सामाजिक विकास में व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता और नागरिकों को अपनी और अपने समाज की जरूरतों को निर्धारित करने और उन्हें प्रभावित करने वाले निर्णयों को प्रभावित करने का अवसर शामिल है। सामाजिक परिवर्तन सामाजिक नीति और आर्थिक पहलों social policy and economic initiatives को विकसित करने में सार्वजनिक सरोकारों को शामिल करता है।विकास में गुणात्मक वृद्धि शामिल है। सामाजिक विकास उन्नति या प्रगति के लिए समाज की अवचेतन आकांक्षाओं से प्रेरित होता है।
समाज को एक ऐसा आकार देना जो सबके नज़रिए से एक जैसा ही दिखे, विकास को सही मायने में परिभाषित करता है। समाज से बुरे व्यवहार को दूर करके ही विकास को एक स्थिर घर प्रदान किया जा सकता है। जिसकी संगत में रहकर समाज नामक घर में हम स्वयं को सुनहरा भविष्य देते हैं।
आज के इस ब्लॉग में हम जानेगे की सामाजिक परिवर्तन और विकास किस तरह एक दूसरे से जुड़े हैं और सामाजिक परिवर्तन की विकास में भूमिका Role Of Social Change In Development कितनी महत्वपूर्ण है।
समाज मनुष्य द्वारा निर्मित वह घर है, जिसमें व्यक्ति अपनी आवश्यकतानुसार उसमें बने नियमों को परिवर्तित करता है। आवश्यकता पड़ने पर वह समाज की छत को नए रूप में ढालता है, ताकि उसके अंदर रहने वाले लोग सुरक्षित रह सकें। परन्तु इसके साथ यह ध्यान रखना भी ज़रूरी होता है कि उस छत को किन पदार्थों से निर्मित किया जा रहा है, क्योंकि हम तभी सही ढंग से समाज में परिवर्तन ला पाएंगे।
हम मानव विकास Human development को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। हमारे लिए हम विकास करके ही समाज का चेहरा बदल सकते हैं। यह तथ्य सत्य भी है, क्योंकि सामाज में नए रीति-रिवाजों का आगमन तभी होता है जब हम अपनी मानसिकता को विकसित करते हैं, अर्थात उसे सकारात्मकता की ओर ले जाते हैं।
विकास वास्तव में मानसिकता की बदली हुई सोच है, जो समाज में उपस्थित कुरीतियों को नष्ट करने के लिए प्रेरित करता है। यदि हम दुनिया में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा आवरण नहीं दे पा रहे हैं, जहां वह चैन की सांस ले सकें और आज़ादी से अपनी भावना को व्यक्त कर सकें, तो हम विकास की ओर अग्रसर नहीं है।
हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन तथा विकास एक दूसरे के पूरक हैं तथा एक-दूसरे के पर्यायवाची भी। सामाजिक परिवर्तन विकास का कारक बनता है तथा विकास सामाजिक परिवर्तन का। ऐसे कई साक्ष्य हैं जहां यह बात सिद्ध होती है। समाज का सकारात्मक दिशा positive direction of society में परिवर्तन तभी हुआ है, जब एक नई सोच ने जन्म लिया है।
हम चाहें हरित क्रांति green revolution की बात करें, श्वेत क्रांति white revolution की, नई तकनीकी के खोज की या फिर महिलाओं के उत्थान upliftment of women के लिए उठाए गए अनेक कदमों की, इन सब क्षेत्रों ने अपना रूप तब बदला, जब किसानों, जानवरों, विज्ञान तथा महिलाओं इत्यादि के लोगों ने अपना नज़रिया बदला। कुछ लोगों की बदली सोच ने विकास का रास्ता खोला, इसके पश्चात विकास ने अन्य लोगों की सोच को बदला।
हमें ऐसा समाज निर्मित करना है, जहां अधिक सक्षम होने का अस्तित्व तो रहे, परन्तु वह केवल अपने लिए नहीं, समाज हित के लिए हो। सामाजिक परिवर्तन केवल मनुष्यों से नहीं वातावरण से भी प्रभावित होता है। हमारा मन स्वच्छता के प्रति दृढ़ संकल्पित होना चाहिए।
गंदगी को प्रत्येक परिपेक्ष में समाज से पूर्ण रूप से नष्ट करना है। यह शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखेगा तथा विकास की परिभाषा को परिभाषित करने में मदद करेगा।
समाज को एक ऐसा आकार देना जो सबके नज़रिए से एक जैसा ही दिखे, विकास को सही मायने में परिभाषित करता है। समाज से बुरे व्यवहार को दूर करके ही विकास को एक स्थिर घर प्रदान किया जा सकता है। जिसकी संगत में रहकर समाज नामक घर में हम स्वयं को सुनहरा भविष्य देते हैं।
जब सामाजिक परिवर्तन की विकास में भूमिका की बात आती है तो सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का जिक्र न हो ये नहीं हो सकता है। क्योंकि शिक्षा का समाज पर पूर्ण रूप से प्रभाव पड़ता है और समाज शिक्षा के हर पक्ष को प्रभावित करता है। वैसे ही शिक्षा भी समाज के हर पक्ष को प्रभावित करती है। शिक्षा का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है जानते हैं -
