आज के भारत की तस्वीर पहले से एकदम अलग है। मगर इस आज के भारत की तस्वीर कल क्या थी, भारत की आज़ादी को लेकर जब पूरे देश में सामाजिक ,राजनीतिक और नैतिकता की उथल-पुथल चल रही थी तब ऐसे में दो दलों का उदय हुआ, जिससे आप सभी शायद वाकिफ़ भी होंगे। तो चलिए आज जानते हैं उन दोनों दलों के बारे में।
आज के भारत की तस्वीर पहले की शक्ल से एक दम अलग है। आज पूरा भारत आधुनिक युग में जी रहा है। तरह-तरह की आवश्यकताओं, विलासिताओं और अविष्कारों Necessities, luxuries and inventions के चलते समूचा भारत आज विश्व भर में अपनी पहचान बिखेरे हुए है। मगर इस आज के भारत की तस्वीर कल क्या थी, कैसी थी और किस तरह से आज का भारत बन पाया। हमारा भारत जो कि एक गणराज्य है और गणतंत्र दिवस Republic day तो हम सभी मनाते हैं मगर किन-किन परिस्थितियों से गुज़र कर हम एक गणतांत्रिक देश की नींव डाल पाए, ये जानना भी अहम है।
भारत की आज़ादी को लेकर जब पूरे देश में सामाजिक ,राजनीतिक और नैतिकता social, political and moral की उथल-पुथल चल रही थी तब में ऐसे दो दलों का उदय हुआ, जिससे आप सभी शायद वाकिफ़ भी होंगे। उन दोनों दलों का नाम इतिहासकारों historians ने नरम और गरम दल moderator and extremist रखा। नरम और गरम दल जैसा नाम देकर इन दोनों दलों में मौजूद लोगों की एक ही समान मंशा रूपी क्रांति Revolution को विपरीत तरीके से करने को दर्शया है।
अपने अहिंसा non-violence और बिना खून बहाए ही आजादी की उम्मीद से भरे मूल्यों तथा सामाजिक सौहार्द social harmony को बनाये रखने वाले भी देश को आजाद कराने में पीछे नहीं थे और न कि वे लोग पीछे थे जो सीधे-सीधे ही अंग्रेजो से लोहा लेने वालों में से थे। दोनों का असल मकसद भारत को ब्रितानी हुकूमत से आजाद free from British rule कराना था, बस फर्क इतना था की नरम दल के क्रांतिकारी नरमी रखते हुए चाहते थे कि अंग्रेज देश छोड़ कर चले जाए और इस कारण वे उनके कई सुझाव मान भी लेते थे और अपने कई सुझाव मनवा भी लेते थे। बात अगर गरम दल की की जाए, तो हम पायेंगे की इन क्रांतिकारियों में देश को जल्द से जल्द आज़ाद कराने की होड़ थी और वे अंग्रेजों के एक भी हुकुम को न मान कर जीने वाले लोग थे साथ ही साथ उनका मानना था कि यदि अंग्रेज एक भारतीय मरते हैं तो उनके 10 अंग्रेज़ों को मार देना चाहिए।
गरम दल में गिने जाने वाले क्रांतिकारी
1905 के बंगाल विभाजन Bengal Partition के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस Indian National Congress में फूट पड़ते ही दोनों दलों का उदय हुआ, या यूँ कहें कि नरम दल की शुरुआत भारत की आजादी से पूर्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो खेमों में विभाजित होने के कारण हुईl जिसमें एक खेमें के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दूसरे खेमें के मोतीलाल नेहरूl इनमें सरकार बनाने को लेकर मतभेद था। मोतीलाल नेहरू चाहते थे की भारत की सरकार अंग्रेज़ो के साथ कोई संयोजक या मिली जुली सरकार बने जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेज़ों के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत की जनता को धोखा देना होगा l इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया और कुछ ऐसे जन नेता या यूँ कहें कि सामजिक दर्शन को लेकर चलने वाले leaders को नरम दल में रखा है जिनके नाम व उनके बारें में अग्रलिखित है-
