भारत (India) अपनी आजादी के 76वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। 76 वर्ष बहुत लम्बा समय है, और देश ने इस सफर में बड़े ही शानदार तरह से विकास किया है। देश ने इन वर्षों में खुद को देश की उभरती हुई, एक स्थिर अर्थव्यवस्था Stable Economy के रूप में स्थापित किया है। देश में प्रत्येक व्यक्ति को उसके विचारों को प्रकट करने और उस पर अमल करने की आजादी ने, देश की स्थिति को सुधारने का काम किया। जब विदेशी अर्थव्यवस्थाओं को भी भारत में अपने सिद्धातों को प्रवेश करने की अनुमति मिली, जिसने भारत को विकास की राह पर आगे बढ़ते रहने के कई और रास्ते दिखाए। ग्लोबलाइजेशन Globalization हमारे देश के विकास का बहुत बड़ा कारण बना है। वैश्वीकरण के आने से देश-विदेश की टेक्नोलॉजी का प्रयोग शुरू हो जाता है। परिणामस्वरूप देश के नए पुराने उद्योग अपने पुराने परंपरागत तरीकों को बदलकर आधुनिकीकरण की प्रतियोगिता में शामिल हो जाते हैं। यानि कि ग्लोबलाइजेशन के आने से नयी तकनीकी का विकास तेज़ी से होने लगता है।
व्यक्ति की सोच का विकास तभी होता है, जब वो उसे कई दिशाओं में अलग-अलग मुद्दे पर सोचने में लगता है। ठीक उसी तरह समाज का विस्तार और विकास करने के लिए समाज को प्रत्येक क्षेत्र को साथ में लेकर चलना होता है। मानव के विचारों को उड़ान मिलने से वो विकास और बेहतर समाज को ही सामने लेकर आता है। क्षेत्र कोई भी हो उसका विकास तभी संभव है, जब उसमें अपने विचारों के साथ दूसरे के विचारों को भी प्रवेश करने की अनुमति हो। अपने क्षेत्र में दूसरे के विचारों को अंदर आने की आजादी हो, ग्लोबलाइजेशन Globalization के ज़रिये हम नयी टेक्नोलॉजी को अपनाते है। जिससे एक स्वस्थ और विकसित समाज का निर्माण होता है। ग्लोबलाइजेशन के माध्यम से एक स्वस्थ आर्थिक समाज का निर्माण होता है। ग्लोबलाइजेशन हमारे देश के विकास का बहुत बड़ा कारण है। वैश्वीकरण से तकनीकी क्षेत्र में आश्चर्यजनक बदलाव आता है। तकनीकी विकास (Technological advances) के कारण विश्व के किसी भी कोने में उत्पन्न समस्या को तकनीकी सहायता से विश्व स्तर पर हल किया जा सकता है।
विश्व के सभी बाजारों का एकजुट होकर कार्य करने की प्रक्रिया को वैश्वीकरण (globalisation or globalization) कहते हैं। वैश्वीकरण के माध्यम से पूरे विश्व के लोग संयुक्त होकर कार्य करते हैं। इसके अंतर्गत सभी व्यापारियों की क्रियाओं का अंतर्राष्ट्रीयकरण (Internationalization) हो जाता है। वैश्वीकरण के माध्यम से संपूर्ण विश्व में बाजार शक्तियां (Market forces) स्वतंत्र रूप से रहती हैं। एक या कई देश आपस में व्यापार करते हैं, और तकनीकी को साझा करते हैं। इस प्रकार वैश्वीकरण (Globalization) से संपूर्ण विश्व के बाजारों का एकीकरण हो जाता है। कहा जा सकता कि वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत सभी व्यापारिक क्रियाओं का अंतरराष्ट्रीयकरण हो जाता है। और वह इकाई के रूप में कार्य करने लगते हैं। वैश्वीकरण व्यापारिक क्रियाकलापों का अंतर्राष्ट्रीयकरण है। जिसके अंतर्गत पूरा विश्व एक ही बाज़ार के रूप में देखा जाता है। यह हमे नवीनतम तकनीक तथा उत्पाद से अवगत कराता है। ताकि विश्व में हम अपनी पहचान बनाए रख सकें। इस तरह यह न्यूनतम लागत में कुशल बनाकर उसे प्रतियोगी रूप देने का एक प्रयास है। वैश्वीकरण महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह वैश्विक बाजार के आकार को बढ़ाता है, और सस्ती कीमतों पर अधिक से अधिक विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन और बिक्री करने की अनुमति देता है।
वैश्वीकरण का महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है। देश में फ़ैली आर्थिक असमानताओं (Economic inequalities) को दूर करना ताकि इन आर्थिक असमानताओं को दूर कर अल्पविकसित (Underdevelopment) और विकासशील देशों (Developing countries) को विकसित देशों (Developed countries) के श्रेणी में लाया जा सके।
