Solid Waste Management क्या है?

29716
03 May 2024
5 min read

Post Highlight

वर्तमान समय में जिस तरह से ठोस कचरा यानी कि सॉलिड वेस्ट बढ़ रहा है, ये कहना गलत नहीं होगा कि ये हम सब के लिए चिंता के प्रमुख विषयों में से एक है क्योंकि ठोस कचरे के प्रबंधन के लिए सरकार और कई नगरपालिका काम तो कर रही हैं लेकिन फिर भी उन्हें कुछ सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन Solid Waste Management, पूरे विश्व के साथ भारत में बहुत बड़ी समस्या का रूप ले चुका है क्योंकि शहरीकरण, औद्योगिकरण और आर्थिक विकास के परिणाम स्वरूप शहरी कूड़े-करकट की मात्रा बहुत बढ़ गई है।

जनसंख्या वृद्धि और विशेष रूप से मेगासिटी का विकास भारत में SWM को एक बड़ी समस्या बना रहा है। यानि बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या और लोगों के जीवन स्तर में सुधार से यह समस्या और भी जटिल हुई है।

वर्तमान स्थिति यह है कि भारत अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, अनौपचारिक क्षेत्र और अपशिष्ट डंपिंग पर निर्भर है। अपशिष्ट प्रबंधन में प्रमुख मुद्दे सार्वजनिक भागीदारी से जुड़े हैं और आम तौर पर समुदाय में कचरे के प्रति जिम्मेदारी की कमी देखी जा सकती है।

ठोस अपशिष्ट का समुचित निपटान न होने से कई बीमारियों में बढ़ोतरी हो रही है। देश के विभिन्न भागों में इस दिशा में सामुदायिक जागरूकता पैदा की जा रही है और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से सम्बन्धित मसलों के व्यापक समाधान के लिए अब भी बहुत-कुछ किया जाना बाकी है।

समाज की गतिविधियों के परिणामस्वरूप, जितने भी बेकार और गैर-वांछित उत्पाद ठोस अवस्था में पाए जाते हैं, उन्हें ठोस अपशिष्ट कहते हैं।  ठोस अपशिष्ट को सामान्य भाषा में कई शब्दों के रूप में प्रयोग किया जाता है, जैसे- कचरा (Garbage), लिटर (Litter), रबिश (Rubbish), रेफ्यूज़ (Refuse), आदि। 

इस लेख के द्वारा आप ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Podcast

Continue Reading..

पूरे विश्व में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन Solid Waste Management गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। जनसंख्या बढ़ने से अपशिष्ट की मात्रा बढ़ती है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन चर्चा में इसलिए है क्योंकि भारत सहित कई देश बढ़ते कचरे के कुशलतापूर्वक निपटान की चुनौती का सामना कर रहे हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत प्रतिवर्ष 960 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न करता है। देखा जाये तो हमारे पास ठोस अपशिष्ट के निपटान की कोई उचित व्यवस्था भी नहीं है। कुशल ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली efficient solid waste management system का मुख्य उद्देश्य कूड़े-करकट से अधिकतम मात्रा में उपयोगी संसाधन प्राप्त करना और produce energy ऊर्जा का उत्पादन करना है ताकि कम-से-कम मात्रा में अपशिष्ट पदार्थों को लैंडफिल क्षेत्र में फेंकना पड़े।

इसका कारण यह है कि लैंडफिल में फेंके जाने वाले कूड़े का भारी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। एक तो इसके लिए काफी जमीन की आवश्यकता होती है जो लगातार कम होती जा रही है, और दूसरा कूड़ा वायु, मिट्टी और जल-प्रदूषण का सम्भावित कारण भी है।

ठोस अपशिष्ट को फेंक देने से जमीन तो खराब होती ही है, लेकिन उसको जलाने से वायु प्रदूषण भी बढ़ता है। साथ ही लोगों को कई बीमारियाँ अपनी चपेट में ले रही हैं। इसलिए आज के समय को देखते हुए ठोस अपशिष्ट का सही प्रबंधन करना अत्यंत आवश्यक हो गया है। तो चलिए आज Solid Waste Management ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानते हैं। 

