वन्य जीव की रक्षा प्रकृति की सुरक्षा

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06 Oct 2021
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जिस तरह से जंगल घट रहे हैं और मनुष्य दिन व दिन बढ़ रहे हैं उसको देखते हुए मनुष्य ने कई फैसले लिए जिससे जंगलों को बचाया जा सके और वन्य जीवों का संरक्षण किया जा सके। परन्तु ये कदम कितने सार्थक होंगे यह तो समय का चलता पहिया बताएगा और कितना सार्थक है विश्व वन्य दिवस का मनाया जाना। आइये जानते हैं।

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पृथ्वी एक ऐसा घर है, जहाँ जीवन करोड़ों वर्षों से गहरी सांसे ले रहा है। लाखों-करोड़ों प्रजातियाँ पृथ्वी की गोद में पनप रहीं हैं। लाखों-करोड़ों प्रजातियाँ प्रत्येक दिन सांसे लेती हैं और दफ़्न होती हैं, मगर पृथ्वी आज भी निष्पक्ष भाव से उन्हें जीवन देने में कोई कसर नहीं छोड़ती। मगर जब हम जीवन का एक और पहलू देखें जिसमें मनुष्य अब महज़ प्राणी मात्र नहीं रह गया है अपितु वह स्वयं को ईश्वर के समीप समझने लगा है। अन्य प्राणी को तुच्छ समझने में मनुष्य को देर नहीं लगी, मात्र 30 हज़ार सालों के भीतर ही मनुष्य विकास की उस बुलंदी पर जा पंहुचा जहाँ से उसको अन्य प्राणी हीन लगने लगे। मानो जैसे मनुष्य ये समझ बैठा हो कि अब औरों की कोई आवश्यकता ही नहीं उनके आलावा। इस तथ्य की ओर जब भी आँखें करवट लेती हैं तो लगता है जैसे दुबई की बुर्ज खलीफा की ऊंचाई से झांकता हुआ आदमी अन्य प्राणियों को कीड़े-मकोड़ों से ज्यादा नहीं समझता है, आज के दौर में।  

जिस तरह से पर्यावरण बदल रहा है उसको मद्देनज़र रखते हुए, फिर मनुष्य को ही नए-नए कदम, नियम कानून और न जाने क्या-क्या रोज़-रोज़ करना पड़ता है। इसको यूँ समझें, पहले हमने रौशनी फैलाता हुआ दीपक एक झटके में बुझा दिया और बाद में उसको जलाने के लिए अँधेरे में माचिस ढूंढ रहें हैं अपितु होना तो ये चाहिए था कि हम रौशनी के रहते ही माचिस की व्यवस्था कर सकते थे। आज जब अन्य वन्य जीव-जन्तु लुप्तता की कगार पर आ गए तब हम उन्हें संरक्षित करने के अथक प्रयास में जुटे हुए हैं। 

अब समय यह आ गया है कि वन्य जीव संरक्षण हेतु पूरे विश्व को विश्व वन्य जीव दिवस मनाना पड़ रहा है। देखा जाए तो यह एक सार्थक, आवश्यक कदम व दूरगामी धनात्मक परिणाम का रूप ले सकता है। विश्व वन्य जीव दिवस प्रत्येक वर्ष 6 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसके चलते लुप्त होती प्रजातियों को एक नया जीवन मिलेगा और वह इस सुन्दर एवं पावन पृथ्वी पर जीवित रह सकेंगे। इसके विपरीत मनुष्य को भी अपनी विस्फोटक जनसँख्या पर लगाम लगानी होगी क्योंकि पृथ्वी पर सीमित संसाधन हैं, सीमित जगह है। जैसे-जैसे मनुष्यों की संख्या में इजाफा होता रहेगा वैसे-वैसे मनुष्य रहने के लिए बस्तियां बनाता जायेगा और जंगलों को कम करता जायेगा। परिणामस्वरूप वन्य जीवों पर खतरा घूम-घूम कर मंडराता ही रहेगा। फिर इस तरह के दिवस का कितना मोल होगा इन बातों से आप भली-भाँति परिचित हैं। यानी हुआ ये कि कुआँ खोदा पानी को और उसमें ही फिर जा टपके हम। 

हमने अक्सर देखा होगा कि आजकल कुछ इस तरह की खबरें बहुत सुनने को मिलती हैं जैसे कि किसी के घर में तेंदुआ घुस गया, कहीं पर भालू आ गया या खेतों में तेंदुए ने किसान पर हमला कर दिया। इस तरह की खबरें क्या संकेत प्रदर्शित करती हैं ? इसका सीधा सा उत्तर है कि हम जगंलों की तरफ बढ़ रहे हैं न कि वो प्राणी हमारी ओर। सीधी सी बात है अगर हम किसी के घर में घुसेंगे तो वह हमारे घर में घुसेगा ही। 

परन्तु जिस तरह से विश्व की सरकारें प्राणी संरक्षण हेतु कार्य कर रहीं हैं वह सराहनीय है। वहीँ भारत में प्राणी संरक्षण के लिए तमाम कदम उठाये जाते रहे हैं जैसे वन्य जीव संरक्षण, प्राणी-पक्षी बिहार, नेशनल पार्क, जैसे अन्य स्थानों पर वन्य जीवों की देख भाल की जाती है। उनके प्रजनन, चिकित्सा जैसे सुविधाएं मुहैया  कराई जाती हैं। मगर यहाँ भी कुछ लोग जानवरों की तस्करी करने से नहीं चूकते तो उसके लिए सरकार द्वारा कड़े नियम कानून बनाकर उन पर नज़र रखी जाती है और लगाम कसी जाती है। मगर सच्चाई यह है कि कहीं भी कोई भी नियम, सिद्धांत पूर्णतया लागू हो पाना लगभग असंभव ही होता है क्योंकि व्यक्ति की ईमानदारी और बेईमानी के बीच पृथ्वी निरंतर घूर्णन करती ही रहती है।

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