जैविक खेती और आम उगाई का बेमिसाल उदहारण

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18 Aug 2021
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साधारण लोग बेमिसाल कार्य करके एक मिसाल कायम करते हैं। किसी ने सच कहाँ है, ख़राब को ख़राब बोलना बहुत आसान है मगर उस को अवसर बनाकर उसी ख़राब को सही करना कुछ लोगों के ही बस की बात है। ये कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जिन्होंने अपनी काबिलियत, अपनी सूझ-बूझ से जैविक खेती या ऑर्गनिक फॉर्मिंग में एक अच्छी पहल शुरू की है।

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जो दे प्रकृति को प्राकृतिक दान! 

वही है असल और सफल किसान!! 

ये कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जिन्होंने अपनी काबिलियत, अपनी सूझ-बूझ से जैविक खेती या ऑर्गनिक फॉर्मिंग में एक अच्छी पहल शुरू की है।

ये हैं श्रीमान एस शिवगणेश, जो की  2006 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके राजस्थान के एटॉमिक पावर स्टेशन में एक ठेकेदार के तौर पर काम कर रहे थे। लेकिन 2010 में, वह अपनी नौकरी छोड़कर केरल और तमिलनाडु की सीमा पर स्थित अपने घर मीनाक्षीपुरम लौट गए। उनके परिवार के पास खेती के लिए लगभग 27 एकड़ जमीन थी, जहां उन्होंने नारियल की खेती करने और उसी का निर्यात करने का फैसला किया। फिर धीरे-धीरे अगले कुछ सालों तक, उन्होंने बिजनेस में काफी उतार-चढ़ाव देखें। क्योंकि, उत्तराखंड के व्यापारी या खरीदार समय पर उन्हें निर्यात किये गए माल के पैसे नहीं देते थे। इसके बाद, शिवगणेश ने जैविक खेती करने का फैसला किया, जिसके लिए उन्होंने अपने पिता से छह एकड़ जमीन मांगी। कुछ समय बाद, उन्हें सालाना 16 लाख रुपये की कमाई होने लगी, जिसमें सीधा 13 लाख रुपये का मुनाफा ही था। उनके प्रयासों की सराहना करते हुए, राज्य सरकार ने उन्हें 2020 में ‘केरा केसरी पुरस्कार’ से भी नवाज़ा। द बेटर इंडिया के साथ बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी सफलता का राज, कुछ कृषि तकनीकें हैं। इनमें, इंटरक्रॉपिंग विधि यानी एक साथ कई फसलें उगाने का तरीका, ड्रिप इरीगेशन तकनीक यानी टपक सिंचाई और खेती से जुड़े दूसरे तरीके शामिल हैं।

जैविक खेती पर नयी तकनीक का किया प्रयोग 

शिवगणेश कहते हैं कि “मैंने 1600 नारियल के पेड़ों के साथ, इंटरक्रॉप के रूप में जायफल लगाया और अपने छह एकड़ के खेत में आम, हल्दी, काली मिर्च और सुपारी के पौधे भी लगाए हैं। मैंने सभी फसलों को उगाने के लिए, जैविक तरीकों का ही इस्तेमाल किया है।” शिवगणेश ने आगे कहते हैं कि पानी को सही तरीके से इस्तेमाल करने और मजदूरी की लागत को कम करने के लिए, वह अपने खेतों में ड्रिप इरिगेशन के साथ फर्टिगेशन करते हैं। फर्टिगेशन तकनीक में, पानी में खाद को मिलाकर सिचाई से पौधों तक पहुँचाया जाता है। शिवगणेश ने बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए दो तालाब बनाए और रोहू, तिलापिया, कतला, नट्टर, मृगल (व्हाईट कार्प) और दूसरी सामान्य प्रजातियों की मछलियां पालने लगे। इसी तरह से काम से काम निकलते चले गए और देखते देखते कब शिवगणेश एक मिसाल बन के उभरे। 

नौकरी छोड़ने के फैसले को लेकर शिवगणेश जी कहते हैं कि आज भले ही उन्हें अपने कामों के लिए, गाँव के लोगों से बहुत प्रशंसा और सराहना मिलती है, लेकिन जब उन्होंने खेती करने का फैसला किया था, तब ऐसा नहीं था। वह कहते हैं, “जब मैंने अपनी नौकरी छोड़ी थी, तब गाँव के सभी युवाओं में आईटी सेक्टर में नौकरी करने की होड़ लगी हुई थी। मुझे गाँववालों ने कहा कि मैंने गाँव वापस लौटकर गलती कर दी। खुद को आलोचना से बचाने के लिए, मैंने सामाजिक कार्यक्रमों या गाँव के किसी भी समारोह में जाना छोड़ दिया था।” लेकिन धीरे धीरे हालातों में सुधार होने लगा क्योंकि मुझे अपने फैसले पर भरोसा था की ये काम एक रोज़ रंग लाएगा। और फिर वही हुआ। 