वैश्वीकरण में यही प्रयास रहता है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नई संधियाँ (New Treaties) और नई संगठनों (New Organizations) के साथ देश की अर्थव्यवस्था में चारो ओर विकास की राह सुनिश्चित की जाए।
वैश्वीकरण की वजह से सार्वभौम भाईचारा (Universal brotherhood) की भावना का विकास होता है। यदि देश मे प्राकृतिक या अप्राकृतिक विप्पति आ जाए तो शेष विश्व के देशों का यथासंभव भरपूर आर्थिक और मानवीय सहयोग प्राप्त होता है। यही उद्देश्य होते हैं जिसके कारण विश्व के अनेक देश वैश्वीकरण को स्वीकार करते हैं।
विश्व के सदस्य देशों का अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग (International cooperation) पाना भी एक उद्देश्य होता है। व्यापारिक संबंध बनाए (Build business relationships) रखने हेतु किसी देश द्वारा अन्य देशों के लिए अपने स्तर पर सहयोग देना सीमा के अंदर अनुमति देना भी वैश्वीकरण का एक उदाहरण है। उदाहरण के लिए, अन्य देशों तक पहुंचायी जाने वाली गैस पाइप लाइन को पाकिस्तान ने अपने क्षेत्र से होकर जाने की अनुमति दी है।
वैश्वीकरण ने विश्व बाजार में अर्थव्यवस्थाओं के बीच इंटरडेपेंडेन्स और प्रतियोगिता (Interdependence and competition) तेज कर दी है। यह वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार और पूंजी की गति के संबंध में अंतर निर्भरता में परिलक्षित (Reflected) होता है। घरेलू आर्थिक विकास पूरी तरह से घरेलू नीतियों और बाजार की स्थितियों से निर्धारित नहीं होते हैं बल्कि, वे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों और आर्थिक स्थितियों (International policies and economic conditions) दोनों से प्रभावित हैं।
ग्लोबलाइजेशन के माध्यम से एक स्वस्थ आर्थिक समाज (Healthy economic society) का निर्माण होता है। इससे क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था, समाज और सभ्यताओं का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संचार करके हम बेहतर अर्थव्यवस्था को बनाने की कोशिश करते हैं। भारत ने इस क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया है। आजादी के बाद भारत की जो स्थिति थी उसे सुधारने में ग्लोबलाइजेशन ने बहुत मुख्य भूमिका निभाई है। औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Area) में विदेशी कंपनियों के निवेश ने भारत में लोगों के लिए रोजगार के रास्ते खोल दिए। इसके साथ में विदेशी कंपनियों के भारत में आने से क्षेत्रीय लोगों को भी व्यवसाय करने के नए तरीकों का पता चला। इस तरह से भारत विकास के सफर पर आगे बढ़ता चला गया।
देश में ग्लोबलाइजेशन ने 90 के दशक में दस्तक दी। इसके साथ ही भारत में आर्थिक सुधारों की कड़ी बढ़ती चली गयी। यह वह समय था जब देश में विदेशी कंपनियों को अपने उद्योग के शाखाओं को खोलने और विस्तार करने की अनुमति मिली। आजादी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था बहुत हिली हुई थी, जिसे कई सालों तक सुधारने की कोशिश पूरी तरह सफल नहीं हो पा रही थी। इससे पहले देश में आयी हरित क्रांति (Green revolution) और श्वेत क्रांति (White revolution) ने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारा तो परन्तु वो देश की अर्थव्यवस्था का विस्तार नहीं कर पाई। 1991 में लिया गया यह फैसला आर्थिक सुधारों की नयी रौशनी लेकर आया, जिसने पूरे देश को रोशन किया। 1991 में व्यवसायिक नियमों (Business rules) में बदलाव देश के विकास का मील का पत्थर साबित हुआ।
जिस वक़्त भारत में इस नियम को लाया गया उस वक़्त देश की महंगाई दर 13.6 प्रतिशत थी, इससे पहले इसकी स्थिति 28.6 प्रतिशत के साथ और भी ख़राब थी। उस समय में व्यक्ति की औसत आयु (Average age) 58.3 थी , जबकि दुनिया में यह औसत 65.6 था। देश कर्ज में डूबा हुआ था, जिसकी आपूर्ति करने के लिए कहीं और से कर्ज का रास्ता लेना पड़ता था। उस वक़्त लोगों के पास व्यवसाय के तरीके तो बहुत थे परन्तु कोई भी व्यक्ति जोखिम उठाने को तैयार नहीं था, क्योंकि उससे और नुकसान होने का खतरा था, जिसका जोखिम कोई उठाना नहीं चाहता था। सरकार ने खजाने में मौजूद सोने को बेचकर कर्ज चुकाने और उस पैसो से देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने का फैसला किया। इस कदम ने देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति का रुख बदल दिया। देश कर्ज के बोझ से बहार निकल आया ।