Solid Waste Management क्या है? What Is Solid Waste Management In India

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (Solid Waste Management) इस समय सुर्ख़ियों में बना हुआ है। क्योंकि वर्तमान समय में बढ़ता हुआ ठोस कचरा, चिंता के प्रमुख विषयों में से एक है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का अर्थ सामान्यतः उस प्रक्रिया से है जिसके अंतर्गत घरों से, फैक्ट्रियों से तथा अन्य कई स्रोतो से निकले ठोस अपशिष्ट से है जो मनुष्य जीव-जंतुओ और पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक होता है।

समाज की गतिविधियों के परिणामस्वरूप प्राप्त ठोस अवस्था में बेकार और गैर-वांछित उत्पाद Waste and undesired products ही ठोस अपशिष्ट कहलाता है। यानि मनुष्य द्वारा उपयोग के बाद त्याग दिये जाने वाले ठोस तत्वों अथवा पदार्थों को ठोस अपशिष्ट कहते हैं। ठोस अपशिष्ट Solid Waste वे पदार्थ होते हैं जो उपयोग के बाद निरर्थक एवं बेकार हो जाते हैं तथा जिनका कोई आर्थिक उपयोग नहीं होता है।

जैसे-डिब्बे, काँच के सामान, अखबार, बोतल, पाॅलिथिन बैग, प्लास्टिक सामान , राख, घरेलू कचरा, लौहा-लक्कड़, आवासीय कचरा Cans, Glassware, Newspaper, Bottle, Polythene Bag, Plastic Goods, Ash, Household Garbage, Iron, Residential Garbage आदि। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन भारत में भी बहुत बड़ी समस्या का रूप ले चुका है क्योंकि शहरीकरण, औद्योगिकरण और आर्थिक विकास Urbanization, Industrialization and Economic Development के परिणाम स्वरूप शहरी कूड़े-करकट की मात्रा बहुत बढ़ गई है।

ठोस कूड़े-करकट का समुचित निस्तारण सही से नहीं हो पा रहा है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से सम्बन्धित मसलों के लिए व्यापक समाधान होना जरुरी है। ठोस अपशिष्ट को फेंक देने से जमीन तो खराब होती ही है, लेकिन उसको जलाने से वायु प्रदूषण air pollution भी बढ़ता है।

देखा जाये तो भारत प्रतिवर्ष 960 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न करता है और हमारे पास ठोस अपशिष्ट के निपटान की कोई उचित व्यवस्था भी नहीं है इसीलिए हमें वर्तमान में ठोस अपशिष्ट का सही प्रबंधन करना बहुत जरूरी है। अपशिष्ट प्रबंधन का आशय पर्यावरण तथा जीव जंतुओ के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को रोकना उनको कम करना होता है।

ठोस अपशिष्ट को सामान्य भाषा में कई शब्दों के रूप में प्रयोग किया जाता है। जैसे -

कचरा (Garbage)- यह मुख्य रूप से खाद्य अपशिष्ट और सड़ने योग्य जैविक अपशिष्ट शामिल होते हैं। 

लिटर (Litter) - यह सार्वजनिक स्थानों पर इधर उधर फेंका गया सामान, कागज़, बॉटल आदि होते हैं। 

रबिश (Rubbish)- खाद्य कचरे को छोड़कर, दहनशील और गैर-दहनशील ठोस अपशिष्ट शामिल होते हैं। 

रेफ्यूज़ (Refuse) -इसके अंतर्गत कचरा और रबिश दोनों शामिल होते हैं।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के प्रकार Types of Solid Waste

पुनरावर्तन अपशिष्ट - इन्हे रीसाइक्लिंग अपशिष्ट (Recycling waste) कहा जाता है। पुनरावर्तन अपशिष्ट में उन अपशिष्ट को रखा गया है, जिनको उपयोग करने के बाद फिर से प्रोसेसिंग करके उपयोग में लाया जाता है। इन अपशिष्ट के अंतर्गत एलमुनियम के डिब्बे, रद्दी कागज,प्लास्टिक आदि को शामिल किया गया है।

