हमारी उम्र चाहे जो भी हो, हमेशा हम अपने से पिछली पीढ़ी से सुनते हैं कि हमने तो यह देखा, यह अनुभव किया। जैसे कहीं न कहीं से उनके बाद वाली पीढ़ी ने कुछ न कुछ ऐसा नहीं देखा या अनुभूति नहीं की जो उनके समय में थी यह अंतर कुछ भी हो सकता है- हवा में ताज़गी का अंतर, वातावरण की हरियाली का अधिक होना या फिर किसी पुराने खूबसरत कुदरती स्थल की याद जो अब है ही नहीं।
ऐसा आखिर क्यों है कि हर नई पीढ़ी को कुछ नया, आधुनिक और वैज्ञानिक तरक्की तो मिल रही है किन्तु बहुत सारी प्राकृतिक उपलब्धियों से दूर होते जा रहे है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को पूरी पृथ्वी पर देखा और महसूस किया जा सकता है।
ग्लोबल वार्मिंग, पृथ्वी की सतह, महासागरों और वायुमंडल का क्रमिक ताप, मानव गतिविधि के कारण होता है, मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन का जलना जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को वायुमंडल में पंप करता है। इस ब्लॉग में हम ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों Effects of global warming पर गहराई से नजर डालेंगे ।
Global Warming एक बहुत बड़ी वैश्विक समस्या के रूप में उभरकर सामने आई है। हमारी उम्र चाहे जो भी हो, हमेशा हम अपने से पिछली पीढ़ी से सुनते हैं कि हमने तो यह देखा, यह अनुभव किया। जैसे कहीं न कहीं से उनके बाद वाली पीढ़ी ने कुछ न कुछ ऐसा नहीं देखा या अनुभूति नहीं की जो उनके समय में थी यह अंतर कुछ भी हो सकता है, हवा में ताज़गी का अंतर, वातावरण की हरियाली का अधिक होना या फिर किसी पुराने खूबसरत कुदरती स्थल की याद जो अब है ही नहीं। ऐसा आखिर क्यों है कि हर नई पीढ़ी को कुछ नया, आधुनिक और वैज्ञानिक तरक्की तो मिल रही है किन्तु बहुत सारी प्राकृतिक उपलब्धियों से दूर होते जा रहे हैं। इसके कई कारण हैं, आइये इन कारणों को समझने का प्रयास करते हैं-
ग्लोबल वार्मिंग जो कि आज के समय में बहुत ही प्रचलित शब्द बन चुका है। दरअसल धरती के वातावरण के तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। हम सब जानते हैं कि हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से उष्मा, गर्मी प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल Atmosphere से गुजरती हुईं धरती की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर पुन: लौट जाती हैं।
धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें greenhouse gases भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण या लेयर बना लेती हैं। यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन यानि मोटा होता जाता है। इस तरह यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और बस फिर इस तरह शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव।
हर साल बदलते मौसम, बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ वैज्ञानिक बल्कि हर कोई परेशान और हैरान है। दरअसल ग्लोबलवार्मिंग के कारण ही हर साल पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और मौसम में भी काफी परिवर्तन हो गया है, प्राकृतिक आपदाएं बढ़ती जा रही हैं। धीरे धीरे कई पेड़-पौधे व पशु-पक्षियों की बहुत सी प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं या फिर लुप्त होने की कगार पर हैं।
इस तरह कहीं पर सूखा है, कहीं बादल फटते हैं तो कहीं पर बाढ़ आ जाती है। आज लगभग हर देश ग्लोबलवार्मिंग के दुष्प्रभाव को झेल रहा है। यदि पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन इसी तरह लगातार होता रहा तो एक दिन मानव जाति के लिए खुद को बचाना मुश्किल हो जाएगा। चलिए जानते हैं ग्लोबल वार्मिंग के कुछ मुख्य प्रभाव के बारे में-
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से कई जीवों और पशुओं की प्रजाति विलुप्त हो गई है और साथ ही इसके प्रभाव से जीवों की कुछ ऐसी प्रजातियां है जो ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से विलुप्त होने की कगार पर हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण जल स्तर में अधिक वृद्धि होने के कारण बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं होने की संभावनाएं होती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान अधिक हो जाता है जिसके कारण बड़े-बड़े ग्लेशियर पिघलने लगते है और फिर इसके कारण से जल स्तर बढ़ जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग का हर किसी के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है जिससे लोगों को कोई न कोई बीमारी जरूर हो रही है।
ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी की सतह में तापमान में वृद्धि हो रही है जिसके कारण अत्यधिक तापमान होने से गर्मी अधिक लगती है और फिर कई शारीरिक एवं मानसिक रोग पैदा हो रहे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग तब होती है जब कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और अन्य वायु प्रदूषक वातावरण में एकत्र होते हैं और सूर्य के प्रकाश और सौर विकिरण को अवशोषित करते हैं जो पृथ्वी की सतह से उछले हैं। आम तौर पर यह विकिरण अंतरिक्ष में भाग जाता है, लेकिन ये प्रदूषक, जो वातावरण में वर्षों से सदियों तक रह सकते हैं, गर्मी को रोक लेते हैं और ग्रह को गर्म कर देते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के ये हैं मुख्य कारण:
ग्रीन हाउस प्रभाव (Greenhouse Effect) पृथ्वी की सतह को गर्मी प्रदान करता है और पृथ्वी में रहने वाले प्राणियों के लिए जीवन को संभव बनाता है। ग्रीन हाउस में शामिल गैसें जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड, मिथेन एवं जल वाष्प की मात्रा जब आवश्यकता से अधिक बढ़ने लगती है तो यह पृथ्वी में तापमान को अत्यधिक बढ़ा देता है जिसके कारण मौसम और पृथ्वी में रहने वाले सभी प्राणियों को हानि होती है इसलिए हम कह सकते हैं कि ग्रीन हाउस प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है।
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आज प्रदूषण की समस्या कितना व्यापक रूप ले चुकी है ये बताने की जरुरत नहीं है। कई प्रकार के प्रदूषण जैसे- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, विकिरण प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण Air pollution, Water pollution, Radiation pollution, Soil pollution, Noise pollution आदि प्रदूषणों की वजह से पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धि होती है।
इन प्रदूषणों के प्रभाव से पर्यावरण में असंतुलन की स्थिति पैदा हो गई है। जिसकी वजह से कई परेशानियां जैसे - जलवायु परिवर्तन Climate change, अत्यधिक गर्मी, बेमौसमी वर्षा आदि कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि प्रदूषण भी ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है।
आज मनुष्य आधुनिकीकरण के दौर में सब कुछ भूल चुका है। अपने सुख साधन के लिए वनों की अंधाधुध कटाई कर रहा है जो कि ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण बना हुआ है। दरअसल वनों के कटाव से वातावरण में ऑक्सीजन की कमी होती है और हानिकारक गैसें जैसे - कार्बन डाईऑक्साइड, मिथेन carbon dioxide, methane आदि की मात्रा बढ़ जाती है। फिर गैसों के प्रभाव के कारण तापमान में वृद्धि होती है। इसके कारण मौसम में परिवर्तन आते हैं। फिर तापमान में वृद्धि से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न होती है।
आधुनिकीकरण के चलते आज हमारे आसपास कई परिवर्तन हो गए हैं। जैसे मशीनीकरण, तकनीकीकरण, बड़े-बड़े कारखानों का निर्माण, बड़े बड़े उद्योगों का निर्माण आदि है। आधुनिकीकरण के कारण कई उपकरणों का निर्माण किया जा रहा है जिनसे कई खतरनाक गैसें निकलती हैं। ये घातक गैसें वायुमंडल को प्रदूषित करती हैं और इन गैसों के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है। इसलिए हम कह सकते हैं कि जरुरत से ज्यादा आधुनिकीकरण ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है।
जनसंख्या बढ़ने की वजह से आज कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जनसंख्या वृद्धि के कारण आवश्यकताएं भी बढ़ रही हैं। जिसके कारण मनुष्य ने प्रकृति का दोहन शुरू कर दिया। लगातार प्रकृति के संसाधनों के दोहन से सभी जीवों के लिए कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। इसी वजह से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है। यानि जनसंख्या का बढ़ना भी ग्लोबल वार्मिंग का एक कारण है।
