पर्यावरणीय प्रभाव आकलन क्या है? What is Environmental Impact Assessment-EIA

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13 May 2022
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पिछले कुछ सालों में देश में विकास करने के लिए सरकार द्वारा कई नई–नई योजनाओं की शुरुआत की गई है, जिसकी वजह से पर्यावरण अधिक मात्रा में प्रदूषित होता चला जा रहा है।
इसके बाद पर्यावरण से होनी वाली हानियों को देखते हुए और अपने चारों ओर के वातावरण को संरक्षित रखने के लिए सरकार द्वारा विकास परियोजनाओं के प्रभाव से होने वाली हानि और पर्यावरण पर प्रस्तावित गतिविधि/ परियोजना के प्रभाव का पूर्वानुमान करने हेतु EIA अध्ययन के रूप एक फ्रेमवर्क तैयार करती है और एक प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।

यानि Environmental Impact Assessment - ईआईए के माध्यम से पर्यावरण पर विभिन्न परियोजनाओं, भूमि उपयोग, वन संरक्षण, औद्योगिक प्रदूषण आदि के प्रभावों का पूर्ण रूप से अध्ययन किया जाता है।

अब EIA कई परियोजनाओं के लिए आवश्यक कर दिया गया है।

इनको पर्यावरणीय मंजूरी Environmental Clearance तभी प्रदान की जाती है, जब वे EIA के शर्तों को पूरा करते हैं और मंजूरी पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रदान की जाती है।

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मानव जीवन प्रकृति पर आश्रित है और प्रकृति एक शरीर की तरह है। भूमि, जीव-जन्तु, वृक्ष-वनस्पति, नदी-पहाड़ आदि उसके अंग हैं। इनके सबके सहयोग से प्रकृति का यह शरीर स्वस्थ और सन्तुलित रह पाता है। जैसे मानव शरीर का कोई भी अंग ख़राब हो जाता है तो उसका शरीर सही से कार्य नहीं कर पाता है।

ठीक ऐसे ही यदि हम अपनी सुख सुविधाओं के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ करते हैं यानि हम पर्यावरण पर विभिन्न नई–नई परियोजनाओं, भूमि उपयोग, औद्योगिक प्रदूषण, नयी नयी तकनीकों, योजना, कार्यक्रम या वास्तविक योजनाओं और इनके प्रभावों का पूर्ण रूप से अध्ययन और पूर्ण जानकारी हासिल किये बिना आगे बढ़ जाते हैं तो प्रकृति की पूरी व्यवस्था डगमगा जाती है।

इसी को देखते हुए पर्यावरण की सुरक्षा को बरक़रार रखने के लिए Environmental Impact Assessment का पहले ही पूरा अध्ययन किया जाता है जिससे आगे जाकर समस्याएं उत्पन्न न हों।

बस इसी पर्यावरणीय प्रभाव आकलन Environmental Impact Assessment के बारे में आज इस आर्टिकल में विस्तार से जानते हैं कि पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) क्या है और इसका क्या महत्त्व है। 

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) क्या है?

विश्व में बढ़ती जनसंख्या, विकसित होने वाली नई तकनीकों, नयी परियोजनाओं और आर्थिक विकास ने प्रकृति के शोषण को निरन्तर बढ़ावा दिया है। पर्यावरण विघटन की समस्या environmental degradation problem आज समूचे विश्व के सामने प्रमुख चुनौती बनकर खड़ी है।

जिसका सामना सरकारों द्वारा तथा लोगों को जागरूक करके किया जाता है। क्योंकि हम पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं इसलिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन environmental impact assessment (ईआईए) योजनाकारों के लिए उपलब्ध एक ऐसा उपकरण है जो विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में to achieve Development Goals पर्यावरणीय चिंताओं environmental concerns के साथ विकासीय गतिविधियों के सामंजस्य को स्थापित करता है।

