पत्रकारिता में निष्पक्षता का अर्थ है किसी मुद्दे के सभी पक्षों की खोज करना और निष्कर्षों की सटीक रिपोर्टिंग करना। किसी खबर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के लिए जनता का उपयोग कभी नहीं किया जाना चाहिए। एक पत्रकार के रूप में आपका दायित्व है कि आप अपने स्वयं के उद्देश्यों की जांच करें, और यह सुनिश्चित करें कि आपकी व्यक्तिगत भावनाएं आप जो रिपोर्ट करते हैं, उसमे प्रतिलक्षित ना हों। आपको यह सुनिश्चित करने के लिए उपयोग की जाने वाली भाषा और लहजे के बारे में भी सावधानी से सोचने की आवश्यकता है कि यह तथ्यों का गलत और अनुचित प्रतिनिधित्व नहीं करता है। आपका काम सार्वजनिक बहस को सूचित करना है, उस बहस में हेरफेर नहीं करना है। आप जनता के लिए काम कर रहे हैं, अपने स्वार्थ के लिए उनका इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं।
एक पत्रकार के पास स्रोत और सत्यापित तथ्यों को प्रस्तुत करने के अलावा और कोई प्रेरणा नहीं होनी चाहिए। आपके पास वांछित परिणाम नहीं होना चाहिए। कुछ लोग तर्क देंगे कि पत्रकारिता और सक्रियता संगत नहीं हैं। आप परिणाम की परवाह किए बिना अपना काम करते हैं। देखा जाये तो निष्पक्ष पत्रकारिता Fair journalism आज की एक सबसे बड़ी चुनौती है। संचार क्रांति के इस दौर में मीडिया की भूमिका बेहद अहम है और ग्रामीण व शहरी हर क्षेत्र में जागरूकता का माध्यम मीडिया ही है। पत्रकारिता में निष्पक्षता एक मुहावरा बन कर रह गया है और इसी के समानांतर यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या वाकई कोई पत्रकार निष्पक्ष रह सकता है ? पत्रकार भी इसी समाज का हिस्सा हैं, समाज में रहते हुए जो कुछ एक पत्रकार देखता समझता है उसे अपने विवेक के तराजू पर तौल कर उसी के मुताबिक तय करता है कि उसे कहाँ खड़े होना है। सिर्फ सत्य की तरफ खड़ी होने वाली पत्रकारिता अब नहीं रही अब मूल्य नहीं व्यक्ति और पार्टी आधारित, एजेंडा वाली पत्रकारिता ही शेष है। पत्रकारिता हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सिर्फ इस डिजिटल युग में ही नहीं बल्कि काफी पुराने समय से ही हमारे दैनिक क्रियाकलाप के एक अंग के रूप में अपनी जगह बनाता रहा है।
आधुनिक युग में पत्रकारिता को भी पैसा कमाने के ज़रिये के रूप में देखा जाने लगा है। पहले भी स्थिति कुछ उत्तम नहीं थी लेकिन अब बद से बदतर ज़रूर होती जा रही। पत्रकार वह है जो कोई खबर को बिना तोड़ मरोड़ कर, निष्पक्ष और सटीक जानकारी को आम जन तक पहुँचाये। उसकी कलम से लिखी खबर जनहित में हो।
लेकिन अब पत्रकारों की स्थिति ठीक नही, सत्ता बदलने के साथ-साथ पत्रकार की कलम में निष्पक्ष होने की कला अब मरती दिख रही है। ये लोकतंत्र के लिए घातक है। जागरूक आम-जन को अखबार पढ़ते समय चाटूकारिता स्पष्ठ रूप से समझ आती है। कुछ गिने-चुने न्यूज़ चैनल ने तो मानो पत्रकारिता की हत्या कर दी हो। 24 घण्टे न्यूज़ आपको सुनाई देगी कुछ तो खुद से बनाई भी जाती हैं। रोज न्यूज़ रूम में बैठे पत्रकार प्राइम टाइम शो में किसी विशेष उद्देश्य से बैठे होते हैं।
