पृथ्वी पर आगे आने वाले समय में पर्यावरण और जीवन की संभावना भी बनाए रखनी है, तो ज्यादा से ज्यादा पौधों को लगाना होगा और लोगों को इसके बारे में जागरूक करना होगा। जिससे हम अब तक के हुए नुकसान की भरपाई कर सकते हैं और अपने पर्यावरण को फिर से पहले जैसा खूबसूरत और सुंदर बना सकते हैं।
मानव जीवन पृथ्वी पर ही संभव है, खैर हम चाँद और मार्स पर भी जीवन स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। मानव स्वभाव से स्वार्थी है, वह अपने सुख- सुविधा के लिए पृथ्वी को इस्तेमाल करता रहा, उसे प्रदूषित कर नुकसान पहुंचाता रहा और अब जब उसे पता चल गया कि पृथ्वी पर जीवन संकट में है तो सुधार करने के बजाए दूसरे घर की तलाश करता रहा।
प्रकृति का नियम है, जो हम उसे देंगे वापस हमें वही मिलेगा और यही हो भी रहा है। हमने पृथ्वी को क्या दिया? प्रदूषण ! हमनें प्रकृति के साथ मनचाहा व्यवहार किया। हमनें पेड़ काटे, लेकिन लगाना भूल गए , हमनें नदियां दूषित की ,वायु को जहरीला बना दिया। अब जब प्रकृति अपना रोष हम पर बिन मौसम बरसात और आंधी तूफान से कर रही है, तो हमे तकलीफ हो रही है।
हमारी पृथ्वी सही मायनों में एक चादर से संरक्षित है, जिसे ओज़ोन लेयर कहते हैं। जो उसे कवच की तरह सूरज की भस्म कर देने वाली तेज रोशनी से बचा कर रखती है। लेकिन इंसानों के द्वारा फैलाए प्रदूषण के कारण उसकी शक्तियां कमजोर होती जा रही हैं। ऐसा होने पर पृथ्वी पर जीवन का नाश हो जाएगा।
ओज़ोन लेयर को क्षति पहुँचाने वाले हर उस उत्पाद तथा उसके उपयोग पर नियंत्रण करने हेतु 1987 को 197 पक्षकार देशों नें मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए थे। हर साल 16 सिंतबर को विश्व भर में ओज़ोन लेयर को सुरक्षित करने की लिए जागरूकता अभियान चलाया जाता है। माना जाता है कि सितंबर के महीने में ओज़ोन कमजोर होती है इसलिए इस दिन विश्व भर में अंतरराष्ट्रीय ओज़ोन दिवस मनाया जाता है।
धरती से 15-30 किलोमीटर ऊंचाई पर हमें सुरक्षित रखने वाली ओज़ोन लेयर हमारे अस्तित्व को बचाने के लिए हमें निस्वार्थ प्रेम दिखा रही है। कम से कम हम खुद को बचानें के लिए अपने स्वार्थ के लिए ओज़ोन की चादर को सुरक्षित रख सकते हैं।
कैसे करें ओज़ोन की चादर को सुरक्षित
प्रदूषण हमें हर तरह से नुकसान पहुंचा रहा है जिसमें खान-पान से लेकर हमारे रहन-सहन तक सब कुछ शामिल है। और ऐसे में हमारा पर्यावरण भी इससे अछूता नहीं रहा। जहां पहले आसमान नीला और साफ दिखाई पढ़ता था वहीं आए दिन काला होता जा रहा है। जिसका कारण भी हम ही हैं। पहले जहां हमारी नदियों का पानी साफ और पीने योग्य था। वहीं अब फैक्ट्रियों और कारखानों के निर्माण के चलते यह पानी हमारे लिए ज़हर का काम कर रहा है। बिना फिल्टर किए हम इस पानी को नहीं पी सकते और इसका जिम्मेदार कोई एक फैक्ट्री या कारखाने का मालिक नहीं बल्कि हममें से हर कोई है। क्योंकि छोटे से लेकर बड़े तक, अमीर से लेकर गरीब तक हर एक तबके और आयु वर्ग के लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं। नदी और तालाबों में कचरा फेंकने से लेकर हद से ज्यादा वाहनों के इस्तेमाल तक। हम किसी ना किसी रूप में अपने पर्यावरण को नुकसान पहुंचा ही रहे हैं। जिसके कारण आसपास का वातावरण गंदा और प्रदूषित करने के साथ-साथ हम खुद के लिए भी नए-नए तरह की परेशानियां खड़ी कर रहे हैं और पृथ्वी को बीमारियों का घर बना रहे हैं, जिनमें से सबसे मुख्य है ऑक्सीजन की कमी, क्योंकि ऑक्सीजन ही हमारे जीवन का स्रोत है। जिसके बिना इस पृथ्वी पर हम मनुष्यों और जीव जंतुओं के जीवन की कल्पना करना भी बेईमानी सा लगता है।
जब हमारे पास सांस लेने के लिए शुद्ध ऑक्सीजन ही नहीं होगी, पीने के लिए शुद्ध पानी ही नहीं होगा, तो ऐसे में जीवन की कल्पना कैसे की जा सकती है क्योंकि यह दोनों चीजें ही जीवन जीने के लिए सबसे महत्वपूर्ण और न्यूनतम माने गए हैं।मानव जब प्रकृति के उपयोग से कुछ निर्माण करता है, तो उससे प्रदूषण उत्पन्न होता है। लेकिन आधुनिक जीवन जीने के लिए मानव निर्मित वस्तुओं का उपभोग हमें करना ही पड़ता है। ऐसे में हमें प्रतिक्रिया के रूप में प्रकृति का रोष भी सहना पड़ेगा और परिणाम स्वरूप जीवन का नाश हम खुद ही कर लेंगे।हाल ही में कनाडा के शहरों में दिल्ली जैसी गर्मी देखने को मिली। जिसका कारण ओजोन परत का पतला होना और ग्लेशियरों का पिघलना ही माना जा सकता है। क्योंकि प्रदूषण बढ़ने से और ओजोन परत के पतले होने से जब सूरज की किरणें सीधे ग्लेशियरों के संपर्क में आती हैं, तो ठंडे ग्लेशियर बढ़ते हैं और पानी का रूप ले लेते हैं और इससे समुद्र में जल का लेवल बढ़ जाता है, जिससे आने वाले समय में हमें बाढ़ जैसी आपदाओं का भी सामना करना पड़ सकता है।
एक आंकड़े के अनुसार पूरे विश्व भर में 1 दिन में लगभग वर्षावन जितने पेड़ों की कटाई होती है। पेड़ जो कि हमारे पर्यावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को सुख लेते हैं और साथ ही ऑक्सीजन का लेवल बढ़ाने में मदद करते हैं। हम घरों में चल रहे ऐसी, गाड़ियों से निकलें धुंए को रोक कर स्थिति में सुधार कर सकते हैं। पेड़ लगाकर, नदियों में कूड़ा- कचरा रोक कर , उद्योग से निकले ज़हरीले प्रदार्थ का दायरा कम कर कुछ हद तक परीस्थितियों में सुधार कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए हमें स्कूल से लेकर कार्यालय तक लोगों को जागरूक करना होगा। तकनीक इस्तेमाल करके कूड़ों को पुनः उपयोगी बनाना होगा। मनुष्य पृथ्वी पर सबसे अक्लमंद जीव है, वह चाह ले तो सबकुछ मुमकिन कर सकता है l