजादी की 75वीं वर्षगाँठ मनायेगा Celebration of 75 years of independence। जिसमें देश की अदम्य भावना के उत्सव व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे।
आज जब हमारा पूरा देश आज़ादी का अमृत महोत्सव ‘Azadi Ka Amrit Mahotsav’ मना रहा है इस समय आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने वाली महिला स्वतंत्रता सेनानियों के नाम और उनके खास योगदान के बारे में जानना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है ।
सच तो ये है कि भारत का स्वतंत्रता संग्राम कई महिलाओं Women Freedom fighters के योगदान के बिना अधूरा है। दरअसल, उस समय पुरुषों को आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने की अनुमति थी लेकिन महिलाओं के लिए ये राह आसान नहीं थी लेकिन महिलाओं ने समाज की उन अनगिनत बेड़ियों का सामना किया और आज़ादी की लड़ाई Role of women in India's freedom struggle में अहम योगदान दिया।
आप सबने चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, वीर सावरकर, महात्मा गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खान, बिरसा मुंडा, मंगल पांडे, सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, पंडित जवाहरलाल नेहरू, का नाम तो सुना होगा, पर ज़रा याद से बताइए कि आप कितनी महिला स्वतंत्रता सेनानियों Women freedom fighters of India के बारे में जानते हैं। रानी लक्ष्मी बाई, एनी बेसेंट, … और सोचिए!
आज हम आपको आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने वाली महिला स्वतंत्रता सेनानियों के नाम और उनके खास योगदान के बारे में बताएंगे-
आज़ादी की लड़ाई में रानी लक्ष्मी बाई Rani Laxmi Bai of Jhansi के खास योगदान से तो आप लोग परिचित होंगे लेकिन क्या आपको पता है कि झलकारी बाई Jhalkari Bai को रानी लक्ष्मी बाई की परछाई के रूप में लोग जानते हैं।
झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर, 1830 को एक दलित परिवार में हुआ था। वह बहुत ही साहसी महिला थीं और उनके धैर्य, साहस और वीरता की आज भी लोग मिसाल देते हैं। झांसी की लड़ाई में लक्ष्मी बाई की तरह इनका भी अहम योगदान है। अंग्रेजों को चकमा देने के लिए उन्होंने लक्ष्मी बाई बनकर लड़ाई की और रानी लक्ष्मी बाई को भागने का मौका दिया। वह आखिरी सांस तक अंग्रेजों से लड़ती रही।
ऐसा कहा जाता है की एक विचारक के तौर पर कमला देवी चटोपाध्याय, महात्मा गांधी Mahatma Gandhi और अंबेडकर B.R. Ambedkar से कम नहीं थीं। जब गांधी जी ने सत्याग्रह Satyagraha की शुरुआत की तो कमला देवी चटोपाध्याय ने यह मांग रखी कि इसमें औरतों को भी शामिल होने का मौका मिले। इनकी रुचि लगभग हर विषयों में थी इसीलिए एक विचारक के तौर पर यह अच्छे-अच्छे विद्वानों को टक्कर देती थीं।
भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने पर, आजादी की मांग करने पर, असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने पर, और बापू के नाम का नारा लगाने पर इन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा लेकिन इन सभी ने इनके हौसलों को और मजबूत किया और 1928 में कमलादेवी ऑल इंडिया काँग्रेस कमिटी All India Congress Committee में एलेक्ट हुईं।
कमला देवी चटोपाध्याय के जीवन का लक्ष्य था भारत को आजादी दिलाना लेकिन आज भी जब क्रांतिकारियों का नाम लिया जाता है तो शायद ही कोई उसमें कमला देवी चटोपाध्याय को शामिल करता है। सच तो ये है कि यह भारत की वह स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है।
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भीकाजी कामा का जन्म 24 सितंबर, 1861 को मुंबई में हुआ था। वह भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक थीं। एक धनी पारसी परिवार में जन्मी भीकाजी कामा Bhikaiji Cama को यूं तो कभी भी संघर्ष का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य से देश को आजाद करवाने की लड़ाई में वह आजीवन शामिल रहीं।
भीकाजी कामा भारतीय होमरूल समिति की सदस्य बनीं और लंदन में पुस्तक प्रकाशन का काम शुरू किया। विनायक दामोदर सावरकर V.D. Savarkar और श्यामजी कृष्ण वर्मा की मदद से मैडम कामा ने 1905 में भारतीय ध्वज का पहला डिजाइन तैयार किया। अपने समाचारपत्र ‘वंदे मातरम’ और ‘तलवार’ की मदद से वह अपने विचार लोगों तक पहुंचाती थीं।
3 जनवरी, 1831 में सावित्रीबाई फुले का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। मात्र 9 साल की उम्र में उनका विवाह ज्योतिबाराव फुले के साथ हुआ। उनके जीवन का सिर्फ एक ही उद्देश्य था कि लोगों को शिक्षा के माध्यम से ये समझाना कि भेदभाव से नहीं बल्कि समानता की मदद से हम देश को प्रगतिशील बना सकते हैं।
भले ही आज ये सुनने में आसान लगता है लेकिन उस वक्त दलित और स्त्री को पढ़ने-लिखने की इजाज़त नहीं थी, लेकिन फिर भी उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा और कभी हार नहीं मानी।
1848 से लेकर 1852 में उन्होंने ज्योतिबाराव फुले के साथ मिलकर छात्राओं के लिए 18 स्कूल खोले और इसके लिए उन्होंने किसी से कोई आर्थिक मदद नहीं ली। समाज में स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए उन्होंने कई परिवर्तनकारी काम किए। 1897 को प्लेग के कारण उनका निधन हो गया।
निष्कर्ष
देश को आजादी दिलाने के लिए न जाने कितने लोग फांसी के फंदे पर खुशी-खुशी झूल गए, कई लोगों ने गोलियां खाईं, जेल गए। स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान, योगदान, संघर्ष और त्याग के बारे में जितनी बात करें, कम है। इनमें कुछ ऐसे स्वतंत्रता सेनानी भी थे जो वह पहचान और सम्मान नहीं पा सके, जिसके वे हकदार थे और उनमें कुछ महिला स्वतंत्रता सेनानी भी थीं।
झलकारी बाई Jhalkari Bai, सावित्रीबाई फुले Savitribai Phule, भीकाजी कामा Bhikaiji Cama, कमला देवी चटोपाध्याय Kamaladevi Chattopadhyay, रानी चेनम्मा, कनकलता बरुआ, मातंगिनी हजारा, बीनादास आदि महिलाओं ने आज़ादी के लिए कई संघर्ष किए लेकिन आज इनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है।