कुछ काफी शोर मचाते हैं कुछ काफी नरम रहते हैं। उन्हें देखने वाली जनता के दिमाग को रोज भ्रमित किया जाता है। सत्ता में जो सरकार रहती है पत्रकार उसी की चाटूकारिता करने पर विवश होते हैं। ऐसा ना करने पर पत्रकार को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। अब तो सरकार पर सवाल उठाने पर देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है।
बहुत कम पत्रकार पत्रकारिता की राह चुनते है। वही चाटूकारिता करने पर फायदे के अतिरिक्त और कुछ नही, केवल पत्रकार के जगह अपको सत्ता का दलाल घोसित कर दिया जाएगा। मनुष्य का स्वभाव है की वह पहले अपने स्वार्थ के में बारे सोचता है और ऐसे पत्रकार सही मायने में देशद्रोही हैं। हकीकत तो ये है कि पत्रकारिता रोजगार नही बल्कि एक उपाधि है, जो खुद से पहले देशहित के बारे में विचार करे।
सामान्य शब्दों में यदि कहें तो पत्रकारिता 'समाचार और सूचना एकत्र करने, मूल्यांकन करने, बनाने और प्रस्तुत करने की गतिविधि है।' पत्रकारिता शब्द मूल रूप से प्रिंट रूप में, विशेष रूप से समाचार पत्रों में वर्तमान घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिए लागू किया गया था। लेकिन 20 वीं शताब्दी में रेडियो, टेलीविजन और इंटरनेट के आगमन के साथ इस शब्द का उपयोग सभी मुद्रित और इलेक्ट्रॉनिक संचार से निपटने के लिए व्यापक हो गया। 20वीं शताब्दी में पत्रकारिता व्यावसायिकता की बढ़ती भावना से चिह्नित थी। इस प्रवृत्ति में चार महत्वपूर्ण कारक थे: (1) कामकाजी पत्रकारों का बढ़ता संगठन, (2) पत्रकारिता के लिए विशेष शिक्षा, (3) जनसंचार के इतिहास, समस्याओं और तकनीकों से संबंधित बढ़ता हुआ साहित्य, और (4) पत्रकारों में सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना बढ़ती जा रही है।
Collins Dictionary के अनुसार, 'एक पत्रकार वह व्यक्ति होता है जिसका काम समाचार एकत्र करना और उसके बारे में समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, टेलीविजन या रेडियो के लिए लिखना है।' हम यह कह सकते हैं कि पत्रकार Storytellers होते हैं। वे सामाजिक मुद्दों और राजनीति से लेकर खेल और मनोरंजन तक हर चीज के बारे में समाचार लिखते और रिपोर्ट करते हैं। एक पत्रकार सूचना प्रस्तुत करता है ताकि लोग राय बना सकें और विवेकपूर्ण निर्णय ले सकें। पत्रकार जनता को घटनाओं और मुद्दों के बारे में शिक्षित करते हैं। पत्रकारों के लिए विशेषज्ञ कार्य हैं। बड़े संगठनों में, पत्रकार केवल एक ही कार्य में विशेषज्ञ हो सकते हैं। छोटे संगठनों में प्रत्येक पत्रकार को कई अलग-अलग कार्य करने पड़ सकते हैं।
ये जानकारी एकत्र करते हैं और इसे समाचार कहानियों, फीचर लेखों या वृत्तचित्रों में लिखित या मौखिक रूप में प्रस्तुत करते हैं। रिपोर्टर समाचार संगठनों के कर्मचारियों पर काम कर सकते हैं, लेकिन स्वतंत्र रूप से भी काम कर सकते हैं, जो कोई भी उन्हें भुगतान करता है उसके लिए कहानियां लिखता है।
सामान्य पत्रकार सभी प्रकार की समाचारों को कवर करते हैं, लेकिन कुछ पत्रकार खेल, राजनीति या कृषि जैसे कुछ क्षेत्रों में विशेषज्ञ होते हैं।