जैव निम्नीकरण अपशिष्ट - जैव निम्नीकरण अपशिष्ट वह अपशिष्ट होते हैं, जिनको सूक्ष्मजीवों (Microorganisms) के द्वारा निम्नीकरण अथवा विघटित किया जा सकता है। इन अपशिष्टों के अंतर्गत सब्जियों के छिलके फसलों के अवशेष फेंके गये खाद्य पदार्थों के कवच आदि को शामिल किया गया है।

Also Read: पर्यावरण के अनुकूल कॉलेज छात्र बनने के तरीके

अनिम्नीकरण अपशिष्ट - ये वे अपशिष्ट होते हैं, जिनका निम्नीकरण करना बिल्कुल आसान नहीं  या फिर असंभव होता है। ये अपशिष्ट वातावरण तथा जीव जंतुओं के लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं। इस अपशिष्टों के अंतर्गत पॉलीथिन, प्लास्टिक, सेरेमिक कांच, एस्बेस्टोज आदि आते हैं। 

इन्हें हानिकारक अपशिष्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह मानव और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं और इनके प्रकार हैं- विषाक्त अपशिष्ट, संक्रामक अपशिष्ट, संक्षारक अपशिष्ट और प्रतिक्रियाशील अपशिष्ट।

ठोस अपशिष्ट के स्रोत 

ठोस अपशिष्ट के मुख्य स्रोत निम्न हैं - Main Sources Of Solid Waste

औद्योगिक अपशिष्ट Industrial waste

औद्योगिक अपशिष्ट बड़े और छोटे उद्योगों से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को निर्मित करने के फलस्वरूप उत्पन्न होता है। इस अपशिष्ट में विभिन्न प्रकार का रासायनिक कचरा, भट्टी का लावा, धातु स्क्रैप, पैकेजिंग अपशिष्ट, गाद, राख आदि शामिल होते हैं। यानि औद्योगिक इकाइयों द्वारा अनेक प्रकार के अपशिष्ट त्यागे जाते है, जो भूमि या मृदा प्रदूषण के मुख्य कारक है। 

घरेलू व नगरपालिका अपशिष्ट Domestic and municipal waste

इसके अंतर्गत शहरी क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाला विभिन्न प्रकार का अपशिष्ट, होता है, जो प्रमुख रूप से घरों से निकला हुआ कचरा, कार्यालय, व्यावसायिक ठिकानों, अस्पतालों से निकलने वाला कचरा, सड़क को साफ़ करके निकलने वाला कूड़ा होता है। 

इनमें कूड़ा कचरा,रसोई घर का कचरा, कांच, कागज, टायर, बैटरी, प्लास्टिक, चिकित्सा सामग्री जैसे दस्ताने,पट्टी आदि अन्य चीज़ें जैसे पॉलीथिन, चमड़ा, आदि शामिल हैं। यह कचरा, नगर पालिकाओं के द्वारा इकट्ठा किया जाता है। 

खनन अपशिष्ट Mining waste

पृथ्वी में खनन करके कई धातुओं और कोयला को निकाला जाता है इसलिए यहाँ से निकलने वाले अपशिष्ट खनन अपशिष्ट होते हैं। इनके अतर्गत खान की धूल, चट्टानों के अवशेष धातु मल कोयले का चूरा आदि आते हैं। खनन के लिए भू-पृष्ठ को तोड़ा या खोदा जाता है और इससे मलबे का ढेर लग जाता है। इसमें निम्न श्रेणी के खनिज को ऐसे छोड़ दिया जाता है। मलबा भी इधर उधर फैला हुआ होता है। 

इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट Electronic waste

इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रिकल स्रोतों से निकले हुए कंप्यूटर, मोबाइल लेपटॉप आदि से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होते हैं। 

कृषिजनित अपशिष्ट Agricultural waste

फसल के बाद खेतों मे बचे डण्ठल, पत्ते, घास-फूस आदि कृषि अपशिष्ट कहलाते हैं। ये कृषि अपशिष्ट खेतों मे पड़े रहते हैं और अधिक मात्रा मे होने पर ये समस्या पैदा करते हैं। विकसित देशों मे इनका निष्पादन एक कठिन समस्या है।

क्या है ठोस अपशिष्ट प्रबंधन? What is solid waste management?

