कभी सोचा है कि आपके पुराने फ़ोन, टीवी या कम्प्यूटर का क्या होता है? ये इलेक्ट्रॉनिक कचरा बन जाते हैं! अगर इस कचरे को सही से ना हटाया जाए तो ये हमारी सेहत के लिए भी खतरनाक है। इसमें सीसा, पारा जैसी जहरीली चीज़ें होती हैं जो सांस लेने में तकलीफ, दिमाग को नुकसान और बच्चों के विकास में परेशानी पैदा कर सकती हैं।
आजकल हर कोई मोबाइल, कंप्यूटर और तरह-तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इस्तेमाल करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन पुराने या खराब हो चुके उपकरणों को फेंकना पर्यावरण और सेहत के लिए कितना खतरनाक है? इन्हीं बेकार हो चुके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को ही इलेक्ट्रॉनिक कचरा या ई-कचरा कहा जाता है।
दुनिया भर में ई-कचरा सबसे तेजी से बढ़ने वाला कचरा है. 2022 में ही दुनियाभर में रिकॉर्ड तोड़ 6.2 करोड़ टन ई-कचरा पैदा हुआ था और आने वाले समय में इसके 8.2 करोड़ टन तक पहुंचने का अनुमान है।
चिंता की बात ये है कि इतने सारे ई-कचरे में से सिर्फ 22.3% को ही सही तरीके से रिसाइकल किया जाता है. बाकी सारा कचरा या तो लैंडफिल में चला जाता है, गलत तरीके से रिसाइकल किया जाता है या फिर हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करता है।
इलेक्ट्रॉनिक कचरे के निष्क्रिय प्रबंधन के कारण प्रदूषण, सूक्ष्मजीवों की हानि, जल और भूमि की प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि होती है।
आइए आगे जानते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक कचरा Electronic Waste हमारे पर्यावरण और सेहत को कैसे नुकसान पहुंचाता है और इससे कैसे बचा जा सकता है!
आज के समय में, तकनीकी उन्नति के साथ, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की वृद्धि हो रही है, जो हमारे जीवन को आसान बनाने में मदद करती है। हालांकि, इसके साथ ही इलेक्ट्रॉनिक कचरा की समस्या भी बढ़ गई है, जिसका पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव होता है। इलेक्ट्रॉनिक कचरे के निष्क्रिय प्रबंधन के कारण प्रदूषण, सूक्ष्मजीवों की हानि, जल और भूमि की प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि होती है।
आधुनिक जीवन प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है, और यह निर्भरता लगातार बढ़ रही है। हम नए गैजेट्स और उपकरणों की खरीद करते रहते हैं, और पुराने को त्याग देते हैं। यह इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-कचरा) पैदा करता है, जो एक गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्या बन गया है।
आज के डिजिटल युग में, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का हमारे जीवन में अहम स्थान है। स्मार्टफोन, कंप्यूटर, टीवी, रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर - ये सभी हमारे जीवन को आसान और सुविधाजनक बनाते हैं। लेकिन जब ये उपकरण पुराने हो जाते हैं या खराब हो जाते हैं, तो उन्हें कहां फेंकें? यहीं से शुरू होता है "ई-कचरा" (इलेक्ट्रॉनिक कचरा) की समस्या।
ई-कचरा किसी भी बिजली से चलने वाले उपकरण का कचरा है जिसे अब उपयोग में नहीं लाया जाता है। इसमें शामिल हैं:
छोटे उपकरण: मोबाइल फोन, चार्जर, हेडफोन, कैमरे, कैलकुलेटर, आदि।
बड़े उपकरण: कंप्यूटर, लैपटॉप, प्रिंटर, स्कैनर, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर, आदि।
अन्य: बैटरी, टोनर कार्ट्रिज, सीडी, डीवीडी, आदि।
आज के डिजिटल युग में, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का हमारे जीवन में अहम स्थान है। लेकिन जब ये उपकरण पुराने हो जाते हैं या खराब हो जाते हैं, तो उन्हें कहां फेंकें? यहीं से शुरू होता है "ई-कचरा" (इलेक्ट्रॉनिक कचरा) की समस्या।
ई-कचरा कई कारणों से खतरनाक होता है, जो हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं।
ई-कचरे में अक्सर सीसा, पारा, कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम, बेरियम, और फॉस्फोरस जैसे जहरीले पदार्थ होते हैं। ये पदार्थ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में उपयोग किए जाते हैं, और जब इन्हें अनुचित तरीके से फेंका जाता है, तो ये मिट्टी और पानी में घुलकर पर्यावरण को दूषित करते हैं।