पत्रकारों द्वारा लिखी गई कहानियों को लेते हैं और उन्हें एक ऐसे रूप में रखते हैं जो उनके विशेष समाचार पत्र, पत्रिका, बुलेटिन या वेब पेज की विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप हो। उप-संपादक आमतौर पर स्वयं जानकारी एकत्र नहीं करते हैं। उनका काम इस बात पर ध्यान केंद्रित करना है कि कहानी को उनके दर्शकों के सामने कैसे प्रस्तुत किया जा सकता है। उन्हें अक्सर उप कहा जाता है। उनके प्रभारी व्यक्ति को मुख्य उप-संपादक कहा जाता है, जिसे आमतौर पर मुख्य उप के रूप में छोटा किया जाता है।
फोटो पत्रकार समाचार को सामने लाने के लिए तस्वीरों का उपयोग करते हैं। .वे या तो एक रिपोर्टर के साथ घटनाओं को कवर करते हैं, लिखित कहानी को चित्रित करने के लिए तस्वीरें लेते हैं, या स्वयं समाचार कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, दोनों चित्रों और कहानी या कैप्शन को प्रस्तुत करते हैं।
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एडिटर या संपादक आमतौर पर वह व्यक्ति होता है जो समाचार पत्र, पत्रिका या समाचार बुलेटिन में शामिल होने के बारे में अंतिम निर्णय लेता है। वह या वह सभी सामग्री और सभी पत्रकारों के लिए जिम्मेदार है। संपादकों के पास उनकी सहायता के लिए प्रतिनिधि और सहायक हो सकते हैं।
समाचार संपादक, समाचार पत्रकारों का प्रभारी व्यक्ति होता है। छोटे संगठनों में, समाचार संपादक सभी निर्णय ले सकता है कि किन कहानियों को कवर करना है और कौन काम करेगा। बड़े संगठनों में, समाचार संपादक के पास एक डिप्टी हो सकता है, जिसे अक्सर चीफ ऑफ स्टाफ कहा जाता है, जिसका विशेष काम पत्रकारों को चयनित कहानियों को सौंपना है।
फ़ीचर लेखक, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए काम करते हैं, लंबी कहानियाँ लिखते हैं जो आमतौर पर समाचारों को पृष्ठभूमि प्रदान करती हैं। छोटे संगठनों में रिपोर्टर स्वयं फीचर लेख लिखेंगे। सुविधाओं के प्रभारी व्यक्ति को आमतौर पर फीचर संपादक कहा जाता है। बड़े रेडियो या टेलीविजन स्टेशनों में समसामयिक कार्यक्रमों का निर्माण करने वाले विशेषज्ञ कर्मचारी हो सकते हैं - फीचर लेख के प्रसारण समकक्ष। करंट अफेयर्स प्रोग्राम के निर्माण के प्रभारी व्यक्ति को आमतौर पर निर्माता कहा जाता है और उस श्रृंखला के सभी कार्यक्रमों के प्रभारी व्यक्ति को कार्यकारी निर्माता या ईपी कहा जाता है।
विशेषज्ञ लेखकों को व्यक्तिगत टिप्पणी कॉलम या पुस्तकों, फिल्मों, कला या प्रदर्शन जैसी चीजों की समीक्षा करने के लिए नियोजित किया जा सकता है। उन्हें आमतौर पर कुछ विषयों के बारे में उनके ज्ञान या अच्छी तरह से लिखने की उनकी क्षमता के लिए चुना जाता है। फिर से, छोटे संगठन इनमें से कुछ या सभी कार्यों के लिए सामान्य पत्रकारों का उपयोग कर सकते हैं।
जिसकी कलम बिकाऊ ना हो, उसने सच्चाई लिखने, बोलने का संकल्प लिया हो। जो निष्पक्ष हो, सटीक हो। यही एक पत्रकार की देशभक्ति है। पारदर्शिता, जवाबदेही भी अब समाप्त हो चुकी है। क्योंकि ना तो अब पत्रकार तीखे सवाल कर सकता है और ना ही जवाब मांग सकता है। वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स world press freedom index के मुताबिक 180 देशों में से हम 142वीं रैंक पर है। यही हमारी कमज़ोरी है। जिस देश में पत्रकार चाटुकार हों तो फिर किसकी और किस बात पर सवाल जवाब हो? चौथे स्तंभ का निर्माण तीनों स्तम्भों की प्रहरी के लिए किया गया था ना की चाटूकारिता के लिए। ऐसे में आम-जन करे तो क्या करे? नागरिक धर्म आजमायें और जागरूक रहें।