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, इस शब्द का इस्तेमाल ठोस कचरे को इकट्ठा करने के बाद उसके उपचार के प्रोसेस को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन उन वस्तुओं के पुनर्चक्रण के लिए भी समाधान प्रदान करता है, जो कचरा नहीं हैं।

जैसा कि हम सब जानते हैं कि सॉलिड वेस्ट और इसके प्रबंधन की समस्याएं पहले से ही थीं लेकिन जब से लोग आवासीय क्षेत्र और बस्तियों में रहने लगे हैं, तब से यह विषय एक मुद्दा बन गया है और आज भी यह चिंता के प्रमुख विषयों में से एक है। 

भारत में रहने वाले लोगों द्वारा उत्पादित ठोस अपशिष्ट की कुल मात्रा के बारे में बताए तो महाराष्ट्र से 17.1%, पश्चिम बंगाल से 12.0%, उत्तर प्रदेश से 10.0%, तमिल नाडु से 9.0%, दिल्ली से 8.9%, आंध्र प्रदेश से 8.8%, कर्नाटक से 6.0%, गुजरात से 5.4%, राजस्थान से  3.8%, मध्य प्रदेश से 3.5% और अन्य राज्यों से 15.6% ठोस अपशिष्ट उत्पादित होता है। 

राज्य 

ठोस अपशिष्ट की कुल मात्रा


 

महाराष्ट्र

17.1%

पश्चिम बंगाल

12.0%

उत्तर प्रदेश

10.0%

तमिल नाडु

9.0%

दिल्ली

8.9%

आंध्र प्रदेश

8.8%

कर्नाटक

6.0%

गुजरात

5.4%

राजस्थान 

3.8%

मध्य प्रदेश

3.5%

अन्य राज्य 

15.6%

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के तरीके Solid Waste Management Methods

पुनर्चक्रण Recycling

पर्यावरण की दृष्टि से यह प्रक्रिया अत्यंत उपयोगी है। इस प्रक्रिया में उपयोग के बाद जो वस्तुएँ उपयोग के लिए नहीं होती हैं उन वस्तुओं को फिर से उपयोग में लाने के लिए उनको पुनर्चक्रण किया जाता है। एक साधारण सा उदाहरण ले लेते हैं। जैसे किसी कागज को उपयोग करने के बाद फिर से अन्य उपयोगी उत्पाद बनाना।

इस क्रिया के अंतर्गत ऊर्जा की हानि कम होती है और गड्ढों की भराई भी कम होती है। अपशिष्ट का पुनः चक्रण का मतलब है कचरे को उपयोगी माल के रूप में प्रयोग करना। अगर हम ठोस अपशिष्ट को किसी उत्पाद में कच्चे माल के तौर पर उपयोग करे तो बहुत हद तक हम ठोस अपशिष्ट का निपटान कर सकते है। 

सफाई हेतु गड्ढों की भराई Filling of pits for cleaning

यह आजकल प्रयोग की जाने वाली सबसे लोकप्रिय ठोस अपशिष्ट निपटान विधि है। इसमें कचरा मूल रूप से पतली परतों में फैला दिया जाता है। फिर उसे ऊपर से मिट्टी और प्लास्टिक फोम से दबा दिया जाता है। इसके बाद गड्ढों की तली को मोटी प्लास्टिक तथा बालू की कई परतों से ढक देते हैं और और गड्डा भर जाने के बाद उसे बालू, चिकनी मिट्टी एवं बजरी से ढक देते हैं। 

भस्मीकरण Incineration

 इस विधि में उच्च तापमान पर ठोस कचरे को जलाया जाता है जब तक कि कचरा राख में बदल नहीं जाता। दाहक इस तरह से बनाए जाते हैं कि ठोस अपशिष्ट के जलने पर वे अत्यधिक मात्रा में ऊष्मा नहीं देते हैं। इस विधि के लिए बड़े-बड़े भट्टियों का निर्माण किया जाता है। इस प्रक्रिया से मीथेन गैस उत्पन्न होती है, जो वायु को प्रदूषित करती है इसलिए भस्मीकरण प्रक्रिया का उपयोग थोड़ा कम किया जाता है।

