अगर खुद की पहचान बनानी है तो भीड़ से निकलकर कुछ अलग करना पड़ेगा। पहले के ज़माने में हमारे पास इतनी सुविधाएँ नहीं थीं फिर भी हमारे सारे काम होते थे। बस फर्क़ इतना है कि तब समय थोड़ा ज़्यादा लगता था आज हमारी विज्ञान ने हमें हमारी ज़रुरत के आधार पर सारे संसाधन जुटा कर दिए हैं ।
मंज़िल तो मिल जाएगी भटक कर ही सही,
नादान तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं…
अक्सर देखा जाता है कि सुख के समय में दूर के रिश्तेदार भी अपने हो जाते हैं लेकिन जब इंसान के ऊपर मुसीबत आती है, तो अपने ही दूर हो जाते हैं। ऐसे में परायों से क्या उम्मीद करें। लेकिन दुख में सिर्फ पति-पत्नी ही एक दूसरे का साथ निभाते हैं। वो साइकिल के दोनों पहियों की तरह हैं, जब दोनों साथ में आगे बढ़ते हैं तभी जीवन का सफर सुचारु रूप से चल पाता है। इसको हम ऐसे भी बोल सकते हैं कि पति पत्नी एक दूसरे के पूरक हैं। जिनसे हम प्यार करते हैं उनको तकलीफ में नहीं देख सकते।
आज हम तमिलनाडु के एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने अपनी बीमार पत्नी की देखभाल के लिए एक ऐसी चीज का आविष्कार कर दिया जिसकी हर तरफ चर्चा है।
शख्स का नाम है एस सरावना मुथु। मुथु लोहे का काम करने वाले एक मजदूर हैं। मुथु की पत्नी का ऑपरेशन हुआ था और वह कुछ महीनों से बेड रेस्ट पर थी । उसकी पत्नी को उठकर वॉशरुम जाने के लिए परेशानी उठानी पड़ती थी। मुथु को अपनी पत्नी का यह दर्द देखा नहीं गया और उसने पत्नी की तकलीफ को कम करने की ठान ली। मुथु ने एक रिमोट कंट्रोल टॉयलेट बेड बनाया।
मुथु ने बताया कि उसे बेड रेस्ट पर रहने वाले मरीजों की पीड़ा समझ आ रही थी कि वे कैसे हर चीज के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं। मुथु ने कहा कि यहां तक कि उनकी देखभाल करने वालों को भी परेशानी होती है। मरीजों की प्राइवेसी को ध्यान में रखते हुए और उनकी परेशानियों को कम करने के लिए मुथु ने रिमोट कंट्रोल बेड बनाने का फैसला किया। मुथु ने इस नए रिमोट कंट्रोल बेड में फ्लश टैंक, सेप्टिक टैंक के साथ एक रिमोट कंट्रोल बेड बनाया है। ।
रिमोट कंट्रोल बेड में तीन बटन होंगे। एक बटन से बेड ओपन होगा। दूसरे बटन से क्लोजेट को ओपन करने में मदद मिलेगी। जबकि तीसरे बटन से टॉयलेट फ्लश कर पाएंगे। मुथु ने बताया कि इस बेड को बनाने में शुरुआती दौर में काफी दिक्कतें आई लेकिन वह लगातार संघर्ष करता रहा।
तमिलनाडू का ये मजदूर उन लोगों के लिए मिसाल बन गया है जो हालातों से अक्सर हार जाते हैं पर मुथु ने हर चुनौती को स्वीकार किया। आज वो हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा बन गए हैं। वहीं मुथु अपनी इस कामयाबी के लिए पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को अपना प्रेरणादायक मानते हैं। कलाम ने ही उसे इस आविष्कार को करने के लिए प्रेरित किया था। मुथु ने एक साल के अंदर इस आविष्कार को पूरा कर दिखाया। मुथु को इसके लिए गुजरात में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों ये अवार्ड मिला। अब तक मुथु को विदशों से बेड बनाने के आर्डर भी मिल चुके हैं।
जैसे ही उनका ये अविष्कार दुनिया के सामने आया वैसे ही अपने देश में ही नहीं, पूरी दुनिया में उनकी इस ख्याति के चर्चे होने लगे । उन्होंने कभी ये नहीं सोचा था कि उनकी सकारात्मक सोच आज उनको इस मुकाम पर ले आएगी। इसलिए दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है जो ना किया जा सके। उदहारण के तौर पर इंसान ने कंप्यूटर को बनाया, कंप्यूटर ने इंसान को नहीं। सब कुछ हमारी सोच पर आधारित है। मुथु के जूनून ने ही उसको इस काबिल बनाया। तो जिस दिन आपके अंदर भी यही पागलपन आ जायेगा फिर आपके लिए भी कुछ भी नामुमकिन नहीं होगा।
अब आप सोच क्या रहे हैं TWN के साथ अपनी सोच के दायरे को बढ़ाइए और दिखा दीजिये दुनिया को कि अगर हम अपनी पर आ जाएं तो हम भी किसी से कम नहीं हैं।