पर्यावरण प्रभाव आकलन Environmental Impact Assessment को प्रमुख रूप से एक महत्वपूर्ण विनियमन कहा जाता है, जिसके माध्यम से पर्यावरण पर विभिन्न परियोजनाओं, भूमि उपयोग, वन संरक्षण, औद्योगिक प्रदूषण various projects, land use, forest protection, industrial pollution आदि के प्रभावों का पूर्ण रूप से अध्ययन किया जाता है। यानि पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को निर्णय लेने से पूर्व किसी परियोजना के पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की पहचान करने हेतु उपयोग किये जाने वाले उपकरण के रूप में परिभाषित किया जाता है। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि “एनवायर्नमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट” या ईआईए (EIA) को पर्यावरण पर प्रस्तावित गतिविधि/परियोजना के प्रभाव का पूर्वानुमान करने हेतु अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के कार्य | Functions of Environmental Impact Assessment (EIA)

पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) किसी एक प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन हेतु निर्धारित की गई प्रक्रिया है।

ईआईए के कार्य अपने में काफी महत्वपूर्ण होते हैं। EIA प्रमुख रूप से उचित निर्देशों के साथ पर्यावरण के संरक्षण environmental protection के लिए कार्य करता है। ईआईए प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों की पहचान करने में सहायता करता है। जिससे प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के उपाय प्रस्तुत किये जाएं। पर्यावरण प्रभाव आकलन यह भी अनुमान लगाता है कि क्या शमन लागू होने के बाद भी प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव होंगे। यह ऐसे सारे प्रावधानों का विशेष ध्यान रखता है जिससे पर्यावरण पर थोड़े या अधिक समय के लिए प्रभाव पड़ सकता है। ईआईए परियोजना के लाभकारी एवं प्रतिकूल दोनों परिणामों की जांच करता है। साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि परियोजना कार्यान्वयन के दौरान इन प्रभावों को ध्यान में रखा जाए। साथ ही  यह उन सभी उपायों का ध्यान रखता है, जिससे जीव जंतुओं की रक्षा आसानी की जा सके। 

पर्यावरण प्रभाव आकलन का महत्त्व | Importance of Environmental Impact Assessment

पर्यावरण संरक्षण की अवधारणा को देखते हुए पर्यावरण प्रभाव आकलन का काफी महत्व है। इस प्रक्रिया के ज़रिये किसी परियोजना जैसे- खनन, सिंचाई बांध, औद्योगिक इकाई या अपशिष्ट उपचार संयंत्र Mining, Irrigation Dam, Industrial Unit or Waste Treatment Plant आदि के संभावित प्रभावों का वैज्ञानिक तरीके से अनुमान लगाया जाता है और वैज्ञानिक उपायों का उपयोग use of scientific methods एवं किसी पर्यावरण संकट को कम करने के लिए सुझाव प्रदान करने का काम किया जाता है। यह विकास संबंधी परियोजनाओं के प्रतिकूल प्रभाव को समाप्त करने या कम करने के लिये एक लागत प्रभावी साधन प्रदान करता है। पर्यावरण प्रभाव आकलन सुनिश्चित करता है कि कोई भी विकास योजना पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ और सही है या नहीं है। क्या यह पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्जनन की क्षमता की सीमा के भीतर है। मतलब इसका महत्त्व इसलिए भी अधिक है कि यह निर्णय लेने का एक ऐसा उपकरण होता है जिसके माध्यम से यह तय किया जा सकता है कि किसी परियोजना को मंज़ूरी दी जानी चाहिये अथवा नहीं। एक खास बात यह है कि इस प्रक्रिया के तहत किसी भी विकास परियोजना या गतिविधि को अंतिम मंज़ूरी देने के लिये उस परियोजना से प्रभावित हो रहे आम लोगों के मत को भी ध्यान में रखा जाता है। यानि EIA कोई भी निर्णय लेने से पहले जनता की सलाह public advice लेता है। 

भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) | Environmental Impact Assessment (EIA) in India

1972 में हुए पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन Stockholm Conference में हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने जल (1974) और वायु (1981) प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त कानून बनाए। वर्ष 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी Bhopal gas tragedy में हज़ारों लोगों की मौत हो गई। इस घटना को देखते हुए देश ने वर्ष 1986 में पर्यावरण संरक्षण के लिये एक अम्ब्रेला अधिनियम बनाया। 

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत सर्वप्रथम वर्ष 1994 में पहले पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) मानदंडों को अधिसूचित किया गया था।