खाद के रूप में As fertilizer

लैंडफिल के लिए पर्याप्त जगह की कमी के कारण, बायोडिग्रेडेबल कचरे biodegradable waste को विघटित किया जाता है। इस प्रक्रिया में खाद बनाने में केवल बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट पदार्थों का ही उपयोग किया जाता है।

कृमि संवर्धन Worm culture

कृमि संवर्धन को केंचुआ फार्मिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह प्रक्रिया काफी उपयोगी है। इस तकनीक में केंचुआ की सहायता से मल, कीचड़ एवं घरेलू अपशिष्ट को अपघटित करके कंपोस्ट खाद में बदल दिया जाता है। 

पायरोलिसिस

यह ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की एक विधि है। इस प्रक्रिया में ठोस अपशिष्ट को उच्च तापमान पर विखंडित किया जाता है।इसमें अपशिष्ट का दहन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में किया जाता है। जिस वजह से ठोस अपशिष्ट ऑक्सीजन की उपस्थिति के बिना गर्मी से रासायनिक रूप से विघटित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में वायु प्रदूषण बिल्कुल नहीं होता है।

Also Read: दुनिया के कुछ अहम Ecological प्रोजेक्ट्स

कंपोस्टिंग Composting

इसमें जैव निम्नीकरणीय अपशिष्टों को सूक्ष्म जीवों के द्वारा ऑक्सीजन की उपस्थिति में अपघटन कराया जाता है। इस प्रक्रिया में उच्च गुणवत्ता वाली खाद बन जाती है और फिर इस खाद का उपयोग आप विभिन्न कृषि कार्यों में कर सकते हैं। इससे कार्बनिक खाद का निर्माण होता है। शहर वाले क्षेत्रों में निकलने वाले ठोस अपशिष्ट को जैव प्रौद्योगिकी आधारित अनाक्सीकारक पाचन क्रिया द्वारा भी अपघटित किया जा सकता है। 

खराब ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के प्रभाव Effects of poor solid waste management

1. परिवेश में कचरा

हम सब अपने घरों और काम के स्थान को साफ सुथरा रखते हैं लेकिन कुछ अनुचित अपशिष्ट निपटान की प्रणालियों के कारण, खासकर नगरपालिका अपशिष्ट प्रबंधन टीम्स द्वारा, कचरे का ढेर इकट्ठा हो जाता है और यह एक खतरा बन जाता है क्योंकि भले ही आप घर और अपने रहने की अन्य जगहों को साफ करते हैं लेकिन जब परिवेश में ही कचरा है तो यह आपके आसपास के वातावरण को भी काफी प्रभावित करता है। 

2. स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव

जो लोग लैंडफिल या अनुचित अपशिष्ट निपटान प्रदूषित क्षेत्र  के आसपास रहते हैं उनके स्वास्थ्य पर इसका काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके साथ-साथ जो श्रमिक लैंडफिल सुविधाओं से जुड़े रहते हैं उनका स्वास्थ्य भी एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में अधिक जोखिम में होता है।

ठोस अपशिष्ट प्रदूषण के कारण अनेक गंभीर बीमारियों को फैलाने वाले जीवाणुओं की उत्पत्ति होती है। 

3. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन

भारतीय शहर में प्रति व्यक्ति द्वारा अपशिष्ट उत्पादन की बात करें तो यह 200 ग्राम से 600 ग्राम प्रतिदिन के करीब करीब है। हर साल 43 मिलियन टन अपशिष्ट एकत्रित किया जाता है लेकिन इसमें से सिर्फ 11.9 मिलियन टन अपशिष्ट का ही ट्रीटमेंट हो पाता है और बाकी का बचा हुआ अपशिष्ट लैंडफिल में जाता है। 

जैसा की आप देख पा रहे होंगे कि केवल 27 से 28 परसेंट अपशिष्ट का ही ट्रीटमेंट हो पाता है और यह एक गंभीर स्तिथि है। 

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम Solid Waste Management Rules