आज के डिजिटल युग में, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का हमारे जीवन में अहम स्थान है। लेकिन जब ये उपकरण पुराने हो जाते हैं या खराब हो जाते हैं, तो उन्हें कहां फेंकें? यहीं से शुरू होता है "ई-कचरा" (इलेक्ट्रॉनिक कचरा) की समस्या।
ई-कचरा कई तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
जहरीले पदार्थ: ई-कचरे में अक्सर सीसा, पारा, कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम, बेरियम, और फॉस्फोरस जैसे जहरीले पदार्थ होते हैं। जब ई-कचरे का अनुचित तरीके से निपटान किया जाता है, तो ये जहरीले पदार्थ मिट्टी और पानी में घुल जाते हैं।
परिणाम: यह मिट्टी की उर्वरता को कम करता है, पौधों की वृद्धि को बाधित करता है, और जल प्रदूषण का कारण बनता है, जो जलीय जीवन के लिए हानिकारक है।
जहरीले धुएं: जब ई-कचरे को जलाया जाता है या खुले में फेंका जाता है, तो इससे हवा में जहरीले धुएं और रसायन निकलते हैं।
परिणाम: यह वायु प्रदूषण का कारण बनता है, जो श्वसन संबंधी समस्याओं, हृदय रोग, और यहां तक कि कैंसर का भी खतरा बढ़ा सकता है।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन greenhouse gas emissions: ई-कचरे के उत्पादन और निपटान में ऊर्जा का उपयोग होता है, जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में योगदान देता है।
परिणाम: यह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को बढ़ाता है, जिसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।
पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान Damage to the ecosystem: ई-कचरे से मिट्टी, पानी और हवा दूषित होती है, जिससे विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों को नुकसान होता है।
मानव स्वास्थ्य पर खतरा Threat to human health: ई-कचरे में मौजूद जहरीले पदार्थ मनुष्यों में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जिनमें कैंसर, प्रजनन संबंधी समस्याएं, और तंत्रिका तंत्र संबंधी विकार शामिल हैं।
संसाधनों का अपव्यय Wastage of resources: इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में अक्सर दुर्लभ और मूल्यवान संसाधनों का उपयोग होता है। जब इन उपकरणों को अनुचित तरीके से फेंका जाता है, तो ये संसाधन बर्बाद हो जाते हैं।
ई-कचरे में मौजूद जहरीले पदार्थ विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
कैंसर: अध्ययनों से पता चला है कि ई-कचरे में मौजूद कुछ रसायन कैंसर का खतरा बढ़ा सकते हैं।
प्रजनन संबंधी समस्याएं: कुछ जहरीले पदार्थ प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंचा सकते हैं और गर्भधारण में बाधा डाल सकते हैं।
तंत्रिका तंत्र संबंधी विकार: ई-कचरे में मौजूद कुछ रसायन मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे सीखने में कठिनाई, याददाश्त कमजोर होना, और यहां तक कि पागलपन भी हो सकता है।
श्वसन संबंधी समस्याएं: ई-कचरे से निकलने वाले धुएं और रसायन श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जैसे कि अस्थमा और ब्रोंकाइटिस।
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आज के डिजिटल युग में, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का हमारे जीवन में अहम स्थान है। स्मार्टफोन, कंप्यूटर, टीवी, रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर - ये सभी हमारे जीवन को आसान और सुविधाजनक बनाते हैं। लेकिन जब ये उपकरण पुराने हो जाते हैं या खराब हो जाते हैं, तो उन्हें कहां फेंकें? यहीं से शुरू होता है "ई-कचरा" (इलेक्ट्रॉनिक कचरा) की समस्या।
ई-कचरे की समस्या से निपटने के लिए, हमें सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे।
समस्या सिर्फ इतनी सी नहीं है कि ई-कचरा कहां फेंकें? इससे कहीं ज्यादा गंभीर मुद्दा यह है कि ई-कचरे का गलत प्रबंधन हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य को कैसे नुकसान पहुंचा सकता है।
तो, आखिर ई-कचरे का प्रबंधन कैसे करें?