इस अधिसूचना के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच, उनके उपयोग, उन पर पड़ने वाले प्रभाव और प्रदूषण को नियंत्रित करने वाली गतिविधियों से संबंधित गतिविधियों को विनियमित करने के लिये एक कानूनी ढाँचा स्थापित किया गया। EIA के माध्यम से हर विकास परियोजना को पहले से पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त करने के लिए ईआईए प्रक्रिया से गुजरना आवश्यक है। वर्ष 1994 के पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को वर्ष 2006 में संशोधित मसौदे के साथ बदल दिया गया। 

भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन, भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय Ministry of Environment, Government of India द्वारा एक मूल्यांकन समिति का गठन किया जाता है, जो किसी विकास परियोजना अधिकारियों द्वारा परियोजना से सम्बंधित तथ्यों की जाँच करने का काम पूरा करता है। जब परियोजना के सभी तथ्यों की जाँच कर ली जाती है, तो पर्यावरण के लाभ को ध्यान में रखते हुए उस आधार पर मंजूरी प्रदान कर दी जाती है।

पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना में 2006 का संशोधन

2006 में पर्यावरण प्रभाव आकलन के निम्न प्रावधान थे -

इसमें किसी परियोजना की स्थापना के पहले मूल्यांकन समिति के गठन का प्रावधान किया गया था और पर्यावरण प्रभाव आकलन की प्रक्रिया के विकेन्द्रीकरण पर बल प्रदान किया गया। इसके अलावा किसी परियोजना के संबंध में आम जनता की मंशा जानने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा जन सुनवाई की जाने लगी। 

परियोजना मंज़ूरी प्रकिया का विकेंद्रीकरण के तहत विकासात्मक परियोजनाओं को दो श्रेणियों में बांटा गया। 

श्रेणी ‘A’ (राष्ट्रीय स्तरीय मूल्यांकन) और श्रेणी ‘B’ (राज्य स्तरीय मूल्यांकन)

श्रेणी ‘A’ परियोजनाओं को अनिवार्य पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती है और उन्हें स्क्रीनिंग प्रक्रिया से नहीं गुज़रना पड़ता है। 

अनिवार्य मंज़ूरी वाली परियोजनाएँ जैसे थर्मल पावर प्लांट, खनन, नदी घाटी, बुनियादी अवसंरचना (सड़क, राजमार्ग, बंदरगाह और हवाई अड्डे) जैसी परियोजनाओं और बहुत छोटे इलेक्ट्रोप्लेटिंग, विभिन्न छोटे उद्योगों के लिये पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करना अनिवार्य होता है।

श्रेणी ‘B’ परियोजनाएँ स्क्रीनिंग प्रक्रिया से गुज़रती हैं। श्रेणी ‘B’ परियोजनाओं को ‘B1’ और ‘B2’ में बांटा गया है। ‘B1’यानि (अनिवार्य रूप से पर्यावरण प्रभाव आकलन की आवश्यकता) और ‘B2’ यानि (पर्यावरण प्रभाव आकलन की आवश्यकता नहीं) है।

पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना मसौदा- 2020 और उससे जुड़े मुद्दे

सरकार के अनुसार, Environmental Impact Assessment- 2020 (पर्यावरण प्रभाव आकलन- 2020) के मसौदे को मुख्यतः प्रक्रियाओं को और अधिक पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से प्रस्तावित किया गया है, लेकिन देखा जाये तो यह मसौदा कई गतिविधियों को सार्वजनिक परामर्श के दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव करता है।

  • परियोजनाओं को छूट: कई परियोजनाओं को ‘A’, ‘B1’ और ‘B2’ श्रेणी में वर्गीकृत करके, उन्हें सार्वजनिक जाँच से छूट प्रदान की गई है।

  • इस मसौदे के तहत सामाजिक और आर्थिक प्रभाव और उन प्रभावों के भौगोलिक विस्तार के आधार पर सभी परियोजनाओं और गतिविधियों को तीन श्रेणियों- ‘A’, ‘B1’ और ‘B2’ में विभाजित किया गया है।

