हमारा पर्यावरण ऐसे साधनों की खान है, जो हमें निरन्तर आगे की ओर बढ़ने में मदद कर रहा है। परन्तु हम मनुष्य यह भूल गए हैं कि पर्यावरण भी हमारी तरह पृथ्वी का हिस्सा है, जो हमारी ही तरह साँसे लेता है, यदि हम अपने शरीर की तरह उसकी सही से देख-भाल नहीं करेंगे तो वह भी वक़्त से पहले बीमार हो जायेगा और एक समय पर वह दम तोड़ देगा।
मनुष्य ऐसी कोशिशों के साथ निरन्तर अग्रसर होता है, जिससे वह सुविधाओं और अपनी अपेक्षाओं को पूर्ण कर सके। मनुष्य इस प्रयास में लगा रहता है कि वह दुनिया को वर्तमान समय से अधिक विकसित बना सके और समाज की मानसिकता प्रत्येक क्षेत्र में अधिक विकसित कर सके। विकास की अपेक्षा सब करते हैं और यदि हम इतिहास की तुलना आज के समय से करें तो समाज की नजर में विकास की जो परिभाषा है, हमने उसमें बहुत उपलब्धि हांसिल की है। परन्तु क्या विकास को हम सच में उसी आवरण में परिभाषित करते हैं, जैसा वह वास्तव में है। या फिर विकास का अर्थ हमने केवल आधुनिक तकनीकियों की खोज ही समझ लिया है। विकास का एक अटूट हिस्सा ऐसा भी है जिसे प्रकृति के नज़रिए से पर्यावरण कहा जाता है, जिसे हमने विकास का रास्ता तो बनाया परन्तु उसे मंजिल तक ले जाना जरूरी नहीं समझा। पर्यावरण ही विकास का मुख्य आधार बना, परन्तु वह आज मनुष्य की नादान हरकतों के कारण बहुत पीछे रहा गया है और स्वयं को लोगों की विकसित मानसिकता में शामिल करने की कोशिश कर रहा है।
पर्यावरण पृथ्वी का अटूट हिस्सा
हमारा पर्यावरण ऐसे साधनों की खान है, जो हमें निरन्तर आगे की ओर बढ़ने में मदद कर रहा है। परन्तु हम मनुष्य यह भूल गए हैं कि पर्यावरण भी हमारी तरह पृथ्वी का हिस्सा है, जो हमारी ही तरह साँसे लेता है, यदि हम अपने शरीर की तरह उसकी सही से देख-भाल नहीं करेंगे तो वह भी वक़्त से पहले बीमार हो जायेगा और एक समय पर वह दम तोड़ देगा। यदि पर्यावरण ने दम तोड़ा तो हमारा जीवन पृथ्वी पर असंभव हो जायेगा। क्योंकि पर्यावरण पृथ्वी के शरीर का वह महत्वपूर्ण अंग है, जो नष्ट हुआ तो पृथ्वी भी जीवित नहीं रह पायेगी।
पर्यावरण मनुष्य का सबसे पुराना साथी
ऐसा नहीं है कि विकास के रास्ते में यदि हम पर्यावरण को साथ लेकर चलेंगे तो हम निश्चित विकास नहीं कर पाएंगे। हम पूर्ण रूप से तभी विकास की श्रेणी में होंगे, जब आधुनिकताओं के साथ हमारा पुराना साथी भी हमारे साथ चले। क्योंकि सफलता को जीने का असली मजा तो अपने पुराने दोस्तों के साथ ही आता है। हमें निश्चित विकास तो करना ही है परन्तु हमें स्थिर विकास भी करना है। हमने भविष्य को सुनहरा करने के लिए, पर्यावरण का वर्तमान भी आकुलित कर देते हैं। वृक्ष, जंगल, वन्य-जीव, नदियां और हम मनुष्य एक साथ खुद के भविष्य को सुरक्षित और स्थायी करने की कोशिश कर सकते हैं। हम प्रकृति से बहुत कुछ उम्मीद रखते हैं इसलिए हमारा भी कर्तव्य है कि हम बिना प्रकृति के कुछ कहे उसकी उम्मीदों पर खुद को थोड़ा-बहुत खरा उतार पाएं।
आधुनिकता के साथ पर्यावरण को साथ लेकर चलें
सोचिए कितना मनोरम होगा वह दृश्य, जहाँ आधुनिक तकनीकें हमारी प्रकृति के साथ चल रही होंगी। जहाँ हम किसी रोबोट से कोई कार्य करा रहे होंगे और साथ में हमारे आस-पास का शुद्ध वातावरण हमें ताजगी का एहसास भी कराए। हम कोशिशें निरंतर करते रहें, कोशिशें करते रहना मनुष्य योनि की प्रवृत्ति में सदैव शामिल रहना चाहिए परन्तु उस कोशिश में पर्यावरण को भी अपने साथ लेकर चलना है। हमें पृथ्वी पर पर्यावरण के साथ स्थिर विकास करना है। जिससे हमारा और पर्यावरण दोनों का भविष्य सुरक्षित रहे और स्थिर रहे।