Mark Twain ने कहा है- काशी का इतिहास स्वयं काशी से भी पुराना है। इसके त्योहार, गालियाँ, खानपान, जीवनशैली सभी में जीवन का रस घुला हुआ है। यहाँ का अक्खड़पन, जिजीविषा,(desire to live ) कल की चिंता से मुक्त रहने की कला ही काशी को काशीमय बनाती है।
एक बार सभी देवी-देवता एक-एक करके भ्रमण पर निकलें, वह इस जगह पर आए तो यह जगह इतनी आनंददायक थी कि वह सभी यहाँ आकर यहीं के होकर रह गए। यही थी (varanasi) काशी- जीवन का हर रस है यहाँ।
कहते हैं कि एक बार सभी देवी-देवता एक-एक करके भ्रमण पर निकले पर कोई भी अपने स्थान पर वापस नहीं आया। बचे हुए देवी-देवताओं को उन्हें ढूँढ़ने के लिए भेजा गया लेकिन उनके भी ना वापस आने पर सभी को खोजा गया और सभी देवतागण एकसाथ, एक जगह पर मिले। उन सभी ने कहा वह इस जगह पर आए तो यह जगह इतनी आनंददायक थी कि वह सभी यहाँ आकर यहीं के होकर रह गए। यही थी varanasi, यहाँ काशी-जीवन का हर रस है।
क्या आप जानते है कि काशी को पहले से ही कई नामों से जाना गया है जैसे कि आनंद-कानन, मोक्षदायिनी, महाशमशान।
84 घाटों से भरा
इसके 84 घाट तो बहुत समय से काशी की पहचान बने हुए हैं।
1. अस्सी घाट Assi Ghat
2. गंगा महल घाट Ganga Mahal Ghat Assi
3. रीवा घाट Rewa Ghat
4. तुलसी घाट Tulsi Ghat
5. भदैनी घाटी Bhadaini Ghat
6.जानकी घाट Janaki Ghat
7. माता आंनदमयी Mata Anandamayi
8.निषादराज Nishad Raj Ghat
10.चेत सिंह घाट Chet Singh Ghat
11. निरंजनी घाट Niranjani Ghat
14.शिवाला घाट Shivala Ghat
15.प्राचीन हनुमान घाट Old Hanuman Ghat
16.हरिश्चंद्र घाट Harishchandra Ghat
17.. केदार घाट Kedar Ghat
18. मानसरोवर घाट Mansarovar Ghat
19. नारद घाट Narada Ghat
20. राजा घाट Raja Ghat rebuilt by Amrut Rao Peshwa
21. पांडे घाट Pandey Ghat
22. राणा महल घाट Rana Mahal Ghat, Varanasi
23. मुंशी घाट Munshi Ghat
24. अहिल्याबाई घाट Ahilyabai Ghat Varanasi
25. शीतला घाट Shitala Ghat
26. दशाश्वमेध घाट Dashashwamedh Ghat
इन सभी घाटों के अलावा भी कई घाट हैं क्यूँकि इनका आपस में अनोखा सम्बन्ध है, आप यहाँ के एक घाट से अपनी यात्रा शुरू करके बाकी सभी घाटों पर भी चलते-चलते पहुँच जाएंगे। अब तो इन घाटों की संख्या 84 से भी अधिक हो चुकी है।
काशी की प्राचीनता
प्राचीन ग्रंथों में काशी का वर्णन कई बार आया है- महाभारत में काशी का वर्णन है। काशी की तीनों राजकुमारियों जिसमें अम्बा, अम्बी और अम्बालिका के स्वयंवर का उल्लेख है। काशी का उल्लेख बौद्ध ग्रंथों में भी है और 16 महाजनपदों में भी काशी का वर्णन है। अचरज की बात यह है कि 16 महाजनपदों में सभी जनपदों की अपनी अलग राजधानी थी किन्तु काशी की राजधानी तब भी स्वयं काशी ही थी। इसकी प्राचीनता और आध्यात्मिकता का प्रमाण पुराणों में भी मिलता है।
गंगा और काशी का सम्बन्ध
सुरसरि, भागीरथी, देवनदी और सभी पापों से मुक्त कर देने वाली मोक्षदायिनी गंगा और काशी का सम्बन्ध आध्यात्मिकता और आम विचारधारा से परे है। सबसे अधिक प्रचलित कथा यह है कि गंगा देवताओं के कल्याण के लिए ब्रह्मदेव के कमण्डल में अवतरित हुई और उसके बाद राजा भागीरथ की कठिन तपस्या के बाद पृथ्वी पर उतरीं। काशी में गंगा शिव की आराध्या के रूप में और सभी को स्वच्छ करने वाली मोक्षदायिनी माता गंगा के रूप में उपस्थित हैं।
