1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से ही यह बात बार-बार कही जाती रही है कि सरकार का काम व्यापार करना नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में ही यह बात ज़ोर देकर दोहराई है। व्यापार करना सरकार का काम नहीं है इसलिए अर्थव्यवस्था का पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण मे रहना ठीक नहीं है।
वर्तमान समय में लोग सरकारी संस्थानों की अपेक्षा निजी संस्थानों को अधिक महत्व देते है, क्योंकि प्राइवेट सेक्टर में कार्यों को प्राथमिकता दी जाती है।
निजीकरण Privatization एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा सार्वजानिक क्षेत्र को किसी निजी कम्पनी के हाथों में सौप दिया जाता है। यानि इसमें संस्था का स्वामित्व सरकार के हाथों से निकल कर निजी व्यक्तियों या समूहों के हाथ में चला जाता है।
भारत सरकार ने हाल ही में कई सरकारी कंपनियों का निजीकरण करने की घोषणा की है। सरकार ने निजी क्षेत्र को रक्षा, रेलवे और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में अधिक भागीदारी करने की भी अनुमति दी है। सरकार ने निजीकरण प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए कई सुधार किए हैं।
निजीकरण में सरकारी कंपनियां 2 तरीकों से निजी कंपनियों में तब्दील हो जाती हैं- एक विनिवेश (Disinvestment) और दूसरा (Transfer of Ownership) स्वामित्व का हस्तांतरण।
इस आर्टिकल में निजीकरण क्या होता है what is privatization, इसके उद्देश्य, इसके फायदे और नुकसान के बारें में विस्तार से पूरी जानकारी दी गयी है।
आजकल निजीकरण Privatization शब्द का शोर काफी सुनायी दे रहा है। क्योंकि सरकार द्वारा नियंत्रित अधिकतर कंपनियां निजीकरण की राह पर हैं। सरकार सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निजीकरण यानी सरकारी कंपनियों को बेचने पर जोर दे रही है। निजीकरण, यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे में पिछले कुछ सालों में देश में काफी बहस हो रही है और सबसे ज्यादा विवाद रेलवे और बैंकों के निजीकरण को लेकर रहा है।
वैसे निजीकरण को लेकर लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। कोई इसे सही बता रहा है तो कोई इसे गलत। नयी आर्थिक नीति के तहत साल 1991 मे भारतीय अर्थव्यवस्था Indian Economy में कई महत्वपूर्ण सुधार किये गए थे। भारतीय अर्थव्यवस्था को देश और विदेश के निजी क्षेत्र के व्यापारियों के लिए खोल दिया गया था।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए निजीकरण महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे बाजार में एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा healthy competition बनती है और रोजगार पैदा होता है। यह व्यवस्था, ग्राहक सेवाओं और वस्तुओं के मानक में सुधार करके लाभ को अधिकतम करने के लिए काम करता है। चलिए आज इस आर्टिकल में विस्तार से जानते हैं कि निजीकरण क्या है (nijikaran kya hai) और क्या अर्थव्यवस्था के लिए निजीकरण जरुरी है ?
निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे क्षेत्र या उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में स्थानांतरित Shifting from Public Sector to Private Sector किया जाता है। यानि निजीकरण एक ऐसी आर्थिक प्रक्रिया है जिसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, औद्योगिक संस्थान और इकाइयों को निजी क्षेत्र मे स्थानांतरित किया जाता है।
यहाँ पर स्थानांतरित करने का अर्थ है कि स्वामित्व सरकार के हाथों से निकल कर निजी व्यक्तियों या समूहों के हाथ मे आ जाता है। निजीकरण से आशय ऐसी औद्योगिक इकाइयों को निजी क्षेत्र में हस्तांतरित किये जाने से है जो अभी तक सरकारी स्वामित्व एवं नियंत्रण government ownership and control में थी।