  • सॉलिड वेस्ट का वैज्ञानिक रूप से निपटान करना बेहद महत्वपूर्ण है और इसके बुनियादी ढांचे से लेकर परिवहन और प्रसंस्करण के निर्माण की सारी जिम्मेदारी स्थानीय अधिकारियों के पास होती है। 

  • सार्वजनिक स्थानों पर और जल निकायों पर सॉलिड वेस्ट को फेंकना और जलाना मना है। 

  • सॉलिड वेस्ट के ट्रीटमेंट के बाद बनाए गई खाद का उचित उपयोग करना बेहद आवश्यक है। 

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के दुष्प्रभाव Side Effects Of Solid Waste Management

  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के कई दुष्प्रभाव हैं। औद्योगिक इकाइयों (Industrial waste) से जो अपशिष्ट निकलता है वह पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है। उद्योगों से निकलने वाला ठोस अपशिष्ट, जहरीली धातुओं, खतरनाक कचरे और रसायनों का एक स्रोत है।

  • जब यह पर्यावरण में उत्सर्जित होते हैं, तो ठोस अपशिष्ट पर्यावरण के लिए जैविक और भौतिक रासायनिक समस्याओं का कारण बनते हैं जिससे ये उस क्षेत्र में मिट्टी की उत्पादकता को प्रभावित कर सकते हैं। कुछ उद्योगो के द्वारा वातावरण में बिजली, धातु तत्व छोड़ दिए जाते हैं, जो जैविक और अजैविक भौतिक समस्याएँ biotic and abiotic physical problems उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।

  • कई प्रकार का रासायनिक कचरा, इलेक्ट्रॉनिक कचरा, सीसा, जिंक, बैटरीयाँ, रेडियोधर्मी पदार्थ, इलेक्ट्रॉनिक अवशिष्ट आदि के द्वारा खतरनाक किरणे निकलती है, जो विभिन्न प्रकार के कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ पैदा करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। 

  • खतरनाक और जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है और ये जहरीली गैसों काफी हानिकारक होती हैं। 

  • पर्यावरण प्रदूषित होने के कारण मनुष्यों में स्वांस, ह्रदय, फेफड़े सम्बन्धी कई रोग हो जाते हैं। पेड़ पौधों तथा अन्य जंतुओ के साथ-साथ मनुष्यों में भी कई रोग उत्पन्न होने लगते हैं और मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

  • उद्योगो का रासायनिक जल (Chemical Water) नदी और नालों में बहा दिया जाता है, जिससे नदी नालों के विभिन्न प्रकार के जीव जंतु मर जाते हैं, तथा पर्यावरण संतुलन बिगड़ जाता है। 

  • हमारे द्वारा उत्पादित कचरे के प्रति हमारी लापरवाही जानवरों को भी प्रभावित करती है और वे कचरे के अनुचित निपटान के कारण होने वाले प्रदूषण के प्रभावों से बच नहीं पाते हैं। 

  • जल प्रदूषण Water Pollution होता है। खतरनाक पदार्थ और रसायन मिट्टी में मिलकर भूजल को प्रदूषित कर सकते हैं। अक्सर खतरनाक कचरे को साधारण कचरा और अन्य ज्वलनशील कचरे के साथ मिलाया जाता है। जिस वजह से निपटान की प्रक्रिया में भी कठिनाई होती है। 

  •  नगर पालिका अपशिष्ट की अनियंत्रित डंपिंग (uncontrolled dumping) के कारण मनुष्य के साथ पशु पक्षियों, जीव जंतु तथा पेड़ पौधों पर भी विपरीत प्रभाव देखने को मिलता है। क्योंकि इस डंपिंग में विभिन्न प्रकार के जैव निम्नीकरण पदार्थ होते हैं, जो कुछ समय बाद सड़ने गलने लगते हैं और कुछ समय के बाद विभिन्न प्रकार की विषैली दुर्गंध पैदा करते हैं।

  •  जब औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला ठोस पदार्थ खेतों में डाल दिया जाता है, इनसे निकली हुई राख और कचरा खेतों में डाल दिया जाता है जिससे वहां की मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।

अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के मुद्दे और चुनौतियाँ Waste Management System Issues and Challenges

