बर्फ की वादियां हों या रेगिस्तान का ना खत्म होने वाला मैदान या फिर समन्दर किनारे लहरों से टकराते हमारे पैर, सफ़र कोई भी हो, हर एक दशा में यह हमारे दिमाग को नई दिशा देते हैं। हमारे मन के भीतर चल रही उलझनों को ख़त्म करते हैं और हमारे तनाव को नई आशा में परिवर्तित करते हैं।
हालांकि हम प्रकृति के आधारों में से एक हैं, परन्तु हमारा मन स्वयं में एक संपूर्ण प्रकृति है, जो कई मनोरम दृश्यों की आधारशिला अपने मन में सजाए रखता है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक जीव इस ख़ूबसूरती को समझ पाए या देख पाए शायद यही कारण है कि ऐसे बहुत कम प्राणी हैं, जो एक स्थान पर रह कर ख़ुश रह पाते हैं। इसमें किसी का कोई दोष नहीं होता, चंचल रहना हमारी प्रवृत्ति है। यदि हम एक स्थान पर लम्बे समय तक रह जाते हैं, तो इससे हमारे भीतर तनाव का पर्वत जड़ित होने लगता है और हम शारीरिक तथा मानसिक रूप से परेशान रहने लगते हैं। मन की प्रकृति को ढूंढ पाना कठिन होता है, इसीलिए हम मन के बाहर हमारे आसपास मौजूद मनोरम प्रकृति को देखने का प्रयास करके स्वयं को हताशाओं से दूर रखने का प्रयत्न करते हैं, जो अधिकतम दशाओं में कारगर भी सिद्ध होता है। जब हम यात्रा करते हैं, तो हमारा मन एक ऐसी ताज़गी का अनुभव करता है, जो हमारी विचाराधारा को नई दिशा देता है।
हमने प्राय: यह ध्यान दिया होगा कि जब हम कहीं पर घूमने जाने की योजना बनाते हैं, चाहें वह स्थान नज़दीक का हो या दूर का तो यह ध्यान मात्र ही हमारे अन्दर एक नई चेतना को जन्म देता है। हम उस वक्त में ही इतना प्रसन्न हो जाते हैं कि हमारे भीतर हुड़दंग मचा रहे तनाव के कीड़े एक पल में शांत बैठ जाते हैं। हम कह सकते हैं कि सफ़र का तनाव से सीधा संबंध है और वो भी विपरीत दशा के लिए।
जब हम किसी सफ़र पर निकलते हैं, तो मन में कई उमंगों की नाव समन्दर की लहरों में गोते खाती रहती है। हमारे अन्दर जिज्ञासा का एक आसमान रहता है। यात्रा एक ऐसा पहलू है, जहां पर जिज्ञासा के साथ व्यक्ति को सुकून की भी अनुभूति होती है। इस समय मन कई प्रश्नों के साथ घिरा रहता है, परन्तु साथ ही इस बात की तसल्ली भी रहती है कि हमें जल्द ही इनके उत्तर मिल जाएंगे। यह हमारे तनाव को दूर करने में अधिक मददगार होता है।
कभी हम किसी ऐसे स्थान पर घूमने जाते हैं, जिससे हम परिचित होते हैं तो कभी हम किसी नए स्थान पर जाते हैं। दोनों ही दशाओं में सफ़र करना मनुष्य के तनाव को दूर करने का और मस्तिष्क को फिर से ताज़गी से भर देने का साधन होता है। नई जगहों पर जाना वहां के बारे में जानना और जब अपनी आंखों से वहां की कलाकृति, आवरण, प्रकृति की असाधरणता और सभ्यता से हम रूबरू होते हैं तो मन में चल रही हज़ार परेशानियों का बोझ ना केवल हल्का होता है बल्कि नए विचार भी अपना सरदाना बनाने लगते हैं और हमें नई आशाओं का सार देते हैं।
बर्फ की वादियां हों या रेगिस्तान का ना खत्म होने वाला मैदान या फिर समन्दर किनारे लहरों से टकराते हमारे पैर, सफ़र कोई भी हो, हर एक दशा में यह हमारे दिमाग को नई दिशा देते हैं। हमारे मन के भीतर चल रही उलझनों को ख़त्म करते हैं और हमारे तनाव को नई आशा में परिवर्तित करते हैं।