अपनी दैनिक जीवन में हर रोज कभी प्रसन्नता, कभी दुख, तो कभी आश्चर्यचकित क्षणों से जूझकर हमारे शरीर से अधिक हमारा मस्तिष्क थक जाता है। इस थकान को हम सीधे अनुभव नहीं कर पाते किन्तु यह अलग-अलग रूपों में यह हमारे अंदर चलता रहता है और यही आगे चलकर तनाव, नकारात्मकता, अनिद्रा और निराशा में बदल जाता है। मानसिक स्थिरता हर किसी की आवश्यकता है। परिस्थितियाँ सभी की अलग-अलग होती है , यह कभी नया समझें कि कठिनाइयाँ केवल आपके जीवन में है। हर किसी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहतें है किन्तु कभी-कभी संयम से उस क्षण के बीत जाने देने की प्रतीक्षा और आने वाले कल का स्वागत करने की आवश्यकता होती है ।
अपने दैनिक जीवन में हर रोज कभी प्रसन्नता, कभी दुख, तो कभी आश्चर्यचकित क्षणों से जूझकर हमारे शरीर से अधिक हमारा मस्तिष्क थक जाता है। इस थकान को हम सीधे अनुभव नहीं कर पाते किन्तु यह अलग-अलग रूपों में हमारे अंदर चलता रहता है और यही आगे चलकर तनाव, नकारात्मकता, अनिद्रा और निराशा में बदल जाता है। हम तो यह भी नहीं समझ पाते हैं कि हमें स्वयं को शांत करने की आवश्यकता है या रोजमर्रा के काम से एक ब्रेक लेने की आवश्यकता है। हममे से अधिकतर लोग तो यह स्वीकारना भी गलत समझते हैं की वह मानसिक तनाव, अवसाद या अस्थिरता से गुजर रहें हैं जो कि बहुत गलत है। आइए आज हम इस बेहद आवश्यक और संवेदनशील मुद्दे पर बात करें -
सबसे आवश्यक है बातचीत या communicate करना। यदि आपके जीवन में ऐसा कोई भी व्यक्ति है जिससे आप अपने मन-मस्तिष्क की सभी बातें साझा कर सकतें हैं तो अवश्य करिये। अपने मन में चल रहे असमंजस को बांटना बहुत आवश्यक होता है । कोई मित्र, जीवनसाथी, माता -पिता, घनिष्ट सम्बन्धी या फिर कोई कार्यस्थल का सहकर्मी, इनमें से जिसके भी साथ आपको सहजता अनुभव हो उसके साथ बात करें। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि जिससे आप अपने मन की बात करना चाहतें हैं वह आपका विश्वासपात्र हो क्यूंकि कभी-कभी गलत व्यक्ति, गलत सलाह भी दे सकता है और आपको गलत भी समझ सकता है। हम अक्सर अपने सामान उम्र वालों से अपनी बात करने में सहज महसूस करते है ,याद रखे आपको कोई अनुभवी व्यक्ति ही सही सलाह दे सकता है,यदि कोई अच्छा आपका हितैषी जो उम्र में आपसे बड़ा भी हो उससे अपनी परेशानी,समस्या जरूर सांझा करे। वो आपका अच्छा दोस्त बन सकता है तो बनाये। दोस्ती के लिए किसी की उम्र न देखे बल्कि उसके अनुभव और उसकी ईमानदार सोच को प्राथमिकता दें।
कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारी इच्छा ही नहीं होती कि हम किसी से अपनी बात कहें। इसका कारण यह होता है कि कुछ व्यक्ति अत्यधिक संकोची स्वभाव के होते हैं तो कुछ हिचकिचाते रह जातें है। कुछ व्यक्तियों के साथ तो यह परिस्थिति भी होती है की बहुत समझाने और बातचीत करने पर भी उनकी मन-मस्तिष्क की दशा कोई भी समझने को तैयार नहीं होता। ऐसे में निराश होना स्वाभाविक होता है । ऐसी परिस्थिति में आप स्वयं को समझने और स्वयं की सहायता का प्रयास कर सकतें हैं , जैसे- मन को शांत रखना या अपने पसंद के मनोरंजक कार्यक्रम देखना या अपनी पसंद की किसी गतिविधि में भाग लेना जैसे-बागबानी, नृत्य, चित्रकला या अपने जानने वालों से बातचीत करना । इस तरह से आपका मस्तिष्क भी नए सिरे से सक्रिय होगा और आपमें फिर से स्वयं को समझने क्षमता आएगी।
