एक व्यक्ति एक सादे से गेरुए वेशभूषा में इतना ज्ञानी, इतना शक्तिशाली कि केवल अपने सौम्य दृष्टिकोण, मृदुभाषी व्यक्तित्व और स्पष्ट विचारों से पूरे विश्व को ज्ञान, मानवता और समर्पण का एक नया पाठ सीखा गया, ऐसे थे युवाओं में प्रेरणा और साहस जगाने वाले -स्वामी विवेकानन्द। आज उनकी जयंती पर ऐसा कोई बुद्धिजीवी नहीं जो उन्हें स्मरण ना कर रहा हो। जिसने युवाओं को प्रेरित करने वाली एक सोच जिसने कहा -उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।
बंगाल जिसने न जाने कितने कवियों, लेखकों और साहित्यकारों का गढ़ रहा है। रविंद्रनाथ टैगोर Rabindranath Tagore, शरतचंद्र चटोपाध्याय Saratchandra Chattopadhyay जैसे रत्नों को पहचान मिली। इसी बंगाल की धरती से भारत को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को शिक्षा, स्वाभिमान, और ज्ञान की ओर प्रेरित करने वाली भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति की जीवंत प्रतिमूर्ति नरेन्द्र दत्त (वास्तविक नाम ) यानी स्वामी विवेकानन्द मिले। जिन्होंने युवाओं को यह सिखाया कि -
- पुस्तकों से बड़ा कोई नहीं
- युवा चाहें पूरे विश्व की काया पलट सकतें है।
- ज्ञान से बड़ा शस्त्र कोई नहीं
- अपनी शिक्षा पर अडिग रहो ।
एक व्यक्ति एक सादे से गेरुए वेशभूषा में इतना ज्ञानी, इतना शक्तिशाली कि केवल अपने सौम्य दृष्टिकोण, मृदुभाषी व्यक्तित्व और स्पष्ट विचारों से पूरे विश्व को ज्ञान, मानवता और समर्पण का एक नया पाठ सिखा गया, ऐसे थे युवाओं में प्रेरणा और साहस जगाने वाले -स्वामी विवेकानन्द। आज उनकी जयंती पर ऐसा कोई बुद्धिजीवी नहीं जो उन्हें स्मरण ना कर रहा हो। भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी भी स्वयं उनके आदर्शों और मूल्यों को अपने जीवन में पालन करने का प्रयास करतें हैं।
स्वामी विवेकानन्द का वास्तविक नाम नरेंद्र दत्त था। वह एक कुलीन परिवार से थे। यह बताना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि उन्होंने आध्यात्मिकता की राह ( spiritual way ) ना तो किसी परिस्थिति के कारण चुनी ना ही किसी अन्यन्य कारणवश। यह रास्ता, यह चुनाव उनका स्वयं का था।वह दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित विषयों में सिद्धस्त थे । सत्य और जीवन से जुड़े रहस्यों की खोज में ना जाने कितने ऋषियों, कितने ज्ञानियों की शरण में गए फिर गुरु रामकृष्ण परमहंस ने उनके अन्दर की ज्ञान की ज्योति को जागृत किया ।
1983 का वह शिकागो सम्मेलन भला कौन भूल सकता है। ना जाने कितनी किताबों, लेखों में शिकागो सम्मेलन Chicago convention के स्वामी विवेकानन्द के प्रसिद्ध भाषण का उल्लेख किया गया है क्योंकि यही वह पल था जिसने स्वामी विवेकानन्द के विचारों को दुनियाभर में पहचान प्रदान की थी। उन्होंने जिस तरह से उस धार्मिक सम्मेलन में, जिसमें विश्व भर से लगभग सभी महत्वपूर्ण व्यक्तित्व मौजूद थे, वहाँ ऐसी छाप छोड़ी कि हर कोई हतप्रभ रह गया।
मेरे अमरीकी बहनों और भाइयों!
