बदलाव और सुधार दो मंत्र जीवन में बहुत आवयश्यक हैं। बिना बदलाव के जीवन में सफल हो पाना मुमकिन नहीं और यदि बदलाव हो रहा तो वह सकारात्मक दृष्टिकोण positive perspective से होना अनिवार्य mandatory है। अन्यथा हम बदल तो जाते हैं लेकिन बुराइयों के साथ और फिर असफलता को स्वयं ही गले लगा बैठते हैं। हमें अपनी गलतियों mistakes पर पर्दा नहीं डालना चाहिए बल्कि उनकी तलाश करते रहना चहिये और उनपर सुधार करना चाहिए। तभी हम खुद के बारे में जान सकते हैं और खुद को सफल बना सकते हैं।
जीवन life संघर्ष struggle से परिपूर्ण है। न चाहते हुए भी हम बहुत कुछ करते रहते हैं। आधुनिकता वाले इस समाज में पीछे छूट जाने का डर हमें इस कदर सताये हुए है, कि हम चलती ट्रेन की किसी भी बोगी में बिना टिकट के चढ़ जा रहे हैं। हमें नहीं पता कि टिकट कलेक्टर हमें कब ट्रेन से उतार दे या क्या पता ट्रेन ही गलत हो जो हमें हमारे गंतव्य से भटका दे।
भीड़ में हम अपने अस्तित्व को खोते जा रहे हैं, बिना किनारे की नदी में गोते लगा रहे हैं। यही कारण है कि देश में सफलता success दर कम है। क्योंकि भीड़ बहुत है लेकिन कुशलता skills कम है। जमीनी हकीकत यह है कि आठ घंटे का समय हम एक कंपनी के लिए काम कर के व्यतीत कर रहे हैं। जहाँ शायद हमें सीमित शिक्षा और कुशलता प्राप्त हो रही है और जीवन यापन के लिए घर खर्च मिल रहे हैं।
जीवन के हर मोड़ पर हम प्रयास करते हैं खुद को बेहतर बनाने की, बदलाव लाने की। हम अक्सर ऐसा समय की मांग पर करते हैं। बदलाव प्रकृति का नियम है, यदि हम तनिक भी न बदलें तो शायद हम केवल एक ज़िंदा लाश हैं। जीवन में बहुत सी बाधएँ obstacles आती हैं जो हमें मुकाम तक पहुंचने नहीं देती है। समय time अनिश्चित है, यह रुक नहीं सकता हमें उसके अनुसार खुद को ढालना ही पड़ता है। हम चाहें तो इसे बर्बाद कर सकते हैं या फिर उसका सदुपयोग कर सकते हैं।
सीखते रहना जीवन में बहुत जरूरी है चाहे हम अपनी असफलताओं failure से सीखें चाहे अनुभूतियों realizations से सीखें। यदि हम इस स्वाभाव पर अड़ जायें कि हमें अपने आचरण में परिवर्तन नहीं करना तो हम ज़िन्दगी भर अपने अच्छे स्वरूप की तलाश में भटकते रह जायेंगे। चलिए जानते हैं कि कैसे हम अपने स्वाभाव में परिवर्तन ला सकते हैं जिससे हम अपनी खामियों weakness को काम कर सकें और सुधार कर सकें।
भाषा हमारे विचारों का साक्ष्य हैं। हम जो बोलते हैं वह हमारे स्वाभाव को परिदृश्य करते हैं। इसलिए हमें अपनी ज़ुबान पर हमेशा लहज़े का पर्दा बरकरार रखना चाहिए। हमें सोच-विचार कर बोलना चाहिए। सामने वाले की भावनाओं का आदर करना चाहिए। यदि हमारा मन शांत होगा और चेहरे पर मुस्कान होगी तो हम जुबां से फूल बरसा सकते हैं। अन्यथा हम कितना भी मन से बोलें अगर हमारे भीतर तनाव हैं तो आप न चाहते हुए भी क्रोध में आकर अपने लहज़े को बिगाड़ देंगे। इसलिए हमें ऐसी अवस्था में मन को शांत करना चाहिए और सामने वाले इंसान को अपनी अवस्था के बारे में सरल भाव से साझा करना चाहिए।
बचपन से हमने किताबों और माँ-बाप के बातों में यह सुना और पढ़ा है कि हमें रात में जल्दी सोना चाहिए और सुबह जल्दी उठना चाहिए। आखिर इस बात पर ज़ोर देने का मुख्य कारण क्या हो सकता होगा? इन हिदायतों का महत्व हमें बचपन में नहीं समझ आते थे, लेकिन बड़े होने पर इन सभी आदतों को न अपनाने के चलते हमें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सफलता की पहली सीढ़ी ही है दिनचर्या, यदि हम अपने पूरे दिन भर के कामों का टाइम टेबल बना कर उसे पूर्ण करते हैं तो हम अपने समय को ठीक तरह से सदुपयोग कर पाते हैं। अन्यथा दिन बीतते जाते हैं और हम इन छोटी सी चीजों के कारण असफलता की ओर अग्रसर हो जाते हैं।बदलाव और सुधार दो मंत्र जीवन में बहुत आवयश्यक हैं। बिना बदलाव के जीवन में सफल हो पाना मुमकिन नहीं और यदि बदलाव हो रहा तो वह सकारात्मक दृष्टिकोण positive perspective से होना अनिवार्य mandatory है। अन्यथा हम बदल तो जाते हैं लेकिन बुराइयों के साथ और फिर असफलता को स्वयं ही गले लगा बैठते हैं। हमें अपनी गलतियों mistakes पर पर्दा नहीं डालना चाहिए बल्कि उनकी तलाश करते रहना चहिये और उनपर सुधार करना चाहिए। तभी हम खुद के बारे में जान सकते हैं और खुद को सफल बना सकते हैं।