हम सब जानते हैं कि हमारे देश का इतिहास वैज्ञानिक खोजों का साक्षी रहा है। उनकी वो खोजें देश के गौरवपूर्ण इतिहास का बखान करती है। उनके उस योगदान को अनंत काल तक हमेशा याद किया जाएगा और इन्हीं गौरवशाली लोगों में से एक थे सत्येंद्र नाथ बोस। गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) का गणित और भौतिकी के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है। उन्हें क्वांटम फिजिक्स में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। क्वांटम फिजिक्स में उनके अनुसन्धान ने “बोस-आइंस्टीन स्टेटिस्टिक्स” और “बोस-आइंस्टीन कंडनसेट’ सिद्धांत की आधारशिला रखी। भौतिक शास्त्र में दो प्रकार के अणु माने जाते हैं-बोसाॅन और फर्मीआन। इनमें से बोसाॅन गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) के नाम पर ही रखा गया है। भारतीय वैज्ञानिक बोस के नाम को भौतिकी में अमिट रखने के लिए यह नाम दिया गया है। सत्येन्द्र नाथ बोस एक ऐसे भारतीय वैज्ञानिक थे जिसका लोहा स्वयं अल्बर्ट आइन्स्टाइन भी मानते थे।
भारत देश की इस पावन धरती में कई ऐसे महान पुरुष पैदा हुए हैं जिन्होंने अपने अमूल्य योगदान से आने वाली पीढ़ी को धन्य किया है। उन्हीं में से एक हैं सत्येन्द्र नाथ बोस। उन्होंने जो कुछ भी हमें दिया है हम उनके उस योगदान के सदैव ऋणी रहेंगे और उसके लिए उन्हें युगों-युगों तक उन्हें याद किया जायेगा। सत्येन्द्र नाथ बोस एक उत्कृष्ट गणितज्ञ और भारतीय भौतिक वैज्ञानिक Outstanding Mathematician and Indian Physicist थे। उन्हें क्वांटम फिजिक्स quantum physics में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) का गणित और भौतिकी के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है। सत्येंद्र नाथ बोस स्कूल में अध्ययन के दौरान से ही प्रतिभाशाली थे। सत्येन्द्र नाथ बोस (SATYENDRA NATH BOSE) महान वैज्ञानिक आइन्सटीन Great Scientist Einstein से अत्यंत प्रभावित थे। वे हमेशा आइन्सटीन को अपना गुरु मानते थे। बोस को भारत का आइंस्टीन Einstein of India कहा जाता है। चलिए आज इस लेख में इस महान गणितज्ञ और भौतिक शास्त्री के बारे में विस्तार से जानते हैं।
सत्येन्द्र नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 को कोलकाता Kolkata में हुआ था। उनके पिता सुरेन्द्र नाथ बोस Surendra Nath Bose ईस्ट इंडिया रेलवे के इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत थे। सत्येन्द्र नाथ बोस अपने सात भाइयों-बहनों में सबसे बड़े थे। 1914 में, 20 साल की उम्र में, सत्येंद्र नाथ बोस ने कलकत्ता चिकित्सक की 11 वर्षीय बेटी उषाबाती घोष से शादी की। उनके नौ बच्चे थे, जिनमें से दो का बचपन में ही देहांत होगया। बोस का पैतृक घर बंगाल प्रेसीडेंसी में, नादिया के तत्कालीन जिले, बारा जगुलिया गाँव में था। उनकी स्कूली शिक्षा पांच साल की उम्र में, उनके घर के पास एक सामान्य स्कूल से शुरू हुई। उसके बाद उन्होंने न्यू इंडियन स्कूल और फिर हिंदू स्कूल Hindu School, में दाखिला लिया। फिर अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज Presidency Colleges of Kolkata में दाखिला लिया और वे कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में इंटरमीडिएट साइंस कोर्स में शामिल हो गए, जहाँ उनके शिक्षकों में जगदीश चंद्र बोस, शारदा प्रसन्न दास और प्रफुल्ल चंद्र रे Jagdish Chandra Bose, Sharda Prasanna Das and Prafulla Chandra Ray शामिल थे।
बोस ने अपने बीएससी के लिए अनुप्रयुक्त गणित (applied mathematics) को चुना और 1913 में प्रथम स्थान से परीक्षा पास की। उन्होंने इसके बाद सर आशुतोष मुखर्जी Sir Ashutosh Mukherjee के नवगठित साइंस कॉलेज में दाखिला लिया। उन्होंने 1915 में एमएससी अनुप्रयुक्त गणित (applied mathematics) की परीक्षा भी प्रथम स्थान से पास की। एमएससी की परीक्षा में उन्हें बहुत अच्छे मार्क्स मिले थे तब कलकत्ता विश्वविद्यालय के इतिहास में एक नया रिकॉर्ड बना था। वो अपनी सभी परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक पाते थे और उन्हें प्रथम स्थान मिलता था। बचपन से ही उनकी कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभा को देख कर हर कोई यही कहता था कि वो आगे जाकर बड़े गणितज्ञ या वैज्ञानिक बनेंगे। एक बार गणित के शिक्षक ने श्री बोस को 100 में से 110 अंक दिये थे। दरअसल इन्होंने सभी सवालों को हल करने के साथ-साथ कुछ सवालों को एक से ज़्यादा तरीक़े से हल किया था। सत्येन्द्र नाथ बोस पढ़ाई में हमेशा से ही अच्छे थे, विशेष तौर से गणित में बहुत कुशाग्र थे।
बहुभाषाविद के रूप में, बोस को कई भाषाओं जैसे बंगाली, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन और संस्कृत के साथ-साथ लॉर्ड टेनिसन, रवींद्रनाथ टैगोर और कालीदास की कविता में भी पारंगत किया गया था।
सत्येन्द्र नाथ बोस ने मैथमेटिक्स से एमएससी में सर्वोच्च अंकों के साथ डिग्री हासिल की, जो एक रिकॉर्ड है। इसके बाद कॉलेज के प्रिंसिपल सर आशुतोष मुखर्जी ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें कॉलेज में फिजिक्स का लेक्चरर physics lecturer नियुक्त किया। बाद में वह वर्ष 1921 में ढाका विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग के रीडर Reader of the Department of Physics at Dhaka University के तौर पर शामिल हुए। उन्होंने यहीं पर प्रयोगशाला विकसित की और कई प्रयोग किए। यह समय भौतिक विज्ञानं में नई-नई खोजों का था। जर्मनी के भौतिकशास्त्री मैक्स प्लैंक ने क्वांटम सिद्धांत German physicist Max Planck developed quantum theory का प्रतिपादन किया था। जर्मनी में ही अल्बर्ट आइंस्टीन ने “सापेक्षता का सिद्धांत” Albert Einstein "Theory of Relativity" in Germany प्रतिपादित किया था। सत्येन्द्रनाथ बोस अपनी कुशाग्र बुद्धि के साथ इन सभी खोजों पर अध्ययन और अनुसन्धान कर रहे थे।
सत्येन्द्रनाथ ने “प्लैंक’स लॉ एण्ड लाइट क्वांटम” "Planck's Law and Light Quantum" नाम का एक शोधपत्र लिखा और जब इस शोधपत्र को उन्होंने एक विदेशी पत्रिका (ब्रिटिश जर्नल) में प्रकाशन हेतु भेजा। विदेशी पत्रिका ने उनके शोध पत्र को प्रकाशित करने से मना कर दिया। लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। उन्हें अपने शोधकार्य पर पूरा भरोसा था। इसके बाद उन्होंने उसे सीधे महान वैज्ञानिक आइंस्टीन को भेज दिया। बस यहीं से उनके जीवन में नया मोड़ आया। आइन्स्टीन उनके कार्य से बहुत ही प्रभावित हुए। आइन्स्टीन ने इसकी अहमियत को समझा और कहा कि यह पत्र गणित के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान है और उसका जर्मन भाषा में अनुवाद कर ‘जीट फर फिजिक’ Zeit Fur Physik नामक जर्नल में प्रकाशित कराया। महान वैज्ञानिक आइन्सटीन का नाम उस शोध पत्र से जुड़ते ही विश्व के कई पत्र-पत्रिका में उनका शोधपत्र प्रकाशित हुआ। इसके बाद सत्येन्द्रनाथ बोस का नाम पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। अपनी विदेश यात्रा के दौरान इन्होंने आइन्सटीन से मुलाकात भी की। इन दोनों महान वैज्ञानिकों ने अनेक सिद्धांतों पर साथ-साथ कार्य किया। इस महान वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बोस को मैडम क्यूरी Madam Curie के साथ भी काम करने का मौका मिला।