निजीकरण के समर्थकों का कहना है कि निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा अधिक कुशल प्रथाओं को बढ़ावा देती है, जो अंततः बेहतर सेवा और उत्पाद, कम कीमत और कम भ्रष्टाचार उत्पन्न करती है। निजी शब्द का अर्थ होता है व्यक्तिगत अर्थात जो सार्वजनिक परिधि से बाहर हो। निजी क्षेत्र मे ऐसी इकाइयां, संस्थान या उद्योग आते हैं जिनमे मालिकाना हक़ किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का होता है। हम कह सकते हैं कि ऐसी इकाइयां, संस्थान या उद्योग जो सार्वजनिक नियंत्रण के बाहर आते हैं उन्हें निजी क्षेत्र कहा जाता है।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए निजीकरण काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इससे बाजार में एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के साथ साथ रोजगार भी पैदा होता है। यह व्यवस्था, ग्राहक सेवाओं और वस्तुओं के मानक में सुधार करके लाभ को अधिकतम करने के लिए काम करता है। जिस अर्थ में निजीकरण का प्रयोग किया जाता है, वह विश्वभर में विनिवेश की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में शेयरों को राष्ट्र स्वामित्व वाली कंपनियों से निजी क्षेत्र को बेचना सम्मिलित है।
भारत प्राइवेट और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों के साथ एक मिश्रित अर्थव्यवस्था mixed economy है लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र 1991 तक अप्रभावी तरीके से अक्षमता से प्रभावित था। भारत में निजीकरण की शुरुआत साल 1991 में हुई थी। उस समय देश आर्थिक संकट Economic Crisis से गुजर रहा था। इसलिए तब भारत में निजीकरण की शुरुआत तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह Finance Minister Dr Manmohan Singh ने 1991 में एक बड़े आर्थिक संकट के दौरान की थी और सरकार ने घाटे में चल रही कम्पनियों को निजी क्षेत्रो को बेचने का फैसला किया।
ऐसे कठिन समय मे अंतरष्ट्रीय फंडिंग एजेंसियों International Funding Agencies ने सरकार को आर्थिक उदारीकरण Economic Liberalization की तरफ मुड़ने पर विवश किया। इस तरह साल 1991 में नई आर्थिक नीति New Economic policy के अंतर्गत देश मे निजीकरण Privatization की प्रक्रिया शुरू हुई. उसके बाद से यह प्रक्रिया जारी रही और निजीकरण की यह प्रक्रिया बाद की सरकारों ने भी जारी रखी।
1991 की नई औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए कई सुधार उपाय शामिल थे। उनमें से कुछ घाटे में चल रही कंपनी को निजी क्षेत्र में बेचना था और निजी भागीदारी के लिए बढ़ावा दिया गया। 1991 से लेकर अब तक विभिन्न क्षेत्रो में समय-समय पर कई बार प्राइवेटाइजेशन किया गया है। वर्ष 1997 में सरकार नें सार्वजनिक क्षेत्र की 11 कंपनियां जो लाभ की स्थिति में थी, उन्हें नवरत्न का दर्जा दिया इसके साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के इन उपक्रमों को पर्याप्त स्वायत्तता भी प्रदान की गयी ताकि वह अन्तरराष्ट्रीय स्तर International Level पर अपनी पहचान बना सके।
इसमें उपक्रम एमटीएनएल, वीएसएनएल, आईओसी, एचएएल, बीपीसीएल, सेल और गेल MTNL, VSNL, IOC, HAL, BPCL, SAIL and GAIL आदि थे। अब तो सरकार सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निजीकरण यानी सरकारी कंपनियों को बेचने का काम ज़ोर-शोर से करने जा रही है।
सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण क्यों ज़रूरी है? क्यों सरकार को सार्वजनिक क्षेत्रों को निजी हाथों में सौंपने की ज़रूरत पड़ी? यह कई ऐसे सवाल हैं जो हर किसी के जेहन में जरूर आते हैं। आखिर ऐसे कौन से कारण थे जिनके कारण सरकार को आर्थिक नीति के तहत निजीकरण की शुरुआत करनी पड़ी।
दरअसल इसका मुख्य कारण आज़ादी के बाद देश की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था को सुधारना improve the country's deteriorating economy था और देश की प्रतिव्यक्ति आय व राष्ट्रीय आय को बढ़ाना था। जिससे बेरोजगारी को कम किया जा सके, लोगों का जीवन स्तर सुधारने का प्रयास किया जा सके इसके अलावा सबसे बड़ी बात देश का विकास development of the country हो सके। उस समय देश की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए निजीकरण का कदम उठाना पड़ा और इन तमाम बातों के कारण ही निजीकरण की ज़रूरत महसूस हुई।
दरअसल जब देश साल 1990 मे देश आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा था। उस वक्त देश में विकास संबंधी सभी कार्य हो रहे थे लेकिन विकास के लिए जिन चीज़ों की ज़रूरत थी वो नहीं मिल पा रही थीं। इन परेशानियों से बचने के लिए 1991 में सरकार द्वारा आर्थिक नीति के तहत उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण Liberalization, Privatization and Globalization की नीतियाँ अपनाई गयीं।