आइए, मिलकर इसकी रणनीति बनाएं:
सबसे पहला और महत्वपूर्ण कदम है कि हम सिर्फ वही इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदें जिनकी हमें सचमुच जरूरत है। नए उपकरण खरीदने से पहले, सोचें कि क्या आपके पास पहले से ही कोई ऐसा उपकरण है जो काम कर रहा है।
साथ ही, पुराने उपकरणों को जल्दी फेंकने की आदत छोड़ दें। उनकी उचित देखभाल करें और उनकी मरम्मत करवाएं ताकि उनका जीवनकाल बढ़ाया जा सके।
ऐसे कई उपकरण होते हैं, जो पूरी तरह से खराब नहीं हुए होते, बस कुछ दिक्कतें आने लगती हैं। ऐसे में उन्हें फेंकने की बजाय किसी जरूरतमंद को दान कर दें।
कई संगठन पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को इकट्ठा करते हैं और उन्हें जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाते हैं। आप भी ऐसे संगठनों से संपर्क कर सकते हैं।
जब कोई उपकरण पूरी तरह से खराब हो जाए और काम करने लायक न रहे, तो उसे ऐसे ही कूड़ेदान में न फेंकें। ई-कचरे के लिए अधिकृत पुनर्चक्रण केंद्र होते हैं।
इन केंद्रों में ई-कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान किया जाता है और उसमें मौजूद धातुओं और अन्य उपयोगी पदार्थों को निकालकर उन्हें फिर से इस्तेमाल में लाया जाता है।
ई-कचरे के खतरों और उसके उचित प्रबंधन के बारे में अपने परिवार, दोस्तों और आसपास के लोगों को जागरूक करें। आप सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर कर सकते हैं या अपने आसपास जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं।
जितने ज्यादा लोग ई-कचरे के बारे में जानेंगे, उतना ही जल्दी हम इस समस्या से निपटने में सफल हो सकेंगे।
सरकारी पहल को दें अपना समर्थन Give your support to government initiatives::
भारत सरकार ने ई-कचरे के प्रबंधन के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए हैं, जिनमें शामिल हैं:
ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2022: यह नियम निर्माताओं, आयातकों, विक्रेताओं और उपभोक्ताओं को ई-कचरे के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार बनाता है।
अधिकृत संग्रहण केंद्रों की स्थापना: सरकार ई-कचरे के संग्रहण के लिए अधिकृत केंद्र स्थापित करने की दिशा में भी काम कर रही है।
जागरूकता अभियान: सरकार समय-समय पर ई-कचरे के खतरों और उसके उचित निपटान के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाती रहती है।
ई-कचरा एक गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्या है जिससे निपटने के लिए भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण पहलें की हैं। इन पहलों का उद्देश्य ई-कचरे के उत्पादन को कम करना, इसके संग्रह और प्रसंस्करण में सुधार करना, और पर्यावरण में इसके हानिकारक प्रभावों को कम करना है।
मुख्य पहलें:
ये नियम निर्माताओं, आयातकों, विक्रेताओं और उपभोक्ताओं को ई-कचरे के प्रबंधन के लिए जिम्मेदारी सौंपते हैं। इन नियमों के तहत, निर्माताओं को अपने द्वारा उत्पादित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को वापस लेने और उनका पुनर्चक्रण करने के लिए बाध्य किया जाता है।
सीपीसीबी भारत में ई-कचरे के प्रबंधन के लिए नोडल एजेंसी है। यह ई-कचरे के उत्पादन, संग्रह, और प्रसंस्करण के लिए दिशानिर्देश और मानक निर्धारित करता है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) अपने-अपने राज्यों में ई-कचरे के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं। वे ई-कचरे के संग्रह और प्रसंस्करण केंद्रों को पंजीकृत और विनियमित करते हैं।
सरकार ई-कचरे के खतरों और इसके उचित प्रबंधन के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाती है। इन अभियानों में स्कूलों, समुदायों और मीडिया को शामिल किया जाता है।
सरकार ई-कचरे के संग्रह और प्रसंस्करण के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा दे रही है। इसमें मोबाइल एप्लिकेशन और वेबसाइटों का विकास शामिल है जो लोगों को ई-कचरे को ठीक से निपटाने में मदद करते हैं।
सरकार ई-कचरे के प्रबंधन के लिए अधिक प्रभावी और कुशल तरीकों को विकसित करने के लिए अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित कर रही है।
इन पहलों के अलावा, सरकार ई-कचरे के प्रबंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी बढ़ावा दे रही है।
निष्कर्ष:
भारत सरकार ई-कचरे की समस्या से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार द्वारा की गई पहलें ई-कचरे के उत्पादन और पर्यावरण पर इसके प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ई-कचरे का प्रबंधन एक सामूहिक प्रयास है। सरकार, उद्योग, और नागरिकों को सभी को मिलकर काम करना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ई-कचरे का ठीक से प्रबंधन किया जाए और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।
यहां कुछ उपयोगी संसाधन दिए गए हैं: