स्वतंत्रता दिवस 2023 Independence Day 2023 : 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस एक विशेष दिन है जब लोग भारत के सभी स्वतंत्रता सेनानियों या आजादी के लिए लड़ने वाले नेताओं पर ध्यान देते हैं या उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।
भारत इस वर्ष ब्रिटिश शासन से अपनी आजादी का 77वां साल मनाएगा 77th Anniversary Of Independenc बीते वर्ष 2022 में भारत ने ब्रिटिश शासन से अपनी आजादी के 76 साल 76th Anniversary Of Independence पूरे किये थे। भारत की स्वतंत्रता देश के उन अविस्मरणीय वीरों के अथक प्रयासों का परिणाम है जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राण भी न्यौछावर कर दिए।
सबने अपने अपने तरीके से आज़ादी के संग्राम में अपनी भूमिका निभायी और भारत को आजाद कराने में अपना योगदान दिया । ऐसी ही एक अमर आत्मा हैं जिसे लोग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते है ।
महात्मा गांधी का मानना था कि किसी को जीतने के लिए हिंसा नहीं बल्कि अहिंसा का मार्ग चुनना चाहिए। गांधी जी ने अहिंसा और सत्य Truth and Non-violence को हिंसा के खिलाफ लड़ने के लिए दो सबसे अहम हथियार बताया।
असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, चंपारण आंदोलन जैसे स्वतंत्रता आंदोलनों के माध्यम से वह हमेशा मानवाधिकारों के लिए खड़े रहे।
बापू ना सिर्फ पिछड़ी पीढ़ी के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अपनी विचारधारा की वजह से एक सच्ची प्रेरणा है। बापू ने यह सीख दी कि अहिंसा, सत्य, और सहिष्णुता समाज कल्याण के सबसे बड़े हथियार हैं।
महात्मा गांधी का आजादी संग्राम में योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम Contribution of Mahatma Gandhi in India's independence के इतिहास में अमूल्य माना जाता है।
उनके द्वारा शुरू की गई आंदोलनों और विचारों ने देश को स्वतंत्रता की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
आज भी महात्मा गांधी के मूल्यों और विचारों का महत्व है और हमें उनकी आदर्शों का पालन करके देश की उन्नति के पथ में आगे बढ़ना चाहिए।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन Indian Independence Movement में महात्मा गांधी Mahatma Gandhi के महात्मा गांधी के योगदान का वर्णन करने लगे, तो शब्द कम पड़ जाएंगे।
देश अंग्रेजों से परेशान था, देशवासियों को अंग्रेजों के प्रति गुस्सा था लेकिन फिर भी गांधी जी ने अहिंसा Ahimsa की मदद से देश को आज़ादी दिलाई। 1919 से 1948 तक भारतीय राजनीतिक मंच पर गांधी जी कुछ इस तरह छाए कि इस युग को गांधी युग Gandhi Yug (1919-1948) कहा जाता है।
महात्मा गाँधी के योगदान Mahatma Gandhi ka Yogdan की बात करें तो गांधी जी ने अहिंसा और सत्य Truth and Non-violence को हिंसा के खिलाफ लड़ने के लिए दो सबसे अहम हथियार बताया। असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, चंपारण आंदोलन जैसे स्वतंत्रता आंदोलनों के माध्यम से वह हमेशा मानवाधिकारों के लिए खड़े रहे।
बापू ना सिर्फ पिछड़ी पीढ़ी के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अपनी विचारधारा की वजह से एक सच्ची प्रेरणा है। बापू ने यह सीख दी है कि अहिंसा, सत्य, और सहिष्णुता समाज कल्याण के सबसे बड़े हथियार हैं।
जब अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए गांधी जी विदेश गए थे, तभी वह यह समझ गए थे कि अंग्रेजों के शासन की वजह से भारतीयों का जीवन बेहद कष्टदायक हो गया है। भारतीयों के पास अंग्रेजों को हराने के लिए कोई विशेष शक्ति नहीं थी और इसीलिए उन्हें अपमान भरा जीवन बिताना पड़ रहा था लेकिन गांधी जी को ये मंजूर नहीं था।
कम ही लोग जानते हैं कि सत्याग्रह Satyagraha की शुरुआत गांधी जी ने सबसे पहले भारत में नहीं बल्कि दक्षिण अफ्रीका में की थी और दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने से पहले ही भारतवासी गांधी जी को जान चुके थे। गांधी जी लंबे समय तक दक्षिण अफ्रीका में रहे और इसी बीच कभी-कभी वह भारत भी आते थे।
उनका गोपाल कृष्ण गोखले Gopal Krishna Gokhale और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक Bal Gangadhar Tilak जैसे महान नेताओं से घनिष्ठ परिचय था।
ऐसा कहा जाता है कि जब आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तो आपका जीवन अपने आप ही बदल जाता है क्योंकि कठिनाइयों हमें बहुत कुछ सीखाती हैं। ऐसा ही कुछ गांधी जी के साथ भी हुआ था। दरअसल, बात 1893 की है जब मोहनदास करमचंद गाँधी, दादा अब्दुल्ला नामक व्यापारी के विधि सलाहकार के रूप में काम करने के लिए डरबन गए थे।
वहां उन्होंने देखा कि भारतीयों और ब्लैक अफ्रीकंस के साथ जातीय भेदभाव Racial Discrimination होता है। वह अफ्रीका काम करने के लिए गए थे लेकिन यहां कई बातों ने उनका जीवन पूरी तरह से बदल दिया। एक बार न्यायालय के दंडाधिकारी ने उन्हें अपनी पगड़ी निकालने को कहा था लेकिन उन्होंने ऐसा करने से साफ मना कर दिया और वह न्यायालय से बाहर आ गए।
31 मई, 1893 को प्रिटोरिया जाने के दौरान भी गांधी की को जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ा। दरअसल, एक श्वेत व्यक्ति को गांधी जी के ट्रेन के प्रथम श्रेणी में यात्रा करने से आपत्ति थी और उसने गांधी जी को ट्रेन के अंतिम डिब्बे में जाने को कहा जिसपर गांधी जी ने अपना प्रथम श्रेणी का टिकट दिखाया और ट्रेन के अंतिम डिब्बे में सफर करने से साफ मना कर दिया। हद तो तब हो गई जब उन्हें पीटमेरित्जबर्ग रेलवे स्टेशन पर उतार दिया गया।
उस वक्त शर्दी का मौसम था और गांधी जी अगली ट्रेन की प्रतीक्षा में ठंड से ठिठुरते रहे और उन्होंने उसी समय यह निर्णय लिया कि जातीय भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष करेंगे। गांधी जी ने अहिंसात्मक रूप से अपना विरोध जताया, जिसे सत्याग्रह के नाम से जाना गया। आज भी उस शहर के चर्च स्ट्रीट में गांधी जी की कांस्य मूर्ति है।
बिहार के चंपारण जिले में तिनकथिया प्रथा के चलते किसानों को नील की खेती करनी पड़ रही थी और उनकी स्थिति दिन-ब-दिन दयनीय होती जा रही थी। दरअसल, किसानों को अपनी जमीन के सबसे उपजाऊ 3/20 वें हिस्से पर नील की खेती करनी पड़ती थी और उस नील को बेहद ही सस्ते दामों पर अंग्रेजों को बेचने के लिए मजबूर किया जाता था। सिर्फ इतना ही नहीं उन्हें अंग्रेजों को भारी टैक्स भी देना पड़ता था और खराब मौसम के चलते किसानों की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी।
किसान नील की खेती करने के लिए भारी भरकम कर्ज़ लेते थे और नील को बेचने पर उन्हें जो कीमत मिलती थी, वह बेहद कम थी। नील की खेती करने से एक और बड़ी समस्या थी। जिस खेत पर नील उगाया जाता है, वह भूमि बंजर हो जाती है और इसके बाद वह जमीन इतनी उपजाऊ नहीं रहती कि आप उस भूमि पर कुछ और उगा पाओ।
अंग्रेज इस बात को बखूबी जानते थे इसीलिए वह भारत में नील की खेती करवाते थे और यहां के किसानों से बहुत ही कम दाम में नील खरीदते थे। अंग्रेजों के इस मनमानेपन के कारण चंपारण के किसान बेहद परेशान थे। इन्हीं कारणों के चलते राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी से मुलाकात की और उन्हें चंपारण आने के लिए आमंत्रित किया।
गांधी जी ने किसानों की सारी समस्या सुनी और भारत में पहली बार सविनय अवज्ञा आंदोलन Civil Disobedience Movement का रुख अपनाया। जमींदारों के खिलाफ हड़ताल और प्रदर्शन किए और सरकार ने चंपारण कृषि समिति का गठन किया। इस कृषि समिति में गांधी जी भी थे। फिर क्या, गांधी जी को यहां सफलता मिली और किसानों की सभी मांगे मान ली गईं और भारत में सत्याग्रह सफल रहा।
1918 की बात है जब गुजरात के खेड़ा नामक गांव में बाढ़ आ गई थी और इससे परेशान होकर वहां के किसानों ने शासकों से टैक्स माफ करने की अपील की थी। गांधी जी ने हस्ताक्षर अभियान शुरू किया और स्थानीय किसानों ने टैक्स का भुगतान ना करने का संकल्प लिया।
ब्रिटिश सरकार ने किसानों की मांगों को माना और कर को कम किया। इस आंदोलन में बापू का साथ इंदुलाल याज्ञनिक और सरदार वल्लभभाई पटेल ने भी दिया था।
महत्वपूर्ण बिंदु : Important Points
1. परिचय: 1918 की बात है, गुजरात के खेड़ा गांव में बाढ़ की चुनौती से निपटने के लिए वहां के किसानों ने एक महत्वपूर्ण आंदोलन की शुरुआत की थी, जिसे 'खेड़ा आंदोलन' या 'खेड़ा मूवमेंट' कहा जाता है।
2. बाढ़ की परिस्थितियाँ: आंदोलन की शुरुआत में, गुजरात के खेड़ा गांव में बाढ़ के कारण किसानों की समस्या बढ़ी थी। बाढ़ के प्रभावों से प्रभावित होने के बावजूद, उन्हें शासकों द्वारा आपातकालीन टैक्सों का भुगतान करना पड़ रहा था।
3. गांधी जी का आग्रह: महात्मा गांधी ने इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए 'हस्ताक्षर अभियान' की शुरुआत की, जिसमें वे खेड़ा के किसानों को टैक्स का भुगतान न करने की सलाह दी।
4. किसानों का संकल्प: किसानों ने महात्मा गांधी के प्रेरणास्त्रोत में टैक्स का भुगतान न करने का संकल्प लिया और आंदोलन का समर्थन किया। उन्होंने अपने हक की रक्षा के लिए साहसपूर्ण कदम उठाए।
5. सरकार की प्रतिक्रिया: खेड़ा आंदोलन ने गांधी जी की नेतृत्व में अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफलता प्राप्त की। ब्रिटिश सरकार ने किसानों की मांगों को मानकर टैक्स में कमी की और उनकी आपातकालीन स्थितियों का समाधान किया।
खेड़ा आंदोलन ने गुजरात के किसानों के संघर्ष को महात्मा गांधी की नेतृत्व में एकजुट किया और उन्हें उनके अधिकार की रक्षा करने की प्रेरणा दी। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण चरणों में से एक रहा है।
1920 में असहयोग आंदोलन को शुरू करने के पीछे जलियावालां बाग हत्याकांड Jallianwala Bagh Massacre 13 April,1919 एकमात्र कारण था। 13 अप्रैल, 1919 में जो भी हुआ उसने बापू की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया था।
गांधी जी ये जानते थे कि असहयोग आंदोलन को शुरू करने का इससे अच्छा वक्त नहीं है क्योंकि भारतीयों के मन में अंग्रेजों को लेकर काफी क्रोध भरा हुआ है। गांधी जी का ये मानना था कि शांतिपूर्ण तरीके से असहयोग आंदोलन का पालन करना ही देश को आज़ादी के करीब ले जा पाएगा।
जैसा गांधी जी ने सोचा था वही हुआ और असहयोग आंदोलन ने रफ्तार पकड़ ली। भारतीयों ने अंग्रेजों द्वारा संचालित किए गए स्कूल, कॉलेज और सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया।
इस आंदोलन की शुरुआत 1 अगस्त, 1920 को हुई थी लेकिन फरवरी 1922 में चौरी-चौरा घटना हुई और गांधी जी ने इस आंदोलन को स्वयं ही समाप्त कर दिया। चौरी-चौरा, उत्तर प्रदेश की घटना में 22 पुलिस अधिकारियों को जिंदा जला दिया गया था।
महत्वपूर्ण बिंदु : Important Points
1. परिचय: असहयोग आंदोलन (1920) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसमें गांधी जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग की मानवाधिकारों की रक्षा के रूप में अपनाया।