  • कई परियोजनाओं जैसे- सभी B2 परियोजनाओं, सिंचाई, रासायनिक उर्वरक, एसिड निर्माण, जैव चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधाएँ, भवन निर्माण और क्षेत्र विकास, एलिवेटेड रोड और फ्लाईओवर, राजमार्ग या एक्सप्रेसवे आदि को सार्वजनिक परामर्श से छूट दी गई है।

  • इसके अलावा जन सुनवाई के लिये आवंटित समय में कटौती की गयी है। पर्यावरण प्रभाव आकलन तंत्र के प्रमुख चरणों में से एक जन भागीदारी भी है। वर्ष 2020 में जारी मसौदे में जन सुनवाई के लिये नोटिस की अवधि को 30 दिन से घटाकर 20 दिन करने का प्रस्ताव किया गया है।

  • मंज़ूरी के बाद अनुपालन जरुरी है। मतलब एक बार परियोजना को मंजूरी मिलने के बाद प्रस्तावक परियोजनाओं को EIA रिपोर्ट में निर्धारित कुछ नियमों का पालन करना जरुरी है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई और पर्यावरणीय क्षति न के बराबर हो।

  • इसके साथ ही जिन फर्मों को अपनी स्थापना की शर्तों का उल्लंघन करते हुए पाया गया है और यदि उन्हें मंजूरी लेनी है, तो उन्हें जुर्माना देना होगा।

  • एक परियोजना जो पर्यावरण मंज़ूरी मिलने से पहले ही कार्य कर रही है, को नियमित किया जा सकता है। उसे मंज़ूरी के लिये आवेदन करने की अनुमति दी जा सकती है।

मुद्दे-

पूर्वव्यापी अनुमति (Ex-post-facto clearance route) -नए मसौदे के तहत उन कंपनियों या उद्योगों को भी क्लीयरेंस प्राप्त करने का मौका दिया जाएगा जो इससे पहले पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करती आ रही हैं। इसे ‘पोस्ट-फैक्टो प्रोजेक्ट क्लीयरेंस’ कहते हैं।

महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए मानदंडों में छूट: मसौदा अधिसूचना में खनन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुमोदन के लिए वैधता की अवधि का विस्तार करती है। 

समय में कटौती करना:समय में कटौती करना सार्वजनिक सुनवाई के लिये नोटिस की अवधि को 30 दिनों से घटाकर 20 दिन करने से EIA रिपोर्ट के मसौदे का अध्ययन करना मुश्किल हो जाएगा। 

महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए मानदंडों में छूट: मसौदा अधिसूचना में खनन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुमोदन के लिए वैधता की अवधि का विस्तार करती है।

कमजोर निगरानी चरण: निगरानी चरण में अनुपालन की रिपोर्टिंग की आवृत्ति अवधि को छह माह से बढ़ाकर एक वर्ष कर दिया गया है। 

जनता को कमजोर करता है: यह मसौदा सार्वजनिक परामर्श को सीमित करके, आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के साथ मेल नहीं खाता है।

पर्यावरण प्रभाव आकलन के प्रमुख लाभ | Key Benefits of Environmental Impact Assessment

  • EIA प्रमुख रूप से विकास परियोजनाओं के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए या मिटाने के लिए कम लागत वाले तरीके अपनाता है।

  • पर्यावरण की सुरक्षा, संसाधनों का अनुकूल उपयोग एवं परियोजना के समय तथा लागत की बचत।

  • यह विकास परियोजना के शुरू हो जाने के बाद इनका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका विश्लेषण करता है।

  • पारिस्थिकी तंत्र का संतुलन बना रहे, इस पर विशेष ध्यान देता है। 

  • यह मुख्य रूप से विकास के प्लान में न्यूनीकरण रणनीतियां (Mitigation Strategies) हो, इसका भी पूरा ध्यान रखता है। 

  • यह पर्यावरण और विकास परियोजना को जोड़ने का काम करते हैं। 

  • सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने और पर्यावरण की दृष्टि से अच्छी परियोजनाओं के लिए आधार तैयार करने में सहायता करता है।

  • यह ध्यान रखता है कि विकास का प्लान पर्यावरण को ध्यान में रख कर बना हो। 

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