ये कहानी थी शिवगणेश की, ऐसी ही एक और मिसाल कहानी है आम उगाने वाले व्यक्ति की जिन्होंने एक ही पेड़ से कई तरह के आम उगाये। सुन कर ही लगता है ऐसा कैसे संभव है तो आईये जानते हैं कुछ इनके बारे में, 

महाराष्ट्र के सांगली इलाके के काकासाहेब सावंत ने तकरीबन 10 सालों तक पुणे के कई बड़ी-बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों में मैकेनिक के तौर पर काम किया है। लेकिन अब उनकी पहचान मैकेनिक के तौर पर नहीं होती है, बल्कि एक सफल किसान के रूप में होती है। उनकी एक नर्सरी है, जिससे उनकी सालाना कमाई 50 लाख रुपये है।

43 वर्ष के श्रीमान सावंत बताते हैं कि, “आज से 10 साल पहले, जब मैंने हापुस आम के पौधें लगाए थे, तो लोग मुझपर हंसते थे। उन्हें लगता था कि हापुस (अल्फांसो) केवल कोंकण में ही उगाए जा सकते हैं, क्योंकि कोंकण इलाका अपने हापुस आम के लिए जाना जाता है।” 

सावंत जी तथा उनके परिवार के पास महाराष्ट्र के सांगली जिले के जाट तालुका के एक गाँव में 20 एकड़ जमीन है। यह इलाका एक सूखाग्रस्त क्षेत्र है। 

इस गाँव में प्राकृतिक रूप से उपजाऊ काली मिट्टी पाई जाती है। इस तालुका में 125 गाँव शामिल हैं और औसतन लगभग 570 मिमी की वर्षा हर साल होती है। इस इलाके में खेती के लिए, लोगों को बारिश पर निर्भर होना पड़ता है। जिन्हें स्थानीय लोग ‘हंगामी शेती’ कहते हैं। हंगामी का अर्थ है सीज़नल और शेती मतलब खेती।  

यहां के किसान, अंगूर या अनार उगाते हैं और आम की खेती को मुश्किल समझते हैं। यहां के किसान बाजरा, मक्का, ज्वार, गेहूं, दाल आदि उगाते हैं। 

सावंत ने औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) से डिप्लोमा किया था, जिसके बाद वह एक ऑटोमोबाइल मैकेनिक के तौर पर काम करने लगे। वह कहते हैं, “खेती से जुड़ने से पहले मैंने सांगली में एक तकनीकी संस्थान में फैकल्टी के रूप में भी काम किया था। लेकिन जब मेरा तबादला हुआ, तब मैंने अपने गाँव लौटने और खेती करने का फैसला किया।” 

ग्राफ्टिंग करके आम का पौधा लगाना 

सावंत ने कुछ ऐसे मालियों को काम पर रखा है, जो सांगली से 225 किमी दूर दापोली स्थित, नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड ट्रेनिंग लेकर आए थे। ये सारे माली जून से अगस्त तक आम के छोटे पौधों को ग्राफ्टिंग करके सैपलिंग तैयार करते हैं। वे सभी सावंत के परिवार के साथ रहते हैं। सावंत कहते हैं, “मेरे सभी माली बहुत कुशल हैं और मैंने उनसे ही पौधों की ग्राफ्टिंग की तकनीक सीखी है। ये माली हर दिन लगभग 800 से 1000 पौधे तैयार करते हैं और एक पौधे की ग्राफ्टिंग का मेहनताना तीन रुपये लेते हैं।”

उनकी नर्सरी से परभणी, बीड, उस्मानाबाद, बुलढाणा, कोल्हापुर, बीजापुर, अथानी, बेलगाम, इंडी और यहां तक कि कोंकण क्षेत्र के कुछ हिस्सों के किसान भी पौधें खरीदतें हैं। वह बताते हैं, “इस साल मुझे बुलढाणा से चार लाख पौधों का ऑर्डर मिला, जो मेरे लिए आश्चर्य की बात थी।”

साधारण लोग बेमिसाल कार्य करके एक मिसाल कायम करते हैं। किसी ने सच कहाँ है, ख़राब को ख़राब बोलना बहुत आसान है मगर उस को अवसर बनाकर उसी ख़राब को सही करना कुछ लोगों के ही बस की बात है। आपको इतिहास तभी याद रखेगा जब आप में  स्वयं को इतिहास के पन्नों में अंकित करने की काबिलियत और जूनून होगा और उस कार्य से समाज को एक नई दिशा मिल सके। 

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