मन-मस्तिष्क में चल रही यही वह उलझन का वह समय है जब आपको संयम रखने की आवश्यकता है। अत्यधिक नकारात्मकता से बचें। ध्यान रहे यह जो समय आपके समक्ष कठिनाई बनकर आया है, यह समय, यह परिस्थिति सदैव ऐसी ही नहीं रहने वाली है। आज आप जैसा अनुभव कर रहें है हो सकता है कल, कुछ अलग और बेहतर हो, इसलिए सदैव आने वाले कल के लिए आशा रखिये निराश न होइए । ऐसे में मन को अच्छा लगने वाला और सकारात्मक रखने वाला कार्य करते रहें। वैसे भी भगवतगीता में कहा गया है-आपके हाथ में तो केवल कर्म है तो अपना कर्म ईमानदारी से निभाएं और परिणाम की चिंता छोड़ दें क्यूंकि परिणाम आपके नियंत्रण में नहीं है केवल कर्म, है। यह स्मरण रखिए-मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ।
यह सत्य है कि धैर्य रखना, संयम साधना अत्यंत कठिन है विशेषकर ऐसी परिस्थिति में जब मस्तिष्क में बहुत कुछ चल रहा हो। यह कठिन कार्य ही आपको बहुत कुछ सिखाएगा। धैर्य आपको शक्ति देगा उस समय की प्रतीक्षा करने की, जब आप बेहतर अनुभव करेंगें। हर दिन-प्रतिदिन मानव मस्तिष्क एक अलग अनुभव से गुज़रता है और यह अनुभव उसे कभी प्रसन्नता देते हैं तो कभी हताशा। स्मरण रखिए यह सारे अनुभव आपके अपने ही है, आप इन्हे स्वयं से अलग नहीं रख सकते तो समय व परिस्थितियों से भागने के स्थान पर उन्हे स्वीकार करिये और यह समझने का प्रयत्न करिये कि कोई भी परिस्थिति रातों रात नहीं बदलती, इसमें समय लगता है और स्वयं को किसी भी परिस्थति से बाहर निकलने का समय आपको देना होगा। धीरज रखिये, मानव का स्वभाव भावुक अवश्य होता है पर खुद को संभालना भी आपका ही कर्तव्य है।
अत्यधिक व्यस्तता और अपनी कार्यशैली में आजकल सभी लोग इतना व्यस्त होते जा रहें हैं कि स्वयं को भूलते जा रहे हैं। यह भी भूलते जा रहे हैं कि वह मशीन नहीं मनुष्य है और उनके कार्य करने की कुछ मानसिक और शारीरिक क्षमताएं हैं। यदि आप अधिक देर से कुर्सी पर बैठने वाला कार्य करतें हैं तो बीच-बीच में ब्रेक लें। प्रतिदिन की जीवनशैली से एक छुट्टी लेना बहुत आवश्यक है। जीवन में अकेले हैं तो भी या मित्रों और परिवार के साथ भी आप कुछ दिनों की छुट्टी की योजना बनाएं और स्वयं को एक मानसिक ब्रेक दें। कभी-कभी आपको केवल एक नई जगह या नए अनुभव जीवनभर के लिए सुंदर क्षण दें जातें है। ऐसा अक्सर किया करें, महीने में या हफ्ते में कभी-कभी आस-पास की कोई मनोरम जगह घूमने की योजना भी बनाई जा सकती है।
नींद एक ऐसी आवश्यकता है जिसे अक्सर नकार दिया जाता है जबकि यही मानव शरीर और मन-मस्तिष्क की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यदि आप एक दिन भी ठीक से नया सोएं तो पूरे दिन आप कितना चिड़चिड़ा अनुभव करते हैं,उस दिन मस्तिष्क भी जल्दी थक जाता है क्यूंकि जब हम सोतें हैं तो हमारे मस्तिष्क को भी आराम मिलता है। ठीक से सोने पर दुनियाभर की समस्याएं हो जाती है। यहाँ यह सब बताकर मेरा उद्देश्य आपको डरना या चिंतित करना नहीं है बल्कि केवल यह समझाना है कि आप प्रयास करें कि 4-6 घंटे की नींद आप अवश्य पूरा करें ताकि ताजगी बनी रहे और आप अच्छी ऊर्जा से कार्य कर सकें।