निष्पक्ष का अर्थ है कि पत्रकार किसी भी खबर का तर्क दोनों तरफ से जनता तक पहुँचाये, और उसमें पत्रकार के खुद के विचार की बू नहीं आनी चाहिए। पत्रकार आखिर लिखकर, बोलकर खबरों को लोगों तक पहुँचता है। लिखना और बोलना भी एक तरह की कला है, उदारण के तौर पर यदि आज तेज़ बारिश हो रही है, इस खबर को बताने के तरह-तरह तरीके हो सकते हैं। लेकिन जब ख़बरों में तथ्य ही गायब हो जाएं तो समझ लीजिये पत्रिकारिता की दुर्गति होने लगती है। पत्रकारिता में भी अब व्यवसाय ने अपनी प्रबलता स्थापित कर दी है। टीआरपी Television Rating Point TRP का चक्कर बाबू-भैया हर मीडिया चैनलों के सर चढ़ कर बोल रहा है। भले चाहें पत्रकारिता सूली पर क्यों न चढ़ जाये। ऐसा नहीं है कि अब पत्रकारिता नहीं की जा रही, लेकिन उससे ज्यादा पत्रकारिता का दिखावा किया जा रहा। पत्रिकारिता का यह बदलता स्वरुप नकारात्मकता को अपनी तरफ खींच रहा हैं, कहीं न कहीं हम सब इसे महसूस कर सकते हैं। मीडिया चैनलों को देखने वालों के मुताबिक अब हम यह बता सकते है कि इस चैनल को देखने वाला सत्ता का समर्थक है, या इस चैनल को देखने वाला विपक्ष का समर्थक है। और यहीं साबित हो जाता है कि निष्पक्ष पत्रकारिता का अंत हो रहा है। इससे हम कैसे उभर सकते हैं? हमें पहचानने की जरूरत होगी, खबरों की पड़ताल करनी होगी। अब ख़बरों को सुनने, पढ़ने वालों की एक और जिम्मेदारी होगी, उन्हें तय करना होगा कि जो खबर वह सुन रहे या पढ़ रहे हैं वह निष्पक्ष है या नहीं। पत्रकार को देश हित में कार्य करना चाहिए न की सत्ता या अपने स्वयं के हित में, यही एक मात्र विकल्प है की हम पत्रकारिता को पूर्ण रूप से मरने से बचा सकते हैं।
पत्रकारिता में स्वतंत्रता freedom in journalism एक बड़ी चुनौती है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में पत्रकारों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वैसे इस क्षेत्र में चुनौतियों का सिलसिला कोई नई बात नहीं है। हम कह सकते हैं कि कारपोरेटर एवं सरकारी दबाव के बीच ethical journalism नैतिक पत्रकारिता करना आज के परिवेश में बड़ी समस्या बनकर उभरी है, जिससे कई खबरें या तो दब जाती है या फिर कई खबरों को दबा दिया जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पत्रकारों पर कई हमले होते हैं और कई की मौत हो जाती है। जिसमें हत्या की वजह उनकी पत्रकारिता थी। प्रेस परिषद को चाहिए कि निष्पक्ष और वास्तविक पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए कारगर कदम उठाए वरना खबर देने वालों की खबर देने वाला भी नही मिलेगा। पत्रकारों को भी चाहिए कि वे न केवल निष्पक्ष तरीके से मुद्दों को देखें बल्कि एक निष्पक्ष रवैया भी अपनायें। इस तरह से, कहानियों को तर्कसंगत और शांत तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है।