आपने जिस सम्मान सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ। मैं इस मंच पर से बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत- दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था। ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने महान जरथुष्ट जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है। भाईयो मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं:
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥
अर्थात, "जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभु ! भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।"
यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत के प्रति उसकी घोषणा करती है ।
यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥
अर्थात् , 'जो कोई मेरी ओर आता है-चाहे किसी प्रकार से हो-मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं"।
उनके अनुसार विश्व का सबसे बड़ा धर्म मानव धर्म है। मानवता किसी भी धर्म, जाति, समुदाय, विश्वास से बड़ी है। उनके chicago के भाषण के प्रसिद्ध होने का कारण यह है कि उस समय भारत को एक मज़बूत राष्ट्र के तौर पर वैश्विक पहचान नहीं मिल पाई थी और एक भारतीय जब मंच पर आया तो सभी ने सोचा कि शायद फिर से कोई ज्ञानी ज्ञान देगा या यह कम उम्र व्यक्ति भला भाषण में क्या कहेगा, किंतु जब स्वामी विवेकानन्द ने अपने भाषण में विश्वबंधुत्व की भावना पिरोई और सभी को -brothers and sisters कहा तो यह एक अविश्वसनीय पल रहा होगा, उनका वेदों, और जीवन के सत्य के प्रति ज्ञान इतनी कम आयु में बिलकुल भी अपेक्षित नहीं था।
जब वह स्वामी रामकृष्ण परमहंस की शरण में गए तो उनके मन में कई सारे प्र्श्न, जिज्ञासाएँ थी। स्वामी रामकृष्ण परमहंस भी यह समझ गाए थे, यही वह शिष्य है जो उनकी शिक्षाओं को आगे ले जाएगा। स्वामी परमहंस ने उनके सभी प्रश्नों को समझ और उनके साथ बहुत धैर्य रखा। आगे चलकर स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। अपने गुरु की सेवा की उनकी शिक्षाओं का मान रखा और पूर्ण समर्पण को अपनाया।
जब वह जीवन के, अपनी उलझनों के विषय में और सत्य की खोज में अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परम के पास आए तो बहुत सारे तर्क किये, बहुत सारे प्र्श्न उठाए। तब स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें समझाया -तर्क ना करो, अपना विवेक जगाओ। तर्क करोगे तो सत्य को, ईश्वर को, ज्ञान को कैसे समझोगे ? तब उनकी बात समझकर नरेंद्र दत्त ने तर्क छोड़कर अपना विवेक जगाया और अपने ज्ञानचक्षुओं को जगाया और वह स्वामी विवेकानन्द बनें।
25 वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए थे। तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। विवेकानंद ने 31 मई 1893 को अपनी यात्रा शुरू की और जापान के कई शहरों (nagasaki, cobe, yokohama, osaka, kyoto और tokyo समेत) का दौरा किया,china और canada होते हुए america के शिकागो पहुँचे सन् 1893 में chicago (america) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे। तीन वर्ष वे america में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की। उनकी शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें physioclinic hindu का नाम दिया।
स्वामी विवेकानंद शिक्षा को बेहद महत्वपूर्ण मानते थे और जिस शिक्षा की यहाँ बात हो रही है वह शिक्षा नारी और पुरुष में विभाजित नहीं थी बल्कि उनके अनुसार शिक्षा सभी के लिए आवश्यक थी ताकि सभी युवाओं के व्यक्तिव का विकास हो सके।
1. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके।
2. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भर बने।
3. बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए।
4. धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।
5. पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए।
6. शिक्षा, गुरू गृह में प्राप्त की जा सकती है।
7. शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।
विवेकानंद स्वयं भी अपनी माता से बेहद प्रेम करते थे और नारी सम्मान, नारी सुदृढ़ता ( women empowerment) में विश्वास करते थे, उनके अनुसार एक सच्चा पुरुष वही है जो नारी का सम्मान करे। भारतीय संस्कृति में यह श्लोक भी है - यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहीं देवताओं का वास होता है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था-"यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।"
विवेकानन्द के कुछ विचार -
1 तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ ख़ुद अंदर से सीखना है,आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नहीं है।
2. ब्रह्मांड की सभी शक्तियां हमारे अंदर हैं। यह हम ही हैं जिन्होंने अपनी आंखों के सामने हाथ रखा है और रोते हुए कहा कि अंधेरा है।
३ जब तक आप ख़ुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर भी विश्वास नहीं कर सकते
जिस व्यक्तित्व ने युवाओं को इतना प्रेरित किया, वेदों के मूल्यों पर चलें।अपना पूरा जीवन मानव मूल्यों को स्थापित करने, ज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित कर वैश्विक आध्यात्मिक गुरु बनें। ऐसे स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस के स्मरण में हर वर्ष अब 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस (national youth day) मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद एक व्यक्ति नहीं एक सोच थे। जिसने युवाओं को प्रेरित करने वाली एक सोच दी और कहा -.
"उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये"।