बोस ने क्वांटम फिजिक्स को एक नई दिशा दी। वैज्ञानिकों के द्वारा पहले यह माना जाता रहा कि परमाणु ही सबसे छोटा कण होता है लेकिन जब इस बात की जानकारी पता चली कि परमाणु के अंदर भी कई सूक्ष्म कण होते हैं जो कि वर्तमान में प्रतिपादित किसी भी नियम का पालन नहीं करते हैं। तब डॉ बोस ने एक नए नियम का प्रतिपादन किया जो “बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी सिद्धांत” Bose-Einstein Statistical Theory अर्थात बोस-आइंस्टीन स्टेटिस्टिक्स के नाम से जाना जाता है। उच्च कक्षाओं में भौतिकी और गणित का अध्ययन करने वाले सभी विद्यार्थी बोस-आइन्स्टीन सांख्यिकी (Bose-Einstein Statistics) का अध्ययन करते हैं।
इस नियम के बाद वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म कणों पर बहुत रिसर्च किया। जिसके बाद यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु के अंदर पाए जाने वाले सूक्ष्म परमाणु कण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं जिनमें से एक का नाम डॉ बोस के नाम पर ‘बोसॉन’ Boson रखा गया तथा दूसरे का एनरिको फर्मी के नाम पर ‘फर्मीऑन’ 'Fermions' रखा गया।
आज भौतिकी में कण दो प्रकार के होते हैं एक बोसॉन और दूसरे फर्मियान। बोसॉन यानि फोटॉन, ग्लुऑन, गेज बोसॉन (फोटोन, प्रकाश की मूल इकाई) और फर्मियान यानि क्वार्क और लेप्टॉन एवं संयोजित कण प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन proton, neutron, electron ( चार्ज की मूल इकाई)। यह वर्तमान भौतिकी का आधार the basis of physics हैं।
भारत मे क्रिस्टल विज्ञान की दुनियाँ में बोस का उल्लेखनीय योगदान माना जाता है। उन्होंने शोध कार्य के लिए ढाका विश्वविद्यालय में x ray crystal लैब का निर्माण करवाया। सत्येन्द्र नाथ बोस की खोज गणित के सांख्यिकी पर आधारित था। महान भारतीय वैज्ञानिक मेधनाथ साहा Indian scientist Medhanath Saha के साथ मिलकर गैसों की स्थिति से संबंधित समीकरण विकसित किये।
सत्येंद्र नाथ बोस की बुद्धिमता को आइंसटाइन जैसे वैज्ञानिक ने न सिर्फ स्वीकारा बल्कि उसके साथ अपना नाम भी जोड़ा यह वास्तव में बहुत बड़ी बात है।
सत्येन्द्र नाथ बोस की स्मृति में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रत्येक वर्ष “सत्येन्द्र नाथ स्मारक पुरस्कार” Satyendra Nath Memorial Award प्रदान किया जाता है।
सत्येंद्र नाथ बोस के सम्मान में प्रतिवर्ष विज्ञान के छात्रों को एसएन बोस स्कॉलरशिप (SN Bose Scholarship) दिया जाता है।
इनके नाम पर एक सूक्ष्म परमाणु कण का नाम “बोसॉन” रखा है
विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुएवर्ष 1954 में उन्हें भारत सरकार ने देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्मविभूषण’ Padma Vibhushan से सम्मानित किया था।
सत्येन्द्र नाथ बोस को लंदन के रॉयल सोसाइटी अपना फैलो(सदस्य) मनोनीत किया।
सन 1959 में उन्हें भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय प्रोफेसर‘ National Professor की उपाधि से अलंकृत किया।
वर्ष 1937 में कवि रबींद्रनाथ टैगोर Poet Rabindranath Tagore ने विज्ञान पर एक पुस्तक लिखी, जो सत्येंद्र नाथ बोस को समर्पित थी, जिसका शीर्षक था – “विश्व परिचय“।
वे “इंडियन फिजिकल सोसाइटी” और “नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के प्रेसीडेंट” Indian Physical Society” and “President of National Institute of Science भी रहे।