2. आंदोलन की शुरुआत: यह आंदोलन 1920 में शुरू हुआ था, जब गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग की आवश्यकता को महत्वपूर्ण बताया।
3. नमक सत्याग्रह: असहयोग आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा था नमक सत्याग्रह, जिसमें महात्मा गांधी ने नमक की आवश्यकता को प्रमुखता दी और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग का प्रतीक रूप दिखाया।
4. शिक्षकों और छात्रों की भागीदारी: इस आंदोलन में शिक्षकों और छात्रों ने भी भागीदारी दिखाई और वे ब्रिटिश सरकार की अशिक्षा प्रणाली के खिलाफ असहयोग करने का संकल्प लिया।
5. स्वदेशी आंदोलन: असहयोग आंदोलन ने स्वदेशी आंदोलन को भी बढ़ावा दिया, जिसमें भारतीय उत्पादों का प्रयोग करने की आवश्यकता को बताया गया और ब्रिटिश वस्त्रों के बहिष्कार की अपील की गई।
असहयोग आंदोलन (1920) ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीयों की एकता और आवश्यकताओं की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और गांधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम की मोटी
अंग्रेजी शासन में भारतीयों को नमक बनाने की इजाज़त नहीं थी और इसीलिए हर भारतीय को इंग्लैंड से आया हुआ नमक इस्तेमाल करना पड़ता था। यहां तक तो फिर भी ठीक था लेकिन अंग्रेजों ने नमक पर कई गुना टैक्स लगा दिए थे। नमक एक आवश्यक वस्तु है और नमक पर लगे इस टैक्स को हटाने के लिए गांधी जी ने नमक सत्याग्रह चलाया था।
नमक सत्याग्रह को दांडी मार्च, नमक मार्च और दांडी सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है।
महत्वपूर्ण बिंदु : Important Points
1. परिचय: ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीयों को अपने ही देश में नमक बनाने की आजादी नहीं थी, और उन्हें अंग्रेजों के द्वारा लगाए गए टैक्स के कारण इंग्लैंड से आया हुआ नमक खरीदना पड़ता था।
2. नमक पर टैक्स: अंग्रेजों ने नमक पर अत्यधिक टैक्स लगाने के बाद भारतीयों को नमक के मामले में भारी बोझ उठाना पड़ रहा था। नमक, जो एक आवश्यक आहारिक सामग्री है, के लिए यह टैक्स सहन करने लगा था।
3. नमक सत्याग्रह का आयोजन: महात्मा गांधी ने नमक के टैक्स को हटाने के लिए 'नमक सत्याग्रह' का आयोजन किया, जिसमें वे स्वयं नमक बनाने का संकल्प लेने के लिए लोगों को प्रेरित करने लगे।
4. दांडी मार्च: नमक सत्याग्रह को 'दांडी मार्च', 'नमक मार्च' और 'दांडी सत्याग्रह' के नामों से भी जाना जाता है। महात्मा गांधी ने 12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम से रवाना होकर सैर की शुरुआत की थी और इससे वे 24 दिनों तक चलने वाले इस सत्याग्रह की अगुआई करने लगे।
नमक सत्याग्रह ने भारतीयों की एकता को मजबूत किया और गांधी जी के नेतृत्व में यह सत्याग्रह ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण चरण बन गया। इससे निष्कलंक स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ।
अगस्त, 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन Quit India Movement की शुरुआत की और इस आंदोलन से अंग्रेजों को भारत छोड़ कर जाने के लिए मजबूर किया गया था।
महत्वपूर्ण बिंदु : Important Points
1. परिचय: अगस्त, 1942 के महीने में, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में, महात्मा गांधी जी ने 'भारत छोड़ो आंदोलन' की शुरुआत की। यह आंदोलन अंग्रेजों के शासन के खिलाफ भारतीयों के विरोध का एक और प्रमुख प्रतीकवाद था।
2. आंदोलन का उद्देश्य: भारत छोड़ो आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य था भारत को अंग्रेजों के शासन से मुक्त करना। महात्मा गांधी जी ने इस आंदोलन के माध्यम से भारतीयों को सशक्त करने का प्रयास किया और उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ सामूहिक आंदोलन में भाग लेने की प्रेरणा दी।