जनसंख्या परिवर्तन वैश्विक समस्या के रूप में उभरी है, कारण बहुत से हो सकतें है क्योंकि प्रकृति के संसाधन असीमित होते हैं, पर उनकी अपनी वृद्धि और अपना विकास चक्र होता है, बहुत सारी भौगोलिक परिस्थियों के अनुसार, मानव जीवन अक्सर अपनी बाधाओं को पार कर परिस्थितियों को स्वयं के अनुसार ढाल लेता है और वह वातावरण बना लेता है कि उसे सहजता हो सके जैसे आजकल की माँग के अनुसार तरह-तरह के फर्नीचरों के कारण लकड़ियों का कटाव। साज-सज्जा की माँग के कारण ढेर सारे फूलों का सजावट में उपयोग बड़ी संख्या में होता है।
बढ़ती इच्छाओं और बढ़ती आवश्यकताओं के कारण यह पर्यावरण भी प्रदूषित होता जा रहा है। एक समय था जब सभी बैलगाड़ी पर निर्भर थे, पूरी तरह से गाँव की सड़कों और पगडंडियों पर चलने वाला साधन जिसे बैल खींचतें थे, तेज़ी चाहिए थी तो घोड़ागाड़ी भी हाज़िर थी।
इसके बाद और तेज़ी की चाहत हुई तो cars, मोटर आ गईं, धीरे-धीरे और आवश्यकता महसूस होने लगी तो और विदेशी गाड़ियाँ आई ,और प्रदूषण बढ़ने लगा, आसमान में नील की जगह काला रंग दिखाई पड़ने लगा। धीरे-धीरे लोगों ने प्रदूषण से बचाव के लिए चेहरे को कपड़े से ढकना और आँखों पर sunglasses लगाना शुरू कर दिया।
एक समय था जब सूर्य से मिली ऊर्जा का वर्णन किया जाता था पर अब प्रदूषण द्वारा बदलते समय के कारण इसी ऊर्जा से दूर रहने का प्रयास किया जा रहा है।
Ozone लेयर पृथ्वी पर एक तरह का आवरण बनए रखती है जो सूर्य की किरणों को बिना नुकसान पहुँचाएँ पृथ्वी पर आने देती है, इसकी पराबैगनी किरणों को सोखकर हम सभी को स्वास्थ्यवर्धक प्रकाश के सम्पर्क में रहने देती है। पिछले कई वर्षों में अत्यधिक बदलावों और प्रदूषण के कारण इस आवरण में छेद हो गया और यह छेद बढ़ता ही गया। विशषज्ञों के अनुसार यह global warming के दुष्प्रभाव का सबसे बड़ा संकेत था।
प्रकृति में ऐसी समस्या उत्पन्न होगी यह समझने वाले कई सारे कार्यकर्ताओं ने अथक परिश्रम किया है ,जैसे- 1972 में सर सुंदरलाल बहुगुणा द्वारा पेड़ों को बचाने के लिए चलाया गया चिपको आंदोलन, इसके अलावा नदियों, जल संरक्षण के लिए मेधा पाटेकर द्वारा चलाया गया अभियान और Greta thunberg भी प्रकृति संरक्षण कार्यकर्ता कार्यों में आगे हैं।
इसी बदलते माहौल के अनुसार कई सारी सौंदर्य उत्पादों ने अपने उत्पादों ने तो लोगों को इतना ज्ञान दे दिया है जितना कि शायद खुद भी आजकल की युवा पीढ़ी को न होगा जैसे कि high spf की sunscreen की बिक्री, हर cream में spf factor की मौजूदगी का दावा करना, यह कहना कि यही आपको आजकल के प्रदूषित वातावरण से बचाएगा, कहीं हद तक यह सही भी है क्योंकि यह समय की माँग के अनुसार ख़रीदा भी जा रहा है। ऐसे में इन चीज़ों की तरफ आधी जानकारी के साथ झुकाव बेहद खतरनाक है।
lockdown ही एक ऐसा समय था जब पूरी दुनिया ब्रेक पर थी। वाहन नहीं चल रहे थे, लोग अपने घरों में थे, भीड़भाड़ से रहित एक शांतिपूर्ण वातावरण था। पंछियों, पशुओं ने इस वातावरण को इतना enjoy किया कि हर तरफ इस आनंद की तस्वीरें छप रही थी और दुनिया ने साफ़ आसमान देखा, शिमला के पहाड़ दूर-दूर से नज़र आने लगे। प्रकृति का यह रूप जैसे हम सभी ने कभी अनुभव नहीं किया था क्योंकि इसे भी एक ब्रेक चाहिए था। इससे ग्लेबल वार्मिंग काफी हद तक बेहतर हुई है और सुधार आया है।
समाधान
अब लोग जागरूक हुए हैं, कई सारे लोग और संस्थान इसमें आगे आए हैं, जैसे MAMASEARTH का यह उद्देश्य कि आप जब भी उससे एक उत्पाद खरीदेंगें तो वह आपके नाम का एक पौधा लगाएगा। आप खुद भी अपने व्यक्तिगत जीवन global warming के दुष्प्रभाव को कम कर सकतें है ,जैसे आप खुद भी अपने घर, आस-पड़ोस में पेड़-पौधे लगाएं। यदि आपके पास समय हो तो eco freindly चीज़ों को जीवन में शामिल करें, गाड़ी की जगह साइकिल का प्रयोग करें इससे भी प्रदूषण रहित रहेंगे और प्रदूषण कम होगा आदि।
हम ऐसी ही eco friendly आदतों के बारे में फिर कभी ज़रूर बात करेंगे, तब तक आप global warming की प्रक्रिया को किस प्रकार से धीमा कर सकतें है, यह सोचिये।