सत्येन्द्र नाथ बोस वैज्ञानिक के साथ-साथ राजनेता भी थे। भारत सरकार ने उन्हें राज्य सभा के सदस्य चुना। वे सन 1952 से 1956 तक राज्य सभा के सदस्य रहे।
भारत सरकार ने सत्येन्द्र नाथ बोस के सम्मान में सन 1986 में कलकता में ‘एस अन बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज‘ S N Bose National Center for Basic Sciences की स्थापना भी की।
जिस व्यक्ति के साथ आइंसटाइन जैसे वैज्ञानिक का नाम जुड़ा है उस व्यक्ति को नोबेल पुरस्कार न मिलना अपने आप में काफ़ी सवाल खड़े करता है लेकिन उनका योगदान किसी नोबेल प्राप्तकर्ता वैज्ञानिक से कम नहीं था।
सत्येन्द्र नाथ बोस 1924 में यूरोप गए। बोस एक वर्ष पेरिस में भी रहे। बोस ने सोचा कि क्यों न ‘रेडियोधर्मिता’ radioactivity के बारे में ‘मैडम क्यूरी’ Madam Curie' से तथा ‘मॉरिस डी ब्रोग्ली’ से ‘एक्स-रे’ के बारे में बात की जाए। बोस ने मैडम क्यूरी की प्रयोगशाला में कुछ जटिल गणितीय गणनाएँ कीं। बोस ने ब्रोग्ली से इन्होंने एक्स-रे की नई तकनीकों के बारे में सीखा।
फिर अक्टूबर, 1925 में बोस ने बर्लिन जाने का विचार बनाया जिससे वे आइंस्टाइन से मिल सकें। लेकिन उस वक्त आइंस्टाइन से उनकी मुलाकात नहीं हुई। क्योंकि आइंस्टाइन शहर से बाहर गए हुए थे लेकिन कुछ समय के बाद आइंस्टाइन वापस आए और बोस से मुलाकात की। बोस उनसे मिलकर अत्यंत प्रसन्न हुए थे। उन्होंने सत्येन्द्र नाथ बोस से काफी बातें की। उन्होंने पूछा कि आपको एक नई सांख्यिकी का विचार कैसे आया और इसका क्या महत्त्व है आदि। उनसे बोस को कई चीज़ें सीखने को मिली। कुल मिलाकर सत्येन्द्र नाथ बोस के अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों से संबंध काफी अच्छे थे जिनके अनुभव से बोस ने काफी कुछ सीखा और इन सबके साथ बोस का अनुभव अच्छा रहा।
सत्येन्द्र नाथ बोस कला और संगीत प्रेमी थे। बोस के संगीत प्रेम का दायरा काफी फैला हुआ था। यह लोक संगीत, भारतीय संगीत से लेकर पाश्चात् संगीत तक फैला हुआ था। जितना उनका मोह विज्ञानं और गणित से था उतना ही संगीत से। उनके कमरे में आइंस्टीन, रमन आदि वैज्ञानिकों के चित्र और किताबों के साथ-साथ एक वाद्य यंत्र इसराज भी होता था। बोस इसराज और बांसुरी को किसी एक्सपर्ट की तरह बजाया करते थे। उन्हें संगीत से खासा लगाव था।
सत्येन्द्र नाथ बोस की प्रेरणा की बात करें तो आइंस्टाइन ही उनकी प्रेरणा थे। बोस को आइंस्टाइन से आगे बढ़ने के लिए काफी प्रोत्साहन मिलता था। कहा जाता है कि जब बोस को आइंस्टाइन की मृत्यु का समाचार मिला था तो वह काफी भावुक हुए थे और यहाँ तक कि ये समाचार सुनकर रो पड़े थे। आइंस्टाइन को बोस एक ऐसे वैज्ञानिक के रूप में देखते थे जिनकी कोई बराबरी नहीं कर सकता था। उन्हें वो भगवान की तरह पूजनीय मानते थे।
सत्येंद्र नाथ बोस वृद्धावस्था में साधुओं जैसी वेशभूषा में देश के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों का दौरा करते रहे और अपने विचारों से वैज्ञानिकों को कुछ न कुछ सिखाते रहे। सन 1974 में बोस के सम्मान में कलकत्ता विश्वविद्यालय ने एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया था । उस संगोष्ठी में देश-विदेश के कई वैज्ञानिक सम्मिलित हुए। इस अवसर उन्होंने कहा यदि एक व्यक्ति अपने जीवन के अनेक वर्ष संघर्ष में व्यतीत कर देता है और अंत में उसे लगता है कि उसके कार्य को सराहा जा रहा है तो फिर वह व्यक्ति सोचता है कि अब उसे और अधिक जीने की आवश्यकता नहीं है और उसके बस कुछ दिनों बाद इस महान वैज्ञानिक का निधन 4 फरवरी, 1974 को कोलकाता में हुआ।