निजीकरण की ज़रूरत क्यों पड़ी इसके अन्य मुख्य कारण भी जान लेते हैं जैसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में आवश्यकता से अधिक कर्मचारी हैं। जहां 2 लोग काम कर रहे हैं वहाँ एक व्यक्ति की आवश्यकता है। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का खराब प्रदर्शन और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का घाटे में चलना भी निजीकरण का कारण है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में राजनीतिक नेताओं का हस्तक्षेप Interference of Political Leaders और सार्वजनिक क्षेत्र में निर्णय लेने की धीमी प्रक्रिया slow decision making process से परियोजनाओं में देरी होना है।
निजीकरण के उद्देश्य निम्न हैं -
निजी कंपनियां आमतौर पर सरकारी कंपनियों की तुलना में अधिक कुशल और उत्पादक होती हैं। इसका कारण यह है कि वे मुनाफे के लिए प्रेरित होते हैं और उन्हें प्रतिस्पर्धी बाजार में काम करना होता है।
सरकार निजीकरण से राजस्व प्राप्त करती है। यह राजस्व अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में निवेश किया जा सकता है।
निजीकरण से सरकार का खर्च कम होता है। इसका कारण यह है कि सरकार को अब निजीकृत कंपनियों को सब्सिडी देने की आवश्यकता नहीं होती है।
निजी कंपनियां आमतौर पर सरकारी कंपनियों की तुलना में अधिक रोजगार पैदा करती हैं। इसका कारण यह है कि वे नए व्यवसायों और उद्योगों को विकसित करने में अधिक सक्रिय होती हैं।
निजीकरण से बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। इसका कारण यह है कि अब सरकारी कंपनियों का एकाधिकार नहीं रह जाता है।
निजीकरण से उपभोक्ताओं को कई लाभ होते हैं। उन्हें बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं तक पहुंच मिलती है, और उन्हें कम कीमतों पर उत्पाद और सेवाएं मिलती हैं।
स्वामित्व का स्थानांतरण का तात्पर्य सरकार द्वारा कंपनी की एकमुश्त बिक्री कर दी जाती है यानि उस सरकारी कम्पनी पर सरकार का किसी प्रकार का स्वामित्व और प्रबंधन नहीं रह जाता है और सरकार का उस कम्पनी में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होता है। हम कह सकते हैं कि इसमें सरकारी कंपनी के स्वामित्व और प्रबंधन से सरकार अपने आप को अलग कर लेती है।
विनिवेश मतलब लगाया गया पैसा वापस लेना। किसी सरकारी कंपनी की परफॉरमेंस को सुधारने के लिये यह किया जाता है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (सरकारी कंपनी) के हिस्से (Shares) को निजी क्षेत्र को बेचकर विनिवेश किया जाता है। विनिवेश का मतलब किसी कार्य में लगायी गयी पूँजी वापस लेना है। भारत में मुख्य रूप से किसी कम्पनी की परफॉरमेंस अर्थात कार्यों की गुणवत्ता सुधारनें के लिए यही किया जाता है। विनिवेश यानि जब सरकार योजनाबद्ध तरीके से कुछ गैर जरुरी क्षेत्र की सार्वजनिक इकाइयों मे कुछ हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेचती है। सरकार इन कंपनियों मे पूंजी को आमंत्रित करती है और समय के साथ इनकी स्थिति को सुधारने का प्रयास करती है। सरकार द्वारा इन कम्पनियों के शेयर बेचनें का मुख्य उद्देश्य वित्तीय अनुशासन में सुधार और आधुनिकीकरण Financial discipline reform and modernization की सुविधा देना होता है। ऐसी कई कम्पनिया हैं जैसे NTPC नेशनल थर्मल पॉवर कार्पोरेशन (एनटीपीसी) National Thermal Power Corporation, (NTPC),एयर इंडिया Air India, ओएनजीसी ONGC आदि जिनमें सरकार द्वारा विनिवेश किया गया है।
सरकार अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को अपनी नियंत्रण मे रखती है। यानि इन क्षेत्रों मे निजी व्यापरियों के लिए प्रतिबन्ध होते हैं। ये क्षेत्र जैसे परमाणु ऊर्जा, रेल, रक्षा Nuclear Power, Rail Defense से जुड़े क्षेत्र आदि हैं। इसके द्वारा सरकार निजी क्षेत्र को कुछ प्रतिबंधित क्षेत्र मे व्यापार करने की अनुमति देती है। इस अविनियमन नीति के कारण व्यापार के कुछ सिमित क्षेत्रों से सरकार का एकाधिकार कम होता है।
निजीकरण के फ़ायदे Benefits of privatization
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निजीकरण या प्राइवेटाइजेशन के पक्ष में कुछ मुख्य तर्क हैं: