राष्ट्रीय प्रेस दिवस हर साल 16 नवंबर को मनाया जाता है, जो 1966 में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) की स्थापना का प्रतीक है और पत्रकारिता के लोकतंत्र में महत्वपूर्ण योगदान को सम्मानित करता है। यह दिन मीडिया के उस योगदान को सलाम करता है जो जनता को सही जानकारी देने, राष्ट्रीय मुद्दों को सामने लाने और सत्ताधारियों को जवाबदेह बनाने में मदद करता है।
पत्रकारिता, जिसे "लोकतंत्र का चौथा स्तंभ" भी कहा जाता है, पारदर्शिता, जवाबदेही और जन सशक्तिकरण के लिए अत्यंत आवश्यक है।
2024 में, जब हम राष्ट्रीय प्रेस दिवस मना रहे हैं, तो मीडिया का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। पारंपरिक प्रिंट और ब्रॉडकास्ट मीडिया से डिजिटल प्लेटफॉर्म और नागरिक पत्रकारिता की ओर बदलाव ने नए अवसरों के साथ-साथ कई चुनौतियों को भी जन्म दिया है।
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की भूमिका आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से नैतिक पत्रकारिता को बढ़ावा देने और प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए, खासकर जब गलत सूचना और मीडिया की विश्वसनीयता को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।
इस लेख में भारतीय लोकतंत्र में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका Important role of media in Indian democracy, देश में पत्रकारिता का विकास और कठिन परिस्थितियों में भी पत्रकारों द्वारा सामाजिक बदलाव लाने के प्रयासों पर चर्चा की गई है।
यह लेख पत्रकारों के बलिदान और उनके सत्य की खोज में समर्पण को भी उजागर करता है, जिनके बिना लोकतंत्र की सच्ची तस्वीर सामने नहीं आ सकती।
हर साल 16 नवंबर को भारत में राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है। 1966 में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) की स्थापना के दिन को याद करते हुए, यह दिवस मीडिया में नैतिकता और स्वतंत्रता बनाए रखने के संकल्प को दोहराता है। प्रेस काउंसिल का गठन पत्रकारिता के नैतिक मानकों को बनाए रखने और सूचनाओं के स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रसार को सुनिश्चित करने के लिए किया गया था। यह दिन मीडिया के योगदान को सम्मान देने का अवसर है, जिसने समाज में विभिन्न आवाजों को मंच दिया है और ताकतवर लोगों को जवाबदेह बनाया है।
यह दिन मीडिया की लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका को याद दिलाने के लिए मनाया जाता है। मीडिया लोगों को सही जानकारी देकर और उन्हें जागरूक करके सार्वजनिक राय को आकार देने में सहायक है। सूचनाएं देकर मीडिया नागरिकों को उनके जीवन, सरकार और समाज से जुड़े निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस, मीडिया की पारदर्शिता बनाए रखने की भूमिका पर जोर देता है, जिससे सरकारी अधिकारियों और निजी संगठनों के कार्यों पर समाज के हित के लिए नजर रखी जा सके।
इस दिन का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित करना भी है। पत्रकारों और समाचार संस्थानों को सेंसरशिप और दबाव से सुरक्षित रखते हुए, राष्ट्रीय प्रेस दिवस यह सुनिश्चित करता है कि मीडिया पर राजनीतिक या कॉर्पोरेट दबाव न हो, ताकि वह अपनी जिम्मेदारियों को स्वतंत्र रूप से निभा सके। प्रेस की स्वतंत्रता का संरक्षण करना लोकतंत्र का एक प्रमुख सिद्धांत है, और यह सुनिश्चित करता है कि पत्रकारिता सच के प्रति समर्पित रह सके।
राष्ट्रीय प्रेस दिवस 2024 के अवसर पर यह समझना जरूरी है कि मीडिया का क्षेत्र कितनी तेजी से बदल रहा है। पारंपरिक प्रिंट और प्रसारण से लेकर डिजिटल प्लेटफार्मों का उदय तक, मीडिया ने लगातार बदलते तकनीकी माहौल के साथ खुद को ढाला है। सोशल मीडिया, नागरिक पत्रकारिता और डिजिटल न्यूज़ के बढ़ते प्रभाव ने पत्रकारिता के लिए कई नए अवसर और चुनौतियां पेश की हैं।
2024 में राष्ट्रीय प्रेस दिवस का आयोजन इस बात पर जोर देता है कि गलत जानकारी के दौर में जिम्मेदारी और नैतिकता के साथ रिपोर्टिंग करना कितना जरूरी है। गलत सूचनाओं और फेक न्यूज़ के बढ़ते मामलों को देखते हुए मीडिया पर यह जिम्मेदारी है कि वह सच्चाई और निष्पक्षता को बनाए रखते हुए लोकतंत्र की रक्षा करे।
डिजिटल युग में मीडिया की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है। जैसे-जैसे समाज अधिक से अधिक ऑनलाइन हो रहा है, मीडिया का काम केवल जानकारी देना ही नहीं बल्कि लोगों तक सही और निष्पक्ष जानकारी पहुंचाना भी है। इस युग में मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह नए तकनीकी साधनों का इस्तेमाल करते हुए समाज के मूल्यों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा करे।
राष्ट्रीय प्रेस दिवस एक महत्वपूर्ण अवसर है जो हमें मीडिया की लोकतंत्र में आवश्यक भूमिका की याद दिलाता है। यह दिन न केवल पत्रकारों के साहस और प्रतिबद्धता का सम्मान है, बल्कि समाज के लिए निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता की अनिवार्यता को भी सामने रखता है। जैसे-जैसे पत्रकारिता का स्वरूप बदलता जा रहा है, यह दिन हमें भविष्य के लिए नैतिक और स्वतंत्र पत्रकारिता की दिशा में प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है।
एक लोकतांत्रिक समाज में, मीडिया कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के साथ लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। यह सरकार और संस्थानों में भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और अन्याय को उजागर करके जवाबदेही सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाता है। खोजी पत्रकारिता और निष्पक्ष रिपोर्टिंग के माध्यम से, मीडिया जनता के हितों की सेवा करने के लिए सार्वजनिक अधिकारियों और संगठनों को जवाबदेह ठहराता है। इस पारदर्शिता से लोकतांत्रिक संस्थानों में विश्वास बढ़ता है और जिम्मेदार शासन को बढ़ावा मिलता है।
मीडिया समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर नागरिकों को शिक्षित और सूचित करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। सूचित नागरिक अपने सरकार, अधिकारों और समाज में अपनी भूमिका के बारे में बेहतर निर्णय ले सकते हैं। मीडिया लोगों को उन नीतियों, कानूनों और विकास की जानकारी देता है जो उनके दैनिक जीवन को सीधे प्रभावित करते हैं। इससे लोग स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और न्याय जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में जागरूक रहते हैं। एक सूचित समाज के बिना, लोकतंत्र प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर सकता।
इतिहास में, मीडिया का सार्वजनिक नीति निर्माण और सामाजिक सुधारों को प्रभावित करने में गहरा प्रभाव रहा है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में, मीडिया ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हाल के समय में, मीडिया कवरेज सूचना के अधिकार, लैंगिक समानता अभियानों और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जैसे सामाजिक आंदोलनों में अहम रही है। सामाजिक मुद्दों को उजागर करके, मीडिया ने महत्वपूर्ण बहसें शुरू की हैं और ऐसे सुधारों को प्रेरित किया है जो सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देते हैं।