हम सब जानते हैं कि शिक्षा परिवर्तन का साधन है। शिक्षा से ही समाज में परिवर्तन संभव है। समाज शुरू से लेकर आज तक निरन्तर विकसित होने के साथ साथ परिवर्तित होता रहा है। दरअसल शिक्षा ने समाज में लोगों के दृष्टिकोण को, नजरिये को, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाजों, तौर तरीकों पर असर डाला है और समाज को पूरी तरह बदल डाला है।
शिक्षा व्यक्ति के दृष्टिकोण में परिवर्तन change in person's attitude कर उसके क्रियाकलापों में परिवर्तन कर, अत्यव्यवस्था दूर कर उपयुक्त सामाजिक व्यवस्था का निर्माण creation of appropriate social order करती है।
शिक्षा समाज के प्रति लेागों को जागरूक बनाते हुये उसमें प्रगति का आधार बनाती है।
शिक्षा व्यवस्था जहां समाज से प्रभावित हेाती है वहीं समाज को परिवर्तित भी करती है जैसे कि स्वतंत्रता के पश्चात् सबके लिये शिक्षा एवं समानता के लिये शिक्षा हमारे मुख्य लक्ष्य रहे हैं इससे शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ और समाज का पुराना ढांचा परिवर्तन होने लगा। शिक्षा समाज का स्वरूप बदलकर उस पर नियंत्रण करती है।
शिक्षा समाज के व्यक्तियों को इस लायक बनाती है कि वह समाज में व्याप्त समस्याओं, कुरीतियों, गलत परम्पराओं के प्रति सचेत होकर उसकी आलोचना करते हैं और धीरे-धीरे समाज में परिवर्तन होता है।
शिक्षा ने जातिगत व लैंगिक असमानता को काफी हद तक दूर करने का प्रयास किया है।
आज शिक्षा समाज के सभी वर्गों के लिये अनिवार्य बनी है जिससे सामाजिक प्रगति एवं सुधार social progress and reform स्पष्ट नजर आ रहा है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हर एक चीज परिवर्तित होती रहती है, जैसे ऋतुएँ, जीव एवं उनका व्यवहार, समय, समाज, सोच, जीवित और निर्जीव हर वस्तु आदि। क्या परिवर्तन ही विकास है? हमारे चारो ओर हर एक पल कुछ न कुछ नया हो रहा है।
आदिकाल से मनुष्य को दूसरे के बारे में सोचना और उसकी नक़ल करना अच्छा लगता है। प्रतिस्पर्धा करना जैसे मनुष्यों की आदत बन गयी है। जिस तरह आवश्यकता अविष्कार की जननी है उसी तरह विकास की यही अवधारणा एक सामाजिक परिवर्तन की नीव बनती है।
यानि सामाजिक संघर्ष से उत्पन्न परिवर्तन भविष्य में उच्च विकास को प्राप्त करता है। यह एक सतत प्राकृतिक प्रक्रिया continuous natural process है। मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास भी इन सामाजिक परिवर्तनों पर निर्भर रहता है। मनुष्य का व्यक्तित्व भी समाज, देश तथा इतिहास के अमिट प्रेरणाओं की अभिव्यक्ति है ।
वर्तमान समय में तर्कशक्ति का विकास हो रहा है। प्रतिष्पर्धा अपने चरमसीमा पर है। अपने आप को श्रेष्ट साबित करने की होड़ लगी हुई है। लोग विकास की नयी उचाई प्राप्त कर रहें है। वहीं समाज का दूसरा हिस्सा देखें तो समाज में विघटन हो रहा है। स्वार्थी और विघटनकारी तत्व अधिक हैं। प्रेम, प्यार और जिम्मेदारियों की भावना कम हो रही है।
विज्ञान से हमें नयी-नयी उचाईयां प्राप्त हो रही है फिर भी हम सत्य बोलने से डरते हैं। क्या यही विकास है ये प्रश्न हर किसी के मन में है। यानि यह विकास तो है लेकिन इसके साथ नैतिक विकास moral development भी होना बहुत जरूरी है। तो हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन की विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
विज्ञान के साथ साथ अध्यात्म को भी हमें अपनाना होगा। हम सबको मिलकर समाज में फैली असमानता को दूर करके सबकी भलाई के साथ आगे बढ़ना होगा।
अपने अपने धर्म, सम्प्रदाय और वर्ग के महापुरुषों का लोग अनुसरण करते हुए अपने व्यक्तिव का विकास करते रहे हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे ।
सामाजिक परिवर्तन के कारक निम्न हैं -
1- सांस्कृतिक कारक (Cultural Factors)
2- आर्थिक कारक (Economic Factors)
3- जैविकीय कारक (Biological Factors)
सामाजिक परिवर्तन में कई कारक काम करते है जिनमें सांस्कृतिक, प्रौद्योगिक, जैविकीय, आर्थिक, भौगोलिक परिवेश सम्बन्धी, मनोवैज्ञानिक कारक मुख्य कारक हैं। ये सभी कारक परस्पर निर्भर हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं । ये सभी कारक मिलकर सामाजिक परिवर्तन उत्पन्न करते है।