  • अधिकतर नगरपालिकाएँ बिना किसी विशेष उपचार के ही ठोस अपशिष्ट को खुले डंप स्थलों पर एकत्रित करती हैं। इस प्रकार के स्थलों से काफी बड़े पैमाने पर रोगों के जीवाणु पैदा होते हैं और आस-पास रहने वाले लोग भी इससे काफी प्रभावित होते हैं। इस प्रकार के स्थलों से जो दूषित रसायन, मिट्टी और भूजल में मिलता है तो वह कई बीमारियाँ पैदा करने में सहायक होते हैं। आम लोगों की सेहत पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। 

  • शहरीकरण में तीव्रता के साथ ही ठोस अपशिष्ट उत्पादन में भी वृद्धि हुई है जिसने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को काफी हद तक बाधित किया है।

  • भारत में अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्र का गठन अधिकतर अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा किया जाता है जो मुख्यतः गरीब होते हैं। इन लोगों को कार्यात्मक और सामाजिक सुरक्षा नहीं मिल पाती है।

  • प्रबंधन की उदासीनता और कम सामुदायिक जुड़ाव भी भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का एक प्रमुख अवरोध है।

  • अपशिष्ट प्रबंधन के लिये जो वित्त आवंटित किया जाता है उसका अधिकांश हिस्सा संग्रहण और परिवहन को मिलता है। प्रसंस्करण तथा निपटान हेतु बहुत कम हिस्सा बचता है जो कि एक चुनौती बन जाता है।

  • अधिकांश ठोस अपशिष्ट प्रबंधन निधि, कचरे के संग्रह और परिवहन के लिए आरक्षित की जाती है, जिसके परिणामस्वरूप प्रसंस्करण और संसाधन रिकवरी और निपटान के लिए बहुत कम राशि शेष रह जाती है।

  • कचरे के अपर्याप्त पृथक्करण के कारण अधिकांश अपशिष्ट का पुनर्चक्रण नहीं होता है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016 में अपशिष्ट के अलगाव को अनिवार्य किया गया है, लेकिन इस नियम का पालन नहीं किया जाता है।

  • भारत में अधिकांश शहरी स्थानीय निकाय वित्त, बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी की कमी के कारण कुशल अपशिष्ट प्रबंधन सेवाएँ प्रदान करने के लिये संघर्ष करते हैं।

Also Read: Bio-fuel- पर्यावरण के अनुकूल और ऊर्जा का एक टिकाऊ तंत्र

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन SWM के लिए सरकारी नियम और नीतियां

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम Solid waste management rules, 2016: MoEFCC ने अप्रैल 2016 में SWM ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों को संशोधित और अधिसूचित किया, जिसने नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2000 को प्रतिस्थापित किया है। नए नियम नगरपालिका क्षेत्राधिकार से आगे जिम्मेदारी सुनिश्चित करते हैं।

यह बताया गया है कि अपशिष्ट उत्पादक को स्रोत पर ही कचरे को अलग करना चाहिए। रीसाइक्लिंग एवं पुन: उपयोग के लिए कागज, प्लास्टिक, कांच और धातु जैसे सूखे कचरे का प्रयोग करना चाहिए, साथ ही खाद या बायोमीथेनेशन के लिए रसोई से गीले कचरे का भी उपयोग करना चाहिए। 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 ए (जी) भारत के प्रत्येक नागरिक को वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और वृद्धि करने और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखने का मौलिक कर्तव्य देता है।

मॉडल शहरों का विकास Development of Model Cities एक बेहतरीन पहल 

इन शहरों ने मॉडल शहर बनने के लिए कूड़ा फेंकने से खराब हुए स्थानों को सही करने की विधियों को अपनाकर उन्हें सही किया है और जमीन को फिर से उपयोगी बनाया है। पुणे (महाराष्ट्र), इंदौर (मध्य प्रदेश) और अम्बिकापुर (छत्तीसगढ़) Pune (Maharashtra), Indore (Madhya Pradesh) and Ambikapur (Chhattisgarh) को मॉडल शहरों के रूप में विकसित किया गया है। इन शहरों ने कूड़े का संग्रह करने, छंटाई और प्रसंस्करण की सुविधाएँ विकसित की हैं। 

TWN In-Focus