कला व् संस्कृति
शिक्षा, नृत्य, संगीत, गायन, हर क्षेत्र में काशी का अपना ही रस बसा हुआ है। काशी की दालमण्डी में एक समय में गीत-संगीत और महफ़िलों की रौनकें सजा करती थी। ब्रिटिश स्वामित्व के काल में तो बहुत सारी फ़नकाराओं जैसे -जद्दनबाई, रसूलनबाई, राजेश्वरी बाई आदि की ठुमरी और कजरी तो बनारस की शान हुआ करती थी (काशी जो तब तक प्राचीनता को छोड़कर आधुनिक नाम बनारस ले चुकी थी) यहाँ के संगीत घराने और यहाँ के कलाकारों ने काशी के नाम को विश्व में और रोशन किया है और कई राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम किये, जैसे - Anokhelal Mishra, Samta Prasad, Kishan Maharaj,Girija Devi, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां।
काशी विश्वनाथ मंदिर
काशी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर काशी की विशेष पहचान है क्यूँकि माना जाता है कि यहाँ साक्षात भगवान शिव का वास है। काशी विश्वनाथ मंदिर आजकल बहुत चर्चा में है। इस मंदिर को प्राचीनकाल में कई आक्रमणकारियों का आक्रमण झेलना पड़ा और कई बार कुछ शासकों ने इसकी संरचना को वापस ठीक करवाने में सहायता भी की। हमारे माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने बड़े स्तर पर काशी विश्वनाथ मंदिर corridor का निर्माण करवाकर पूरे मंदिर और काशी की छवि की काया ही पलट दी, चाहे online प्रषाद की सुविधा हो, इसे गंगा घाट से जोड़ना हो या पूरी सम्पन्न व्यवस्था करना। काशी अब बदल रहा है फिर भी अपनी प्राचीनता को समेटे हुए हैं।
काशी का रस उसके स्वाद में है
काशी का भोजन, स्वाद, इसका रस है ही ऐसा कि पूरी दुनिया एक बार ज़रूर ही इसका स्वाद चखना चाहती है। यहाँ की चाट, कचौड़ी की दुकानों का अपना ही स्वाद है। जैसे ही मौसम बदलता है काशी के भोजन का स्वाद भी बदल जाता है। जैसे गर्मी में ठंडई और ठण्ड में मलइयो। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी काशी की मिठाइयों ने अपनी भूमिका निभाई थी, जैसे-तिरंगा बर्फी, जवाहर लड्डू, बल्ल्भ सन्देश काशी का योगदान इन आन्दोलनों में खुलकर नहीं था बल्कि गली-मोहल्लों के बीच छोटे-छोटे मुद्दों में सभी की जीवनशैली में जुड़ा रहता था।
अनोखे अवसर
यहाँ का भरत मिलाप, श्रीकृष्ण की नाग-नथैया, होली से पहले की रंगभरी एकादशी, माता अन्नपूर्णा का स्वादिष्ट भंडारा, वर्ष में एक बार होने वाले यह सभी ख़ास अवसर काशी को अनोखा बनाते हैं।
काशी की असीमितता
Mark Twain ने कहा है, काशी का इतिहास स्वयं काशी से भी पुराना है। इसके त्योहार, गालियाँ, खानपान, जीवनशैली सभी में जीवन का रस घुला हुआ है। यहाँ का अक्खड़पन, जिजीविषा desire to live कल की चिंता से मुक्त रहने की कला ही काशी को काशीमय बनाती है। यहाँ एक तरफ घाट पर जहाँ जीवन को मोक्ष मिल जाता है, वहीं दूसरी ओर प्रातः काल का सूरज सुबह-ए-बनारस के साथ फिर से जीवन की शुरुआत दर्शाता है तो आप भी आइये जीवन और मृत्यु दोनों के उत्सव से भरे इस शहर काशी में।