बहुत सी मानसिक परेशानियों का कारण आजकल अत्यधिक सोशल मीडिया के प्रयोग है । यह सत्य है कि अपनी पसंद की देश-विदेश की खबरों, मनोरंजन जगत और अपने जानने वालों के सम्पर्क में रहने के लिये सोशल मीडिया का प्रयोग आवश्यक भी है किन्तु अत्यधिक प्रयोग जैसे आपके मन पर किसी की बातों का नकारात्मक प्रभाव होना या अपने जीवन की तुलना संबंधित व्यक्ति से करने लगना या सोने के वक्त पर फोन देखते रहना, यह सभी आदतें भी बुरा प्रभाव डालती हैं शायद इसलिये ही कहा गया है कि कोई भी चीज़ आवश्यकता से कम या अधिक दोनों ही हानिकारक है।
आप चाहे योगाभ्यास में रुचि रखतें हो या व्यायाम में पर सुबह के समय शारीरिक अभ्यास आपको मानसिक शक्ति भी देता है। यह दिनभर आपको बाकी के कार्यों के लिए भी तैयार करता है और ऊर्जावान रखता है। एक बार आप प्रातः के इस अभ्यास को अपने जीवन में लाकर देखिये, आपके अंदर का डर, घबराहट सभी कुछ ऊर्जा के रुप में आपके व्यायाम में समा जाएगा और आप नई ताजगी का अनुभव कारेंगें।
भोजन की भी बड़ी भूमिका होती है। यह शत-प्रतिशत सत्य है कि जो जैसा खाता है उसका स्वभाव कुछ ऐसा हो जाता है, जैसे अत्यधिक मसाले और तीखे को क्रोधी स्वभाव से जोड़ा जाता है, अत्यधिक माँसाहार के सेवन करने वालों भी तथाकथित तौर पर सामान्यतः हिंसक स्वभाव का माना जाता है। इसमें सभी तरह की अवधारणाओं के बीच एक बात सत्य है कि अच्छा भोजन जैसे-फल, हरी सब्जियाँ, सलाद या फिर वह सभी कुछ जो आपकी सेहत के लिए अच्छा है, अवश्य लें। स्मरण रखिए कि भरे हुए पेट से मन प्रसन्न और मस्तिष्क शांत और संतुष्ट रहता है।
सभी को मनोचिकित्सक की सलाह की आवश्यकता नहीं होती, कुछ लोग स्वयं को ठीक करना जान लेते है पर यदि सभी उपायों और प्रयासों के बाद भी आप स्वयं को असहाय अवस्था में पाते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं कि आप किसी मनोचिकित्सक के पास जाकर उन्हे अपनी दशा के विषय में खुलकर बताएं और उनकी पूरी सहायता लें। उनसे मिलने के बाद यह आपका कर्तव्य है की आपको जो भी सलाह दी जा रही है उसका आप अनुसरण करें क्यूंकि कोई भी आपकी सहायता तभी कर सकता है जब आप स्वयं की सहायता करने को तैयार हों । दीपिका पादुकोण, कपिल शर्मा Deepika Padukone, Kapil Sharma आदि हस्तियों ने स्वीकार है कि उन्होंने मनोचिकित्सकों की सहायता ली है।
निष्कर्ष- Conclusion
मानसिक स्थिरता हर किसी की आवश्यकता है। परिस्थितियाँ सभी की अलग-अलग होती है , यह कभी ना समझें कि कठिनाइयाँ केवल आपके जीवन में है। हर किसी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहतें है किन्तु कभी-कभी संयम से उस क्षण के बीत जाने देने की प्रतीक्षा और आने वाले कल का स्वागत करने की आवश्यकता होती है । आपको समझना होगा कि ईश्वर भी उसी की सहयायता करता है जो स्वयं अपनी करता है।