हरिवंशराय बच्चन, जिन्होंने दुनिया में मधुशाला से घृणा करने वाले लोगों को भी उससे प्यार करना सिखा दिया। हरिवंशराय बच्चन ने साहित्य को नई पीढ़ी में नए रंग पुरानी व्यवस्थाओं को फिर से स्थापित किया। साहित्य को हरिवंशराय ने नया चेहरा दिया। इन्होंने अपने जीवनकाल में कई रचनाओं और कल्पनाओं को शब्दों का आकार देकर कहानी और कविता का आवरण दिया। इनके विचार, इनके आदर्श, इनका व्यवहार आज भी इनकी रचनाओं के माध्यम से हम सबके ज़हन में ज़िन्दा हैं।
किसी एक व्यक्ति के संघर्ष तथा सफलता की कहानी न जाने कितने व्यक्तियों के लिए प्रेरणा बन जाती है। न जाने कितने लोग ऐसे व्यक्तित्व को आदर्श मानकर उसके पदचिन्हों पर चलना शुरू कर देते हैं तथा स्वयं के भीतर उन आदर्शों और व्यवहार को ढालने लगते हैं, ताकि थोड़ा-बहुत वे भी स्वयं को सफल बना सकें। भारत में ऐसे अनगिनत हस्तियों ने जन्म लिया जो आज की पीढ़ी के लिए भी एक आदर्श हैं। हिन्दी साहित्य भारत की वह धरोहर जिसे पूरे विश्व में अप्रतिम पहचान मिली है। इस धरोहर को अधिक दृढ़ बनाने वाले कवियों तथा साहित्यकारों में एक रचनाकार थे हरिवंशराय बच्चन Harivansh Rai Bachchan, जिन्होंने दुनिया में मधुशाला से घृणा करने वाले लोगों को भी उससे प्यार करना सिखा दिया। हरिवंशराय बच्चन ने साहित्य को नई पीढ़ी में नए रंग पुरानी व्यवस्थाओं को फिर से स्थापित किया। साहित्य को हरिवंशराय ने नया चेहरा दिया। मधुशाला Madhushala की रचना में इतना नशा था कि बिना शराब के ही लोगों के मन को झूमने पर मजबूर कर दिया। इन्होंने अपने जीवनकाल में कई रचनाओं और कल्पनाओं को शब्दों का आकार देकर कहानी और कविता का आवरण दिया। इनके विचार, इनके आदर्श, इनका व्यवहार आज भी इनकी रचनाओं के माध्यम से हम सबके ज़हन में ज़िन्दा हैं।
"स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।"
~हरिवंशराय बच्चन
इलाहाबाद में 27 नवंबर 1907 में जन्में हरिवंशराय बच्चन अपनी माता-पिता की पांचवीं संतान थे, जिन पांच बच्चों में से दो की मृत्यु जन्म के समय ही हो गई थी। वैसे तो इनका पैतृक स्थान प्रतापगढ़ है, परन्तु इनके पिता ने इलाहाबाद में अपना नया घर बनाया, जहां पर कविता तथा कहानी के सागर हरिवंशराय बच्चन का जन्म हुआ। इन्होंने स्वयं अपने नाम के आगे बच्चन उपनाम को जोड़ा, वास्तव में यह श्रीवास्तव परिवार के मोती थे, क्योंकि यह जाति जैसी भावना पर यकीन नहीं करते थे।
रात के उत्पात-भय से,
भीतर जन-जन, भीतर कण-कण
किंतु प्राची से उषा की,
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर।
~ हरिवंशराय बच्चन
पद्म विभूषित हरिवंशराय बच्चन ने अपने पीएचडी की पढ़ाई में मशहूर कवि डब्ल्यू डी यीट्स की कविताओं को अपने शोध में शामिल किया था, जो कि एक अंग्रेजी कवि थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बच्चन जी अध्यापक भी रहे। हरिवंशराय बच्चन का ही योगदान है कि भारत में कवियों को उनकी कल्पनाओं के लिए पैसे मिलने का प्रावधान शुरू हुआ ताकि वे अपनी जीविका को आसानी से चला सकें।
अपने अंतर्मन में रचनाओं का भण्डार रखने वाले बच्चन जी ने दो शादियां की थीं। पहली पत्नी की मृत्यु के पश्चात इन्होंने दूसरा विवाह किया तथा दूसरी पत्नी से जन्मीं औलाद ने इनके मान को और अधिक बढ़ाया, जिसे आज पूरी दुनिया बॉलीवुड के शहंशाह के नाम से जानती है। अमिताभ बच्चन Amitabh Bachchan ने अपने पिता को मिले सम्मान को और अधिक गहरा किया। हरिवंशराय की रचना को पर्दे पर अमिताभ ने जीवंत किया, जिससे उन्होंने बॉलीवुड में अपने सफलता की कहानी को लिखना शुरू किया।
तू न थकेगा कभी,
तू न रूकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ...
~ हरिवंशराय बच्चन
हरिवंशराय बच्चन को अपनी पहली रचना 'मधुशाला' के माध्यम से ही एक गंभीर और प्रतिभा के धनी कवि के रूप में पहचान मिल गयी। इसके बाद इन्होंने निशा निमंत्रण, मधुकलश, दो चट्टानें, क्या भूलूं, मिलन यामिनी, दशद्वार से सोपान तक, जाल समेटा जैसी रचनाओं को एक आकार दिया। जो आज भी हमें याद हैं।
"मृदु भावों की अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला,
पहले भोग लगा लूं तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।"
~ मधुशाला (हरिवंशराय बच्चन)