एक वे पत्रकार हैं जो आज भी सुबह से शाम तक मेहनत करते हैं उन्हें बड़े शहरों में बमुश्किल 15-20 हज़ार रुपये मिल पाते हैं उनका घर खर्चा तक नहीं चल पाता है। दूसरी ओर हर दिन एक नया नैरेटिव बेचनेवाले समाज का “भ्रमित करने वाला वाला धंधा” खूब चला रहे हैं। उन्हें बुद्धिजीवी पत्रकारों की आवश्यकता नही उन्हें धंधेबाज उन लोगों की आवश्यकता है जो मीडिया हाउस को भी दें और खुद भी कमाएं। न्यूज़ एंकर news anchor की यह विवशता है कि वे अगर ऐसा नही करेंगे तो उन्हें निकाल दिया जाएगा। ऐसे में सवाल यह है कि एक श्रमजीवी पत्रकार कैसे जी सकता है। कुछ तो ऐसा हो कि पत्रकारों की आजीविका सुनिश्चित हो।
भारत मे कई चैनल्स है और लगभग सवा लाख पत्र पत्रिकाएं हैं। इनमें राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय संस्कृति national interest and national culture को बढ़ावा देने वाले कितने हैं? इसलिये निष्पक्ष पत्रकारों के लिए जरुरी कदम उठाए जाने चाहिए।
निष्पक्ष और निर्भीक खबरें पाठक तक पहुंचाना ही पत्रकारिता की खास पहचान है। नई अर्थव्यवस्था से पूर्व (1991) भी इस देश में पत्रकारिता थी, लोग लिखे पर विश्वास करते थे। कहावत भी थी सौ बकी एक लिखी। “प्रेस” शब्द को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ fourth pillar of democracy के रूप में देखा जाता था। दलीय पत्रकारिता तब भी थी। “पांचजन्य” संघ विचारधारा का था तो “ब्लिट्ज” वामपंथी विचारधारा का, और “नेशनल हेराल्ड” कोंग्रेस की विचारधारा पर था। इसी प्रकार अन्य समाचार पत्र भी थे। समाचारों में मिलावट बहुत कम या नगण्य होती थी लेकिन आज ऐसा नहीं है बहुत कुछ बदल गया है।
समाचारपत्र की बात करें तो खुली अर्थव्यवस्था ने समाचारपत्र को उत्पाद (प्रोडक्ट) बना दिया है। समाचार पत्र का पाठक अब पाठक नही रहा। उसका अवमूल्यन होकर ग्राहक हो गया। पहले किसी भी समाचार पत्र का संपादक विद्वान व्यक्ति होता था उसके नाम से समाचारपत्र की पहचान होती थी। पत्रकार निष्पक्ष और निर्भीक होते थे। अखबार में छपी खबर का उल्लेख संसद में होता था। अब स्थिति बदल चुकी है समाचार पत्र में छपे समाचार पर विश्वास करना कठिन हो गया है। दरअसल अखबार में अक्सर पेड न्यूज paid news होती है। अब वह सब कुछ छपने लगा है जो वास्तव में पत्रकारिता होती ही नहीं है।
सवाल उठता है कि क्या आज का मीडिया निष्पक्ष पत्रकारिता करता है? तो आपको बता दें कि सरकारी कागज़ पर छपने वाले अखबार और सरकारी व अन्य विज्ञापन पर चलने वाले न्यूज़ चैनल निष्पक्ष तो कभी नहीं रहे लेकिन पहले हालत इतनी ख़राब नहीं थी अब काफी कुछ बदल चुका है। हालांकि कुछ ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल अभी भी निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे हैं किंतु सरकार उन्हें दबाने में लगी है।
वैसे भारत देश में निष्पक्ष पत्रकारिता ख़त्म हो रही है बल्कि हो चुकी है। समाचार चैनलों पर इस समय निष्पक्ष कुछ भी नहीं दिखाया जाता सब कुछ आर्थिक हितों के अनुसार तय होता है, सब कुछ प्रायोजित है कि क्या दिखाना है और क्या नहीं दिखाना। न्यूज़ चैनल पर चीख चीख कर तेज आवाज में समाचारों की वकालत करते एंकरों की आत्मा मर चुकी है और अगर कुछ लोगों की आत्मा जिंदा भी है तो कहीं ना कहीं सच को झूठ और झूठ को सच बनाकर पेश करने की चुभन उनको अंदर ही अंदर महसूस होती रहती है लेकिन वे चाहकर भी इससे निकल नहीं सकते क्योंकि झूठी प्रसिद्धि के मोह को वह चाहकर भी छोड़ नहीं सकते।