3. आंदोलन की प्रवृत्ति: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भारतीयों ने अंग्रेज सरकार के विरुद्ध उम्मीद से भरपूर आंदोलन किया। सड़कों पर, आवासों में और आंदोलन शिविरों में लाखों लोगों ने आवाज उठाई और स्वतंत्रता की मांग की।
4. अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष: आंदोलन के प्रेरणास्त्रोत महात्मा गांधी ने विशेष रूप से अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की गुडविल भी जारी रखी। उन्होंने भारतीयों से शांति और अहिंसा के माध्यम से आंदोलन को आगे बढ़ाने का आदान-प्रदान किया।
5. आंदोलन का प्रभाव: 'भारत छोड़ो आंदोलन' का प्रभाव इतना महत्वपूर्ण था कि अंग्रेज सरकार को आंदोलन को दबाने के लिए कई कदम उठाने पड़े। आंदोलन ने भारतीयों की आत्मशक्ति को मजबूती दी और उन्हें स्वतंत्रता की दिशा में आगे बढ़ने का संकेत दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण अध्याय का हिस्सा था, जिसने दिखाया कि भारतीय जनता किस प्रकार एकजुट होकर अपने आदर्शों के लिए संघर्ष कर सकती है। इस आंदोलन ने भारतीयों की आत्म-समर्पण की भावना को उत्तेजित किया और देश को स्वतंत्रता की दिशा में मजबूती से पथ प्रदर्शित किया।
महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन के माध्यम से हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया और भारतीय मुस्लिमों की आवाज को सुनने की मांग की।
महत्वपूर्ण बिंदु : Important Points
1. परिचय: खिलाफत आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण घटना थी जिसमें महात्मा गांधी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने का प्रयास किया और भारतीय मुस्लिमों की आवाज को सुनने की मांग की।
2. आंदोलन का उद्घाटन: खिलाफत आंदोलन का उद्घाटन 1919 में किया गया था, जब तुर्की सल्तनत के खत्म होने के बाद खिलाफत संबंधी मुद्दों पर उत्तर प्रदेश के मुस्लिम नेताओं ने आवाज उठाई।
3. हिन्दू-मुस्लिम एकता: महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन के माध्यम से हिन्दू-मुस्लिम एकता को स्थापित करने का प्रयास किया। उन्होंने दिखाया कि हिन्दू और मुस्लिम एक साथ आंदोलन कर सकते हैं और उनके आपसी मतभेदों को पार कर सकते हैं।
4. आवाज की मांग: खिलाफत आंदोलन के दौरान, महात्मा गांधी ने भारतीय मुस्लिमों की आवाज को सुनने की मांग की, ताकि उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सके। वे उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध थे।
खिलाफत आंदोलन ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और यह स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। इससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आगे और भी बड़े परिवर्तनों की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया।
निष्कर्ष
कुल मिला कर कहें तो स्वतंत्रता संघर्ष में महात्मा गांधी के योगदान का वर्णन करने के लिए कई लेख छोटे पड़ जायेंगे। लेकिन चंपारण सत्याग्रह, खेड़ा आंदोलन, रॉलेट ऐक्ट का विरोध, असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, दलित आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में किए गए प्रमुख आंदोलन हैं और इन आंदोलन की मदद से देश को स्वतंत्रता हासिल हुई है।
बापू ना सिर्फ पिछड़ी पीढ़ी के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अपनी विचारधारा की वजह से एक सच्ची प्रेरणा है। बापू ने यह सीख दी है कि अहिंसा, सत्य, और सहिष्णुता समाज कल्याण के सबसे बड़े हथियार हैं।