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भारत में मीडिया की शुरुआत प्रिंट समाचार पत्रों से हुई। भारत का पहला अखबार, द बंगाल गजट The Bengal Gazette, 1780 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद धीरे-धीरे प्रिंट उद्योग ने विस्तार किया और कई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय समाचार पत्र स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे। प्रिंट मीडिया के बाद, रेडियो एक प्रमुख सूचना माध्यम बना। 1936 में स्थापित ऑल इंडिया रेडियो (AIR) ने विशेष रूप से स्वतंत्रता के बाद के समय में करोड़ों भारतीयों के लिए समाचार का प्राथमिक स्रोत बनकर बड़ी भूमिका निभाई।
भारतीय मीडिया के इतिहास में अगला बड़ा कदम टेलीविजन का आगमन था। 1959 में भारतीय सरकार ने दूरदर्शन (DD) की शुरुआत की, जो प्रारंभ में एक सरकारी नेटवर्क था। लेकिन 1980 के दशक में, टीवी समाचार लोकप्रिय होने लगे। जैसे 1984 के सिख विरोधी दंगे और 1991 के आर्थिक सुधारों जैसे महत्वपूर्ण घटनाओं के प्रसारण ने लोगों के समाचार देखने के तरीके को बदल दिया।
1990 के दशक में भारत में आर्थिक उदारीकरण हुआ, जिससे मीडिया उद्योग में निजी कंपनियों का प्रवेश हुआ। 1990 के दशक में उपग्रह टेलीविजन का विस्तार हुआ, और ज़ी न्यूज़, एनडीटीवी, और सीएनएन-आईबीएन जैसे निजी समाचार चैनल आए। इससे सरकारी एकाधिकार खत्म हुआ और भारतीय दर्शकों के लिए विविधतापूर्ण सामग्री उपलब्ध हुई।
21वीं सदी में, डिजिटल क्रांति ने मीडिया परिदृश्य को बदल दिया। इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने समाचार प्राप्त करने के तरीके को बदल दिया, जिससे नए अवसर और चुनौतियाँ सामने आईं। इंटरनेट ने सूचना का लोकतंत्रीकरण किया है, लेकिन फेक न्यूज और गलत जानकारी के प्रसार की समस्या भी बढ़ी है। सरकार द्वारा विनियमन, डिजिटल परिवर्तन, और पत्रकारिता की नैतिकता बनाए रखना इस उद्योग के सामने मुख्य चुनौतियाँ हैं।
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) Press Council of India (PCI) की स्थापना 1966 में भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने के उद्देश्य से की गई थी। यह एक स्वायत्त संस्था है जिसका उद्देश्य पत्रकारिता के मानकों को बनाए रखना और सुनिश्चित करना है कि मीडिया नैतिक और जिम्मेदार तरीके से कार्य करे। इसे मीडिया के बढ़ते व्यवसायीकरण, पक्षपात, गलत सूचना और अनैतिक प्रथाओं की चिंताओं के जवाब में स्थापित किया गया था।
PCI का मुख्य कार्य पत्रकारिता के नैतिक मानकों को बनाए रखना है। यह पत्रकारों और मीडिया संगठनों के लिए दिशा-निर्देश और आचार संहिता तैयार करता है, जिससे समाचारों में सटीकता, निष्पक्षता और जिम्मेदारी को बढ़ावा मिलता है। यह परिषद जनसामान्य से आने वाली शिकायतों को भी देखती है, जिनमें मानहानि, सनसनीखेज खबरें और गलत रिपोर्टिंग जैसे मुद्दे शामिल होते हैं।
इसके अलावा, PCI प्रेस की स्वतंत्रता बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यह सुनिश्चित करता है कि मीडिया पर किसी राजनीतिक या व्यावसायिक दबाव का प्रभाव न पड़े। यह पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए भी कार्य करता है।
वर्तमान मीडिया परिदृश्य में, जहाँ डिजिटल प्लेटफॉर्म का प्रभाव बढ़ रहा है, PCI की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है। सोशल मीडिया और डिजिटल न्यूज़ के कारण फेक न्यूज़, ऑनलाइन उत्पीड़न और नैतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। PCI का जिम्मेदार पत्रकारिता को बढ़ावा देने पर जोर मीडिया की विश्वसनीयता बनाए रखने और जनसामान्य को भरोसेमंद जानकारी उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण है।
2024 में मीडिया परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। डिजिटल न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म, सोशल मीडिया, और आम लोगों द्वारा की जाने वाली पत्रकारिता ने खबरों को प्रस्तुत करने के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है। वेबसाइट, सोशल मीडिया, और मोबाइल ऐप्स के आने से अब खबरें बहुत ही तेजी से और बड़े स्तर पर लोगों तक पहुँच रही हैं। खासकर युवा वर्ग के बीच TikTok, Instagram Reels, और YouTube Shorts जैसी प्लेटफ़ॉर्म पर खबरें तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं, जहाँ छोटे और रोचक फॉर्मेट में कंटेंट दिया जाता है।
आम नागरिकों द्वारा की जाने वाली पत्रकारिता या सिटिज़न जर्नलिज़्म ने मीडिया में एक नया मोड़ ला दिया है। स्मार्टफोन और इंटरनेट की सुविधा के साथ, अब कोई भी व्यक्ति खबरें कैप्चर और शेयर कर सकता है। इससे खबरों में विभिन्न दृष्टिकोण सामने आते हैं और मुख्यधारा के मीडिया पर प्रश्न उठाए जाते हैं। इस प्रकार की पत्रकारिता ने न केवल दर्शकों की भागीदारी को बढ़ावा दिया है, बल्कि मीडिया में आवाजों की विविधता भी लाई है।
पारंपरिक मीडिया संस्थानों के सामने पाठकों को बनाए रखने और विश्वसनीयता बनाए रखने की चुनौती है। सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ और गलत जानकारी के फैलने से खबरों में लोगों का विश्वास कम हुआ है। साथ ही, विज्ञापन से होने वाली कमाई में गिरावट और दर्शकों का डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की ओर रुख करने से पारंपरिक मीडिया आर्थिक दबाव में आ गए हैं। इन संस्थानों को मुफ्त में उपलब्ध कंटेंट के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है, जिससे उनका बिजनेस मॉडल बनाए रखना कठिन हो गया है।
रिलेवेंट बने रहने के लिए, पारंपरिक मीडिया संस्थान नई तकनीकों को अपना रहे हैं जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), डेटा पत्रकारिता, और मल्टीमीडिया स्टोरीटेलिंग। AI-आधारित टूल्स का उपयोग कंटेंट को पर्सनलाइज़ करने, खबरों को ऑटोमैटिक तरीके से तैयार करने, और दर्शकों के साथ बेहतर जुड़ाव बनाने के लिए किया जा रहा है। डेटा पत्रकारिता से जटिल मुद्दों पर अधिक गहराई से विश्लेषण किया जा सकता है। वहीं, मल्टीमीडिया स्टोरीटेलिंग से टेक्स्ट, इमेज, वीडियो, और इंटरैक्टिव एलिमेंट्स को मिलाकर एक आकर्षक और प्रभावी खबर पेश की जा सकती है।
2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस घटना की मीडिया में व्यापक कवरेज हुई, जिससे जनता में आक्रोश फैला। इसके परिणामस्वरूप, 2013 में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, जिसे निर्भया एक्ट भी कहते हैं, लागू हुआ। इस एक्ट के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया।
1970 के दशक में उत्तराखंड में हुआ चिपको आंदोलन Chipko Movement, जिसमें ग्रामीणों ने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उन्हें गले लगाया, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बना। इस आंदोलन के बाद हिमालयी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी गई।
1970 के दशक में दलित पैंथर आंदोलन ने जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। इस आंदोलन को मीडिया में व्यापक कवरेज मिली, जिससे दलितों की समस्याओं पर ध्यान गया और सामाजिक सुधार की दिशा में कदम उठाए गए।
जांच पत्रकारिता ने भ्रष्टाचार को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए, रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने एक योजना का खुलासा किया, जिसमें भारतीय सरकार सभी नागरिकों की जानकारी एक व्यापक डेटाबेस में ट्रैक करने की योजना बना रही थी, जिसे सरकारी कल्याण कार्यक्रमों की निगरानी के रूप में प्रस्तुत किया गया।
द वायर ने दिल्ली दंगों में हिंसा भड़काने में शामिल कुछ व्यक्तियों का खुलासा किया और पुलिस की जांच में कमी को उजागर किया।
स्क्रॉल.इन ने "मिसिंग ट्रीज़" नामक रिपोर्ट में पाया कि जिन क्षेत्रों में वृक्षारोपण कार्यक्रम के तहत पेड़ लगाए गए थे, वहां वास्तव में पेड़ थे ही नहीं। इसने जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण की सच्चाई को उजागर किया।
प्रणय रॉय एक प्रसिद्ध ब्रिटिश चार्टर्ड अकाउंटेंट और अर्थशास्त्री हैं, जिन्होंने भारतीय पत्रकारिता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे एनडीटीवी (NDTV) के सह-संस्थापक हैं, जिसे उन्होंने अपनी पत्नी राधिका रॉय के साथ मिलकर स्थापित किया। राधिका रॉय एनडीटीवी की सह-अध्यक्ष भी हैं। इसके अलावा, प्रणय रॉय ने डेविड बटलर के साथ मिलकर दो किताबें भी लिखी हैं।
लेवरहुल्म ट्रस्ट (यूके) फैलोशिप
मैरी कॉलेज प्राइज
दून स्कूल में ओपीओएस स्कॉलरशिप
चार्टर्ड अकाउंटेंसी, आईसीए इंग्लैंड और वेल्स
बरखा दत्त भारतीय पत्रकारिता में अपनी उत्कृष्ट फ्रंटलाइन रिपोर्टिंग के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध की कवरेज से सुर्खियां बटोरीं। उनके लोकप्रिय न्यूज़ शो We the People और The Buck Stops Here ने उन्हें घर-घर में मशहूर किया। हालांकि उनकी रिपोर्टिंग को लेकर आलोचना भी हुई, फिर भी वे भारत की सबसे प्रभावशाली और प्रेरणादायक पत्रकारों में गिनी जाती हैं।
पद्म श्री
सी.एच. मोहम्मद कोया नेशनल जर्नलिज्म अवार्ड
इंडियन न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग अवार्ड
कॉमनवेल्थ ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन अवार्ड
गौरी लंकेश एक निर्भीक पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जो अपने स्पष्ट और साहसी विचारों के लिए जानी जाती थीं। उन्होंने अपने पिता द्वारा शुरू किए गए कन्नड़ अखबार लंकेश पत्रिका की संपादक के रूप में कार्य किया। साथ ही, उन्होंने अपना साप्ताहिक समाचार पत्र गौरी लंकेश पत्रिका भी प्रकाशित किया। अपने सामाजिक और राजनीतिक विचारों के कारण, 5 सितंबर 2017 को बेंगलुरु में उनकी हत्या कर दी गई। उनकी पत्रकारिता और सामाजिक न्याय के लिए योगदान अमूल्य है।
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि भारतीय समाज और राजनीति को सुधारने के लिए उनकी निस्वार्थ प्रतिबद्धता थी।
रजत शर्मा को उनके शो आप की अदालत Aap Ki Adaalat के लिए जाना जाता है, जो भारत के सबसे लोकप्रिय और विवादित टॉक शोज़ में से एक है। वे इंडिया टीवी के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ भी हैं। भारतीय पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
तरुण क्रांति अवार्ड
पद्म भूषण
2017 में भारत के 50 सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों की सूची में 33वां स्थान
रवीश कुमार भारतीय पत्रकारिता के एक प्रतिष्ठित नाम हैं। वे एनडीटीवी इंडिया के सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने अपने प्राइम-टाइम शो और भारतीय राजनीति व सामाजिक मुद्दों की गहन रिपोर्टिंग के लिए ख्याति अर्जित की।
गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार
रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड
कुलदीप नैयर जर्नलिज्म अवार्ड
राजदीप सरदेसाई एक प्रमुख पत्रकार और न्यूज़ एंकर हैं, जो प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति अपनी अडिग प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं। उनके करियर में उन्होंने राष्ट्रीय महत्व के कई प्रमुख सामाजिक मुद्दों को उजागर किया है। उनकी गहरी रिपोर्टिंग और जटिल विषयों पर संवाद स्थापित करने की क्षमता उन्हें भारतीय पत्रकारिता में एक अग्रणी स्थान दिलाती है।
निधि राजदान एक पुरस्कार विजेता पत्रकार हैं, जिन्होंने मानवाधिकार उल्लंघनों और सामाजिक अन्याय के मुद्दों पर व्यापक रिपोर्टिंग की है। उनके काम ने समाज में महत्वपूर्ण मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाई है और संवाद को प्रोत्साहित किया है।
पत्रकारिता एक ऐसा माध्यम है जो समाज को जागरूक करता है, सत्ता को जवाबदेह बनाता है, और वंचितों को आवाज देता है। इन भारतीय पत्रकारों ने अपनी साहसिक रिपोर्टिंग और योगदान से न केवल मीडिया की भूमिका को और मजबूत किया है, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए भी प्रेरित किया है।
पत्रकार समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और वे अक्सर सत्य को उजागर करने और सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह ठहराने के लिए अपनी जान को खतरे में डालते हैं। उनका समर्पण और साहस अत्यधिक सराहनीय हैं, खासकर जब वे धमकियों, हिंसा, और सेंसरशिप जैसी कठिनाइयों का सामना करते हैं।
पत्रकारों को अक्सर कठिन और खतरनाक परिस्थितियों में काम करना पड़ता है, ताकि वे जरूरी जानकारी जनता तक पहुंचा सकें। उन्हें कई प्रकार की चुनौतियाँ और खतरे झेलने पड़ते हैं:
धमकियाँ:
भारत में गौरी लंकेश जैसे पत्रकारों को अपनी निडर रिपोर्टिंग के कारण जान से मारने की धमकियाँ मिली हैं।
हिंसा:
कई पत्रकारों पर हमला हुआ है, कुछ को तो उनकी पत्रकारिता के कारण जान से भी हाथ धोना पड़ा है, जो यह दर्शाता है कि पत्रकारिता के पेशे में कितनी खतरनाक स्थितियाँ हो सकती हैं।
सेंसरशिप:
कभी-कभी सरकारें और अन्य शक्तिशाली संगठन पत्रकारों पर सेंसरशिप लगाने की कोशिश करते हैं, जिससे वे स्वतंत्र और सही तरीके से रिपोर्ट नहीं कर पाते।
राष्ट्रीय प्रेस दिवस और अन्य अवसरों पर, हमें उन पत्रकारों का समर्पण और योगदान स्वीकार करना चाहिए, जो:
सत्य की तलाश करते हैं:
सत्य की खोज में निरंतर प्रयास करते हैं और जनता को सही जानकारी प्रदान करते हैं।
जागरूकता फैलाते हैं:
महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों को उजागर करते हैं, जैसे मानवाधिकार उल्लंघन, पर्यावरणीय समस्याएँ, और सामाजिक अन्याय।
परिवर्तन लाने में मदद करते हैं:
अपनी रिपोर्टिंग के माध्यम से कार्रवाई और बदलाव की प्रेरणा देते हैं, नागरिकों को सशक्त बनाते हैं और नीति में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं।
पत्रकारों का समाज में योगदान अनमोल है, और उनका काम लोकतंत्र और न्याय के लिए अत्यंत आवश्यक है।
राष्ट्रीय प्रेस दिवस 2024 पत्रकारिता की उस महत्वपूर्ण भूमिका का उत्सव है, जो लोकतंत्र को आकार देने, पारदर्शिता को बढ़ावा देने और सामाजिक परिवर्तन को प्रेरित करती है। जैसे-जैसे मीडिया का स्वरूप विकसित हो रहा है, जिम्मेदार और नैतिक रिपोर्टिंग के प्रति प्रतिबद्धता प्रेस की स्वतंत्रता बनाए रखने, जागरूक नागरिकता को प्रोत्साहित करने और समाज में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
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