बड़ों की छाया में ही परिवार की सफलता

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09 Sep 2021
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बदलते समय ने लोगों की सोच को भी कितना बदल दिया है। एक संयुक्त परिवार में रहने वाला समाज अब छोटे परिवार की चाह रखता है। उन्हें ज़िंदगी देने वाले लोग अब उसकी ज़िंदगी में बोझ लगने लगते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि समय का चक्र एक वक़्त आने पर उन्हें भी उसी स्थान पर लाकर खड़ा करेगा। हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि हम भी इंसान हैं और परिस्थिति किसी की एक जैसी नहीं रहती है। हमें कभी भी अपने बड़ों का अनादर नहीं करना चाहिए।     

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अक्सर वो चीजें बड़ी आसानी से जमीन पर धरासायी हो जाती हैं, जो अपनी जड़ों पर विश्वास नहीं करती हैं। दुनिया की कोई भी चीज मजबूती से तभी टिकी रहती है जब उसका आधार मजबूत हो। बात चाहे इमारत की करें या परिवार की, इनकी मजबूती के लिए इसके आधार का ठोस रहना बहुत आवश्यक होता है। हम अक्सर अपने स्तम्भ पर ध्यान नहीं देते जो हमारे लिए ज्यादा उपयोगी नहीं होती, परन्तु यही लापरवाही हमारे नींव को कमजोर बना देती है और कमजोर नींव पर कभी भी मजबूत और स्थिर भवन का निर्माण नहीं हो सकता। यही तथ्य हमारे परिवार पर भी लागू होता है। कुछ लोगों के परिवार छोटे होते हैं तो कुछ लोग संयुक्त परिवार में रहते हैं। कहते हैं कि परिवार में हर पीढ़ी की अपनी महत्ता होती है। वो चाहे बच्चों की पीढ़ी हो, मध्यम वर्ग के लोग हों या फिर बुजुर्गों की पीढ़ी यदि इसमें से एक भी भाग मौजूद नहीं रहता तो परिवार अधूरा लगता है। परन्तु आज के समय में हम इनमें से एक पीढ़ी को नज़रंदाज कर देते हैं, उनकी तरफ ध्यान नहीं देते क्योंकि हमें शायद यह लगने लगता है कि यह लोग हम पर बोझ हैं, और किसी काम के नहीं हैं। आज-कल के बुजुर्ग उस दौर में जी रहे हैं जहाँ पर उनके बच्चों के पास इतना समय नहीं रहता कि वो उनके पास बैठ कर आधे घंटे बात भी कर पाएं।

बड़ों का घर में होना वरदान 

हम सब ने लोगों को यह कहते हुए सुना है कि बुजुर्गों के पास अनुभव और ज्ञान दोनों की कमी नहीं होती है। यदि मनुष्य खुद को एक बेहतर इंसान बनाना चाहता है तो उसे बुजुर्गों के पास थोड़ी देर अवश्य बैठना चाहिए, इससे वो ज़िंदगी के उन पहलुओं से भी मिल पाता, जिसने उसे अभी तक छुआ भी नहीं है। बड़ों का घर में होना ही एक वरदान है। हमारे लिए हर पल उनके मन में दुआएं देने वाली उठती भावना पूरे घर को सकारात्मकता के भाव से भरे रहता है। हमने कभी किसी बुजुर्ग को अपने बच्चों के लिए बुरा कहते हुए नहीं सुना होगा। 

बुजुर्ग बच्चों के सबसे अच्छे दोस्त 

बुजुर्गों का सबसे अच्छा रिश्ता उनके पोते-पोतियों के साथ होता है। हम सब कहते हैं कि माँ बच्चों की पहली गुरु, पहली दोस्त होती है। परन्तु यह भी सच है कि बच्चों के लिए दादा-दादी, नाना-नानी दुनिया के सबसे अच्छे गुरु, सबसे अच्छे दोस्त और सबसे अच्छे मार्गदर्शक होते हैं। दुनिया का हर वो बच्चा खुशनसीब है जिसका बचपन अपने दादा-दादी, नाना-नानी के साथ बीता है। बुजुर्ग लोग बच्चों के साथ बच्चे बनकर ही खेलते हैं, खेल-खेल में ही उन्हें खाना खिलाते हैं, और डाँटते भी इस तरह हैं कि बच्चा रोये ना। दुनिया में अच्छे-बुरे, सही-गलत की समझ बच्चों को सबसे पहले इन्हीं बड़े लोगों के माध्यम से होना शुरू होती है। इन्हीं के कारण माता-पिता बच्चों के प्रति निश्चिंत रहते हैं, क्यूंकि उन्हें यह मालूम रहता है कि उनका बच्चा हर तरफ से सुरक्षित है। परन्तु अब यह दौर बदल चुका है, बच्चे अब इस प्यार से, इस बचपन से वंचित रह जाते हैं। इसका कारण यह है कि माता-पिता को नौकरी के लिए किसी दूसरी जगह पर जाना पड़ता है जहाँ पर बड़े साथ में नहीं जा पाते और बच्चे इस प्यार से अछूते रह जाते हैं।

परेशानी में सँभालते हैं बुजुर्ग 

घर में बुजुर्गों के रहने से बच्चों के अलावा बाकि लोगों को भी सहारा रहता है। बड़े-बुजुर्ग अपने बच्चों को हमेशा सही रास्ता दिखाते हैं। कभी ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं कि लोग परेशान हो जाते हैं, उन्हें समझ नहीं आता कि वो परिस्थिति को किस तरह संभालें। ऐसे में उनके बड़े ही उन्हें सहारा देते हैं, उन्हें सँभालते हैं, समझते हैं और बताते हैं कि इस वक़्त में उन्हें क्या करना चाहिए। जब भी उन्हें जरुरत पड़ती है तो घर के बुजुर्ग घर की छत की तरह अपने बच्चों को छाया और सुरक्षा देते हैं।      

घर सँभालने वाले खुद बेसहारा 

बाबजूद इसके आज यही बड़े-बुजुर्ग घर वालों पर और समाज पर बोझ बन गए हैं। समाज में इन्हें साथ लेकर निकलने में हर कोई खुद को नीचे स्तर पर महसूस करता है। अपने बड़ों को साथ लेकर जाने में हमें बेइज्जती महसूस होती है। हम इनके द्वारा दिए गए आदर्शों और संस्कारों को अर्थविहीन समझने लगते हैं। जब यह हमें कोई सुझाव देते हैं तो हमें लगता है कि इसे सुन कर, इस पर अमल करके हम अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं। आज हम खुद को उस परिवार का हिस्सा रखना चाहते हैं जिसमें केवल मियां-बीवी और बच्चे रहें। आज हालत यह है कि विश्व भर में लगातार वृद्धाश्रम की संख्या बढ़ती जा रही है। एक समय पर पूरे घर को सँभालने वाले इंसान के पास खुद के रहने का भी सहारा नहीं रह जाता है। 


 

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