आजाद देश की गुलाम हिंदी

7666
05 Oct 2021
5 min read

Post Highlight

भारत देश को आजाद हुए इतने वर्षों के बाद भी आज हम बात करने वाले हैं हिंदी को लेकर, जी हां! हिंदी जो आजाद होने के इतने सालों में भी राष्ट्रभाषा का दरजा हासिल नहीं कर सकी है। क्या हिंदी गुलाम बन बैठी है?

Podcast

Continue Reading..

भारत देश को आजाद हुए 74 वर्ष हो चुके हैं और इन 74 वर्षों में भारत ने सफलता की कई बुलंदियों को छुआ है। भारत देश को आजाद हुए इतने वर्षों के बाद भी आज हम बात करने वाले हैं हिंदी को लेकर, जी हां! हिंदी जो आजाद होने के इतने सालों में भी राष्ट्रभाषा का दरजा हासिल नहीं कर सकी है। क्या हिंदी गुलाम बन बैठी है? जैसा कि हमारा शीर्षक है आजाद देश की गुलाम हिंदी, इससे आप शायद यह नहीं समझ पा रहे हो कि, हम यहां कहना क्या चाह रहे हैं, पर आप चिंता न करें हम आपको आसान शब्दों में बताएंगे कि, शीर्षक का मतलब क्या है, इस शीर्षक की सार्थकता क्या है। दरअसल भारत के आजाद होने के बावजूद हिंदी कहीं न कहीं लोगों की जुबान से छूटती जा रही है। आज लोग हिंदी को अपनी जुबां पर लाने पर क्यों हिचक महसूस कर रहे हैं? देश में युवा पीढ़ी हिंदी से दूर भागती नजर आ रही है। सारा महत्व अंग्रेजी को दिया जा रहा है, तो यहां यह कहना बिल्कुल लाजमी होगा कि हिंदी आजाद नहीं हुई है। भारत तो आजाद है, लेकिन हिंदी गुलाम बनी हुई है। 

क्यों हो रही हमारी भाषा हिंदी गुलाम

भारत के संविधान में हिंदी को वर्षों पहले राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाना था, पर आज भी हाल यह है कि हिंदी केवल राजभाषा रह गई है। कई राज्यों में आज भी हिंदी बोलने पर लोगों को शर्म महसूस होती है क्योंकि वह अंग्रेजी को महान भाषा समझ बैठे हैं, उन्हें यह नहीं पता कि हिंदी बोलना और इस भाषा को अपनाने में कितना गर्व है। 

भारत में आप दो तरह के लोगों को देख सकते हैं एक तो वह लोग हैं जो भारत में रह रहे हैं और दूसरे वो लोग हैं जो भारत को इंडिया मान बैठे हैं और जो इंडिया वाले हैं वह अंग्रेजी भाषा को महत्व देते हैं और पाश्चात्य संस्कृति से काफी ज्यादा लगाव रखते हैं और भारत वाले हिंदी या अपनी कोई क्षेत्रीय भाषा को बोलना पसंद करते हैं, लेकिन इंडिया वालों को देखकर भारत वालों में भी यह भावना पैदा होती है कि हम भी इंडिया वालों की तरह बन जाएं और इस मानसिकता का शिकार होकर वह अपनी अच्छी खासी भाषा को नुकसान पहुंचा बैठते हैं, यही कारण है कि हिंदी भाषा आज गुलाम बनती जा रही है।

युवाओं में हिंदी के प्रति घटता रुझान भी बन रहा कारण

आज देश में युवा पीढ़ी हिंदी को महत्व देना पसंद नहीं कर रही है क्योंकि अंग्रेजी भाषा को इतना महत्व मिल चुका है कि सभी युवाओं और बच्चों को लगता है कि अगर हम अंग्रेजी पर पकड़ नहीं बना पाए तो हम पीछे रह जाएंगे। अंग्रेजी पर पकड़ बनाने को उन्हें कोई मना नहीं कर रहा लेकिन हिंदी में भी उन्हें पीछे नहीं रहना चाहिए वह हिंदी को महत्व देना बंद कर देते हैं और अंग्रेजी को अपने आप में शामिल करना शुरू कर देते हैं यही कारण है कि युवा पीढ़ी और बच्चे आजकल हिंदी को पीछे छोड़ रहे हैं और जिसकी वजह से हिंदी आजाद होने के बावजूद भी गुलाम बन बैठी है। जब तक युवाओं और बच्चों में हिंदी को लेकर आत्मविश्वास पैदा नहीं होगा हिंदी को गुलामी की जंजीरों से निकाल पाना बेहद मुश्किल होगा।

अंग्रेजी को अनावश्यक महत्व मिलना भी है कारण

अंग्रेजी को अनावश्यक महत्व देना भी आजाद भारत को हिंदी को गुलामी की जंजीरों में धकेल रहा है। हम कई जगह पर अनुभव करते हैं कि अंग्रेजी को अनावश्यक महत्व दिया जा रहा है, चाहे वह बच्चों के स्कूल में भर्ती होने को लेकर प्रक्रिया की बात हो या फिर किसी साक्षात्कार में किसी को नौकरी देने की हर जगह अंग्रेजी को इस तरह महत्व दिया जाता है कि अगर अंग्रेजी नहीं आई तो आपसे सब कुछ छीन लिया जाएगा। कई बार तो यह स्थिति बनती है कि लोगों को अगर अंग्रेजी न आती हो तो वह कई चीजों में भाग ही नहीं लेते उन्हें लगता है कि अगर अंग्रेजी नहीं आई तो हम वहां सफल नहीं होंगे और वह इस डर से शामिल ही नहीं होते। हालांकि हर संस्था में ऐसा नहीं होता लेकिन हम आज के दौर में देख सकते हैं कि हर जगह अंग्रेजी को अनावश्यक महत्व दिया जाना इसका एक बड़ा कारण है।

ऑनलाइन का जमाना है, गुलाम बनी हिन्दी!

आज का दौर यानी कि सबकुछ ऑनलाइन बच्चों की पढ़ाई से लेकर लोगों के साक्षात्कार तक सबकुछ ऑनलाइन हो रहा है। यह दौर वैसे तो नया दौर है डिजिटल दौर है लेकिन इस ऑनलाइन के दौर में हिंदी को कोई महत्व नहीं है। जो भी कार्य ऑनलाइन किया जाता है उसमें इंग्लिश यानी कि अंग्रेजी को काफी महत्व दिया जाता है, जिसमें एक ऑप्शन जोड़ दिया जाता है कि आप हिंदी में भी इसे देख सकते हैं समझ सकते हैं और कर सकते हैं लेकिन हिंदी को प्राथमिकता पर नहीं लिया जाता। अगर आप ऑनलाइन मीटिंग अटेंड कर रहे हो या फिर आप ऑनलाइन बच्चों की पढ़ाई करवा रहे हो सब जगह इंग्लिश का आना काफी जरूरी है अगर आपको इंग्लिश नहीं आती तो आप इन सारे प्लेटफार्म पर फीके पड़ते नजर आएंगे यह इसका बड़ा कारण है कि हिंदी गुलाम होती जा रही है।

सोशल मीडिया का बढ़ता चलन भी है कारण

आजकल देश में हर व्यक्ति सोशल मीडिया पर सक्रिय है सोशल मीडिया जहां लोग एक दूसरे से जुड़ कर अपनी सामाजिक ज़िन्दगी को साझा करते हैं। यह माध्यम देखा जाए तो काफी अच्छा है लेकिन यहां भी लोग हिंदी का कम ही उपयोग करते हैं। इस माध्यम की शुरुआत भी इंग्लिश में ही हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे इसमें हिंदी का उपयोग भी होने लगा। हर वर्ग के व्यक्ति ने इसे इंग्लिश में ही अपनाना शुरू किया। कम ही लोग होंगे जो सोशल मीडिया पर हिंदी में कुछ साझा करते हैं और जो करते हैं वह गर्व से करते हैं। जो लोग यहां हिंदी का उपयोग करने से हिचकते हैं उन्हें यह समझना होगा कि हिंदी का महत्व क्या है?

आजाद देश की गुलाम हिंदी अगर हम इसे आजाद करवाना चाहते हैं, तो हम सभी को हिंदी को महत्व देना सीखना होगा। हर क्षेत्र में हर जगह पर हमें यह देखना होगा कि हिंदी को हम किस तरह सम्मिलित कर सकते हैं। हम सभी को हर वह मौका तलाशना होगा जहां हम हिंदी का उपयोग करके उसे गुलामी से छुटकारा दिला पाएं। हिंदी को गुलाम बनाने वाले हम देश के लोग ही है। देश की आजादी के बाद हम तो आजादी से जी रहे हैं लेकिन हमारी राष्ट्रभाषा को इस तरह गुलामी की जंजीरों में छोड़ देना काफी गलत है। जरा इस पर विचार जरूर कीजिएगा और आज से ही हिंदी बोलने की शुरुआत बिना झिझक जरूर कीजिएगा।

TWN In-Focus