लोकमान्य बाल गंगधार तिलक Lokmanya Bal Gangadhar Tilak
सबसे पहला नाम बाल गंगधार तिलक का ही आता है जब उन्होंने सभा का वहिष्कार कर अपनी छवि देश के गरम दल के जनक के रूप में बना दीl लोकमान्य का आदरणीय शीर्षक प्राप्त करने वाले गंगाधर तिलक जी,जनता के सबसे लोकप्रिय नेता रहे हैं। आपको बता दें की लोकमान्य का अर्थ होता है "लोगों द्वारा स्वीकृत, उनके नायक के रूप में।" लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 महाराष्ट्र Maharashtra स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ था। लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपत राय और श्री बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा। 1908 में लोकमान्य तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और क्रान्तिकारी खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और 1916 होम रूल लीग home rule league की स्थापना की।
स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है - लोकमान्य बाल गंगधार तिलक
लाला लाजपत राय Lala Lajpat Rai
पंजाब केसरी Punjab Kesari कहे जाने वाले लाला लाजपत राय भी बहुत प्रसिद्द क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं में गिने जाने वाले लाल लाजपत जी उन्हीं त्रिमूर्तियों में एक थे जिनको लाल-बाल-पाल lal-bal-pal के नाम से संबोधित किया जाता है। लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के मोगा जिले में 28 जनवरी 1865 को एक जैन परिवार में हुआ था। सन् 1928 में इन्होंने साइमन कमीशन के विरुद्ध एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये और 17 नवम्बर 1928 को इस महान शक्सियत की मृत्यु हो गयी।
"मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।"- लाला लाजपत राय
विपिन चन्द्र पाल Vipin Chandra Pal
भारत में क्रांतिकारी विचारों का जनक कहे जाने वाले तथा भारतीय स्वाधीनता आंदोलन Indian independence movement की रूपरेखा तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में से एक विपिनचंद्र पाल राष्ट्रवादी नेता थे। 'गरम' विचारों के लिए प्रसिद्ध अपनी बात तत्कालीन विदेशी शासक तक पहुँचाने के लिए कई ऐसे तरीके अपनाए जो एकदम नए थे। इन तरीकों में ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार, मिलों में बने कपड़ों से परहेज, औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि शामिल थे। जीवन भर राष्ट्रहित के लिए काम करने वाले पाल का 20 मई 1932 को निधन हो गया।
चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव Chandrashekhar Azad, Bhagat Singh, Rajguru, Sukhdev
देश के महान क्रांतिकारियों में इनका नाम न आये तो समझो आपने कुछ तो छोड़ दिया जिनका ज़िक्र करना आपको आवश्यक था इस बात में कोई दोराए नहीं कि देश के सभी क्रांतिकारियों ने अपना-अपना सहयोग सौ प्रतिशत दिया है। ठीक वैसे ही इन तीनों का योगदान है, लाला जी की मौत की बात सुन कर इन लोगों ने उसका बदला लेने की सोची और जिस अंग्रेज या यूँ कहें कि ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स ने लाला जी को लाठियों से मारा था और उसके चलते या उस कारण उनकी मृत्यु हो गयी, उस अफ़सर को इन्हीं तीनों क्रांतिकारियों ने गोली से मार दिया। और अंग्रेजों के आगे घुटने न टेकते हुए तीनों ने फ़ासी को गले से लगा लिया और शहीद हो गए।