वैश्वीकरण से राष्ट्रों के सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक एवं तकनीकी आदि स्तर पर सुधार के अवसर बढ़ जाते हैं। अन्य अल्पविकसित या विकासशील देशों को विकसित देशों से सीखने मिलता है जिनके सहयोग से उनकी अर्थव्यवस्था में सुधार भी देखने को मिलता हैं। वर्तमान में अमरीका (America) जैसे देशों का सुपरमैसी (Supremacy) विश्व स्तर पर माना जाता है।
वैश्वीकरण से तकनीकी क्षेत्र में आश्चर्यजनक बदलाव (Amazing change) आता है। तकनीकी विकास (Technological advances) के कारण विश्व के किसी भी कोने में उत्पन्न समस्या को तकनीकी सहायता से विश्व स्तर पर हल किया जा सकता है। यहाँ तकनीकी के माध्यम से राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक आयोजनों (Political, social and economic events) में एक साथ विश्व के अनेक देश शामिल होकर अपनी विचार धाराएं प्रस्तुत कर सकते हैं। विश्व स्तर की समस्याओं का हल विश्व के सभी देश आपस में मिलकर निकाल लेते हैं।
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वैश्वीकरण के होने से बाज़ार में अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता (International competition) उत्पन्न हो जाती है। फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं की माँग बनाये रखने के लिए देशी उद्योग अपनी क्वालिटी सुधारने और अपनी उत्पादकता को बढ़ाने का प्रयास करते हैं।
जैसे ही उत्पादन में वृद्धि होती है। लोगों की आय और बचत में भी सुधार देखने को मिलता है। आय और बचत और उत्पादन में वृद्धि होने से मानव के रहन-सहन के स्तर में तेज़ी से वृद्धि होती है।
वैश्वीकरण के आने से देश-विदेश की टेक्नोलॉजी का प्रयोग शुरू हो जाता है। परिणामस्वरूप देश के नए पुराने उद्योग अपने नए पुराने परंपरागत तरीकों को बदलकर आधुनिकीकरण की प्रतियोगिता में शामिल हो जाते हैं। यानि कि ग्लोबलाइजेशन के आने से तकनीकी का विकास तेज़ी से होने लगता है।
वैश्वीकरण के कारण देश में निवेश और विदेशी पूँजी आ जाने से प्राकृतिक संसाधनों (Natural resources) का पूर्ण उपयोग होने लगता है। जिस कारण देश में रोज़गार के नए अवसर पैदा होने लगते हैं। इतना ही नहीं, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहभागिता व व्यापारिक संबंध (Partnership and Business relationship) बन जाने से विदशों में भी रोज़गार के नए अवसरों का निर्माण होता है।
वैश्वीकरण के फलस्वरूप विश्व व्यापार में देश के हिस्से में बढ़ोत्तरी होती है। देश के उद्योगों में निर्मित वस्तुओं की माँग विश्व स्तर पर होने के कारण निर्यात में वृद्धि होती है।
वैश्वीकरण से प्राप्त नई टेक्नोलॉजी भारत के लिए उपयुक्त नहीं। इससे भारत में समस्याएँ सुलझने के बजाय उलझती जा रही हैं। देश में ऊर्जा संकट, जल संकट और प्रदूषण की समस्याएँ (Energy crisis, water crisis and pollution problems) बढ़ती ही जा रही है।
वैश्वीकरण आ जाने के कारण अब भारत में बनायी जाने वाली नीतियाँ IMF, WORLD BANK, विश्व के संपन्न राष्ट्रों (Affluent nations) एवं बहुराष्ट्रीय कंम्पनियों (Multinational companies) के दबाव में बनाई जा रही हैं।
भारतीय वैश्वीकरण की बात करें तो अब विदेशी बहुराष्ट्रीय कपनियां (Foreign multinational companies), घरेलू कम्पनियों को धीरे-धीरे प्राप्त कर रही हैं। जिस कारण भारत के बाज़ार एवं उत्पादन तंत्र (Production system) पर इन विदेशी कपनियों का शिकंजा कसता चला जा रहा है। ऐसे में, आने वाले समय में भारत, फ़िर से ग़ुलामी की ज़जीर में जकड़ा जा सकता है।