सच कहें तो पूंजीवाद capitalism इस कदर देश में हर संस्था पर, पूरे सिस्टम पर हावी हो चुका है की निष्पक्षता जैसा शब्द तो सिर्फ डिक्शनरी में ही रह गया है।
स्वच्छ, निष्पक्ष व निर्भीक पत्रकारिता, clean, fair and fearless journalism से ही लोकतंत्र मजबूत होगा। आज पत्रकारिता का महत्व पहले से अधिक बढ़ गया है। पत्रकारिता समाज का दर्पण होता है। पत्रकार की लेखनी समाज की गंदगी को दूर करती है और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
अधिकांश लोग इस बात से सहमत होंगे कि मीडिया आर्गेनाईजेशन और पत्रकारों को किसी मुद्दे के सभी पक्षों को प्रतिबिंबित करना चाहिए और किसी विशेष एजेंडे को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। हालांकि, बहुत से लोग महसूस करते हैं कि मीडिया अक्सर इस आदर्श को पूरा करने में विफल रहता है। किसी भी विषयवस्तु पर उचित व्याख्या के लिए निष्पक्षता महत्वपूर्ण है। यह तटस्थ, भरोसेमंद और पेशेवर रहने में मदद करता है। हालांकि कई लोगों का यह मानना है कि निष्पक्षता पर बहुत ज्यादा जोर देने से, खबर से मानवीय तत्व को बाहर करना है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि पत्रकार को निष्पक्ष ना होकर, जनता के सापेक्ष होना चाहिए। पत्रकार भी एक विशेष राय रखने वाले, भावनाओं और मूल्यों वाले लोग हैं। उनकी भी एक जेंडर, एक त्वचा का रंग, एक उम्र होती है और वे एक विशिष्ट सांस्कृतिक समूह से संबंधित होते हैं। अब वो इसे पसंद करें या नहीं, लेकिन बात जब किसी विशेष रिपोर्टिंग की आती है तो जाने अनजाने में उनकी रिपोर्टिंग में यह सब भी शामिल हो जाता है, जिसे कुछ लोग निष्पक्षता की श्रेणी में नहीं डालेंगे। लेकिन फिर भी यह कहा जा सकता है कि पत्रकार निष्पक्ष हो या ना हो, उसकी पत्रकारिता निष्पक्ष होनी चाहिए। सत्ता की अच्छी बातें तो लोगों के बीच जरूर ले जानी चाहिए लेकिन यह ध्यान जरूर रखना होगा कि हमेशा सत्ता की चाटुकारिता ना हो, और जो बातें देश, प्रदेश या जनता के खिलाफ जा सकती हों, उनका अपने लेखों के माध्यम से पुरजोर विरोध भी होना चाहिए। पक्षपातपूर्ण वेबसाइटों, YouTubers और पॉडकास्टरों के विकास के साथ, दर्शकों के पास अब पहले से कहीं अधिक व्यापक श्रेणी के विचारों तक पहुंच है। इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, कुछ लोगों ने निष्पक्षता के पारंपरिक दृष्टिकोणों पर सवाल उठाया है जो एक ही प्रसारण या प्रकाशन के भीतर सभी दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास करते हैं। आलोचक यह तर्क भी कई बार देते है कि निष्पक्षता ने अत्यधिक या अप्रतिनिधित्व वाले विचारों को अनुचित प्रमुखता भी कई बार दी है। यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि सभी समाचार संगठन निष्पक्षता के लिए प्रतिबद्ध नहीं हैं: वास्तव में, कुछ स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ समाचार और राय बनाने का गुण बनाते हैं। अंत में यह कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया, फेसबुक, गूगल और ऐप्पल जैसे प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों पर आम लोगों की पंहुच को देखते हुए निष्पक्षता पर स्पष्ट दिशानिर्देश विकसित करने की आवश्यकता होगी।