गरम दल के विपरीत नरम दल एक नज़र में
शुरुआती दौर में नरमदल ने बड़े ही सीधे और सुलझे तरीके से अपने कार्यक्रम को आगे बढ़ायाl पहला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य था जनता को राजनीतिक तौर पर प्रशिक्षित करना साथ ही राष्ट्रीय स्तर के प्रश्नों पर जन जागृति फैलाना l यह कार्य एक संगठन और देश के स्तर पर उन्होंने बखूबी किया क्योंकि राष्ट्र निर्माण की लम्बी प्रक्रिया के प्रति वे सचेत रहे l परन्तु नरमदल पंथी अपने समय में कोई ठोस उपलब्धि प्राप्त नहीं कर पाए l उन्होंने ब्रिटिश राज के विरुद्ध गुस्सा तो ज़रूर जगाया लेकिन अपनी कमजोरियों के कारण राष्ट्र स्तर पर एक प्रभावी आंदोलन खड़ा करने में असफल रहे l नरम दल के समर्थक मोतीलाल नेहरू Motilal Nehru का कहना था की अंग्रेजी सरकार के साथ मिल कर ही अपनी बात मनवाई जाये और जितना संभव हो सके सत्ता भारतियों के पक्ष में ही रहे l देखा जाए तो कांग्रेस में बैठे लोग नरम दल के ही साथ थे तथा कांग्रेस को छोड़ के जाने वाले लोग गरम दल में शामिल हो गए थे l नरमदल की असफलता का कारण उनका आपसी अंतर्विरोध भी था जिसने उनके आधार को फैलने से रोका l आम जनता को भी इन नरमपंथियों का कम ही भरोसा था, इसका कारण एक तो नरमपंथी आम जनता के बीच के लोग नहीं थे और दूसरा तकनिकी, आर्थिक या संवेधानिक मामलों की समझ आम जानता को नहीं थी l लेकिन जनमानस की इन भवनाओं को कुरेदने का अर्थ है जनता से नेताओं अलगाव एवं दुराव l
गांधी नरम दल को मानते थे या गरम दल को ?
अगर गाँधी की बात की जाये तो वे इन दोनों दलों से अलग थे मतलब की उनका जो रास्ता था वह अहिंसावाद के साथ-साथ अंग्रेजों की सत्ता को देश से खत्म करने का था l इसलिए न तो वे गरम दल के साथ थे क्योंकि उनका कहना था वे एक गाल पर थप्पड़ खा सकते हैं परतुं बदले में थप्पड़ मार नहीं सकते हाँ मगर अपने हक को पाने के लिए अहिंसा का रास्ता जरुर अपनाकर किसी भी लड़ाई को देर से ही सही जीता जा सकता हैl वे अधिक समय तक कांग्रेस के भी अध्यक्ष नहीं रहे इन्हीं सब उथल-पुथल के कारण l
दोनों दलों से परे भारत बना एक गणराज्य
देश में कोई दल रहा हो या न रहा हो इतिहासकारों ने इसको दो भागों बाँट कर इतना बताने की कोशिश जरुरु की थी कि भारत देश दोनों तरह के क्रांतिकारियों के मेल-जोल से ही आज आजाद और एक पूर्ण गणराज्य बन कर उभरा है l दोनों ही दलों का एक ही मकसद था वह था भारत की आजादी और संप्रभुता वाली सरकार का होना l भारत का गणराज्य होना बस एक कदम दूर था, वह इसलिए क्योंकि आजाद देश को किस पद्दति से गतिमान किया जाए इसके लिए जरूरत थी एक संविधान की सो उसके लिए सबने मिलकर एक संविधान बना कर तैयार किया जिसमें सबसे बड़ा योगदान बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर Babasaheb Bheemrav Ambedkar जी का रहा, इसलिए उनको भारतीय संविधान का जनक या पिता कहा जाता है Father of Indian Constitution. आज हमारा देश एक गणराज्य के रूप में खड़ा है गणराज्य का अर्थ होता है कि जिस देश का सर्वोच्च नागरिक यानी की राष्ट्रपति भी चुनाव द्वारा ही बन सकता है इसी को एक शब्द में गणतंत्र कहते हैं l
जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए चुना गया शासक या नेता ही गणतांत्रिक देश की असल पहचान है- अब्राहम लिंकन